नई दिल्ली December 10, 2008
खाद्य पदार्थों की कीमतें कम होने के बीच आय घटने की आशंका से देश के किसानों में काफी बेचैनी है। इसके लिए वे सीधे सरकार को जिम्मेदार बता रहे हैं।
किसानों का कहना है कि गेहूं, वनस्पति तेल और चीनी जैसी जरूरी जिंसों पर सरकार ने आयात शुल्क समाप्त कर दिया है। इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है। उन्हें डर है कि आने वाले समय में यूरोपीय संघ के साथ कृषि क्षेत्र में मुक्त व्यापार समझौते पर देश के रजामंद हो जाने से किसानों की मुसीबतें और भी बढ़ जाएगीं।खाद्य तेलकिसानों के मुताबिक, वर्ष 1994-95 तक भारत में वनस्पति तेल की कुल खपत का 90 फीसदी घरेलू उत्पादन से पूरा होता था। अभी का हाल ये है कि कुल जरूरत के 50 फीसदी से अधिक की आपूर्ति विदेशों से हो रही है। सरसों का उत्पादन लगातार गिर रहा है।दो साल पहले तक सरकार के पास 20 लाख टन सरसों का स्टॉक था जो अब बिल्कुल समाप्त हो गया है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में पाम तेल की कीमत ढाई गुने से भी अधिक कम होने के बावजूद सरकार ने कच्चे पाम तेल के आयात को शुल्क मुक्त रखा है। इसका नकारात्क असर तिलहन उत्पादकों पर पड़ रहा है। सोयाबीन की कीमत 1,550 रुपये प्रति क्विंटल से ऊपर नहीं जा रही है। किसान युध्दबीर सिंह कहते हैं कि सरकार ने दो सप्ताह पहले कच्चे सोयाबीन तेल पर 20 फीसदी की डयूटी लगा दी, जबकि रिफाइंड सोयाबीन तेल पर मात्र 7.5 फीसदी का आयात शुल्क है।वे पूछते हैं कि इसका फायदा किसे मिलेगा? विश्व खाद्य संगठन के मुताबिक, 2008-09 के दौरान तिलहन के वैश्विक उत्पादन में 2.70 करोड़ टन की बढ़ोतरी का अनुमान है।इंदौर के किसानों का मानना है कि सरकार को सोयाबीन के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को भी बढ़ा देना चाहिए। क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में वनस्पति तेल में जारी गिरावट को देखते हुए जनवरी में सोयाबीन का बाजार भाव वर्तमान एमएसपी (1,390 रुपये प्रति क्विंटल) से भी कम हो सकती है।गेहूंकिसान आने वाली रबी फसल के लिए गेहूं के भाव को लेकर अभी से आशंकित है। आगामी रबी फसल में गेहूं का घरेलू उत्पादन पिछले साल के उत्पादन 7.80 करोड़ टन के आस-पास ही रहने की उम्मीद है। दूसरी ओर, वैश्विक स्तर पर भी गेहूं की उपज में इस साल पिछले साल की तुलना में 6.70 करोड़ टन की वृद्धि का अनुमान है। इसके अलावा विश्व बाजार में गत अक्टूबर माह से ही गेहूं की कीमत में गिरावट हो रही है। मार्च के मुकाबले अक्टूबर में गेहूं की वैश्विक कीमत में 30 फीसदी तक की गिरावट हो चुकी थी। यह गिरावट अभी भी जारी है। देश के किसानों को अब इस बात की आशंका सता रही है कि घरेलू बाजार में सस्ते गेहूं का आयात होने से उन्हें भी अच्छी कीमत नहीं मिल पाएगी। चीनीभारतीय किसान आंदोलन की समन्वय समिति के संयोजक कहते हैं कि गन्ना किसानों को पिछले साल भी काफी देरी से भुगतान मिला था। इस बार भी एक माह की देर से पेराई शुरू होने के कारण किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।गन्ने में कीड़े लगने से इस बार उत्पादन भी प्रभावित हुआ है। किसान कहते है कि चीनी की कीमत से ही उनका भुगतान जुड़ा होता है। हालांकि इस साल वैश्विक स्तर पर चीनी उत्पादन में 5 फीसदी की कमी के आसार हैं, इसके बावजूद अक्टूबर से ही चीनी की कीमतों में कमी हो रही है। (BS Hindi)
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