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08 दिसंबर 2008

सरकारी बिक्री में देरी से गेहूं महंगा

मूल्य नियंत्रण के लिहाज से फ्लोर मिलों को गेहूं बेचने की योजना कछुआ चाल से चल रही है। इस कारण गेहूं के भाव बढ़ने लगे हैं। तयशुदा समय सीमा बीत जाने के बाद भी सरकार फ्लोर मिलों को उनका निर्धारित गेहूं उन्हें नहीं दे पाई है। इसके कारण गेहूं के दाम पिछले दो महीनों में 10 फीसदी तक बढ़ गए हैं। इस देरी के चलते पिछले दो महीने में दाम 1050 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 1160 रुपये तक पहुंच गए हैं। सरकार ने कीमतों को स्थिर बनाये रखने के लिए गेहूं की खुले बाजार में बिक्री का फैसला किया था। इसके लिए फूड कारपोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआई) को नोडल एजेंसी बनाया गया। एफसीआई आंकड़ों के अनुसार केंद्र सरकार ने सितंबर-अक्टूबर के दौरान खुले बाजार बिक्र नीति के तहत फ्लोर मिलों को टेंडर के जरिये 8.48 लाख टन गेहूं बेचने का फैसला किया था। लेकिन सरकार अभी तक केवल 1.92 लाख टन गेहूं के लिए ही टेंडर निकाल पाई है। इसके अलावा 10 राज्यों ने तो अभी तक कोई टेंडर नहीं निकाले हैं। इनमें मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश शामिल हैं।दिल्ली ऐसा अकेला राज्य है जहां आवंटित गेहूं की पूरी मात्रा का टेंडर कर दिया गया है। गेहूं बिक्री में देरी के चलते सबसे ज्यादा समस्या पंजाब और हरियाणा की फ्लोर मिलों को हो रही है। इन राज्यों का करीब 80-85 फीसदी गेहूं केंद्र सरकार ने खरीद लिया है। जिससे खुले बाजार में गेहूं की उपलब्धता काफी कम है। इसके अलावा सीजन के समय स्टॉक सीमा लगने का अंदेशा होने के चलते फ्लोर मिलों ने गेहूं की खरीद काफी कम की थी। इससे इन राज्यों की फ्लोर मिलों को गेहूं नहीं मिल रहा है।केंद्र सरकार ने पहली बार गेहूं की खुले बाजार में बिक्री के लिए टेंडर द्वारा आवंटन की प्रकिया अपनाई है। इसके पहले हर राज्य के लिए गेहूं आवंटन की कीमत तय कर दी जाती थी। फ्लोर मिलें अपनी आवश्यकता के अनुसार कहीं से भी गेहूं खरीद लेते थे। इस बार मिलों को पहले टेंडर भरना पड़ा है। एक राज्य की मिल दूसरे राज्य में टेंडर नहीं डाल सकती है। इसके अलावा एक मिल एक बार में अधिकतम 1000 टन गेहूं के लिए ही टेंडर दे सकती है जो ज्यादातर बड़ी मिलों की केवल तीन दिनों के उत्पादन के लिए ही पर्याप्त होगा है। (Business Bhaskar)

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