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05 अगस्त 2013

कमोडिटी की खतरनाक कहानी

शायद ही विश्व का कोई मुल्क हो, जहां किसी बाजार के रेगुलेशन में सुधार करने के लिए निवेशकों का 5,500 करोड़ रुपये का निवेश फंसना जरूरी हो जाए। इसलिए कहानी की शुरुआत से पहले ही निष्कर्ष यह है कि 31 जुलाई को अचानक कमोडिटी बाजार में एक भूचाल आया, जिसने इस बाजार से जुड़े हर आम और खास को चौंका कर रख दिया। इतिहास गवाह रहा है कि भारत में किसी बड़े सुधार की जमीन तभी तैयार होती है, जब पानी सिर से ऊपर चला जाता है। जब तक काम चल रहा है, सभी अपनी-अपनी जिम्मेदारियां भूलकर अपनी अनोखी दुनिया में मस्त रहते हैं। कमोडिटी बाजार में यह अपने तरह की पहली खतरनाक कहानी है। इस कहानी में नायक कोई नहीं सिर्फ खलनायक ही खलनायक हैं। क्या है पूरी कहानी का सच नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड यानी एनएसईएल देश का पहला कमोडिटी का हाजिर बाजार है, जहां इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म के जरिये खरीद-फरोख्त की जाती है। कंपनी की वेबसाइट पर साफ लिखा है कि एनएसईएल राष्ट्रीय स्तर का संगठित, इलेक्ट्रॉनिक और पारदर्शी हाजिर बाजार है। यहां पर कमोडिटी की खरीद-बिक्री बिना किसी जोखिम के सरल तरीके से की जाती है। बीते गुरुवार को कंपनी का एक-एक झूठ सामने आ गया। एक्सचेंज ने अचानक अपने सदस्यों को लिखे एक सर्कुलर में अगली नोटिस तक सभी फॉरवर्ड कांट्रैक्ट को रद कर दिया। इससे निवेशकों के 5,500 करोड़ रुपये इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम में अटक गए। सौदे के निपटारे के लिए 15 दिनों का वक्त मुकर्रर किया गया। इसकी वजह से निवेशकों में हड़कंप सा मच गया। अचानक लोगों को महसूस हुआ कि एक्सचेंज डिफाल्ट तक कर सकता है। आननफानन उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय, पूंजी बाजार नियामक सेबी, कमोडिटी बाजार का अर्ध-नियामक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने अपनी अपनी पोजीशन संभाल जांच का रटा रटाया आदेश जारी कर दिया। फाइनेंशियल टेकनालॉजीस (एफटीआइएल) और इससे जुड़ी एमसीएक्स लिमिटेड के शेयर बुरी तरह से गिरे। और निवेशकों के 3,500 करोड़ रुपये डूब गए। एफटीआइएल एनएसईएल और एमसीएक्स की मालिकाना हक वाली कंपनी है। कौन-कौन हैं खलनायक शुरुआत इस कहानी के ठीक केंद्र से। सबसे बड़ा खलनायक यकीनन एनएसईएल है। स्पॉट मार्केट में टी प्लस जीरो आधार पर कारोबार होता है। यानी खरीदार को एक्सचेंज पर कारोबार के दिन ही माल मिल जाता है। एक्सचेंज अगले दिन 11 बजे तक विक्रेता को पैसा पकड़ा देता है। एक्सचेंज ने अपने कारोबारियों को सहूलियत देने के लिए नई सुविधा की शुरुआत की। उसने देरी से भुगतान की सुविधा के जरिये अपने कारोबारियों को भुगतान के लिए 25 से 36 दिनों का वक्त दिया। इसे आप टी प्लस 25 अथवा टी प्लस 36 फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट कह सकते हैं। इन सुविधा ने एक नई श्रेणी के निवेशकों को जन्म दिया जो स्पॉट में खरीददारी करते और ऊंचे दामों पर फारवर्ड में बेचते। कीमतों का अंतर उनका मुनाफा होता था। अभी तक कोई परेशानी नहीं थी। 12 जुलाई को उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय ने एनएसईएल को एक नोटिस भेजा। इसके मुताबिक सरकार ने सिर्फ टी प्लस 11 वाले फारवर्ड कान्ट्रैक्ट को मंजूरी दी है। एक्सचेंज इससे अधिक वक्त देकर कानून का उल्लंघन कर रहा है। 9 जुलाई को न्यूज पोर्टल मनीलाइफ ने फॉरवर्ड मार्केट कमीशन यानी एफएमसी के हवाले से यह खबर की थी कि एनएसईएल अपने सदस्यों को शार्ट सेलिंग की इजाजत दे रहा है यानी यह जाने बिना कि विक्रेता के पास माल है अथवा नहीं। यहीं कानून का उल्लंघन हो रहा था। इस कहानी के दूसरे पहलू पर नजर डालें तो खामी कानून में नजर आती है। तो क्या कानून एनएसईएल से भी बड़ा खलनायक है? भारत में कमोडिटी बाजार 1952 के फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट रेगुलेशन अधिनियम के आधार पर नियमित होते हैं। वायदा बाजार आयोग को कमोडिटी बाजार को रेगुलेशन के पूरे अधिकार नहीं हैं। संशोधन विधेयक संसद के विचाराधीन है। वायदा कारोबार एफएमसी के नियमन के दायरे में आता है लेकिन हाजिर बाजार यानी स्पॉट मार्कट अभी भी नियमन के दायरे से बाहर है। सवाल यह है कि उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय किसी भी कार्रवाही के लिए बड़ी गड़बड़ी का इंतजार क्यों करता रहा। और अंत में क्या निवेशक की वह श्रेणी भी खलनायक है, जो हाजिर बाजार में सस्ता खरीदकर वायदा बाजार में मुनाफे पर बेच रही है। यह जाने बिना कि जो सौदा वे कर रहे हैं उसे कानूनी मान्यता प्राप्त है भी अथवा नहीं। तो क्या लगा है दांव पर कुल बकाया पोजीशन है 5,500 करोड़ रुपये। एनएसईएल का दावा है कि उसके पास देश भर के 60 गोदामों में 6,200 करोड़ रुपये की लागत की कमोडिटी का स्टॉक पड़ा है। अगर निवेशक पैसा नहीं दे पाते तो इस स्टॉक को बेचकर फंड जुटाना होगा। सवाल यह है कि इन सौदों का निपटारा कौन करेगा, जबकि एफएमसी को इसके नियमन का अधिकार ही नहीं है। सरकार अब जागी है। एफएमसी को स्पॉट मार्केट का रेगुलेटर बनाने जा रही है। सौदौं के निपटारे का भी आदेश जारी हुआ है। इसमें महीनों लग सकता है। तब तक एक्सचेंज पर कारोबार तो थम ही गया है। अभी स्थिति क्या है एक्सचेंज में कारोबार थमा हुआ है। एफटीआइएल और एमसीएक्स में निवेश करने वालों ने निकासी की शुरुआत कर दी है। स्पष्टीकरण का मानो दौर सा चला है। सेबी ने फाइनेंशियल टेकनॉलाजीस और एमसीएक्स के शेयरों में गिरावट की जांच शुरू कर दी है। सरकार अब एफएमसी को और भी ज्यादा अधिकार देने की तैयारी में है। सेबी के पूर्व अफसर नरेंद्र पारिख, जो अभी एफएमसी में हैं, को सौदों के निपटारे की जिम्मेदारी दी गई है। हमने एफएमसी के साथ गुरुवार और शुक्रवार को स्थिति का जायजा लिया। जहां तक शेयर बाजार का प्रश्न है, यहां सब कुछ ठीक है। ..सभी पे-आउट और पे -इन ठीक ढंग से हो रहे हैं। कोई सिस्टमैटिक रिस्क नहीं है। -यूके सिन्हा (चेयरमैन, सेबी) एनएसईएल को कानून का पालन करना चाहिए। जहां भी उल्लंघन हुआ है, हम कड़ी कार्रवाई करेंगे..सरकार ने मामले को गंभीरता से लिया है। -केवी थॉमस (उपभोक्ता मामलों के मंत्री) मुझे नहीं लगता कि ऐसी स्थिति में घबराने की कोई जरूरत है। जिन लोगों ने एक्सचेंज पर कारोबार किया है, उनके अधिकार सुरक्षित हैं। -अंजनी सिन्हा (सीईओ, नेशनल स्पॉट एक्सचेंज ) हमें विश्वास है कि एनएसईएल कानून और नियमों के तहत इस स्थिति का समाधान अपने स्तर पर कर लेगा। -जिग्नेश शाह (चेयरमैन, एफटीआइएल) बहुत कुछ सिखाता है यह एपीसोड सबसे पहले तो यह जरूरी है कि आप एमसीएक्स और एफटीआइएल के शेयरों में भारी गिरावट के बाद इसमें निवेश की कतई न सोचें। जानकारों के मुताबिक अभी और गिरावट आनी बाकी है। इंडियाबुल्स सिक्योरिटीज, श्रेयांश रिसोर्सेज, मोतीलाल ओसवाल, इंडिया इन्फोलाइन जैसे शेयरों से दूर रहें तो बेहतर है। एक छोटी सी अफवाह में भारी बिकवाली की कगार पर बैठा बाजार आपका फायदा चट कर सकता है। इस एपीसोड ने एसी कमरों में निगाहें नीचे किए सरकारी अफसरों की अनदेखी को भी बखूबी बयां कर दिया है। सवाल एनएसईएल के कारोबार को लेकर भी खड़े हो रहे हैं। सवाल यह भी है कि ई-सीरीज की दूसरे उत्पादों पर भी सरकार ने रोक लगा दी तो निवेशकों का क्या होगा। यहां म्युचुअल फंड जैसी व्यवस्था भी नहीं है, जो निवेशकों की रक्षा का दंभ भर सके। (Dainik Jagran)

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