19 अगस्त 2013
उत्पादन बढ़ा, पर कृषि योग्य भूमि का रकबा घटा
स्वतंत्रता बाद देश की विशाल आबादी को भोजन मुहैया कराने की चुनौतियों के बीच पिछले तीन दशकों में कृषि योग्य भूमि का रकबा 54 लाख हेक्टेयर कम हुआ है।
कृषि मंत्रालय की 2011-12 की रिपोर्ट के अनुसार, स्वतंत्रता से पहले के समय में अनाज की कमी के अनुभव के कारण खाद्यान्न में स्वाबलंबन पिछले 60 वर्षों में हमारी नीतियों का केंद्र बिन्दु रहा है और खाद्यान्न उत्पादन का इस संबंध में अहम स्थान रहा है। हालांकि कुल अनाज उत्पादन में खाद्यान्न का हिस्सा 1990-91 में 42 प्रतिशत से घटकर 2009-10 में 34 प्रतिशत रह गया है।
जाने माने कृषि वैज्ञानिक प्रोफेसर एम एस स्वामीनाथन ने कहा कि अगर खाद्यान्न का उत्पादन नहीं बढ़ता है, तब भारत को आने वाले समय में गंभीर समस्या का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि कषि योग्य भूमि का रकबा घट रहा है, खेती में रूचि कम हो रही है और कृषि लागत बढ़ रही है। ऐसे में सरकार को किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए दीर्घावधि कषि नीति तैयार करना चाहिए।
भारत ने हरित क्रांति रणनीति अपना कर खाद्यान्न उत्पादन में स्वावलंबन प्राप्त करने की दिशा में काफी प्रगति की है। इसके फलस्वरूप खाद्यान्न उत्पादन 1960-61 में 8.2 करोड़ टन से बढ़कर 2011-12 में 25 करोड़ टन हो गया।
हालांकि कृषि योग्य भूमि के रकबा में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। यह 1979 के 16.34 करोड़ हेक्टेयर से घटकर 2009 में 15.80 करोड़ हेक्टेयर रह गया है। पिछले तीन दशकों में कृषि योग्य भूमि का रकबा 54 लाख हेक्टेयर कम हुआ है। (Hindustan Hindi)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें