सस्ते राशन की कानूनी गांरटी का फायदा केवल निर्धन परिवारों तक ही सीमित रखे जाने की सिफारिश
प्रधानमंत्री द्वारा गठित एक समिति ने प्रस्तावित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक के तहत सस्ते राशन की कानूनी गांरटी का फायदा केवल निर्धन परिवारों तक ही सीमित रखे जाने की सिफारिश की है.
समिति ने इस मामले में संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के इस सुझाव को अव्यावहारिक बताया है कि इस गारंटी का लाभ 75 प्रतिशत आबादी तक पहुंचाया जाए.प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी रंगराजन की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति ने सरकार के पास खाद्य भंडार की सीमाओं का हवाला देते हुए कहा है कि 75 प्रतिशत आबादी को दो रूपये किलो गेहूं और तीन रूपये किलो चावल देने का कानूनी अधिकार देना संभव नहीं होगा. समिति की सिफारिशें गुरुवार को सार्वजनिक की गई.समिति का मानना है कि सरकार गरीबों के अलावा यदि दूसरे वर्ग के लोगों को भी रियायती दर पर राशन देना चाहती है तो वह इस कानून के बजाय अधिशासी आदेश के जरिये ऐसा करे. उसकी राय में गैर. प्राथमिकता वाले परिवारों को सरकारी स्टॉक की उपलब्धता को देखते हुए रियायती राशन का आवंटन किया जा सके.सोनिया की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने प्राथमिक और आम दोनों परिवारों को रियायती खाद्यान्न कानूनी तौर पर उपलब्ध कराने की सिफारिश की है. जिसके तहत 2011-12 से शुरू होने वाले पहले चरण में कम से कम 72 फीसदी आबादी और दूसरे चरण में 2013-14 तक 75 प्रतिशत आबादी को इस कानूनी गारंटी के लाभ के दायरे में लाने का सुझाव दिया गया है.राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक पर प्रधानमंत्री की विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया जाता है, तो सरकार का खाद्य सब्सिडी बिल 2,000 करोड़ रुपये बढ़कर 83,000 करोड़ रुपये पर पहुंच जाएगा। वहीं राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की सिफारिशों के तहत यदि 75 फीसदी आबादी को प्रस्तावित खाद्य विधेयक के दायरे में लाया जाता है, तो सरकार पर 11,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा और यह 92,060 करोड़ रुपये पर पहुंच जाएगा. वित्त वर्ष 2010-11 में खाद्य बिल बढ़कर 81,000 करोड़ रुपये पर पहुंच जाने की संभावना है, जो इससे पिछले साल 72,000 करोड़ रुपये रहा था. (Samay Live)
26 फ़रवरी 2011
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