26 फ़रवरी 2011
कब मिलेगा भारत को भर पेट भोजन
राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक के मसौदे को अंतिम रूप दे दिया है। देश की कुल 75 फीसदी आबादी को इसके तहत लाने का प्रयास किया गया है। विधेयक के पिछले ड्राफ्ट में आमूलचूल परिवर्तन करने के बाद अब गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले हर परिवार को प्रतिमाह 35 किलोग्राम अनाज उपलब्ध कराने की सिफारिश की गई है। गैर बीपीएल परिवारों को हर माह 20 किलो अनाज न्यूनतम समर्थन मूल्य की आधी कीमत पर मिलेगा। इस मसौदेे के सभी प्रस्तावों को हू-ब-हू लागू किया जाता है तो अगले वर्ष से गरीबों को दो रुपये किलो गेहूं, तीन रुपये किलो चावल और एक रुपये किलो की दर से बाजरा मिलने का रास्ता साफ हो गया है। इस योजना का लाभ देश की 80 करोड़ जनता को मिलेगा। भोजन का अधिकार विधेयक में बच्चों, गर्भवती और प्रसूता महिलाओं, मिड-डे स्कूल के बच्चों तथा अनाथ और वंचित समुदाय के लोगों को भी कानूनी रूप से अनाज सस्ते दर पर देने का प्रावधान किया गया है। इस योजना को शुरू में देश के 150 सबसे पिछड़े जिलों में ही लागू करने की बात है। पूरे देश में यह 31 मार्च 2014 तक लागू हो जाएगी। प्रस्तावित विधेयक की सबसे खास बात यह है कि इसमें पहली बार यह माना गया है कि भोजन प्राप्त करना हर नागरिक का कानूनी अधिकार है। निस्संदेह यह एक स्वागत योग्य पहल है। पर सबसे अहम सवाल यह है कि 35 किलो अनाज लोगों के भूखे पेट भरने में कितना सहायक होगा। क्या हमें सचमुच यह मान लेना चाहिए कि यह अनाज भारत को भुखमरी गरीबी एवं कुपोषण जैसी गंभीर समस्याओं से निजात दिलाने में सहायक होगा? जमीनी मुश्किलें सरकार यह दावा कैसे करेगी कि उसने सभी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर दी? प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा कानून के तहत जितना अनाज देने की बात की गई है, वह किसी भी गरीब परिवार के लिए ऊंट के मुंह में जीरे जैसा होगा। यदि सरकार सचमुच अपने इरादों को लेकर गंभीर है तो उसे भूख व कुपोषण की समस्या की गंभीरता को समझना होगा। आज देश में करीब 26 करोड़ लोग को एक वक्त भूखे ही सोना पड़ता है। आजादी के छह दशक बाद भारत का अंतराष्ट्रीय रुतबा काफी बढ़ गया है। हाल ही में अमेरिका की नेशनल इंटलिजेंस काउंसिल (एनसीए) और यूरोपीय संघ की संस्था यूरोपीयन यूनियन इंस्टिट्यूट फॉर सिक्युरिटीज स्टडीज (ईयूआईएसएस) के अध्ययन में कहा गया कि अमेरिका और चीन के बाद भारत विश्व का तीसरा सबसे शक्तिशाली राष्ट्र है, लेकिन दुनिया के सबसे अधिक भूखे और कुपोषणग्रस्त लोग भारत में ही रहते हैं। दुनिया में अत्यधिक भुखमरी का शिकार हर पांचवां व्यक्ति भारतीय है। बीते माह अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान (आईएफपीआरआई) द्वारा जारी वैश्विक भुखमरी सूचकांक, में भूख से लड़ रहे 84 देशों की सूची में भारत को 67वां स्थान दिया गया है, जबकि चीन इसमें नवें और पाकिस्तान 52वें स्थान पर है। गरीबों के नाम पर हमारे देश में योजनाएं ढेर सारी है लेकिन वितरण व्यवस्था में गड़बडि़यों और भ्रष्टाचार के कारण आर्थिक असमानता की खाई चौड़ी होती जा रही है। भारत में हर साल लगभग 25 लाख शिशुओं की अकाल मृत्यु होती है और यहां के 42 प्रतिशत बच्चे गंभीर कुपोषण के शिकार हैं। गर्भवती महिलाओं को न्यूनतम भोजन देने की कोई समन्वित योजना नहीं है। अनाज सड़ता रहता है लेकिन सरकार उसे भूखों को मुक्त बांटने को तैयार नहीं है। इस तर्क के साथ कि मुक्त या सस्ता अनाज उपलब्ध कराने से किसान हतोत्साहित होंगे। सरकार किसानों को सीधे अधिक सब्सिडी देने की योजना क्यों नहीं क्रियान्वित करती? अमेरिका और यूरोप में अनाज सस्ता होने के बावजूद वहां के किसानों को अपनी सरकार से कोई शिकायत क्यों नहीं है? ऐसा नहीं है कि देश में मौजूदा गरीबों को पेट भर खाना देने के लिए हमारे पास खाद्यान्न की कमी है। एक अनुमान के अनुसार, हमारे यहां फसल की कटाई से लेकर उसको गोदाम में पहुंचाने तक जितने अनाज की बर्बादी होती, उतनी ऑस्ट्रेलिया में फसल की उपज होती है। सुप्रीम कोर्ट सरकार से बार-बार कह रहा है कि अनाज को खुले आसमान में सड़ने के लिए छोड़ने से बेहतर है कि गरीब का पेट भरा जाए। कोर्ट का यह भी कहना है कि सिर्फ नीति बनाने से काम नहीं चलेगा। उन्हें जमीनी स्तर पर लागू करना जरूरी है। किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए खाद्यान्न की खरीद सरकार करती है, लेकिन अनाज का सुरक्षित भंडारण भी उतना ही आवश्यक है। जब यह संभव न हो, तब अनाज को सीधे पीडीएस के जरिए गरीबों तक भेजा जा सकता है। बोगस पीडीएस पीडीएस, यानी सार्वजनिक वितरण प्रणाली आज पूरे देश में लागू है, लेकिन इसके कुशल संचालन को लेकर हमेशा सवाल खड़े होते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बनी जस्टिस बधवा कमेटी ने पीडीएस को बोगस और कई राज्यों में एकदम फेल करार दिया है। उनके मुताबिक यह प्रणाली भ्रष्ट, दोषपूर्ण और अपर्याप्त है। पिछले छह दशकों में हुए पीडीएस घोटालों में पिछले साल अगस्त में उजागर हुआ अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री गेगांग अपांग का 1000 करोड़ रुपये का पीडीएस घोटाला भी जुड़ गया है। अत: सार्वजनिक वितरण प्रणाली केवल ठीक-ठाक करने से कारगर नहीं हो सकती, इसे आमूल-चूल बदलने की जरूरत है। महज अन्न की उपलब्धता से लोगों को संतुलित भोजन नहीं मिल पाएगा। असल समस्या यह है कि अनाज आम लोगों तक पहुंच नहीं रहा है। इसलिए हमें एक ऐसी व्यवस्था पर जोर देना होगा जो अन्न को जरूरतमंद लोगों तक समय रहते पहुंचा सके। इसके लिए जरूरी है कि सरकारी तंत्र अपनी व्यवस्था को तर्कसंगत और प्रभावी बनाए। यह तभी हो पाएगा जब सरकार इसे अपनी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में एक मानकर चलेगी। (Navabharat Hindi)
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