किसी भी व्यापार संगठन, किराने की दुकान, गृहिणी, छात्र या विनम्र दिहाड़ी मजदूर की तरह सरकार को भी अपने लिए वित्तीय योजना बनानी होती है। हालांकि, महान जिम्मेदारियों को उठाते हुए राष्ट्र राज्यों पर विश्वास करता है। सरकार का वार्षिक बजट उसके राजस्व और व्यय के अनुमान का संक्षिप्त रूप होता है। समाज के हित के लिए ,सीमित संसाधनों के अधिकतम उपयोग की योजना बनाने का, यह एक नाजुक अभ्यास होता है। लाभों के शुद्व अर्थशास्त्र का देश पर बढ़ते बोझ के साथ संतुलन बनाना भी इसका महत्वपूर्ण अंग है।
भारत में बजट की प्रक्रिया स्वतंत्रता पूर्व ही शुरू हो चुकी थी। भारतीय प्रशासन के ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश क्राउन को हस्तांतरण के दो वर्ष बाद 7 अप्रैल 1860 को पहली बार बजट पेश किया गया। पहले वित्त सदस्य, जिन्होंने बजट पेश किया, श्री जेम्स विल्सन थे।
स्वतंत्रता के पश्चात, देश के पहले वित्त मंत्री श्री आर के शामुकम चेट्टी ने , 26 नवंबर 1947 को बजट पेश किया। तब से, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 के अनुसार भारत का केन्द्रीय वित्त मंत्री “वार्षिक वित्तीय विवरण” तैयार करता है और हर साल , आमतौर पर फरवरी के अंतिम कार्यदिवस के दौरान, संसद के समक्ष प्रस्तुत करता है।
यह बजट नए वित्तीय वर्ष के आरंभ में 1 अप्रैल से प्रभाव में आता है और पिछले छह दशको के विकास के दौरान हमारी अर्थव्यवस्था को आकार देने में हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की शक्ति को दर्शाता है।
केन्द्रीय बजट
भारत में सार्वजनिक वित्त पर संसदीय नियंत्रण होता है जो कि केन्द्रीय बजट - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं के अनुमोदन के माध्यम से मुख्य रूप से नियंत्रित होता है। सार्वजनिक धन खर्च करने की यह भारी जिम्मेदारी सरकार और संसद - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं दोनों की होती है। सार्वजनिक धन को खर्च करने की योजना बनाने की जिम्मेदारी जहां सरकार की होती है, वहीं लोगों के प्रतिनिधी निकाय के रूप में संसद का यह कर्तव्य है कि सरकार के प्रस्तावों और नीतियों पर समझ और ध्यान बनाए रखे।
केन्द्रीय बजट की तैयारी वित्त मंत्रालय - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं, योजना आयोग - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं और अन्य मंत्रालयों के बीच चलने वाली एक प्रक्रिया है। यह द्विपक्षीय संप्रेषण का एक संयोजन है जहां वित्त् मंत्रालय और योजना आयोग के द्वारा अन्य मंत्रालयों को दिशानिर्देश जारी किये जाते हैं , वहीं दूसरी ओर अन्य मंत्रालय बजट आवंटन के लिए योजना आयोग और वित्त मंत्रालय से अनुरोध करते हैं।
बजट की मूल संरचना
सरकार अपने वित्तीय प्रबंधन के लिए संसद के प्रति जवाबदेह है। द्विसदनीय संसद के संवैधानिक प्रभुत्व के साथ, विशेष तौर पर लोकसभा - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं में, प्रत्येक वित्तीय कानून, नियम एवं नीतियां जनता के प्रतिनिधियों द्वारा पारित की जाती है। हालांकि, बजट लगान करों के निर्माण एवं सरकारी खातों और व्यय का निर्धारण करने के लिए प्रस्ताव, सरकारी मंत्रालयों द्वारा तैयार किये जाते है और वित्तीय मंत्रालय द्वारा समेकित किये जाते हैं।
केन्द्रीय बजट के तहत आम बजट और रेल बजट प्रस्तुत होते हैं। इसके अलावा अनुदान, पूरक मांगों के लिए अनुदान, विनियोग विधेयक और वित्त विधेयक भी केन्द्रीय बजट के भाग होते हैं।
वार्षिक वित्तीय विवरण मुख्य बजट दस्तावेज है। सरकारी खातों - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं जैसे संचित निधि, आकस्मिकता निधि और सार्वजनिक खाते की प्राप्ति और भुगतान की जानकारी का यह एक विस्तृत विवरण है।
सरकार के द्वारा प्राप्त किया गया समस्त राजस्व, ऋण और वसूली से प्राप्ति संचित निधि के रूप में होती है। सभी सरकारी व्यय संचित निधि में से किये जाते हैं और कोई भी राशि संसद से अधिकृत हुए बिना कोष से नहीं निकाली जा सकती।
दूसरी ओर आकस्मिकता निधि भारत के राष्ट्रपति - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं के पास संरक्षित करके रखी जाती है। इस निधि का उपयोग सरकार के जरूरी एवं अप्रत्याशित खर्चों के भुगतान जैसे अवसरों पर किया जाता है। इस तरह के खर्च और संचित निधि से इसकी प्रतिपूर्ति के लिए संसदीय अनुमोदन प्राप्त किया जाता है। खर्च की गई राशि की क्षतिपूर्ति बाद में आकस्मिकता निधि से की जाती है।
सामान्य सरकारी व्यय ,जो कि संचित निधि से संबंधित है, के अलावा कुछ अन्य लेनदेन जो सरकारी खातों में दर्ज किये जाते हैं जैसे भविष्य निधियां, सूक्ष्म बचत संग्रह एवं अन्य जमा आदि से संबंधित लेनदेन के संबंध में सरकार एक बैंकर की तरह भूमिका निभाता है। इस प्रकार जो पैसा प्राप्त होता है वह सार्वजनिक खाते में जमा होता है और उससे संबंधित वितरण भी वहीं से बनाया जाता है। इस प्रकार, सार्वजनिक खाते में धन सरकार से संबंध नहीं रखता है और जिन अधिकारियों एवं व्यक्तियों ने इसे जमा किया है उन्हें इसका भुगतान किया जाता है।
वार्षिक वक्तव्य के तुरंत बाद वित्त विधेयक लोकसभा में वित्त मंत्री द्वारा पेश किया जाता है। वित्त विधेयक संविधान के अनुच्छेद 110(1)(क) में दिए गए आरोपण, उन्मूलन, छूट या बजट में प्रस्तावित करों के विनियमन परिवर्तनों के ब्यौरों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रस्तुत किया जाता है। विनियोग विधेयक के पारित होने के बाद वित्त विधेयक पर विचार किया जाता है और एक धन विधेयक के रूप में संसद द्वारा पारित किया जाता है
आर्थिक सर्वेक्षण
वार्षिक बजट की प्रस्तुति से कुछ दिन पहले वार्षिक आर्थिक सर्वेक्षण - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं संसद में प्रस्तुत किया जाता है। सर्वेक्षण आगामी वर्ष के लिए देश की आर्थिक स्थिति का विस्तृत विश्लेषण है। सर्वेक्षण में केन्द्र और राज्य सरकारों की बजटीय लेनदेन की स्थिति के बारे में एक वक्तव्य और उनके कुल अधिशेष/चालू वर्ष में घाटे की स्थिति और पिछले वर्ष के रूझान भी शामिल होते हैं।
आर्थिक सर्वेक्षण में, देश की आर्थिक स्थिति के विश्लेषण के साथ, चालू वर्ष में कृषि, उद्योग, बुनियादी ढ़ांचे, रोजगार, पैसे की आपूर्ति, आयात, निर्यात, मूल्य, विदेशी मुद्रा भंडार, भुगतान का संतुलन आदि प्रवृतियों की चुने हुए पिछले वर्षों से तुलना कर विस्तृत विश्लेषण किया जाता है। यह दस्तावेज आगामी वर्ष के लिए संसाधन जुटाने और बजटीय आवंटन के प्रस्ताव बनाने में उपयोगी है और इसलिए इसे बजट की प्रस्तुति के बाद संसद में प्रस्तुत किया जाता है।
राज्यों के बजट
देश में शासन की संघीय व्यवस्था के कारण , केन्द्र द्वारा तैयार किये जाने वाले केन्द्रीय बजट के अलावा , प्रत्येक राज्य सरकार भी अपने स्वंय के बजट अलग से तैयार करती है।
राज्य बजट राज्यों के वित्त मंत्री, केंद्र सरकार के संबंधित विभागों के परामर्श से तैयार करते हैं। वित्तीय मामलों के संबंध में जिस तरह के मानदंडों का पालन केंद्र में किया जाता है ठीक उसी तरह से संबंधित राज्य की विधान सभाएं अपने राज्य में वित्तीय मामलों की देखरेख करती है।
हालांकि, अभी भी केन्द्र सरकार के पास नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं के माध्यम से राज्य वित्त पर नियंत्रण की बागडोर रहती है। महालेखा परीक्षक का यह कार्य है कि वो वार्षिक आधार पर राज्य सरकार के खातों की समीक्षा करे और राज्य के विधान मंडल के अनुसार मूल्यांकन के लिए रिपोर्ट राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत करे।
बजट विश्लेषण एवं अनुमान
1957-58 के बाद से , वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं बजट को आर्थिक विश्लेषण का एक उपयोगी उपकरण बनाने के लिए केन्द्र सरकार के बजटीय लेनदेनों का एक आर्थिक वर्गीकरण तैयार करते हैं।
देश में आर्थिक नियोजन के परिप्रेक्ष्य में, वार्षिक योजना परिव्यय को बजट परिव्यय के साथ एकीकृत किया गया है जिसे कार्यात्मक श्रेणियों में भविष्य के लिए बजट परिव्यय का विश्लेषण कहते हैं। इस तरह के कार्यात्मक वर्गीकरण यह विश्लेषण करने में मदद प्रदान करते हैं कि केन्द्र सरकार द्वारा पंचवर्षीय योजनाओं - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं में निर्धारित प्राथमिकताओं के अनुसार अलग-अलग कार्य या उद्देशय के लिए कितना बजट आवंटित किया गया है।
इसके अतिरिक्त परिणाम बजट - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं 2005-06 के बाद से बजट प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग बन गए हैं। यह दस्तावेज प्रत्येक मंत्रालय एवं विभाग द्वारा अलग से तैयार किया जाता है। मोटे तौर पर इस दस्तावेज में वित्तीय बजट के भौतिक आयाम, प्रारंभिक नौ महीनों का वास्तविक प्रदर्शन और अगले वित्तीय वर्ष के लक्ष्यों को दर्शाया जाता है।
वित्तीय वर्ष 2010-2011 की दूसरी तिमाही के अंत में बजट के संबंध में प्राप्ति और व्यय की प्रवृतियों की समीक्षा - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं की गई। इस समीक्षा में साल 2008 की वैश्विक वित्तीय मंदी के परिणामों के बाद अर्थव्यवस्था के फिर से मजबूत होने के कारणों पर पर भी प्रकाश डाला गया।
आर्थिक सुधार, राजकोषीय विस्तार के एक विचार और वैश्विक संकट के तुरंत बाद के दौरान, प्रेरित किया गया और इसे मौद्रिक नीति के द्वारा आसानी से समर्थन दिया गया। एक व्यापक आधार वाली वसूली चल के साथ, भारत ने हाल ही के दिनों में जिस लचीलेपन का प्रदर्शन किया है वह देश के आर्थिक प्रबंधन के परिपक्व होने और हमारे उद्यमों की बढ़ती प्रतिस्पर्धा को दर्शाता है।
इस वित्तीय वर्ष में बजट को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्व
2010-11 की पहली छमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में समग्र सकल घरेलू उत्पाद में 8.9 फीसदी की रिकार्ड वृद्धि दर्ज की गई है।
कृषि, उद्योग एवं सेवा क्षेत्रों के विकास की गति में समेकित योगदान से वूसली का आधार क्षेत्र व्यापक हो गया है।
वैश्विक आर्थिक सुधारों के नाजुक बने होने से, वित्तीय स्थिरता व्यापक आर्थिक उद्देशयों और नीति का एक अभिन्न अंग बन गई है।
वित्तीय स्थिरता को मजबूत बनाये रखने एवं संस्थागत तंत्र की प्रक्रिया के विकास के लिए एक शीर्ष स्तर की वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (एफएसडीसी) को स्थापित किया गया है।
2009-10 में सामान्य मानसून ने कृषि और संबंधित क्षेत्रों में महत्वपूर्ण बदलाव करने में अग्रणी भूमिका निभाई है।
मध्यम अवधि में राजकोषीय नीति में दिये गए बयान की प्रतिबद्वता के साथ वर्ष 2010-11 में राजकोषीय घाटे को कम करने की प्रगति लगातार जारी है।
बढ़ती खाद्य कीमतों के साथ, अंतराष्ट्रीय कच्चे तेल और अन्य कमोडिटी की कीमतों में सतत बढ़ोत्तरी ने मुद्रास्फीति के दबावों को प्रेरित किया है।
समग्र विकास की प्रतिबद्धता लगातार जारी है, विशेष रूप से सस्ती एवं उपयोगी वित्तीय सेवाओं को सशक्त करने के लिए और समाज के गरीब वर्ग को समृद्ध करने के लिए। (बजट kya hain....)
22 फ़रवरी 2011
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