नई दिल्ली February 07, 2011
बढ़ती महंगाई से एक ओर जहां सरकार परेशान है, वहीं भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने चीनी उद्योग में कथित सांठगांठ की जांच शुरू की है। आयोग महाराष्ट्र सहकारी चीनी संघ के उस फैसले की जांच कर रहा है जिसमें संघ ने जुलाई 2010 में कहा था कि चीनी की बिक्री 2700 रुपये प्रति क्विंटल से कम पर नहीं की जाए।आयोग के महानिदेशक ने चीनी उद्योग संगठनों के प्रमुखों को तलब किया है और इसके बाद जांच रिपोर्ट आयोग को सौंपा जाएगा। पिछले महीने इतिहास बनाते हुए आयोग ने इस बात की जांच शुरू की थी कि हाल में प्याज की कीमतों हुई जोरदार बढ़ोतरी के पीछे कहीं कारोबारी सांठगांठ तो नहीं है।आयोग ने एसोसिएशन के कदम पर खुद ही संज्ञान लेते हुए मामले को हाथ में लिया और जांच शुरू की है। इसने संगठनों से आंकड़े व सूचनाएं उपलब्ध कराने को कहा है। सीसीआई ने अग्रणी कंपनियों बजाज हिंदुस्तान, रेणुका शुगर्स और बलरामपुर चीनी की जांच शुरू करने से पहले विस्तृत जांच करने का फैसला किया है। हालांकि ये कंपनियां अभी जांच का सामना नहीं कर रही हैं। इकट्ठा की गई सूचना के आधार पर आयोग ने प्रथम दृष्टया जांच का आधार पाया है।इस्मा के महानिदेशक अविनाश वर्मा पिछले हफ्ते आयोग के महानिदेशक के सामने पेश हुए थे। जब वर्मा से इस बाबत पूछा गया तो उन्होंने किसी तरह की टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। महाराष्ट्र स्टेट फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवरे भी सोमवार को महानिदेशक के सामने पेश हुए। जब उनसे संपर्क किया गया तो उन्होंने इससे इनकार किया कि मिलों को 2700 रुपये प्रति क्विंटल से कम पर चीनी बेचने से मना किया गया था। उन्होंने कहा, ऐसा इसलिए क्योंंकि यह एकाधिकार व प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम का उल्लंघन करता है। सीसीआई ने नाइकनवरे को दोबारा पेश होने को कहा है।पिछले साल 23 जुलाई को महाराष्ट्र स्टेट फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिल शुगर फैक्ट्रीज (जिसके तहत 190 चीनी मिलें हैं) ने एक बयान जारी किया था कि करीब 500 सदस्यों को बेंचमार्क कीमत 2700 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे बेचने से परहेज करना चाहिए, क्योंकि यह उत्पादन लागत है। इससे पहले गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश से शुगर फेडरेशन के प्रतिनिधियों के साथ इसने बैठक की थी। निजी चीनी उद्योग के अग्रणी निकाय इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) इस बैठक का हिस्सा नहीं था यानी यह इसमें शामिल नहीं हुआ था। 22 जुलाई की बैठक के एक दिन बाद महाराष्ट्र में एस-30 किस्म की चीनी 150-160 रुपये प्रति क्विंटल बढ़कर 2640-2670 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई थी और यह सहमति वाली 2700 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास थी। चीनी की कीमतें पांच दिन तक इसी स्तर पर रहीं।यह फैसला सलाहकारी किस्म का था और सदस्य मिलों पर यह बाध्यकारी नहीं था। इसलिए कई मिलों ने एक हफ्ते बाद बेंचमार्क कीमत से नीचे चीनी की बिक्री शुरू कर दी थी। दिलचस्प रूप से इस्मा ने इस विचार को नकार दिया था और इसी तरह का एक निर्देश अपने सदस्य मिलों को अगस्त में हुई कमेटी की बैठक में जारी किया था।भारत में चीनी अभी भी नियंत्रित उद्योगों में से एक है। इसे विनियंत्रित करने की पहली कोशिश 1971-72 में हुई थी और 1978-79 में इसे वापस ले लिया गया था। चीनी पर नियंत्रण कोटा व लेवी कोटा आदि के जरिए होता है। चीनी मिलें खुले बाजार में सरकार द्वारा जारी कोटे के मुताबिक ही कर सकती हैं। केंद्र सरकार के चीनी निदेशालय हर महीने कोटा जारी करता है और इसके जरिए मिलें बाजार में चीनी बेचती हैं। (BS Hindi)
08 फ़रवरी 2011
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