कृषि वैज्ञानिक एम. एस. स्वामीनाथन ने कहा कि भारत को खेती की उत्पादकता बढ़ाकर दोगुनी करने के लिए तेजी से कदम उठाने चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक छोटे और सीमांत किसानों का आर्थिक रूप से उत्थान कर सकता है।
देश में 1970 और 1980 के दशक में आई हरित क्रांति के जनक माने जाने वाले स्वामीनाथन ने कहा कि देश का कृषि क्षेत्र गतिहीनता की स्थिति झेल रहा है और उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि किए बिना खाद्य सुरक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता।
स्वामीनाथन ने आईएएनएस से कहा, “खाद्य सुरक्षा विधेयक में आपूर्ति की समस्या का समाधान होना चाहिए, यह छोटे किसानों की आर्थिक परेशानी को भी कम करने वाला होना चाहिए। हमारे 80 प्रतिशत किसान छोटे और सीमांत हैं, वे जब तक ज्यादा उत्पादन नहीं करेंगे देश का उत्पादन भी नहीं बढ़ेगा।”
गरीबों के लिए खाद्य पदार्थो पर सब्सिडी की गारंटी देने वाला खाद्य सुरक्षा विधेयक तैयार होने में अभी कुछ समय और लगेगा। सरकार इसके लिए पूरे देश के हितग्राहियों के आंकड़ों का संकलन कर रही है।
राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) की अध्यक्ष सोनिया गांधी इस विधेयक से जुड़े मसलों पर ध्यान दे रही हैं और वह अगले महीने एक जुलाई को होने जा रही बैठक में अपनी अनुशंसाएं देंगी। एनएसी हितग्राही लोगों की पहले तय की गई संख्या बढ़ाने के लिए इस विधेयक में बदलाव कर रही है।
पिछले वित्त वर्ष में कृषि क्षेत्र की विकास दर 0.2 प्रतिशत रही है यह पिछले पांच साल की सबसे कम विकास दर है। दिसंबर में घरेलू उत्पादन में कमी और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में ऊंची कीमतों के चलते खाद्य पदार्थों की महंगाई दर बढ़कर 19.95 प्रतिशत तक पहुंच गई थी।
स्वामीनाथन ने कहा, “मुझे उम्मीद है कि मौजूदा खाद्य महंगाई दर से यह समझ बढ़ेगी कि विदेशों से खाद्य सामग्री खरीदना आसान नहीं है क्योंकि पूरा विश्व समस्याओं से घिरा है। हम अपने 1.1 अरब लोगों की खाद्य सुरक्षा के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रह सकते।”
कृषि वैज्ञानिक ने कहा, “मैं जवाहरलाल नेहरू के 1947 के बयान की याद दिलाना चाहता हूं उन्होंने कहा था कि हर क्षेत्र इंतजार कर सकता है लेकिन कृषि नहीं, यदि हम इस क्षेत्र में आपात कदम नहीं उठाएंगे तो हमें यह गतिहीनता झेलनी पड़ेगी।”
सरकार द्वारा कृषि के लिए एक मुख्य पहल, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना 2007 में शुरू की गई थी, कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल इसके लिए 3,760 करोड़ रुपये आवंटित किए गए लेकिन राज्यों ने इसमें से केवल 1,122 करोड़ रुपये ही खर्च किए।
स्वामीनाथन ने कहा, “यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे पास अवसर है लेकिन हम उनका उपयोग नहीं कर रहे हैं। इन योजनाओं के बावजूद कृषि में कोई वृद्धि नहीं हुई है।” (आईएएनएस)
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