नई दिल्ली [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। आम बजट में खाद्य सुरक्षा विधेयक के लिए 40 हजार करोड़ रुपये का दांव खेलना वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के समक्ष एक बड़ी आर्थिक चुनौती होगी। वित्त मंत्री के आगामी बजट भाषण में खाद्य सुरक्षा विधेयक शामिल हो सकता है, लेकिन संप्रग सरकार के इस चुनावी वादे के आगे भारी खाद्य सब्सिडी, अनाज की कमी और ध्वस्त राशन प्रणाली रोड़े बनकर खड़े होंगे। मुखर्जी के लिए इनसे निपटने आसान नहीं होगा।
सभी को तीन रुपये किलो में अनाज उपलब्ध कराने वाला कानून बनाने और उसे लागू कराने में सरकार के पसीने छूटेंगे। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने इससे पैदा होने वाली मुश्किलें पहले ही गिना दी हैं। मौजूदा खाद्य सब्सिडी जहां 57 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गई है, वहीं खाद्य सुरक्षा विधेयक पर अमल शुरू होने के साथ ही यह बढ़कर लगभग एक लाख करोड़ रुपये पहुंच जाएगी। राजनीतिक वजहों से अगर वित्त मंत्री बजट में 40 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त प्रावधान कर भी दें, तब भी सरकार की मुश्किलें कम नहीं होंगी।
प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक इसी रूप में लागू करने में अनाज की अनुपलब्धता सबसे बड़ी कठिनाई बनकर उभरेगी। मंडियों में खुले बाजार से अनाज की सरकारी खरीद बढ़ा देने की दशा में खुले बाजार का हाल बुरा हो जाएगा। खुले बाजार में खाद्यान्न के मूल्य आसमान चूमने लगेंगे। दूसरी तरफ अनाज भंडारण की एक अलग समस्या है, जिसके समाधान के लिए पिछले साल के बजट में प्रावधान किए गए थे। 170 लाख टन अतिरिक्त भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र को सब्सिडी का प्रोत्साहन देकर आमंत्रित किया गया था, लेकिन साल भर बाद भी नतीजा शून्य रहा।
खाद्यान्न कुप्रबंध को ठीक कर महंगाई से निजात पाने के लिए सरकार का भरोसा राशन प्रणाली पर है, लेकिन यह प्रणाली पहले से ही ध्वस्त है। आम बजट में इसे दुरुस्त करने के लिए प्रावधान किया जा सकता है। पिछले सालों में शुरू की गई आधा दर्जन से अधिक प्रायोगिक परियोजनाओं के नतीजे उत्साहजनक नहीं रहे हैं। राशन प्रणाली के कंप्यूटराइजेशन का काम भी अभी लंबित है। इसके लिए मंत्रालय ने वित्त मंत्री से आम बजट में प्रावधान की गुहार की है।
खाद्य प्रबंधन संभाल रहे भारतीय खाद्य निगम [एफसीआइ] और केंद्रीय भंडारण निगम [सीडब्ल्यूसी] अपनी परंपरागत कार्य प्रणाली, पुराने गोदामों, अकुशल प्रबंध तथा अनुपयुक्त प्रौद्योगिकी के चलते सफेद हाथी बन चुके हैं। खुले में अनाज का सड़ना, परिवहन की कमी और ठेकेदारों के भरोसे खाद्य का प्रबंधन इन निगमों की नियति बन चुका है। इसे ठीक करना वित्त मंत्री की चुनौतियों में शुमार होगा। (Dainik Jagran)
26 फ़रवरी 2011
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