मुंबई February 03, 2011
अंतरराष्ट्रीय बाजार में गुरुवार को चीनी की कीमतें 851.5 डॉलर प्रति टन की नई ऊंचाई पर पहुंच गईं। लंदन के बाजार में चीनी की यह कीमत पिछले दस कारोबारी सत्र केमुकाबले 10 फीसदी ज्यादा है, हालांकि बाद में इसमें मामूली कमी दर्ज की गई। चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी मोटे तौर पर ऑस्ट्रेलिया में आए यासी तूफान की वजह से हुई क्योंकि बताया जाता है कि इस वजह से वहां चीनी उत्पादन में भारी गिरावट आएगी। ऑस्ट्रेलिया के उत्तरीक्वींसलैंड में आए इस तूफान से काफी फसल बर्बाद होने का अंदेशा है। यह इलाका कुल पैदावार में करीब एक तिहाई का योगदान देता है। कुछ ऐसे ही हालात चीनी के दूसरे उत्पादक देश ब्राजील, थाइलैंड और चीन में हैं, जहां प्रतिकूल मौसम की वजह से फसल खराब हो गई है। पिछले कुछ हफ्ते से चीनी की कीमतें 30 साल की ऊंचाई पर पहुंच गई हैं।हालांकि वैश्विक बाजार में चीनी की बढ़ती कीमतों का भारत के चीनी उद्योग पर कोई सीधे असर की संभावना नहीं है, लेकिन इसने ज्यादा निर्यात के मौके जरूर खोल दिए हैं। भारत के पास चीनी का अतिरेक है, वहीं कीमतें भी पर्याप्त रूप से लाभकारी हैं कि चीनी निर्यात की अनुमति दी जाए और इससे चीनी मिलों को मार्जिन में सुधार करने में मदद मिलेगी, जो मौजूदा समय में काफी कम हो गया है।चीनी निर्यात की अनुमति मिलने की उम्मीद में चीनी कंपनियों के शेयरों में गुरुवार को तेजी रही। चीनी की अग्रणी कंपनियों के शेयरों में 3 से 9 फीसदी की तेजी रही, वहीं बाजार में कुल मिलाकर 2 फीसदी से कम तेजी रही। चीनी उद्योग ने अपनी ताजा अपील में सरकार को ओपन जनरल लाइसेंस (ओजीएल) के तहत 5 लाख टन चीनी के निर्यात की अनुमति देने को कहा है।केंद्र ने पहले ही तीन किस्तों में 15 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति देने की योजना बनाई थी। ओजीएल के तहत जनवरी, फरवरी और मार्च में 5-5 लाख टन चीनी का निर्यात होना था। इसके मुताबिक केंद्र ने प्रक्रिया शुरू की थी और मिलों को निर्यात का कोटा दिया था और उन्हें अपने अनुबंध को अंतिम रूप देने को कहा था। इसके अलावा उन्हें रिलीज ऑर्डर हासिल करने के लिए आवेदन जमा करने को कहा गया था। कहा गया था कि तीन कार्यदिवस में इसे मंजूरी दे दी जाएगी।हालांकि इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) और नैशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिल शुगर्स फैक्ट्रीज (निजी व सहकारी मिलों की प्रतिनिधि संगठन) ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया - 5 लाख टन चीनी निर्यात की प्रक्रिया को रोक दिया गया है और हमें इसकी वजहों की जानकारी नहीं है। इसके परिणामस्वरूप भारत ने अब तक विदेशी मुद्रा अर्जित करने का मौका गंवा दिया है। इस्मा और फेडरेशन के सूत्र एक ही स्वर में बात कर रहे हैं। उनका कहना है - भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां खपत के मुकाबले अतिरेक चीनी की पैदावार है। शुरुआती अनुमान 250 लाख टन का था, लेकिन असमय बारिश व प्रतिकूल मौसम के चलते अब इसे संशोधित कर 245 लाख टन कर दिया गया है। इसके अलावा भारत के पास 4.5 लाख टन का पुराना स्टॉक भी है, वहीं कुल खपत 220 लाख टन पर रहने की संभावना है। उत्तर प्रदेश ने चीनी उत्पादन को पूर्व के 62 लाख टन से संशोधित कर 60 लाख टन कर दिया है। इसके बावजूद निर्यात के लिए काफी मौके हैं।महाराष्ट्र सरकार सक्रिय हो गई है और वित्त मंत्री, वाणिज्य मंत्री, कृषि मंत्री और खाद्य मंत्री को संदेश भेजा है। राज्य सरकार ने कहा है कि 5 लाख टन की पहली किस्त चीनी के निर्यात की अनुमति तत्काल दी जानी चाहिए और फरवरी में ही 10 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति मिलनी चाहिए।फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर्स फैक्ट्रीज के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनावरे ने कहा - अगर ताजा कोशिश में कामयाबी मिलती है तो मौजूदा घरेलू कीमत 2620 रुपये से बढ़कर 2700 रुपये के उत्पादन लागत पर तत्काल पहुंच सकती है और किसानों से गन्ना कीमत की बाबत वादा निभाने में भी मदद मिल सकती है।पुणे स्थित अनुराज शुगर मिल के प्रबंध निदेशक डॉ. माणिक बोरकर ने नाइकनावरे के विचारों से सहमति जताई और तर्क दिया कि केंद्र को ओजीएल के तहत 50 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति देने पर विचार करना चाहिए। मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में उद्योग के लिए यह लाभकारी होगा।महाराष्ट्र शुगर ट्रेडर्स ऐंड ब्रोकर्स एसोसिएशन के संस्थापक अध्यक्ष योगेश पंधे ने कहा कि कारोबारियों और मिलों के बीच काफी घबराहट है। समस्या चीनी की अतिरेक मात्रा की है, जिसका कोई खरीदार नहींं है। चीनी उद्योग व्यग्रता से ओजीएल के तहत निर्यात की अनुमति की प्रतीक्षा कर रहा है।अपनी ताजा रिपोर्ट में ऐंजल कमोडिटीज ने कहा है कि भारत में चीनी की कीमतें और लुढ़कने की संभावना नहीं है क्योंकि ओजीएल के तहत निर्यात खोले जाने से कीमतों को समर्थन मिलेगा। भारत सरकार दूसरा अग्रिम अनुमान जल्दी ही जारी करेगी और फिर गन्ने व चीनी उत्पादन के अनुमान का पता चल पाएगा। अगर संशोधित उत्पादन अनुमान 250 लाख टन से ऊपर होता है तो सरकार ओजीएल के तहत 10 से 15 लाख टन चीनी के निर्यात की अनुमति दे सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि घरेलू उद्योग की खातिर निर्यात खोले जाने से मध्यवधि में चीनी की कीमतों में मजबूती बनी रहने की संभावना है क्योंकि वैश्विक स्तर पर आपूर्ति सख्त है। (BS Hindi)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें