लंदन March 05, 2009
दार्जिलिंग की मशहूर चाय को यूरोपीय बाजार में आखिरकार जगह मिल सकती है।
दार्जिलिंग की चाय अपनी गुणवत्ता के साथ यूरोपीय बाजार के मानकों पर खरा उतरेगी तो यह संभावना और भी बढ़ जाएगी। भारतीय चाय बोर्ड के साथ ब्रिटेन की टी काउंसिल की बातचीत आखिरी चरण में पहुंच चुकी है।
इस बातचीत के जरिए दार्जिलिंग की चाय को परिभाषित किया जाएगा। साथ ही ऐसे उपाय बनाए जा रहे हैं ताकि दार्जिलिंग के चाय किसानों को यूरोपीय बाजारों में सही कीमत मिल सके। पिछले कुछ सालों से चाय बोर्ड के जरिए भारत के चाय किसान वैश्विक बाजार में दार्जिलिंग चाय को पहचान दिलाने के लिए मांग करते रहे हैं।
हाल ही में भारतीय चाय बोर्ड ने यूरोपीय बोर्ड के सामने यह प्रस्ताव रखा है कि चाय में 90 फीसदी दार्जिलिंग चाय का हिस्सा हो तभी उसे दार्जिलिंग चाय की पहचान मिलनी चाहिए। ब्रिटेन टी काउंसिल और यूरोपीय यूनियन की चाय समिति भी दार्जिलिंग चाय को सही तरह से पहचान दिलाने के पक्ष में ही दिख रहे हैं।
इसमें अब बहुत कम आशंका रह गई है कि चाय की इस खास किस्म की परिभाषा लागू नहीं होगी। ब्रिटेन के टी काउंसिल के कार्यकारी निदेशक विलियम गॉरमैन का कहना है, 'हम इसका पूरी तरह से समर्थन करते हैं। भारतीय चाय बोर्ड क ी कोशिश बेहद सराहनीय है। लेकिन इन सभी प्रक्रियाओं को सरल होने की जरूरत है और इससे सभी दलों को फायदा होना चाहिए।
परिषद को इस विषय पर 27 यूरोपीय यूनियन के कारोबारी साझीदारों को प्रतिनिधित्व करने का अधिकार दिया गया है।' गॉरमैन का कहना है कि केवल ब्रिटेन में ही नहीं बल्कि यूरोपीय देशों के संदर्भ में इन कारोबारी नियमों के बारे में विचार करना चाहिए। भारत के पास दार्जिलिंग चाय की पहचान को बचाए रखने के लिए कई वजहें भी हैं। इसे शैंपेन ऑफ टी कहा जाता है।
चाय बोर्ड के आंकड़ों की मानें तो यह भारत के सालाना चाय उत्पादन का 1.24 फीसदी उत्पादन करती है। ब्रिटेन के कारोबारी सूत्रों का कहना है, 'हालांकि यह किसी दूसरी किस्म के चाय के मुकाबले लगभग दुगुनी कीमत देती है। ब्रिटेन में सामान्य तौर पर इस चाय को पसंद किया जाता है।'
वर्ष 2007-08 में भारत 8.05 लाख टन चाय का उत्पादन करती है। वर्ष 2008 में जनवरी से नवंबर के बीच चाय का उत्पादन 8.32 लाख टन होने का अनुमान है। वर्ष 2008 में जनवरी से नवंबर के बीच भारत ने 1.76 लाख टन चाय का आयात किया था।
गॉरमैन का कहना है, 'यह चाय बिल्कुल स्कॉच व्हिस्की या शैंपेन की तरह होता है। दार्जिलिंग की चाय को लेकर चुनौती यह है कि नेपाल में भी कुछ अलग किस्म की चाय उगाई जाती है और इसे दार्जिलिंग चाय के तौर पर पेश कर दिया जाता है।
कभी-कभी चाय का परीक्षण करने वाला यंत्र भी इन दो चाय में फर्क नहीं कर पाता है। इसी वजह वे नेपाल की चाय को भी दार्जिलिंग चाय के तौर पर पेश कर देते हैं। इसी वजह से हमारी कोशिश है कि हम ऐसी तकनीक का सहारा ले जो इस चाय को पहचान सके।' (BS Hindi)
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