नई दिल्ली March 04, 2009
यूपोपियन संसद के सदस्यों (एमईपी) की एक रिपोर्ट से भारत और यूरोपीय संघ के बीच व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (सीईपीए) पर हो रही बातचीत खटाई में पड़ सकती है।
सीईपीए में कर मुक्त सामान व सेवाओं और निवेश का मसला शामिल है। इस रिपोर्ट में सीईपीए में मानवाधिकारों और लोकतंत्र के मसले को शामिल करने को कहा गया है।
साथ ही इसमें जम्मू कश्मीर में 'न्याय से परे हत्याओं' पर अंतरराष्ट्रीय जांच को भी शामिल करने को कहा गया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सामाजिक और पर्यावरण संबंधी मानकों को लागू करने के लिए कानूनी बाध्यता होनी चाहिए।
यूरोपीय संसद की अंतरराष्ट्रीय ट्रेड समिति की एक शाखा के रूप में एमईपी पिछले साल के अंतिम महीनों में भारत आई थी। उसके बाद ही यह रिपोर्ट तैयार की गई है। भारत और यूरोपीय संघ के बीच सीईपीए पर बातचीत 2007 के मध्य से चल रही है। इस कड़ी में भारत और यूरोपीय संघ के बीच अगली बातचीत मार्च में होने वाली थी।
लेकिन सूत्रों ने कहा कि परिचालन संबंधी मसले केचलते इसे टाल दिया गया है। भारत के प्रतिनिधियों ने कहा कि अगर यूरोपीय कमीशन इन नियमों को बातचीत में लाता है तो पूरी बातचीत इससे प्रभावित होगी। कारोबार संबंधी बातचीत से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, 'भारत पर दबाव बनाने के ये चोंचले हैं, खासकर ऐसे समय में जब वैश्विक मंदी उन्हें बुरी तरह से प्रभावित कर रही है।'
यहां तक कि भारत ने डब्ल्यूटीओ के दोहा दौर में भी कारोबारी बातचीत में सामाजिक और पर्यावरण संबंधी मसले को शामिल किए जाने का विरोध किया था। यूरोपीय संघ भारत का बड़ा कारोबारी साझेदार है। (BS Hindi)
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