मुंबई March 07, 2009
सोने की दिनोंदिन बढ़ती चमक ने पुराना सोना रखने वालों की तो चांदी कर दी है, लेकिन सोने के गहने बनाने वाले कारीगरों के लिए फाके की नौबत आ गई है।
दरअसल तपते हुए सोने को छूने की हिम्मत खरीदार नहीं कर रहे हैं, जिसकी वजह से सोने के हजारों कारीगर बेरोजगार हो रहे हैं। सोने के भाव में लगातार उतार चढ़ाव देखने को मिल रहा है।
16,000 का आंकड़ा पार कर लौटे सोने ने शुक्रवार को भी 250 रुपये की उछाल मारी और 15,420 रुपये प्रति दस ग्राम तक पहुंच गया। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी सोने का भाव शुक्रवार को 937.7 डॉलर प्रति औंस दर्ज किया गया। इसकी वजह से खरीदार कमोबेश नदारद हैं।
देश में सोने के जेवरात का सबसे ज्यादा उत्पादन और बिक्री करने वाले मुंबई के झवेरी बाजार में 50 फीसदी से ज्यादा कारीगर बेरोजगार हो गए हैं। जिन कारीगरों को अभी काम मिल रहा है, उनकी कमाई में भी 60 फीसदी की कमी आ गई है।
बेरोजगार कारीगरों में लगभग 30 फीसदी मुंबई छोड़कर अपने गांव लौट चुके हैं। बाकी कारीगरों में भी ज्यादातर अप्रैल-मई में मुंबई को अलविदा कहने की तैयारी में हैं। इन कारीगरों में 90 फीसदी बंगाली हैं।
तकरीबन 1 किलोमीटर दायरे में फैली देश की सबसे बड़ी स्वर्ण मंडी झवेरी बाजार में लगभग 7,000 कारखाने हैं। इनमें 6 महीने पहले 1,20,000 से भी ज्यादा कारीगर काम करते थे। लेकिन मंदी और सोने की कीमतें बढ़ने की वजह से आज यहां बमुश्किल 50-60 हजार कारीगर काम कर रहे हैं।
बंबई सराफा संघ के अध्यक्ष सुरेश हुंडिया के मुताबिक यहां रोजाना लगभग 1 टन सोना आयात किया जाता था और इतने ही सोने के आभूषण बनाकर देश के दूसरे हिस्सों में बेचे जाते थे और निर्यात भी किए जाते थे। लेकिन आज यहां मुश्किल से 200 किलोग्राम जेवर बनते हैं।
झवेरी बाजार में छह महीने पहले तक सभी कारखानों में तीन पालियों में काम चलता था, लेकिन आज एक पाली का काम भी मुश्किल से चल पाता है। यहां ज्यादातर कारीगर दिहाड़ी के आधार पर काम करते हैं और एक कारीगर को रोजाना औसतन 400-500 रुपये मिलते हैं।
पहले ज्यादा काम था और दोहरी पाली में काम करते हुए कारीगर दिन में औसतन 1,000 रुपये कमा लेते थे, लेकिन आज काम इतना कम है कि कारखाने में एक पाली चलाना भी मुश्किल हो रहा है। जिन कारखानों में काम चल भी रहा है, वह हफ्ते में केवल 4 या 5 दिन ही खुल रहे हैं।
बेरोजगार कारीगारों में लगभग 15-20 हजार मुंबई छोड़कर गांव चले गए हैं। जो मुंबई में टिके हुए हैं, उनके लिए इसकी वजह बच्चे हैं, जो यहां के स्कूल-कॉलेजों में पढ़ रहे हैं। इसलिए अप्रैल-मई में स्कूल कॉलेजों की छुट्टी होने पर ज्यादातर गांव लौट जाएंगे। हालांकि अभी उन्होंने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है क्योंकि अभी कारखाने चल रहे हैं।
एक कारीगर मुकुट ने कहा कि यह काम बंद तो नहीं होगा, लेकिन अभी कम होने की वजह से हजारों लोगों के पेट पर लात पड़ गई है। उसने बताया कि जो लोग गांव गए हैं, उनमें से ज्यादातर दो-तीन महीने में वापस आ जाएंगे। लेकिन फिर भी काम नहीं मिला, तो मुंबई को हमेशा के लिए छोड़ने के अलावा दूसरा चारा उनके पास नहीं रहेगा।
कारीगरों को उम्मीद है कि सोने के भाव नीचे जरूर गिरेंगे और जैसे ही उनमें गिरावट आई, बाजार में मांग बढ़ेगी और उन्हें काम भी मिलेगा। झवेरी बाजार सोने के एक बड़े कारोबारी के कारीगर विनोद के अनुसार मुनाफा कमाने के लिए लोगों ने जमकर अपने पुराने गहने बेचे हैं। ऐसे में मांग लौटती है, तो उनके लिए जबरदस्त काम आ जाएगा।
सोने के भाव की मार से कराह रहे हैं जेवर कारीगरमुंबई के झवेरी बाजार में आधे से भी कम रह गया है काम50 फीसदी कारीगर बेकार होने पर चले गए अपने गांवदो पाली के बजाय कारखानों में केवल एक पाली का कामलेकिन अभी कारीगरों में उम्मीद बरकरार (BS Hindi)
10 मार्च 2009
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