18 दिसंबर 2008
खाद कंपनियों को राहत
कभी नाफ्था के आसमान छूते दामों से परेशान केंद्र सरकार और तमाम उर्वरक कंपनियां को पिछले दो महीनों के दौरान बड़ी राहत मिली है। इधर नाफ्था के दाम गिरने लगे और उधर सरकार का खाद सब्सिडी बिल नीचे आने लगा। इसके अलावा देश भर की तमाम खाद कंपनियों की भी चांदी होने लगी है। मंदी के इस दौर में कंपनियों को अब कम कार्यशील पूंजी भी लगानी पड़ रही है। पहले कंपनियों को गैस के मुकाबले नाफ्था काफी ज्यादा दरों पर मिल रहा था, लेकिन पिछले दो महीनों के दौरान खाद कंपनियों को नाफ्था गैस के मुकाबले काफी कम दामों पर हासिल हो रहा है। इसका सीधा असर हुआ कि खाद कंपनियों ने नाफ्था की खपत बढ़ा दी है। श्रीराम फर्टिलाइजर्स के ग्रुप हेड के. के. कौल ने त्नबिजनेस भास्करत्न को बताया कि उनकी कंपनी पिछले दो महीनों से सौ-फीसदी नाफ्था का इस्तेमाल कर रही है क्योंकि कंपनी को इसके लिए स्पॉट गैस के मुकाबले कम कीमत चुकानी पड़ रही है। फिलहाल बाजार में नाफ्था की कीमत तकरीबन 16,000 रुपये प्रति टन (7 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू) है, जबकि स्पॉट गैस की कीमत लगभग 9.5 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू चल रही है। इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड (इफको) के जनरल मैनेजर वीरेंद्र सिंह ने बताया कि नाफ्था के दाम गिरने से इफको को कम कार्यशील पूंजी लगानी पड़ रही है। उन्होंने बताया कि इफको के आंवला, फूलपुर और कलोल प्लांट में फिलहाल नाफ्था का इस्तेमाल बढ़ा दिया गया है। चंबल फर्टिलाइजर्स के वाइस प्रेसीडेंट (फाइनेंस) अभय बैजल का मानना है कि कार्यशील पूंजी के अलावा कंपनियों पर ब्याज का बोझ भी कम हुआ है। कंपनी के दोनों प्लांटों में नाफ्था का इस्तेमाल किया जा रहा है। टाटा केमिकल्स के एक्जीक्यूटिव वाइस प्रेसीडेंट कपिल मेहान ने बताया कि तकरीबन 40 दिन से कंपनी के प्लांट बंद थे। एक सप्ताह पहले ही काम शुरू हुआ है। कृभको के चीफ मैनेजर मनोज मिश्रा ने बताया कि नाफ्था के दाम गिरने से कंपनियों को निश्चित तौर पर राहत मिली है। कृभको के प्लांटों पर 20-22 फीसदी नाफ्था का ही इस्तेमाल हो सकता है। वहीं, खाद कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के डायरेक्टर डॉ. एस. नंद के मुताबिक पहले तो नाफ्था की उपलब्धता ही बहुत बड़ी दिक्कत थी, लेकिन अब काफी राहत है। वहीं, उर्वरक क्षेत्र के जानकारों का मानना है कि नाफ्था के दाम गिरने से सरकार पर सब्सिडी बोझ तकरीबन 1,000-1,500 करोड़ रुपये तक कम होने की उम्मीद है। (Business Bhaskar)
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