08 दिसंबर 2008
खाद्य सुरक्षा के लिए रतुआ रोग से सतर्क रहना जरूरी
लहलहाती फसल में फैलने वाले अगर किसी भी रोग की रोकथाम समय पर नहीं की जाए तो इसके नतीजे भयावह हो सकते हैं। फसल पर नाशी कीट और पतंगों का प्रकोप भी काफी नुकसान देने वाला हो सकता है, जैसा हाल ही में हरियाणा के सोनीपत और रोहतक जिलों में देखने को मिला। इन दो इलाकों के कई गांवों में काले-भूरे फुदका नामक कीट के प्रकोप से किसानों की खड़ी बासमती धान की फसल बर्बाद हो गई। लेकिन गेंहू की फसल में फैल रहे नए रतुआ रोग के सामने बासमती का यह नुकसान बेहद बौना साबित हो सकता है। यूजी99 नाम का यह रतुआ रोग भारत में अफ्रीका के रास्ते प्रवेश कर सकता है। यूजी99 पिछले कुछ वर्षे से अफ्रीका में तेजी से फैला और इसने काफी तबाही मचाई। भारत में यूजी99 के फैलने से देश की खाद्य सुरक्षा पर सवालिया निशान लग सकता है। गेंहू के तने को प्रभावित करने वाला यह रतुआ रोग 1999 में अफ्रीका के युगांडा राष्ट्र में सबसे पहले प्रकाश में आया था। इसीलिए इस रोग को यूजी99 कहते हैं। यूजी99 बहुत तेजी से केन्या और भुखमरी से ग्रस्त इथोपिया जैसे पड़ोसी क्षेत्रों में फैल गया। और अब लाल सागर को पार करता हुआ यूजी99 एशिया के मुहाने पर आ खड़ा हुआ है। हाल ही में इस खतरनाक रोग का प्रकोप ईरान में भी फैल गया है। यूजी99 के बेहद खतरनाक होने का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह न सिर्फ तेजी से फैलता है, बल्कि अपने नए-नए रूप में विकसित कर लेता है। इस रोग में मौसम के अनुरूप ढलने के गुण के कारण यह किसी खास क्षेत्र में होने वाली गेंहू की किस्मों में मौजूद प्रतिरोधिता को भी भेदने में सक्षम हो जाता है। पकसीनिया ग्रेमिनिस ट्रीटिकी नामक फफूंद से होने वाला यूजी99 विभिन्न परिस्थितियों में भी पनपने में सक्षम है। यूजी99 ने पूरी दुनिया में भीषण कहर बरपाया है और अकेले अमेरिका में ही गेंहू की फसल में 40 फीसदी का नुकसान हुआ है। अगर इतिहास को उठाकर देखे तो गेंहू और जौ में होने वाला तना रतुआ रोग सबसे नुकसानदायक रहा है। यूजी99 का खतरा इतना बड़ा है कि नोबेल पुरस्कार विजेता डा. नॉर्मन बोरलॉग ने इसे वैश्विक खतरा बताया है। यूजी99 की खाद्य सुरक्षा को खतरे में डालने की खतरनाक क्षमता के कारण ही पूरी दुनिया के गेंहू उत्पादक देश बेहद सतर्क है और भारत ने भी कमर कस ली है। हाल में इस विषय पर नई दिल्ली आयोजित सेमिनार में कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा है कि फिलहाल भारत यूजी99 के प्रकोप से मुक्त है और देश में गेंहू की ऐसी कई देसी किस्में हैं जिनमें यूजी99 और उसके विभिन्न रूपों के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता है। यहां यह बात गौर करने लायक है कि देश में गेंहू की अर्ध-बौनी किस्मों को जारी करने से पहले रतुआ रोग का नियमित प्रकोप देखा जाता रहा है। लेकिन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के वैज्ञानिकों द्वारा फफूंद जनित रोगों के खिलाफ बेहतर किस्मों को विकसित करने के बाद देश में रतुआ रोग का प्रकोप कम हुआ है। सरकार ने यूजी99 के किसी भी हमले से निपटने के लिए इसकी प्रतिरोधक क्षमता वाली 11 भारतीय किस्मों के बीजों के संरक्षण के साथ उनकी मात्रा बढ़ाने का काम भी शुरू कर दिया है। आईसीएआर और मैक्सिको में स्थित अंतरराष्ट्रीय गेंहू और मक्का अनुसंधान केंद्र (सिम्मिट) यूजी99 के संभावित खतरे से निपटने के लिए साझा शोध कार्य कर रहे हैं। इसी सिलसिले में 6 से 8 नवंबर 2008 के बीच नई दिल्ली में यूजी99 के खाद्य सुरक्षा पर मंडराते खतरे के मद्देनजर अंतरराष्ट्रीय गोष्ठी का आयोजन किया गया था। गोष्ठी में यूजी99 के हर पहलू पर चर्चा करने के साथ सभी देशों से कहा गया कि वह यूजी99 से संबंधित अपने डाटा को खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) या साझेदार देशों के साथ बांटें। जिससे खाद्य सुरक्षा के साथ पूरी मानव सभ्यता पर मंडराते यूजी99 के खतरे से निपटा जा सके।भारत में इस रोग से सतर्क रहने की जरूरत और ज्यादा है क्योंकि एक छोटे से क्षेत्र में भी रोग फैलने पर यहां की विशाल जनसंख्या के लिए मुश्किल हो सकती है। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार पैदावार बढ़ाने के अलावा रकबा बढ़ाने पर भी जोर दे रही है। ऐसे में जरा सी लापरवाही से यह रोग भारत के लिए भयावह स्थिति पैदा कर सकता है। (Business Bhaskar)
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