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04 दिसंबर 2008

पंजाब के आलू किसानों में हताशा

जालंधर December 02, 2008
पिछले साल आलू के जबरदस्त उत्पादन से किसान काफी खुश थे। ज्यादा लाभ अर्जित करने के ख्याल से उन्होंने अपनी फसल को कोल्ड स्टोरेज में रखवाया।
लेकिन इस साल कीमतों में हुई भारी गिरावट के कारण लाभ कमाना तो दूर की बात हो गई, उन्हें अपना आलू बेचने में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। जालंधर आलू उत्पादक संघ के सचिव जसविंदर सिंह संघा ने कहा कि पिछले साल देश भर में आलू की बंपर फसल हुई थी और फसल बेचने के बजाए किसानों ने अतिरिक्त पैसे खर्च कर उसे कोल्ड स्टोरेज में सुरक्षित रखना बेहतर समझा। लेकिन, किसानों को पिछले साल जितनी कीमत भी नहीं मिल पा रही है। संघा ने कहा कि वर्तमान में आलू की कीमत 125 रुपये प्रति 50 किलोग्राम है और अगर परिस्थितियां ऐसी ही बनी रहती हैं तो एक महीने के भीतर ही कीमतें 50 रुपये प्रति 50 किलोग्राम के स्तर पर पहुंच जाएंगी। उन्होंने कहा कि एक तरफ किसानों को अपनी पुरानी फसल बेचने में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है और दूसरी तरफ बाजार में नई फसल भी आ चुकी है। उन्होंने कहा, 'अगर परिस्थितियों में सुधार नहीं होता है तो फिर वक्त साल 2000 जैसा हो जाएगा जब अपना विरोध प्रदर्शन करने के लिए किसानों ने अपनी फसल को सड़कों पर फेंकना शुरू कर दिया था।'आलू बीज किसान परिसंघ के महासचिव जंग बहादुर संघा ने कहा कि बीज फसल की बिक्री के बाद किसानों को लागत का आधा मूल्य भी नहीं मिल सका है। उन्होंने कहा, 'केवल पंजाब में ही ऐसी परिस्थिति नहीं है बल्कि प्रमुख आलू उत्पादक राज्य जैसे पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश को भी ऐसी ही समस्या से रुबरू होना पड़ रहा है।' उनके अनुसार अगले साल परिस्थितियों में सुधार हो सकता है क्योंकि किसानों ने आलू का रकबा घटाने का निर्णय किया है। हालांकि राज्य सरकार चाहती है कि किसान गेहूं और धान जैसी पारंपरिक फसलों की खेती में विविधीकरण लाएं।लेकिन वास्तविकता यह थी कि सरकार के सहयोग के अभाव में किसानों को गेहूं और धान की खेती करना ज्यादा आकर्षक लगा था क्योंकि इनके न्यूनतम समर्थन मूल्यों में अच्छी-खासी बढ़ोतरी हुई थी। उन्होंने सुझाया कि सरकार को नष्ट होने वाली फसलों के लिए सहयोग करना चाहिए ताकि फसलों के विविधीकरण पर प्रतिकूल असर न हो। उन्होंने कहा कि आलू के थोक मूल्य के घटने से उपभोक्ताओं को कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। संघा ने बताया कि जब थोक मूल्य कम होता है तो खुदरा विक्रेता अपने लाभों में इजाफा करते हैं। ऐसे में किसान कहीं के नहीं रह जाते हैं और सबसे अधिक नुकसान उन्हें उठाना होता है। सूत्रों ने बताया कि जिन किसानों और थोक विक्रेताओं ने पिछले साल 10 रुपये प्रति किलो की दर पर आलू की खरीदारी कर यह सोच कर सुरक्षित रखा था कि अगले साल बेहतर कीमतें मिलेंगी, वही आज दो से तीन रुपये प्रति किलो की दर पर आलू बेचने के लिए बाध्य हो रहे हैं। सूत्रों के अनुसार राज्य में पिछले साल किसानों और आपूर्तिकर्ताओं ने फसल को बाजार में लाने के बजाए लगभग 500 स्टोरेज हाउस में बड़े परिमाण में आलू का भंडार बनाया था। उस समय आलू की कीमतें 10 रुपये प्रति किलो चल रही थी और यह अफवाह फैली हुई थी कि ठंड के कारण आलू की फसल को नुकसान पहुंचेगा लेकिन यह मान कर चलना किसानों के लिए काफी घातक साबित हुआ। (BS Hindi)

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