मुंबई December 09, 2008
अप्रैल में सरकार द्वारा कच्चे और रिफाइंड खाद्य तेलों के आयात शुल्क में की गई जबरदस्त कटौती के बावजूद वित्त मंत्रालय नियंत्रित राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) ने जैतून तेल आयातकों को पहले की तरह 45 फीसदी का आयात शुल्क अदा करने का आदेश दिया है।
संस्थान का तर्क है कि खाद्य तेलों में सबसे महंगा यह तेल न तो कच्चा खाद्य तेल और न ही रिफाइंड तेल की श्रेणी में आता है, लिहाजा जैतून तेल आयातकों को शुल्क में छूट का लाभ नहीं दिया जाएगा। निदेशालय के इस आदेश से आयातकों में जबरदस्त बेचैनी देखी जा रही है। खाद्य अपमिश्रण रोकथाम नियम, 1995 में खुद सरकार ने परिभाषित किया है कि जैतून का तेल वह है जो जैतून के फल से यांत्रिक और दूसरे भौतिक तरीकों से प्राप्त होता है। इस लिहाज से तो जैतून तेल कच्चे तेल की परिभाषा के तहत आना चाहिए। ऐसे में तो इसके आयात पर आयात शुल्क शून्य ही होना चाहिए। हालांकि भारत एक्सट्रा वर्जिन जैतून तेल का आयात करता है, जो रिफाइंड श्रेणी में आता है। ऐसे में इसके आयात पर केवल 7.5 फीसदी शुल्क ही लगना चाहिए। लेकिन डीआरआई के मौजूदा निर्णय से आयातकों को 45 फीसदी का भारी-भारी भरकम शुल्क अदा करना पड़ेगा। इसे लेकर जैतून तेल आयातकों में बेचैनी पाई जा रही है। मालूम हो कि भारत जैतून तेल की कुल जरूरत के शत-प्रतिशत की पूर्ति आयात के जरिए ही करता है, जबकि ज्यादातर आयात यूरोपीय देशों से ही होता है। आयातकों को जारी अपने सम्मन में निदेशालय ने सभी को 28 नवंबर को मुंबई में व्यक्तिगत तौर पर हाजिर होने का आदेश दिया था। इस सम्मन में आरआर ऊमरभॉय, ऑलिव ट्री ट्रेडिंग, कंज्यूमर मार्केटिंग इंडिया, जेएल मॉरिसन, पैंटालून रिटेल और अमृतांजन हेल्थ केयर और डालमिया कॉन्टिनेंटल प्राइवेट लिमिटेड को हाजिर होने का आदेश था। डीआरआई ने निर्देश दिया कि जैतून तेल आयातक 45 फीसदी की दर से आयात शुल्क जमा करें। सूत्रों के मुताबिक, अमृतांजन हेल्थकेयर ने तो वित्त मंत्रालय के साथ किसी विवाद में पड़ने से बेहतर शुल्क को अदा करना ही बेहतर समझा। हालांकि दूसरी कंपनियां मंत्रालय से इस मुद्दे पर संघर्ष कर रही हैं और विवाद सुलझने का इंतजार कर रही हैं। यदि कंपनियों को 45 या 52.5 फीसदी आयात शुल्क अदा करना पड़ा तो तय है कि जैतून तेल की कीमत में करीब 50 फीसदी की वृद्धि हो जाएगी।ऐसे में इस तेल की कीमत चुकाना ज्यादातर उपभोक्ताओं के बस की बात नहीं रह जाएगी। इस बीच भारतीय जैतून संघ (आईओए) ने अपने ताजा वक्तव्य में वित्त मंत्रालय से संबंधित मुद्दे और मतभेद पर स्पष्टीकरण मांगा है।उल्लेखनीय है कि देश में तीन तरह के जैतून तेल उपलब्ध हैं। एक, एक्सट्रा वर्जिन किस्म जिसकी कीमत 600 से 650 रुपये प्रति लीटर होती है। दूसरा, सामान्य किस्म जो 500 रुपये प्रति लीटर की दर से बिकता है और तीसरा, जो गुद्देदार जैतून से तैयार की जाती है और इसकी कीमत 300 रुपये प्रति लीटर होती है। अपने औषधीय गुणों के चलते अब यह तेल मध्य वर्ग के लोगों में भी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। अनुमान है कि इस साल देश में जैतून तेल की खपत पिछले साल के 2,300 टन से बढ़कर 4,600 टन हो जाएगी। पिछले साल 2,300 टन का आयात हुआ था। (BS Hindi)
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