भारतीय आटा मिल मालिकों और वैश्विक कारोबारी कंपनियों ने मार्च से 5 लाख टन
प्रीमियम ऑस्ट्रेलियाई गेहूं आयात के लिए सौदे किए हैं, जबकि घरेलू बाजार
में इस जिंस का सरप्लस स्टॉक है। यह पिछले एक दशक में गेहूं की सबसे बड़ी
खरीद होगी। कारोबारी सूत्रों ने आज यह जानकारी दी। ऐसे सौदों से सीधे जुड़े
तीन सूत्रों ने कहा कि इस बात की चिंताएं हैं कि फरवरी और मार्च में
बेमौसम बारिश से गेहूं विशेष रूप से पिज्जा एवं पास्ता बनाने में उपयोग
होने वाले उच्च प्रोटीनयुक्त गेहूं का उत्पादन घटेगा। इन चिंताओं की वजह से
सबसे पहले दक्षिणी भारत के मिल मालिकों ने ऑर्डर दिए। अंतरराष्ट्रीय बाजार
में आकर्षक कीमतें होने से प्रोत्साहित होकर कारगिल, लुइ ड्रेफस और
ग्लेनकोर जैसी कारोबारी कंपनियों ने भी आयात के ऑर्डर दिए हैं।
कारोबारी और मिल मालिक फ्रांस और रूस से 5 लाख टन गेहूं का आयात कर सकते हैं। इन देशों में जल्द ही गेहूं की कटाई होने वाली है। इन सौदों से गेहूं की बेंचमार्क कीमतें ऊपर जा सकती हैं, जो पहले ही अमेरिकी फसल की गुणवत्ता कमजोर होने की आशंकाओं के कारण बढ़ चुकी हैं। एक सूत्र ने कहा, 'इस बात की प्रबल संभावना है कि फ्रांस और रूस की आकर्षक कीमतों के कारण वहां से भारत में गेहूं आएगा। मेरा मानना है कि अगर यूरो में गिरावट आई तो फ्रांस से भारत को गेहूं का निर्यात और बढ़ेगा।'
सूत्रों ने नाम न प्रकाशित करने का आग्रह करते हुए बताया कि अब तक जितने गेहूं के सौदे हुए हैं, उसमें से करीब आधा भारत पहुंच गया है और शेष गेहूं की डिलिवरी जुलाई में होनी है। यह गेहूं 255 से 275 डॉलर प्रति टन की कीमत पर खरीदा गया है। हालांकि बारिश और ओले गिरने से भारत मेंं गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचा है। लेकिन लगातार आठ वर्र्षों तक अच्छे उत्पादन के चलते भारत के पास गेहूं का भारी स्टॉक है।
अगर इस साल मॉनसून की बारिश कम रही और महंगाई में तेजी आई तो सरकार द्वारा अपने गोदामों से बड़ी मात्रा में गेहूं की बिक्री किए जाने की संभावना है। भारतीय मौसम विभाग ने इस साल मॉनसून के अपने अनुमान को घटाकर लंबी अवधि के औसत (एलपीए) का 88 फीसदी कर दिया है, जिससे गत छह वर्षों में पहली बार सूखा पडऩे की चिंताएं पैदा हुई हैं। उद्योग और सरकारी अधिकारियों का अनुमान है कि इस साल गेहूं का उत्पादन 9 करोड़ टन के आसपास रहेगा, जो पिछले साल के उत्पादन से करीब 5 फीसदी कम है। लेकिन फिर भी यह घरेलू मांग करीब 7.2 करोड़ टन से ज्यादा है। गेहूं की बुआई मुख्य रूप से भारत के मध्य और उत्तरी मैदानों में होती है। इसलिए हिंद महासागर से घिरे हुए दक्षिणी राज्यों की आटा मिलें कभी-कभी ऑस्ट्रेलिया से उच्च प्रोटीनयुक्त गेहूं के आयात को फायदेमंद पाती हैं। लेकिन इस साल इतनी बड़ी मात्रा में आयात ने कुछ लोगों को चौंकाया है। एक सूत्र ने कहा, 'बड़ी मात्रा में आयात के अलावा दो बड़े बदलाव हुए हैं।' उन्होंने कहा, 'संभïवतया पहली बार कुछ आयात जहाजों (वेसल) में हो रहा है और संभवतया पहली बार मिल मालिक फ्रांस और रूस से गेहूं खरीदेंगे।' एक अन्य सूत्र ने बताया कि 185 से 190 डॉलर प्रति टन कीमत पर (फ्री ऑन बोर्ड) फ्रांस और रूस का गेहूं भारत के लिए आकर्षक है। (BS Hindi)
कारोबारी और मिल मालिक फ्रांस और रूस से 5 लाख टन गेहूं का आयात कर सकते हैं। इन देशों में जल्द ही गेहूं की कटाई होने वाली है। इन सौदों से गेहूं की बेंचमार्क कीमतें ऊपर जा सकती हैं, जो पहले ही अमेरिकी फसल की गुणवत्ता कमजोर होने की आशंकाओं के कारण बढ़ चुकी हैं। एक सूत्र ने कहा, 'इस बात की प्रबल संभावना है कि फ्रांस और रूस की आकर्षक कीमतों के कारण वहां से भारत में गेहूं आएगा। मेरा मानना है कि अगर यूरो में गिरावट आई तो फ्रांस से भारत को गेहूं का निर्यात और बढ़ेगा।'
सूत्रों ने नाम न प्रकाशित करने का आग्रह करते हुए बताया कि अब तक जितने गेहूं के सौदे हुए हैं, उसमें से करीब आधा भारत पहुंच गया है और शेष गेहूं की डिलिवरी जुलाई में होनी है। यह गेहूं 255 से 275 डॉलर प्रति टन की कीमत पर खरीदा गया है। हालांकि बारिश और ओले गिरने से भारत मेंं गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचा है। लेकिन लगातार आठ वर्र्षों तक अच्छे उत्पादन के चलते भारत के पास गेहूं का भारी स्टॉक है।
अगर इस साल मॉनसून की बारिश कम रही और महंगाई में तेजी आई तो सरकार द्वारा अपने गोदामों से बड़ी मात्रा में गेहूं की बिक्री किए जाने की संभावना है। भारतीय मौसम विभाग ने इस साल मॉनसून के अपने अनुमान को घटाकर लंबी अवधि के औसत (एलपीए) का 88 फीसदी कर दिया है, जिससे गत छह वर्षों में पहली बार सूखा पडऩे की चिंताएं पैदा हुई हैं। उद्योग और सरकारी अधिकारियों का अनुमान है कि इस साल गेहूं का उत्पादन 9 करोड़ टन के आसपास रहेगा, जो पिछले साल के उत्पादन से करीब 5 फीसदी कम है। लेकिन फिर भी यह घरेलू मांग करीब 7.2 करोड़ टन से ज्यादा है। गेहूं की बुआई मुख्य रूप से भारत के मध्य और उत्तरी मैदानों में होती है। इसलिए हिंद महासागर से घिरे हुए दक्षिणी राज्यों की आटा मिलें कभी-कभी ऑस्ट्रेलिया से उच्च प्रोटीनयुक्त गेहूं के आयात को फायदेमंद पाती हैं। लेकिन इस साल इतनी बड़ी मात्रा में आयात ने कुछ लोगों को चौंकाया है। एक सूत्र ने कहा, 'बड़ी मात्रा में आयात के अलावा दो बड़े बदलाव हुए हैं।' उन्होंने कहा, 'संभïवतया पहली बार कुछ आयात जहाजों (वेसल) में हो रहा है और संभवतया पहली बार मिल मालिक फ्रांस और रूस से गेहूं खरीदेंगे।' एक अन्य सूत्र ने बताया कि 185 से 190 डॉलर प्रति टन कीमत पर (फ्री ऑन बोर्ड) फ्रांस और रूस का गेहूं भारत के लिए आकर्षक है। (BS Hindi)
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