चीन को किए जाने वाले सूती धागे का निर्यात घटने और कमजोर मांग की वजह से
इनकी कीमतें घटने से पिछले वित्त वर्ष के दौरान भारतीय कताई मिलों के
प्रदर्शन पर बहुत बुरा असर पड़ा है। पूरे भारत की कताई मिलों के मुनाफे पर
इसका सीधा असर देखने को मिल रहा है। कच्चे माल की कीमतों में आई गिरावट के
बावजूद मिलें वित्त वर्ष 2015 में बेहतर मुनाफा कमाने में नाकाम रहीं
क्योंकि उन पर पहले का बकाया काफी अधिक है और उन्हें जरूरत से ज्यादा
आपूर्ति की स्थिति का सामना भी करना पड़ रहा है। बिज़नेस स्टैंडर्ड रिसर्च
ब्यूरो द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक 46 सूचीबद्घ कताई कंपनियों की
कमाई वित्त वर्ष 2015 में स्थिर रही। वित्त वर्ष 2014 में इन कंपनियों की
कमाई 32,813 करोड़ रुपये थी जो वित्त वर्ष 2015 में घटकर 32,483 करोड़
रुपये रह गई। दूसरी तरफ उनका मुनाफा 1,041 करोड़ रुपये से घटकर महज 76
करोड़ रुपये रह गया। मार्च तिमाही में इन कंपनियों को तगड़ा झटका लगा और
ज्यादातर कंपनियां घाटे में रहीं।
भारत के कपड़ा क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक ओसवाल समूह के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक भी इस बात की पुष्टिï करते हुए कहते हैं कि चीन से कम होती मांग, भारत सरकार द्वारा बाजार केंद्रित योजनाओं को वापस लिए जाने और उधार लेने की उच्च लागत की वजह से पिछले एक साल के दौरान कताई क्षेत्र के प्रदर्शन पर बहुत बुरा असर पड़ा है। दो साल पहले सूती धागे की मांग में चीन की ओर से बढ़ोतरी और अब अचानक आई गिरावट ने धागा निर्यातकों को अन्य विकल्पों की ओर गौर करने का मौका ही नहीं दिया और इस वजह से देसी बाजार में जरूरत से अधिक आपूर्ति की स्थिति उत्पन्न हो गई और कीमतें 10-12 फीसदी तक गिर गईं। मुनाफे में गिरावट आने की यह एक प्रमुख वजह है। उन्होंने कहा कि चूंकि वियतनाम अपनी कताई क्षमता का विस्तार कर रहा है और खबरें यह भी हैं कि चीन वियतनाम में कताई क्षेत्र में निवेश कर रहा है। इससे भारतीय कपास निर्यातकों के लिए एक और मुसीबत खड़ी हो सकती है।
सूत्रों का कहना है कि छोटी मिलों ने भी अपनी क्षमता में करीब 20 फीसदी की कटौती कर दी है। अब कताई उद्योग का जोर पूरी तरह देसी उद्योग की मांग पर है। अप्रैल, 2014 के दौरान चीन सरकार ने स्थानीय उत्पादकों की मदद करने के लिए कच्चे कपास को इकटï्ठा करने के तीन साल के कार्यक्रम को बंद कर दिया और इसके बजाय सरकार सीधे किसानों को सब्सिडी देने की पेशकश कर रही है। कपास के स्टॉक को निपटाने की चीनी सरकार की नीतियों के परिणामस्वरूप चीनी कताई मिलों को स्थानीय बाजार से ही सस्ती दरों पर कपास मिलने लगा है और इसकी वजह से आयात पर उनकी निर्भरता कम हो गई है। इसकी वजह से वित्त वर्ष 2015 में चीन को किए जाने वाले कपास और सूती धागे का निर्यात तेजी से कम हुआ। चीन अभी भारत से कपास का आयात करने वाले देशों की सूची में सबसे आगे है। भारत से होने वाले सूती धागे के निर्यात में चीन की हिस्सेदारी करीब 46 फीसदी है। इसमें काफी गिरावट देखने को मिलेगी जिससे भारतीय कताई मिलों की सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ा है। कनफेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री (सीआईटीआई) के महासचिव डी के नायर ने कहा कि बांग्लादेश, वियतनाम और मिस्र जैसे वैकल्पिक बाजार निर्यातकों को कुछ राहत दे सकते हैं लेकिन उनका आधार बहुत ही छोटा है।
चीन बहुत बड़ा बाजार है। छोटे देशों को अधिक निर्यात करने से नुकसान को कुछ हद तक कम करने में मदद मिल सकती है लेकिन मिल मालिकों की चिंता अभी भी बरकरार है। देश के प्रमुख मिल मालिकों का मानना है कि भारतीय कपास निगम के पास कपास की 85 लाख गांठें उपलब्ध हैं जो कुल सालाना फसल का करीब 20 फीसदी हिस्सा है। कारोबारियों का कहना है कि निगम को कीमतें कम करने के लिए स्टॉक की बिकवाली शुरू करनी चाहिए। इस स्तर पर कपास की कीमतों में सुधार होने से किसानों पर कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन इससे कताई क्षेत्र को बचाने में मदद मिल सकती है। नायर ने बताया कि भारत के कताई क्षेत्र और कपड़ा क्षेत्र के बीच बढ़ते अंतर की वजह से देसी बाजार में जरूरत से ज्यादा आपूर्ति हो जाएगी जिससे भारतीय मिलों की निर्भरता निर्यात मांग पर बढ़ गई है। कॉटन टेक्सटाइल्स एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के चेयरमैन आर के डालमिया ने कहा, 'कपास की फसल अच्छी होने और कपास निगम के पास भरपूर स्टॉक होने के बावजूद मिलमालिक कपास के लिए भारी रकम चुका रहे हैं। कमजोर मांग की वजह से मार्जिन कम होता है और सरकार इस स्थिति से निपटने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है।'
त्यागराज मिल्स, मदुरै के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक टी कन्नन का मानना है कि फिलहाल हालात भले ही मुश्किल नजर आ रहे हों लेकिन इसके आखिर में बहुत ही उजाला है। यूरोप और अमेरिका से मांग में तेजी आने की वजह से इस साल कपड़ा क्षेत्र के अच्छा करने की उम्मीद है। इससे देसी क्षेत्र में कपास धागे की मांग में तेजी आ सकती है। केयर रेटिंग्स में कॉरपोरेट रेटिंग्स के प्रबंधक कुणाल मोदी ने कहा, 'आने वाले महीनों में मांग की स्थिति में बदलाव हो सकता है क्योंकि यूएई जैसे ठिकाने मंदी के दौर को कपड़ा क्षेत्र के लिए एक अवसर के तौर पर परिवर्तित कर सकते हैं, इसके अलावा यूरोपीय संघ और अमेरिका में बढ़ती मांग भी निर्यात को बढ़ाने में मददगार साबित हो सकती है। आने वाले 3-6 महीने भारतीय कताई क्षेत्र के लिए काफी मुश्किल होंगे।' उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2014 कई कपास कताई मिलों के लिए बेहतरीन साल रहा, इसकी वजह निर्यात और उपभोग में तेजी रही। (BS Hindi)
भारत के कपड़ा क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक ओसवाल समूह के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक भी इस बात की पुष्टिï करते हुए कहते हैं कि चीन से कम होती मांग, भारत सरकार द्वारा बाजार केंद्रित योजनाओं को वापस लिए जाने और उधार लेने की उच्च लागत की वजह से पिछले एक साल के दौरान कताई क्षेत्र के प्रदर्शन पर बहुत बुरा असर पड़ा है। दो साल पहले सूती धागे की मांग में चीन की ओर से बढ़ोतरी और अब अचानक आई गिरावट ने धागा निर्यातकों को अन्य विकल्पों की ओर गौर करने का मौका ही नहीं दिया और इस वजह से देसी बाजार में जरूरत से अधिक आपूर्ति की स्थिति उत्पन्न हो गई और कीमतें 10-12 फीसदी तक गिर गईं। मुनाफे में गिरावट आने की यह एक प्रमुख वजह है। उन्होंने कहा कि चूंकि वियतनाम अपनी कताई क्षमता का विस्तार कर रहा है और खबरें यह भी हैं कि चीन वियतनाम में कताई क्षेत्र में निवेश कर रहा है। इससे भारतीय कपास निर्यातकों के लिए एक और मुसीबत खड़ी हो सकती है।
सूत्रों का कहना है कि छोटी मिलों ने भी अपनी क्षमता में करीब 20 फीसदी की कटौती कर दी है। अब कताई उद्योग का जोर पूरी तरह देसी उद्योग की मांग पर है। अप्रैल, 2014 के दौरान चीन सरकार ने स्थानीय उत्पादकों की मदद करने के लिए कच्चे कपास को इकटï्ठा करने के तीन साल के कार्यक्रम को बंद कर दिया और इसके बजाय सरकार सीधे किसानों को सब्सिडी देने की पेशकश कर रही है। कपास के स्टॉक को निपटाने की चीनी सरकार की नीतियों के परिणामस्वरूप चीनी कताई मिलों को स्थानीय बाजार से ही सस्ती दरों पर कपास मिलने लगा है और इसकी वजह से आयात पर उनकी निर्भरता कम हो गई है। इसकी वजह से वित्त वर्ष 2015 में चीन को किए जाने वाले कपास और सूती धागे का निर्यात तेजी से कम हुआ। चीन अभी भारत से कपास का आयात करने वाले देशों की सूची में सबसे आगे है। भारत से होने वाले सूती धागे के निर्यात में चीन की हिस्सेदारी करीब 46 फीसदी है। इसमें काफी गिरावट देखने को मिलेगी जिससे भारतीय कताई मिलों की सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ा है। कनफेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री (सीआईटीआई) के महासचिव डी के नायर ने कहा कि बांग्लादेश, वियतनाम और मिस्र जैसे वैकल्पिक बाजार निर्यातकों को कुछ राहत दे सकते हैं लेकिन उनका आधार बहुत ही छोटा है।
चीन बहुत बड़ा बाजार है। छोटे देशों को अधिक निर्यात करने से नुकसान को कुछ हद तक कम करने में मदद मिल सकती है लेकिन मिल मालिकों की चिंता अभी भी बरकरार है। देश के प्रमुख मिल मालिकों का मानना है कि भारतीय कपास निगम के पास कपास की 85 लाख गांठें उपलब्ध हैं जो कुल सालाना फसल का करीब 20 फीसदी हिस्सा है। कारोबारियों का कहना है कि निगम को कीमतें कम करने के लिए स्टॉक की बिकवाली शुरू करनी चाहिए। इस स्तर पर कपास की कीमतों में सुधार होने से किसानों पर कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन इससे कताई क्षेत्र को बचाने में मदद मिल सकती है। नायर ने बताया कि भारत के कताई क्षेत्र और कपड़ा क्षेत्र के बीच बढ़ते अंतर की वजह से देसी बाजार में जरूरत से ज्यादा आपूर्ति हो जाएगी जिससे भारतीय मिलों की निर्भरता निर्यात मांग पर बढ़ गई है। कॉटन टेक्सटाइल्स एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के चेयरमैन आर के डालमिया ने कहा, 'कपास की फसल अच्छी होने और कपास निगम के पास भरपूर स्टॉक होने के बावजूद मिलमालिक कपास के लिए भारी रकम चुका रहे हैं। कमजोर मांग की वजह से मार्जिन कम होता है और सरकार इस स्थिति से निपटने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है।'
त्यागराज मिल्स, मदुरै के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक टी कन्नन का मानना है कि फिलहाल हालात भले ही मुश्किल नजर आ रहे हों लेकिन इसके आखिर में बहुत ही उजाला है। यूरोप और अमेरिका से मांग में तेजी आने की वजह से इस साल कपड़ा क्षेत्र के अच्छा करने की उम्मीद है। इससे देसी क्षेत्र में कपास धागे की मांग में तेजी आ सकती है। केयर रेटिंग्स में कॉरपोरेट रेटिंग्स के प्रबंधक कुणाल मोदी ने कहा, 'आने वाले महीनों में मांग की स्थिति में बदलाव हो सकता है क्योंकि यूएई जैसे ठिकाने मंदी के दौर को कपड़ा क्षेत्र के लिए एक अवसर के तौर पर परिवर्तित कर सकते हैं, इसके अलावा यूरोपीय संघ और अमेरिका में बढ़ती मांग भी निर्यात को बढ़ाने में मददगार साबित हो सकती है। आने वाले 3-6 महीने भारतीय कताई क्षेत्र के लिए काफी मुश्किल होंगे।' उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2014 कई कपास कताई मिलों के लिए बेहतरीन साल रहा, इसकी वजह निर्यात और उपभोग में तेजी रही। (BS Hindi)
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