मॉनसून में देरी और तापमान में हो रही तेज बढ़ोतरी ने केरल में प्राकृतिक
रबर की पैदावार को बुरी तरह प्रभावित किया है। उत्पादन में बाधा आ रही है।
पूरी दुनिया में हालात कुछ ऐसे ही हैं और पिछले कुछ हफ्तों के दौरान
आपूर्ति में कमी आई है। स्थानीय बाजार में मानक ग्रेड आरएसएस-4 की कीमतें
एक बार फिर तीन महीनों के बाद 130 रुपये प्रति किलोग्राम पर लौट आई हैं।
अप्रैल के आखिरी हफ्ते तक कीमतें 119 रुपये के स्तर तक गिर गई थीं। वैश्विक
कीमतों में भी पिछले महीने के मुकाबले तेजी का रुख देखने को मिला क्योंकि
बैंकॉक के बाजार में कीमतें 119 रुपये प्रति किग्रा रहीं। बाजार में पिछले
हफ्ते कीमत 121 रुपये प्रति किग्रा रहीं। पिछले महीने के मुकाबले वैश्विक
बाजार की हालत बेहतर है।
जानकारों का कहना है कि पहाड़ी इलाकों में मॉनसून की कमी और गर्मी के कारण रबर की भारी कमी हो सकती है। इस तरह की जलवायु परिस्थिति पांच साल के अंतर के बाद उत्पन्न हुई है। उन्होंने कहा कि आने वाले महीनों में कहीं न कहीं बाजार में तेजी देखने को मिलेगी। इस बीच टोक्यो कमोडिटी एक्सचेंज में रबर वायदा में आज गिरावट का रुख देखने को मिला। टोकॉम की दरें 14 फीसदी बढ़कर 16 महीनों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हंै जबकि जापानी मुद्रा गिरकर 12 साल के निम्रतम स्तर पर है। दुनिया में रबर के सबसे बड़े उत्पादक और निर्यातक थाईलैंड से आपूर्ति पिछले कुछ हफ्तों से साल के सबसे निचले स्तर पर है क्योंकि इस सीजन में उत्पादन कम रहा। थाईलैंड में फरवरी से मई के बीच सर्दी रहती है जब रबर के पेड़ पत्तियां गिरा देते हैं और किसान उत्पादन बंद कर देते हैं। थाईलैंड के वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पिछले चार महीनों के दौरान देश से होने वाला निर्यात 26 फीसदी की गिरावट के साथ 11.7 करोड़ टन रहा।
अधिक तापमान से प्रभावित उत्पादन
भारतीय रबर शोध संस्थान (आरआरआईआई) द्वारा कराए गए अध्ययन में पाया गया कि केरल में सबसे अधिक रबर का उत्पादन करने वाले क्षेत्र कोट्टïायम में पिछले कुछ सालों के दौरान तापमान बढऩे की घटनाएं सामने आती हैं। वर्ष 1970 से 2010 के बीच दैनिक अधिकतम और न्यूनतम तापमानों के आंकड़ों का विश्लेषण आरआरआईआई के क्लाईमेट चेंज ऐंड इकोसिस्टम स्टडीज डिवीजन ने किया जिससे पता चला कि गर्मी का रुझान बढ़ रहा है और इसका असर इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन पर भी पड़ सकता है। रबर के पेड़ों पर लेटेक्स का उत्पादन वातावरण के तापमान से संबंधित है।
एक तय सीमा से अधिक तापमान बढऩे पर फसल की उत्पादकता घटने लगती है। शुरुआत में किए गए अध्ययनों से साफ पता चलता है कि तापमान में इजाफों से भारत में पारंपरिक तौर पर रबर पैदा करने वाले क्षेत्रों में रबर उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। इसलिए बदलते जलवायु का असर इस क्षेत्र में रबर की बुआई पर गंभीर रूप से पड़ सकता है। आरआरआईआई ने सावधान करते हुए कहा कि चूंकि इस क्षेत्र का सामाजिक-आर्थिक स्थायित्व बड़े पैमाने पर रबर की बुआई पर निर्भर है इसलिए इस क्षेत्र में रबर की बुआई के वक्त उचित कदम उठाने की जरूरत है। BS Hindi
जानकारों का कहना है कि पहाड़ी इलाकों में मॉनसून की कमी और गर्मी के कारण रबर की भारी कमी हो सकती है। इस तरह की जलवायु परिस्थिति पांच साल के अंतर के बाद उत्पन्न हुई है। उन्होंने कहा कि आने वाले महीनों में कहीं न कहीं बाजार में तेजी देखने को मिलेगी। इस बीच टोक्यो कमोडिटी एक्सचेंज में रबर वायदा में आज गिरावट का रुख देखने को मिला। टोकॉम की दरें 14 फीसदी बढ़कर 16 महीनों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हंै जबकि जापानी मुद्रा गिरकर 12 साल के निम्रतम स्तर पर है। दुनिया में रबर के सबसे बड़े उत्पादक और निर्यातक थाईलैंड से आपूर्ति पिछले कुछ हफ्तों से साल के सबसे निचले स्तर पर है क्योंकि इस सीजन में उत्पादन कम रहा। थाईलैंड में फरवरी से मई के बीच सर्दी रहती है जब रबर के पेड़ पत्तियां गिरा देते हैं और किसान उत्पादन बंद कर देते हैं। थाईलैंड के वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पिछले चार महीनों के दौरान देश से होने वाला निर्यात 26 फीसदी की गिरावट के साथ 11.7 करोड़ टन रहा।
अधिक तापमान से प्रभावित उत्पादन
भारतीय रबर शोध संस्थान (आरआरआईआई) द्वारा कराए गए अध्ययन में पाया गया कि केरल में सबसे अधिक रबर का उत्पादन करने वाले क्षेत्र कोट्टïायम में पिछले कुछ सालों के दौरान तापमान बढऩे की घटनाएं सामने आती हैं। वर्ष 1970 से 2010 के बीच दैनिक अधिकतम और न्यूनतम तापमानों के आंकड़ों का विश्लेषण आरआरआईआई के क्लाईमेट चेंज ऐंड इकोसिस्टम स्टडीज डिवीजन ने किया जिससे पता चला कि गर्मी का रुझान बढ़ रहा है और इसका असर इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन पर भी पड़ सकता है। रबर के पेड़ों पर लेटेक्स का उत्पादन वातावरण के तापमान से संबंधित है।
एक तय सीमा से अधिक तापमान बढऩे पर फसल की उत्पादकता घटने लगती है। शुरुआत में किए गए अध्ययनों से साफ पता चलता है कि तापमान में इजाफों से भारत में पारंपरिक तौर पर रबर पैदा करने वाले क्षेत्रों में रबर उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। इसलिए बदलते जलवायु का असर इस क्षेत्र में रबर की बुआई पर गंभीर रूप से पड़ सकता है। आरआरआईआई ने सावधान करते हुए कहा कि चूंकि इस क्षेत्र का सामाजिक-आर्थिक स्थायित्व बड़े पैमाने पर रबर की बुआई पर निर्भर है इसलिए इस क्षेत्र में रबर की बुआई के वक्त उचित कदम उठाने की जरूरत है। BS Hindi
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