अगर बीते कुछ सालों के रुझानों पर गौर किया जाए तो न्यूनतम समर्थन मूल्य
(एमएसपी) में जबरदस्त बढ़ोतरी का दलहन के उत्पादन पर बमुश्किल ही असर
पड़ता है। इसलिए हालिया बढ़ोतरी भी कोई अपवाद साबित नहीं हो सकती है। दरअसल
दलहन की एमएसपी पिछले पांच सालों के दौरान 50 फीसदी से भी ज्यादा बढ़ गई
है जबकि उत्पादन लगभग स्थिर है। बुधवार को सरकार ने दलहन फसलों की एमएसपी
में बढ़ोतरी के साथ अधिक बुआई के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के
उद्देश्य से बोनस बढ़ाने की भी घोषणा की है।
कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के चेयरमैन अशोक के विशानदास ने कहा, 'यह कोई बिजली का स्विच नहीं है जिसे चालू करते ही पंखा चालू हो जाएगा। लेकिन इस खरीफ सीजन में इसका थोड़ा असर होगा और रबी सीजन और इससे आगे इसका असर देखने को मिलेगा। इस साल दलहन का रकबा बढऩा निश्चित है। बोनस में जबरदस्त बढ़ोतरी के साथ एमएसपी में इजाफा कर सरकार पहली बार दलहनों की खरीदारी करने के बारे में विचार कर रही है जिससे किसान दलहन फसलों की बुआई करने के लिए प्रेरित होंगे। याद रखिए कि दलहन की उत्पादन लागत कम होती है और उत्पादन की अधिक संभावनाओं के साथ उर्वरक और कीटनाशकों का कम से कम प्रयोग होता है।' सीएसीपी ही हर साल एमएसपी में बढ़ोतरी की मात्रा तय करने के बारे में सिफारिश करता है। बुधवार को कृषि मंत्रालय ने 200 रुपये प्रति क्विंटल बोनस के साथ एमएसपी में 6 फीसदी की बढ़ोतरी करने की घोषणा की थी ताकि किसान दलहन की बुआई बढ़ाने के लिए प्रेरित हों। 275 रुपये की बढ़ोतरी के साथ उड़द की एमएसपी फसल वर्ष 2015-16 में बढ़ाकर 4,625 रुपये प्रति क्विंटल कर दी गई है जबकि पिछले साल के लिए एमएसपी 4,350 रुपये प्रति क्विंटल थी। अन्य दलहन फसलों की एमएसपी में भी ऐसी ही बढ़ोतरी की गई है।
इससे पहले वर्ष 2011-12 में सरकार ने दलहन की एमएसपी में 33 फीसदी की बढ़ोतरी की थी। लेकिन कीमतों में गिरावट के रुझान को देखते हुए किसान अभी दलहन की अतिरिक्त बुआई करने को लेकर सतर्कता बरत रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप दलहन का रकबा वर्ष 2011-12 में घटकर 244.6 लाख हेक्टेयर रहा जबकि एक साल पहले दलहन का रकबा 264.0 लाख हेक्टेयर रहा। ठीक इसी तर्ज पर दलहन का उत्पादन वर्ष 2011-12 के दौरान घटकर 170.9 लाख टन रहा जबकि वर्ष 2010-11 में यह आंकड़ा 182.4 लाख टन था।
हालांकि पिछले सालों के दौरान कीमतों में हुए सुधार की वजह से किसान काफी उत्साहित हुए हैं। इसलिए अगले दो सालों में न सिर्फ रकबा बढ़ा है बल्कि दलहन फसलों के उत्पादन में भी 2012-13 के दौरान बढ़ोतरी दर्ज की गई और यह बढ़कर 183.4 लाख टन हो गया। वर्ष 2013-14 में दलहन उत्पादन 192.5 लाख टन था। वर्ष 2014-15 में उत्पादन 173.8 लाख टन होने के बावजूद कुछ मौकों को छोड़कर थोक बाजार में दलहन की कीमतों में 35-40 रुपये प्रति किग्रा की बढ़ोतरी नहीं हुई। बेमौसम बारिश की वजह से फसल बरबाद होने का भी असर देखने को मिला। लेकिन इस बार सरकार बड़ा दांव लगा रही है। दलहनों की कीमत थोक और खुदरा बाजार में तेज होनी शुरू गई है। आसनसोल में अरहर की कीमत फिलहाल 100 रुपये प्रति किग्रा है जबकि जनवरी में यह 75 रुपये प्रति किलो थी। (BS Hindi)
कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के चेयरमैन अशोक के विशानदास ने कहा, 'यह कोई बिजली का स्विच नहीं है जिसे चालू करते ही पंखा चालू हो जाएगा। लेकिन इस खरीफ सीजन में इसका थोड़ा असर होगा और रबी सीजन और इससे आगे इसका असर देखने को मिलेगा। इस साल दलहन का रकबा बढऩा निश्चित है। बोनस में जबरदस्त बढ़ोतरी के साथ एमएसपी में इजाफा कर सरकार पहली बार दलहनों की खरीदारी करने के बारे में विचार कर रही है जिससे किसान दलहन फसलों की बुआई करने के लिए प्रेरित होंगे। याद रखिए कि दलहन की उत्पादन लागत कम होती है और उत्पादन की अधिक संभावनाओं के साथ उर्वरक और कीटनाशकों का कम से कम प्रयोग होता है।' सीएसीपी ही हर साल एमएसपी में बढ़ोतरी की मात्रा तय करने के बारे में सिफारिश करता है। बुधवार को कृषि मंत्रालय ने 200 रुपये प्रति क्विंटल बोनस के साथ एमएसपी में 6 फीसदी की बढ़ोतरी करने की घोषणा की थी ताकि किसान दलहन की बुआई बढ़ाने के लिए प्रेरित हों। 275 रुपये की बढ़ोतरी के साथ उड़द की एमएसपी फसल वर्ष 2015-16 में बढ़ाकर 4,625 रुपये प्रति क्विंटल कर दी गई है जबकि पिछले साल के लिए एमएसपी 4,350 रुपये प्रति क्विंटल थी। अन्य दलहन फसलों की एमएसपी में भी ऐसी ही बढ़ोतरी की गई है।
इससे पहले वर्ष 2011-12 में सरकार ने दलहन की एमएसपी में 33 फीसदी की बढ़ोतरी की थी। लेकिन कीमतों में गिरावट के रुझान को देखते हुए किसान अभी दलहन की अतिरिक्त बुआई करने को लेकर सतर्कता बरत रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप दलहन का रकबा वर्ष 2011-12 में घटकर 244.6 लाख हेक्टेयर रहा जबकि एक साल पहले दलहन का रकबा 264.0 लाख हेक्टेयर रहा। ठीक इसी तर्ज पर दलहन का उत्पादन वर्ष 2011-12 के दौरान घटकर 170.9 लाख टन रहा जबकि वर्ष 2010-11 में यह आंकड़ा 182.4 लाख टन था।
हालांकि पिछले सालों के दौरान कीमतों में हुए सुधार की वजह से किसान काफी उत्साहित हुए हैं। इसलिए अगले दो सालों में न सिर्फ रकबा बढ़ा है बल्कि दलहन फसलों के उत्पादन में भी 2012-13 के दौरान बढ़ोतरी दर्ज की गई और यह बढ़कर 183.4 लाख टन हो गया। वर्ष 2013-14 में दलहन उत्पादन 192.5 लाख टन था। वर्ष 2014-15 में उत्पादन 173.8 लाख टन होने के बावजूद कुछ मौकों को छोड़कर थोक बाजार में दलहन की कीमतों में 35-40 रुपये प्रति किग्रा की बढ़ोतरी नहीं हुई। बेमौसम बारिश की वजह से फसल बरबाद होने का भी असर देखने को मिला। लेकिन इस बार सरकार बड़ा दांव लगा रही है। दलहनों की कीमत थोक और खुदरा बाजार में तेज होनी शुरू गई है। आसनसोल में अरहर की कीमत फिलहाल 100 रुपये प्रति किग्रा है जबकि जनवरी में यह 75 रुपये प्रति किलो थी। (BS Hindi)
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