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02 अगस्त 2013

संकट की जड़वह कौन सा प्रोडक्ट था, जिसके पीछे

संकट की जड़ वह कौन सा प्रोडक्ट था, जिसके पीछे इनवेस्टर्स की भीड़ उमड़ी? इनवेस्टर्स एक ही वक्त में सेल और बाय के दो ट्रांजैक्शन करते थे। इसके लिए ब्रोकरों के दावे के मुताबिक उनको फिक्स्ड रिटर्न मिलता था। ट्रांजैक्शन का आधार क्या था? डील नेशनल स्पॉट एक्सचेंज के जरिए होती थी और अंडरलेइंग स्टॉक कमोडिटी थे। ट्रांजैक्शन कुछ इस तरह होता है कि इसमें किसान से फसल खरीदकर मिलर को बेचा जाता है। उदाहरण के लिए, इनवेस्टर 3 या 4 दिन का बाय और 20 या 25 दिन का सेल कॉन्ट्रैक्ट करता है। एक्सचेंज का दावा है कि इससे प्रोसेसर की कॉस्ट में कमी आती है। तो फिर गलती कहां हुई? सरकार ने इस प्रोडक्ट को कभी मंजूरी नहीं दी थी। एक साल पहले एक्सचेंज को संबंधित मिनिस्ट्री से कारण बताओ नोटिस मिला था। एक्सचेंज कंज्यूमर अफेयर्स डिपार्टमेंट के अधिकारक्षेत्र में आता है। आरोप असल में क्या हैं? सरकार का मानना है कि ये कॉन्ट्रैक्ट शॉर्ट सेलिंग जैसे होते हैं। दूसरा, स्पॉट एक्सचेंज 11 दिन से ज्यादा के कॉन्ट्रैक्ट ऑफर नहीं कर सकते। तीसरा, कमोडिटी मार्केट रेगुलेटर एफएमसी ने कहा है कि सेलर के लिए शॉर्ट पोजिशन लेने से पहले कमोडिटी को वेयरहाउस में जमा करना जरूरी नहीं है। फिर एक्सचेंज ने क्या किया? इसने अपनी पोजिशन को सही ठहराने के लिए व्यापक स्पष्टीकरण दिया। उसने दावा किया कि ऐसे सौदे शॉर्ट सेलिंग नहीं हैं। उसने यह भी कहा कि सरकार ने इन कॉन्ट्रैक्ट्स पर कुछ छूट दी है। इस पर बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ था क्योंकि एक्सचेंज प्रमोटर फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी के लिए दुधारू गाय बन गया था। वॉल्यूम में तेज उछाल आया था और 800 मेंबर ट्रेड में शामिल हो रहे थे और इसमें इनवेस्टर्स (या लेंडर्स) 7000 करोड़ रुपए की फाइनेंसिंग मुहैया करा रहे थे। पहले एक्शन लिया गया होता, तो हालात ज्यादा बिगड़ते नहीं लगभग साल भर लेटर , मीटिंग और रिप्रेजेंटेशन का दौर चला। रेगुलेटरी लेवल पर स्पष्टता नहीं होने से मामला लंबा खिंच गया। स्पॉट एक्सचेंज एफएमसी या सेबी किसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं , यह क्लीयर नहीं था। सरकार शायद समस्या की गंभीरता को नहीं समझ पाई और मामले को गलत तरीके से हैंडल किया। ज्यादातर ब्रोकर और इनवेस्टर्स को लगता था कि एक्सचेंज कोई न कोई रास्ता निकाल लेगा। संकट गहराने की क्या वजह रही ? 12 जुलाई को कंज्यूमर अफेयर्स डिपार्टमेंट ने एक्सचेंज से इस बात की अंडरटेकिंग मांगी कि अब कोई कॉन्ट्रैक्ट लॉन्च नहीं किया जाएगा और सभी मौजूदा कॉन्ट्रैक्ट्स ड्यू डेट पर सेटल कर दिए जाएंगे। एक हफ्ते बाद नेशनल स्पॉट एक्सचेंज ( एनएसईएल ) ने 10-11 दिन के सभी कॉन्ट्रैक्ट्स का डिलीवरी पीरियड घटा दिया। अंत में 31 जुलाई को इसने ब्रोकर्स को पेआउट बंद कर दिया जिससे उन ब्रोकर्स में घबराहट फैल गई , जिनके खाते में शाम तक पैसे नहीं आए। एक्सचेंज दावा कर रहा है कि इसके पास सेटलमेंट गारंटी फंड , पर्याप्त अंडरलेइंग कमोडिटी स्टॉक और मार्जिन मनी है। ऐसे में कुछ सौ करोड़ रुपए का पेआउट क्यों रोका गया। यह बात मार्केट समझ नहीं पा रहा था। मुमकिन था कि बहुत से इनवेस्टर्स को यह पता नहीं था कि क्या सरकार एक्सचेंज के अंडरटेकिंग को स्वीकार करेगी। ऐसे में बहुत से लोगों का इंटरेस्ट खत्म हो गया था और वे रोलओवर नहीं करना चाहते थे। हो सकता है कि रोलओवर के लिए नए इनवेस्टर्स से आया पैसा पेआउट डिमांड से कम रहा हो। नाराज ब्रोकर्स का कहना था कि एक्सचेंज को डिमांड और पेमेंट के उपलब्ध फंड में अंतर खत्म करने के लिए अपनी जेब से पैसा निकालना चाहिए था और मामले को अलग तरह से निपटाना चाहिए था। देर शाम ट्रेडिंग सस्पेंड होने की खबर आने पर मार्केट में हड़कंप मच गया। क्या इससे स्पॉट मार्केट प्रभावित होगा ? ब्रोकर्स और इनवेस्टर्स को लॉस उठाना होगा। पेमेंट अगले कुछेक हफ्ते में हुए तो संकट दूसरे मार्केट तक नहीं पहुंचेगा। लेकिन चिंता की बात यह है कि सिस्टम में कैश की कमी के चलते छोटे ब्रोकर्स को बैंक से ओवरड्राफ्ट लेने में मुश्किल होगी। अगर अंडरलेइंग कमोडिटी स्टॉक मौजूद नहीं हुए या एक्सचेंज के दावे से कम वैल्यू के हुए तो बड़ी मुश्किल हो सकत ी है। (Navbharat Times)

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