बिजनेस भास्कर दिल्ली
स्कीम (एमआईएस) के तहत उत्तर प्रदेश में आलू की खरीद में विलंब हो रहा है। पिछले महीने भर से मामले की फाइल राज्य सरकार और केंद्रीय कृषि मंत्रालय के बीच अटकी हुई है। 18 जनवरी को दिल्ली में कृषि मंत्रालय के अधिकारियों और उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव की इस संबंध में बैठक हुई है जिसमें राज्य सरकार से नए सिरे से आवेदन करने को कहा गया है।
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 19 दिसंबर को मंत्रालय ने आलू किसानों को राहत देने के लिए पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल सरकार को एमआईएस के तहत आलू खरीदने को कहा था।
इसके तहत उत्तर प्रदेश ने एमआईएस के तहत आलू की खरीद के लिए कृषि मंत्रालय को आवेदन भेजा था लेकिन आवेदन में खामियां होने के कारण राज्य सरकार को नए सिरे से आवेदन करने को कहा गया है। इस संबंध में राज्य के प्रमुख सचिव के साथ 18 जनवरी को दिल्ली में बैठक हुई है।
उन्होंने बताया कि जैसे ही नया आवेदन मिलेगा खरीद शुरू कर दी जायेगी। राज्य में आलू की खरीद नेफेड और राज्य सरकार की एजेंसियां मिलकर करेगी। आलू की बंपर पैदावार के कारण कई राज्यों में लागत भी वसूल न होने के कारण किसान आलू को सड़कों पर फेंकने को मजबूर हैं।
इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने एमआईएस के तहत आलू खरीद करने की योजना बनाई है। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (एनएचबी) के अनुसार वर्ष 2010-11 में देश में आलू की पैदावार बढ़कर चार करोड़ टन से ज्यादा होने का अनुमान है। जबकि पिछले साल इसका उत्पादन 3.65 करोड़ टन का हुआ था। उन्होंने बताया कि एमआईएस के तहत केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर उन जिंसों की खरीद करती हैं जिनका न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सरकार तय नहीं करती और बंपर पैदावार होने के एवज में किसान अपनी उपज को लागत से भी कम मूल्य पर बेचने को मजबूर हो जाते हैं। एमआईएस के तहत खरीदे जाने वाली जिंसों को बेचने में होने वाले नुकसान की भरपाई केंद्र और राज्य सरकारें पचास-पचास फीसदी के आधार पर करती हैं।
भले ही उपभोक्ताओं को आलू का दाम आठ-दस रुपये प्रति किलो चुकाना पड़ रहा हो लेकिन किसान 2 से 2.5 प्रति किलो की दर से आलू बेचने को मजबूर हैं। एशिया की सबसे बड़ी सब्जी मंडी आजादपुर में आलू के थोक दाम घटकर 200 से 300 रुपये प्रति 50 किलो रह गए हैं।(Business Bhaskar....R S Rana)
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