दलहन उत्पादन का लक्ष्य पिछले साल के 109.7 लाख टन से घटाकर 102.7 लाख टन तय किया गया है। बुवाई में कमी से इसमें भी कमी की आशंका है। तिलहन की पैदावार पिछले साल 102.54 लाख टन थी। इस साल 115 लाख टन लक्ष्य पूरा होना मुश्किल है।
चालू रबी सीजन में अभी भी दलहन, तिलहन और मोटे अनाजों की बुवाई का रकबा पिछले साल के मुकाबले कम है। तिलहन का रकबा पांच फीसदी से ज्यादा घट गया है जबकि दलहन का रकबा 1.2 फीसदी कम है। चूंकि अब ज्यादातर इलाकों में बुवाई का काम लगभग पूरा हो चुका है। इस वजह से अब इन फसलों का रकबा सुधरनेे की संभावना नहीं दिख रही है। ऐसे में चालू सीजन में दलहन और तिलहन का उत्पादन कम रहने के स्पष्ट संकेत दिखाई दे रहे हैं।
रबी सीजन की प्रमुख तिलहन सरसों का रकबा पिछले साल के मुकाबले काफी कम रह गया है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी बुवाई आंकड़ों के अनुसार चालू रबी में दलहन की बुवाई में 1.2 फीसदी, तिलहन की बुवाई में 5.3 फीसदी और मोटे अनाजों की बुवाई में 5.5 फीसदी की कमी आई है। ऐसे में रबी में दलहन, तिलहन और मोटे अनाजों की पैदावार में कमी आने की संभावना है जिससे दलहन और खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता और बढ़ जाएगी। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू रबी में दलहन की बुवाई घटकर 140.66 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 142.38 लाख हैक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी।
इसी तरह से तिलहनों की बुवाई चालू रबी में 80.96 लाख हैक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले इस समय तक 85.5 लाख हैक्टेयर में तिलहनों की बुवाई हो चुकी थी। रबी तिलहन की प्रमुख फसल सरसों की बुवाई चालू रबी में 64.83 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 68.21 लाख हैक्टेयर में सरसों की बुवाई हो चुकी थी। मोटे अनाजों की बुवाई पिछले साल के 59.69 लाख हैक्टेयर के मुकाबले चालू रबी में अभी तक केवल 56.35 लाख हैक्टेयर में ही हुई है।
वर्ष 2010-11 में रबी में दालों का उत्पादन 109.7 लाख टन का हुआ था जबकि वर्ष 2011-12 में सरकार ने उत्पादन का लक्ष्य 102.7 लाख टन का रखा है लेकिन बुवाई में आई कमी से पैदावार में कमी आने की आशंका है। इसी तरह से वर्ष 2010-11 रबी सीजन में तिलहनों की पैदावार 102.54 लाख टन की हुई थी तथा सरकार ने वर्ष 2011-12 रबी में तिलहन उत्पादन का लक्ष्य 115 लाख टन का रखा है।
बुवाई में आई कमी से इसकी पैदावार भी तय लक्ष्य से कम होने की संभावना है। जिससे दलहन और खाद्य तेलों का अतिरिक्त आयात करना पड़ सकता है। (Business Bhaskar....R S Rana)
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