गोल्ड ज्वैलरी की हॉलमार्किंग अब जरूरी होगी। इसे कुछ स्टेज में
लाजपत नगर, सेंट्रल मार्केट के रामाकृष्णा ज्वैलर्स के मालिक नीरज चौधरी ने बताया, 'कई ज्वैलर्स ऐसे हैं, जो ग्राहकों से हॉलमार्क ज्वैलरी की कीमत वसूलते हैं और खराब क्वालिटी की ज्वैलरी देते हैं।' कुछ ऐसा ही सवाल सरकारी बैंक में काम करने वाले एक बैंकर ने भी किया, जो पहले बुलियन ब्रांच से जुड़े थे। नाम नहीं छापने की शर्त पर उन्होंने बताया, 'इस कानून का कंज्यूमर को तभी फायदा होगा, जब ज्वैलर इस पर सख्ती से अमल करें।' उन्होंने यह भी कहा कि हॉलमार्क्ड ज्वैलरी बेचने वाले रीटेलर भी लेबर और मेकिंग कॉस्ट सहित 60-70 फीसदी मार्जिन लेते हैं। यह भी एक तरह से कंज्यूमर के साथ धोखा है।
सरकार के पास प्रस्तावित हॉलमार्किंग कानून को लागू करने के लिए पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर भी नहीं है। बीआईएस के पास अभी 160 हॉलमार्किंग सेंटर हैं, जिनसे देश के साढ़े तीन लाख ज्वैलरों को सेवा मिलती है। ऑल इंडिया जेम्स एंड ज्वैलरी फेडरेशन (जीजेएफ) के चेयरमैन बछराज बामलवा ने कहा, 'बीआईएस प्रस्तावित कानून को कैसे लागू करेगा? इसके लिए उसे छोटे शहरों, जिलों और ताल्लुका में हॉलमार्किंग सेंटर खोलने होंगे।' उनके मुताबिक, यह भी तय होना चाहिए कि एक हॉलमार्किंग सेंटर से दूसरे की दूरी कितनी होगी।
एक और ज्वैलर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि हॉलमार्किंग से छूट की लिमिट भी तय होनी चाहिए। उन्होंने सवाल किया, 'नॉर्थ इंडिया में महिलाएं मंगलसूत्र और नोज पिन (कील या लौंग) पहनती हैं। इनमें बहुत कम सोना लगता है। इनकी हॉलमार्किंग कैसे होगी?' ज्वैलर्स का कहना है कि हॉलमार्किंग के अनिवार्य होने से उन्हें कंज्यूमर का भरोसा जीतने में मदद मिलेगी। चांदनी चौक के बीजी ज्वैलर्स के मालिक गणेश लाल सोनी ने बताया, 'इससे दुकानदारों के साथ ग्राहकों को भी फायदा होगा। हम पर ग्राहकों का भरोसा बढ़ेगा और उन्हें खरा सोना मिलेगा।'
वैसे हॉलमार्किंग तुरंत कानूनी तौर पर बाध्य नहीं होगा। इस बारे में कंज्यूमर अफेयर्स मिनिस्टर के वी थॉमस ने ईटी को बताया, 'बिल हॉलमार्किंग को कुछ स्टेज में अनिवार्य बनाने का प्रपोजल है...यह तुरंत कानूनी तौर पर बाध्य नहीं होगा।' उन्होंने कहा कि सरकार की निगरानी में सबसे पहले इसके लिए सेल्फ सर्टिफिकेशन को बढ़ावा दिया जाएगा। सेल्फ सर्टिफिकेशन में ज्वैलर अपनी ज्वैलरी की शुद्धता की जानकारी देता है। सरकार समय-समय पर ज्वैलर्स से सैंपल इकट्ठा करके उसकी जांच करती है।
भारत हर साल औसतन 800 टन गोल्ड इंपोर्ट करता है। इसमें से 203 टन गोल्ड की खपत डोमेस्टिक मार्केट में होती है। इसमें से 60 फीसदी का इस्तेमाल ज्वैलरी के लिए होता है। मेट्रो और बड़े शहरों में तनिष्क, गीतांजलि और जॉय अलुकास हॉलमार्किंग वाली ज्वैलरी बेचते हैं। हालांकि, छोटे शहरों और दूरदराज इलाकों में बीआईएस हॉलमार्किंग सेंटर नहीं होने से कंज्यूमर को इसकी सुविधा नहीं मिल पाती। अक्सर इन जगहों पर कंज्यूमर को 18 कैरेट (75 फीसदी शुद्धता) गोल्ड को 22 कैरेट (91.6 फीसदी) वाला बताकर बेचा जाता है।(ET Hindi)
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