भारत के आम नागरिकों को खाद्य सुरक्षा मुहैया कराने वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन प्रमुख सोनिया गांधी की महत्त्वाकांक्षी योजना ने सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है। राज्यों और कुछ केंद्रीय मंत्रियों द्वारा चिंता व्यक्त किए जाने के बाद अब वित्त मंत्रालय भी खाद्य सुरक्षा विधेयक को लेकर आशंकित है।
संसद की स्थायी समिति विधेयक की जांच कर रही है, लेकिन इस विधेयक से वित्त मंत्रालय के कई अधिकारियों की भृकुटि तन गई है। उन्हें लगता है कि इस योजना के संचालन से न सिर्फ सरकार पर सब्सिडी का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा बल्कि राज्य की एजेसियों को ज्यादा अनाज की खरीद भी करनी पड़ेगी। लिहाजा, बाजार में काफी कम अनाज बच पाएगा। अधिकारियों ने कहा, सबसे बड़ी चिंता मौजूदा स्तर से अनाज की खरीद बढ़ाने की है, जिससे महंगाई का दबाव और खुदरा कीमतें बढ़ सकती हैं।
यह भी देखना होगा कि इसकी व्यावहारिक समस्याओं का समाधान कैसे हो। इस योजना के लिए रकम की उपलब्धता से ज्यादा चिंता अनाज की खरीद को लेकर है। वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, खुले बाजार में अनाज की घटती आपूर्ति से कीमतों पर दबाव बढ़ेगा। इसके अलावा अगर किसी साल फसल खराब होती है तो भारत को ऊंची कीमतों पर वैश्विक बाजार से अनाज खरीदना होगा।
खाद्य सब्सिडी बिल के जरिए सरकार पर करीब 1 लाख करोड़ रुपये सालाना का भार पडऩे का अनुमान है और न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी के चलते हर साल इसमें बढ़ोतरी हो सकती है। यह रकम मौजूदा वर्ष में अनुमानित कुल कर संग्रह का 10 फीसदी और भारत के जीडीपी का करीब 1 फीसदी है।
इससे पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा नियुक्त आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी रंगराजन की अगुआई वाली विशेषज्ञ समिति ने अनाज की खरीद पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि विधेयक में देश की बड़ी आबादी को शामिल करने पर सवाल उठाया था।
खाद्य सुरक्षा कानून लागू होने के बाद देश में सालाना अनाज की खरीद बढ़कर 6 से 6.5 करोड़ टन हो जाएगी, जो मौजूदा खरीद स्तर के मुकाबले करीब 1 करोड़ टन से ज्यादा है। योजना की अनुमानित लागत 3.5 लाख करोड़ रु. हो सकती है। हालांकि खाद्य मंत्रालय को लगता है कि सब्सिडी के बोझ में महज 28,000 करोड़ रुपये का इजाफा होगा और उत्पादन के प्रतिशत के लिहाज से अनाज की खरीद करीब 30 फीसदी रहेगी।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, साल 2007-08 से सरकार की तरफ से सालाना अनाज खरीद कुल उत्पादन का औसतन 30 फीसदी रही है। उत्पादन में सामान्य बढ़त की संभावना के बाद भी कुल उत्पादन का 30 फीसदी अनाज खरीदने में परेशानी नहीं होगी। उन्होंने कहा कि इससे निजी कारोबार पर असर नहीं पड़ेगा।
पहले भी इस विधेयक पर कृषि मंत्रालय के मतभेद रहे हैं। कृषि मंत्री शरद पवार ने योजना पर प्रस्तावित भारी सब्सिडी का विरोध किया था। बिहार, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश समेत कई और राज्यों ने भी प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू किए जाने की दशा में वित्तीय भार साझा करने पर अपनी राय साफ कर दी है। कुछ राज्यों ने जोर देते हुए कहा है कि यह विधेयक लागू करने के लिए केंद्र सरकार को बजट में पर्याप्त प्रावधान करना चाहिए।
विधेयक का लक्ष्य देश के नागरिकों को उचित कीमत पर पोषक तत्व उपलब्ध कराना है और इसे पिछले साल दिसंबर में लोकसभा में पेश किया गया था। यह देश की 63.5 फीसदी आबादी को सस्ती दरों खाद्यान्न पाने का कानूनी अधिकार देता है। इसके दायरे में गांवों के 75 फीसदी लोग और शहरों के 50 फीसदी लोग शामिल होंगे और इनमें कम से कम 28 फीसदी को तरजीह दी जानी है।
प्राथमिक श्रेणी के लोग हर महीने 7 किलोग्राम अनाज (चावल, गेहूं और मोटे अनाज समेत) पाने के हकदार होंगे। इन्हें 3 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से चावल, 2 रुपये प्रति किलोग्राम पर गेहूं और 1 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से मोटे अनाज उपलब्ध कराए जाएंगे। सामान्य श्रेणी के लोगों को कम से कम 3 किलो अनाज उस दर पर मिलेगा जो एमएसपी से 50 फीसदी से ज्यादा न हो। मौजूदा समय में लक्षित जन वितरण प्रणाली के तहत सरकार गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले 6.52 करोड़ लोगों को हर महीने 35 किलोग्राम चावल व गेहूं क्रमश: 4.15 व 5.65 रुपये प्रति किलोग्राम की सब्सिडी वाली दरों पर देती है। गरीबी रेखा से ऊपर रहने वाले 11.5 करोड़ लोगों को चावल और गेहूं 6.10 व 8.30 रुपये प्रति किलोग्राम पर मुहैया कराया जाता है। (BS Hindi)
30 जनवरी 2012
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