मुंबई January 02, 2012 |
साल 2002 में बीटी जीन की खोज के बाद वैश्विक स्तर पर कपास उत्पादन के मामले में भारत भले ही दूसरे स्थान पर पहुंच गया हो, लेकिन तब से अच्छी गुणवत्ता वाले कपास का उत्पादन घटा है, इसलिए इसकी जरूरतें पूरा करने के लिए देश को आयात करना पड़ता है।
इसके परिणामस्वरूप अनुमानित तौर पर अतिरिक्त लंबे रेशे वाले कपास का आयात मौजूदा कपास वर्ष (अक्टूबर 2011-सितंबर 2012) में बढ़कर 17 लाख गांठ हो गया है, जो पिछले साल के मुकाबले करीब 90 फीसदी ज्यादा है। कपड़ा मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले कपास वर्ष (अक्टूबर 2010-सितंबर 2011) में 9 लाख गांठ अतिरिक्त लंबे रेशे वाले कपास का आयात हुआ था।
कपड़ा आयुक्त ए बी जोशी ने कहा - बीटी के जरिए वास्तव में लंबे रेशे वाले कपास का उत्पादन बढ़ा है, लेकिन अतिरिक्त लंबे व छोटे रेशे वाले कपास जैसी किस्मों का उत्पादन पिछले कुछ सालों में घटा है क्योंकि किसानों ने उच्च पैदावार वाले बीटी कपास को अपना लिया है। किसानों के पास हालांकि उच्च पैदावार वाले अतिरिक्त लंबे व छोटे रेशे वाले कपास की ओर जाने का विकल्प खुला है, अगर उन्हें यह लाभकारी नजर आए।
इस बीच, बीटी की खोज के बाद छोटे रेशे वाले कपास का उत्पादन (जिसका इस्तेमाल अस्पताल व अन्य महत्वपूर्ण काम में होता है) लगातार घट रहा है और यह साल 2003-04 के 7.6 लाख गांठ से घटकर साल 2009-10 में 4 लाख गांठ पर आ गया। किसानों में दिलचस्पी न होने के चलते उसके बाद से उत्पादन कमोबेश स्थिर है।
इसी तरह अतिरिक्त लंबे रेसे वाले कपास (स्पेशल फैब्रिक के विनिर्माण में इस्तेमाल) का उत्पादन भी साल 2003-04 में 5.55 लाख गांठ था, जो साल 2009-10 में घटकर 5 लाख गांठ रह गया है। पिछले तीन साल में हालांकि उत्पादन स्थिर है। जोशी ने कहा कि सबकुछ मांग व आपूर्ति के मानदंडों पर निर्भर करता है। अगर इसकी मांग हो और लंबे व छोटे रेशे वाले कपास की कीमतें बढ़े तो किसान तत्काल इसके उत्पादन में जुट जाएंगे। कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष धीरेन सेठ के मुताबिक, छोटे रेशे वाले कपास का रकबा जीएम कपास की घुसपैठ के चलते घटा है। इसके अलावा इस किस्म के कपास का उत्पादन भी कम हुआ है और इस क्षेत्र पर ध्यान दिए जाने की दरकार है ताकि हमें इसकी किल्लत का सामना न करना पड़े।
इस बीच, इस साल कपास की फसल के लिए मौसम की स्थिति मोटे तौर पर ठीक है, जिसके चलते बेहतर पैदावार की उम्मीद है। इस साल रकबा 8 लाख हेक्टेयर बढ़कर 11.42 लाख हेक्टेयर हो गया है। किसानों को साल 2009-10 में ऊंची कीमतों का काफी लाभ मिला था। आज के समय में कपास के कुल रकबे में से 90 फीसदी में बीटी कपास का इस्तेमाल हो रहा है।
हाल के वर्षों में कपास उत्पादन में काफी बढ़ोतरी हुई है क्योंकि जीएम कपास के तहत रकबा काफी बढ़ा है। साल 2010-11 में भी यह रुख जारी रहा , जब उत्पादन बढ़कर 325 लाख गांठ हो गया। इस साल हालांकि कपास सलाहकार बोर्ड का मानना है कि कुल उत्पादन 356 लाख गांठ होगा। (BS Hindi)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें