मुंबई November 26, 2010
सरकार अक्षय ऊर्जा स्रोतों के जरिये बिजली उत्पादन को बढ़ावा देने पर काम कर रही है। इसके साथ ही अगले दो महीनों के भीतर पावर एक्सचेंजों में अक्षय ऊर्जा रिसीट का कारोबार भी शुरू होने जा रहा है। अक्षय स्रोतों से बिजली पैदा करने वालों के लिए एक और अच्छी बात यह है कि इससे जुड़े उपकरणों के आयात पर सीमा शुल्क में छूट प्रदान की गई है। इससे अक्षय ऊर्जा को और प्रोत्साहित किया जा सकेगा। सरकार जल्द ही अक्षय ऊर्जा रिसीट (आरईसी) के प्रचालन संबंधी नियम और शर्तों को अंतिम रूप दे देगी। माना जा रहा है कि अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली उत्पादन को इससे भी बल मिलने की संभवना है। केंद्रीय ऊर्जा नियामक आयोग (सीईआरसी) ने देश के एनर्जी एक्सचेंजों में अक्षय ऊर्जा रिसीट के कारोबार के लिए इसे पिछले ही सप्ताह लॉन्च किया है। हालांकि निवेशकों के लिए इसमें कारोबार शुरू करने में अभी दो महीने का वक्त लगेगा। अधिकारियों के मुताबिक एक्सचेंजों में इसके पंजीकरण के लिए प्रमाणित दस्तावेज जमा करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। आरईसी एक बाजार आधारित साधन है। किसी राज्य या बिजली उपभोक्ताओं को अक्षय ऊर्जा खरीदने संबंधी शर्तों और नियमों का पालन करना होगा। नियम के मुताबिक सभी राज्यों के लिए यह बाध्यता होगी कि राज्य की कुल ऊर्जा जरूरतों में से एक निश्चित भाग अक्षय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त बिजली का हो। यानी कुल ऊर्जा जरूरत में से अक्षय ऊर्जा से तैयार बिजली को शामिल करना जरूरी है। यह नैशनल एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज के नियमों के अनुरूप तय किया गया है। यदि इस रिसीट की मांग काफी ज्यादा बढ़ जाती है तो खरीदारों को उत्पादकों को ज्यादा प्रीमियम देना पड़ेगा। हालांकि अक्षय ऊर्जा के संबंध में सभी राज्यों के लिए अलग-अलग शर्तें तय की गई है। जैसे दिल्ली में आसानी से अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली तैयार करना मुश्किल है। ऐसे में दिल्ली जैसे राज्यों को कुछ छूट मिली हुई है। तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों में इसकी सीमा 5 फीसदी तय की गई है। कारण यह है कि तमिलनाडु में पवन ऊर्जा से बिजली पैदा करने की काफी संभावनाएं है और यहां बिजली की कुल जरूरत का करीब 10 फीसदी हिस्सा अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली पैदा की जा सकती है। नैशनल लोड डिस्पैच कमीशन आरईसी के पंजीकरण के लिए नोडल एजेंसी की तरह काम करेगा। (BS Hindi)
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