मुंबई November 07, 2010
देश में इस साल दाल की रिकॉर्ड पैदावार होने से इसका आयात लगभग 40 फीसदी तक घटने का अनुमान है। इसके अलावा दाल की प्रति व्यक्ति खपत में भी भारी कमी आई है। इससे भी आयात पर असर पड़ा है। यानी पिछले कुछ सालों के दौरान जिस तरह दालें महंगी हुई उससे लोगों ने इसे अपने जायके से बाहर कर दिया है। दालों का घरेलू उत्पादन बढऩे और खपत घटने से आयात में कमी का अनुमान है। भारत में हर साल लगभग 30 लाख टन दालों का आयात होता है। जबकि इस साल यह घटकर 20 लाख टन से भी कम रह जाने का अनुमान लगाया जा रहा है। वहीं भारत में हर साल करीब 2 करोड़ टन दालों की खपत हो जाती है। इसमें से देश में इस साल लगभग 1.80 से 1.90 करोड़ टन दाल की पैदावार होने का अनुमान है। इस आधार पर देखें तो देश को केवल 10 से 20 लाख टन दाल के आयात की जरूरत होगी। सूत्रों के मुताबिक भारत म्यांमार, कनाडा, आस्ट्रेलिया, फ्रांस और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों से दालों का आयात करता है। पिछले साल तक दाल की खपत लगातार बढ़ रही थी। देश में आबादी बढऩे के साथ ही औसत मध्यम वर्ग के लोगों की ओर से दाल का उपभोग बढऩे से इसकी मांग में साल दर साल इजाफा हो रहा है। बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए भारत अनेक देशों से दालों का आयात करता रहा है। लेकिन इस साल नाटकीय रूप से दाल की प्रति व्यक्ति खपत में भारी कमी आई है। इसका एक महत्वपूर्ण कारण यह माना जा रहा है कि पिछले साल दाल की कीमतें अब तक की सबसे ऊंचाई पर पहुंच गई थीं। इसके चलते लोगों ने दाल से दूरी बना ली और यह थाली से गायब होती चली गई। यही कारण है कि इस साल दाल की खपत में अचानक गिरावट आ गई। पिछले साल तक लोग मटर (येलो पीज) की दाल का इस्तेमाल कम किया करते थे। लेकिन अरहर, चना, मसूर, उड़द आदि दाल की कीमतें आसमान छूने से इस साल इसकी मांग बढ़ा दी। बाजार में इसकी पर्याप्त उपलब्धता और अपेक्षाकृत कम दाम होने की वजह से लोग मटर दाल खाने के लिए मजबूर हुए हैं। दाल आयातक संघ के अध्यक्ष के सी भरतीया ने कहा कि मटर दाल इस समय कुछ रिटेल चैन में 25 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिक रही है। इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों द्वारा आयातित दाल पर सरकार 15 फीसदी सब्सिडी की पेशकश भी करती है। दूसरी तरफ, खुदरा बाजार में अरहर की दाल 75 से 80 रुपये प्रति किलोग्राम, उड़द 60 से 70 रुपये प्रति किलोग्राम और मूंग की दाल 45 से 50 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर है। इसकी तुलना में उपभोक्ताओं को मटर दाल काफी सस्ते दाम पर मिल रही है। यही कारण है कि पिछले एक साल के दौरान आम उपभोक्ता मटर दाल की ओर आकर्षित हुए हैं। सरकारी और निजी क्षेत्र की दाल आयातक कंपनियां दोनों ने यह तय किया है वे दालों के कुल उत्पादन के आंकड़े देखने के बाद ही आगे दाल के आयात पर विचार करेंगी। (BS hindi)
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