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02 मार्च 2009

बीटी बैंगन ने खोला विवाद का पिटारा

भारत में करीब 56 अनुवांशकीय रूप से परिवर्तित (जीएम) फसलें विकसित की जा रही है। बैंगन, धान, सरसों, मूंगफली और बंदगोभी के बीटी बीजों का खेत परीक्षण शुरू भी हो गया है। पर्यावरण और वन मंत्रालय के अंतर्गत नियामक प्राधिकरण जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी (जीईएसी) से इन फसलों के लिए स्वीकृति का अभी इंतजार है। मजेदार बात यह है कि जहां विकसित देशों में जीएम फसलों और खाद्य पदाथोर्ं के लिए अनुसंधान निजी बायोटेक्नोलॉजी कंपनियां करती है, वही भारत में इस काम के लिए सरकार फंड देती है। जीएम फसलों और खाद्य पदाथरें पर अनुसंधान के लिए देश में करीब 33 संस्थाएं और विश्वविद्यालय कार्य कर रहे हैं। जब पूरी दुनियां में जीएम फसलों के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर होने वाले संभावित खतरों को लेकर बहस जारी है, ऐसे में भारत सरकार जीएम फसलों को प्रोत्साहन देने में जुटी है। भारत सरकार के तीस से अधिक शीर्ष स्वास्थ्य अधिकारियों और सलाहकारों के सामने दिल्ली में संपन्न हुई एक गोष्ठी में जो बात रखी गई, वह गौर करने वाली है। स्कूल ऑफ ओरिएंटल मेडिसन के प्रोफेसर और अध्यक्ष डा. एस.एन. पांडे ने घोषणा की वे जीएम बीज और खाद्य पदार्थ के स्वास्थ्य और पर्यावरण पड़ने वाले प्रभाव के अध्ययन के लिए 40-50 रिसर्च स्टडी प्रारंभ करेंगे। त्नसीड्स ऑफ डिसेप्शनत्न और त्नजेनेटिक रॉलेटत्न पुस्तकों के लेखक जैफरी एम. स्मिथ ने भी जीएम फसलों और खाद्य पदार्थ को पूरी तरह गलत बताया।जैफरी का कहना था कि बीजों में जेनेटिक इंजिनियरिंग एक अधूरा विज्ञान है, जिसके परिणामों के बारे में जानकारी नहीं है। किसी खास गुण की अदला-बदली के लिए, जीन (वंशाणु) को किसी अन्य में डालने की प्रक्रिया पूरी तरह तुक्के पर आधारित है। जैफरी के मुताबिक प्राकृतिक जीन सिक्वेंस में बाहरी जीन स्थिर नहीं होते हैं और इस कारण कई अनचाहे उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) भी हो जाते हैं। किसी भी जारी जीएम बीज का न तो अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) और न ही भारत की जीईएसी ने आवश्यक जैव-सुरक्षा, विषाक्तता संबंधी परीक्षण कराए हैं। प्रख्यात मॉलिक्यूलर जीव विज्ञानी डा. पुष्प भार्गव के मुताबिक सरकार के पास तीस टेस्ट की सूची जमा कराई है जो जीएम फसलों को खुले वातावरण में छोड़ने से पहले जरूरी हैं। इन परीक्षणों को ईमानदारी से पूरा किया जाए तो जीएम के सुरक्षित होने की पुष्टि होने में करीब बीस वर्ष लगेंगे। लेकिन जीएम मोनसेंटों जैसी कंपनियों के आश्वासन पर सरकार इन बीजों को स्वीकृति प्रदान कर रही है। जैफरी का कहना है कि सिर्फ एफडीए की स्वीकृति होने पर ही भारत का नियामक प्राधिकरण अनुमति दे देता है। जीएम प्रौद्योगिकी के आलोचकों का कहना है अमेरिका और कनाडा के खेत अनुवांशकीय रूप से परिवर्तित जीवों (जीएमओ) की चपेट में आ चुके हैं। ये जीएमओ मानव और पशुओं के स्वास्थ्य समेत पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा है, इसके बावजूद किसी जैव-सुरक्षा के लिए निष्पक्ष जांच के प्रयासों को रोक दिया गया है। आलोचकों के अनुसार वैश्विक स्तर पर रॉकफेलर और रॉथचाइल्ड ने वैज्ञानिक संस्थाओं की विश्वसनीयता को तोड़ने का काम किया है और उनके यह प्रयास दुनिया की कृषि का व्यवसायीकरण, बीज और खाद्यान्नों पर नियंत्रण करने और नशीली दवाओं की तस्करी करने के लिए, यह बर्बादी करने के लिए है। हाल में 26 ख्याति प्राप्त वैज्ञानिकों और कीट वैज्ञानिकों ने अमेरिका की एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी (ईपीए) में शिकायत की है कि उन्हें बड़ी बायोटेक कंपनियों ने जीएम पौधों पर स्वतंत्र शोध करने हेतु आंकड़े नहीं उपलब्ध कराए। बीटी कपास को 2002 में जारी किए जाने के बाद से ही जीएम फसलों पर विवाद थमा नहीं है। अमेरिका की कंपनी मॉनसेंटों के नेतृत्व में बीज बनाने वाली कंपनियां पूरे भारत में किसानों को लालच दे रही हैं और उनके साथ धोखा कर रही हैं। वर्ष दर वर्ष त्नबेकार बीजोंत्न को कपास के किसानों को दे दिया जाता है, जिससे वह भारी कर्जे के बोझ तले दब चुके हैं। कई कृषि संगठनों का कहना है कि अनुवांशकीय रूप से परिवर्तित बीजों के कारण भारत के किसान अपने पारंपरिक बीजों से हमेशा के हाथ धो बैठेंगे। (Business Bhaskar)

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