नई दिल्ली March 04, 2009
चीनी मिलों को 'एडवांस लाइसेंसिंग' के तहत आयातित कच्ची चीनी के बदले चीनी निर्यात करने की चिंता अभी से सताने लगी है।
उनका कहना है जब बीज नहीं बचेंगे तो अगले साल गन्ने के उत्पादन में और कमी आएगी। लिहाजा घरेलू खपत के लिए ही चीनी की कमी रहेगी तो वे निर्यात कहां से करेंगे।
हालांकि एडवांस लाइसेंसिंग के वर्तमान नियम के तहत चीनी मिलों को आयात के बदले निर्यात करने के लिए दो साल का समय दिया जाता है। दूसरी तरफ बगास या गन्ने के छिलके, जिसकी मदद से बॉयलर चलते हैं, की कमी के कारण अधिकतम 10-15 लाख टन कच्ची चीनी के आयात की संभावना जतायी जा रही है।
मिल मालिकों ने बताया कि बॉयलर की मदद से ही कच्ची चीनी का प्रसंस्करण किया जाता है। और किसी भी मिल में कोयले की मदद से बॉयलर चलाने की सुविधा नहीं है। सभी जगहों पर बगास के जरिए ही बॉयलर काम करता है। पेराई का काम 5-6 मार्च तक सभी मिलों में खत्म हो जाएगा। उसके बाद कच्ची चीनी को सफेद बनाना काफी मुश्किल होगा।
उत्तर प्रदेश स्थित दया शुगर के सलाहकार डीके शर्मा कहते हैं, 'बगास के अभाव में कच्ची चीनी का आयात काफी कम मात्रा में होगा। जिनके पास बॉयलर चलाने के लिए थोड़े-बहुत बगास बचे होंगे वही चीनी का आयात कर सकते हैं।'
मिल मालिकों का यह भी कहना है कि जो मिलें कच्ची चीनी का आयात करेंगी उन्हें दो साल के भीतर उतनी ही मात्रा में निर्यात भी करनी पड़ेंगी। लेकिन गन्ने के उत्पादन में कमी के बावजूद अबतक कोल्हू व क्रेशर के चलने से साफ जाहिर है कि आगामी फसल के लिए बीज की कमी होगी।
गन्ना किसानों को 160 रुपये प्रति क्विंटल तक की कीमत मिल रही है। इसलिए वे तमाम गन्नों को बेचने से कोई परहेज नहीं कर रहे हैं। बीज के लिए गन्ने नहीं बचेंगे तो बुवाई के दौरान बीज की कीमत काफी अधिक हो जाएगी। लिहाजा गन्ने के रकबे में कमी आ सकती है।
हालांकि हरियाणा सरकार की तरफ से गन्ने की फसल के लिए बीज बचाने के उद्देश्य से कोल्हू व क्रेशर को बंद कराने की पहल की गयी है, लेकिन चीनी उत्पादन के दो अग्रणी राज्य महाराष्ट्र व उत्तर प्रदेश में ऐसी कोई पहल नहीं हुई है।
सरकार भी अब मान चुकी है कि चीनी के उत्पादन में इस साल पिछले साल के मुकाबले 90 लाख टन की कमी होने जा रही है और अधिकतम उत्पादन 160-65 लाख टन होगा। लेकिन मिल मालिक कहते हैं कि उत्पादन का स्तर किसी भी कीमत पर 150 लाख टन से ऊपर नहीं जाएगा। देश की सालाना खपत 235 लाख टन है।
10-15 लाख टन के आयात और पिछले साल के 25-30 लाख टन के बफर स्टॉक को जोड़ने के बाद भी चीनी की उपलब्धता 210 लाख टन के स्तर पर पहुंचती है। अगले साल के लिए सरकार के पास चीनी का कोई बफर स्टॉक नहीं होगा।
चिंता की वजह
चीनी मिल मालिकों का कहना है कि अगले साल गन्ना उत्पादन के लिए बीज की कमी हो सकती है। बगास के अभाव में बॉयलर का चलना संभव नहीं, आयातित चीनी को सफेद बनाने में मुश्किलेंअगर घरेलू खपत के लिए ही चीनी की कमी हुई तो निर्यात के लिए नहीं बचेगी चीनी (BS Hindi)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें