मुंबई March 05, 2009
वैश्विक मंदी के चलते मांग में आई कमी से जहां अधिकतर उद्योग आर्थिक परेशानी का सामना कर रहे हैं वही टेक्सटाइल उद्योग में इसका खास असर नहीं देखने को मिल रहा है।
घरेलू बाजार में कपड़े की मांग बनी रहने के कारण सूती कपड़ा उद्योग में तेजी देखी जा रही है। घरेलू बाजार में अच्छी मांग होने के कारण पिछले साल की अपेक्षा इस साल सूती कपड़े का उत्पादन लगभग 20 फीसदी ज्यादा हो रहा है तो कीमत में भी 5 से 10 फीसदी का इजाफा देखने को मिल रहा है।
सूती कपड़े का सबसे बड़ा बाजार घरेलू होने की वजह से इसमें मंदी का कोई असर नहीं पड़ा है। भारत में तैयार कुल सूती कपड़े का 86 फीसदी उपयोग घरेलू है जबकि सिर्फ 14 फीसदी सूती कपड़ा विदेशी बाजारों में भेजा जाता है। घरेलू बाजार में मांग होने की वजह से इस पर मंदी का कोई असर नहीं है।
बल्कि मांग ज्यादा होने की वजह से पिछले साल के दिसंबर-फरवरी की अपेक्षा इस बार सूती कपड़े का उत्पादन 20 फीसदी ज्यादा है। हिन्दुस्तान चैंबर ऑफ कामर्स के अध्यक्ष शंकर केजरीवाल के अनुसार कॉटन (सूती) स्पिनिंग मिलें भले घाटे में हो, लेकिन सूती कपड़े के लिए फिलहाल स्वर्ण युग चल रहा है। सूती ग्रे कपड़े का भाव दीपावली से अब तक 5 से 12 फीसदी तक बढ़ चुका है।
पिछले छह महीनों में कॉटन वीविंग में 7 से 15 फीसदी का मुनाफा हुआ है। सूती फैब्रिक के दाम 14 फीसदी तक, मलमल के 10-12 फीसदी तक, धोती की कीमतों में 7-8 फीसदी तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
केजरीवाल कहते हैं कि इस साल फरवरी से जून तक शादी-विवाह का सीजन होने की वजह से आने वाले महीनों में सूती कपड़े की मांग और बढ़ने वाली है जिसकी वजह से सूती कपड़े के भाव में और 5 फीसदी तक का इजाफा हो सकता है। कीमतों में बढ़ोतरी का फायदा कपड़ा व्यापारियों को हो रहा है।
सूती कपड़े की मांग बढ़ने का फर्क कपड़ा उत्पादन करने वाले प्रमुख केंद्र इच्लकरंजी और भिवड़ी में चलने वाले लूमों की संख्या से भी पता चलता है। पिछले साल यहां पर लगभग 20 फीसदी लूम बंद पड़े थे जबकि इस समय यहां सभी लूमों में काम चल रहा है। लूम मालिकों के अनुसार पिछले साल की अपेक्षा परेशानियां इस बार ज्यादा है लेकिन बाजार में मांग होने की वजह से लूम चल रहे हैं।
एक दिन में एक लूम में औसतन 100 मीटर कपड़े का उत्पादन किया जाता है, पावर लूमों में ज्यादा जबकि हैंडलूमों में कम उत्पादन होता है। पूरे देश में हैंडलूम और पावर लूम मिलाकर लूमों की संख्या करीबन 30 लाख के आसपास है, जिनमें 13 से 14 लाख लूम महाराष्ट्र में ही चलते हैं।
भारतीय कपड़ा कारोबार को मोटे तौर पर निर्यात, गारमेंट और फैब्रिक तीन हिस्सों में बाटा जा सकता है। इनमें निर्यातकों की स्थित ठीक ठाक कही जा सकती है। मंदी के चलते मांग में कमी आई है लेकिन डॉलर के मजबूत होने का फायदा भी इन्हे मिल रहा है। मांग में कमी की मुख्य वजह चीन द्वारा विदेशों में सस्ते कपड़े की बड़े पैमाने पर आपूर्ति करना है।
बाजार आर्थिक परेशानियों के दौर से गुजर रहा है ऐसे में लोग सस्ता माल खरीदना चाहते हैं, इस मुद्दे पर चीनी व्यापारी भारतीय कारोबारियों को बाजार में टिकने नहीं दे रहे हैं क्योंकि उनका माल भारतीय व्यापारियों की अपेक्षा काफी सस्ता है।
दूसरा- गारमेंट क्षेत्र की हालत पलती है। विदेशों में मांग नहीं है और घरेलू बाजार में भी लगभग सभी बड़े ब्रांडों द्वारा 50 फीसदी की छूट पर भी माल बेचने के बावजूद खरीददारों की कमी बनी हुई है। कहा जा सकता है कि इस समय कपड़ा कारोबार में सबसे बुरे दौर से गारमेंट सेक्टर ही गुजर रहा है। गारमेंट के क्षेत्र में ही कर्मचारियों की छटनी और वेतन में कटौती जैसे कदम उठाए जा रहे हैं। (BS Hindi)
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