देहरादून March 12, 2009
उत्तराखंड के लिए नई कृषि नीति के आधिकारिक मसौदे का उद्देश्य खेत की जमीन को अन्य इस्तेमाल के लिए प्रतिबंधित करना और खाद्य सुरक्षा हासिल करना होगा।
फार्मलैंड को विभिन्न स्पेशल एग्रीकल्चरल जोन्स (एसएजेड) के दायरे में लाए जाने का प्रस्ताव है। एसएजेड कार्यक्रम के तहत सरकार फिशरीज, चाय बागान, डेयरी फार्मिंग और कई अन्य कृषि एवं बागवानी गतिविधियों का प्रस्ताव रखेगी।
कृषि मंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा, 'एसएजेड ठीक सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों की तरह हैं जिनके जरिये हम अपनी कृषि भूमि को सुरक्षित रखे जाने और खाद्य सुरक्षा लाने का प्रयास कर रहे हैं।'
उन्होंने कहा कि सरकार ने इलाकों की पहचान का कार्य पहले ही शुरू कर दिया है। नई पहाड़ी विकास नीति के तहत सब्सिडी एसएजेड तक बढ़ाई जाएगी। उन्होंने कहा कि इस मसौदा नीति में स्पष्ट कहा गया है कि पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में कृषि भूमि पर औद्योगीकरण बिल्कुल नहीं होना चाहिए।
यह पिछले साल कृषि वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किए गए समिति प्रस्ताव की स्वीकृति है। इन वैज्ञानिकों में ज्यादातर वैज्ञानिक पंतनगर विश्वविद्यालय से थे। वैज्ञानिकों ने प्रस्ताव रखा था कि कृषि भूमि पर विशेष आर्थिक जोन (एसईजेड) और औद्योगीकरण नहीं होना चाहिए। उन्होंने यह भी दलील कि हाल के वर्षों में ऐसी अधिकतर भूमि बिल्डरों और व्यवसायियों के हाथों में चली गई है।
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि पिछले एक दशक में शहरीकरण और औद्योगिकीकरण कार्यक्रमों के तहत लगभग 24,000 हैक्टेयर ग्रामीण भूमि ली गई है। रावत का कहना है कि औद्योगीकरण सिर्फ गैर-कृषि या गैर-जोत वाली भूमि पर ही होना चाहिए।
रावत ने कहा, 'हम अपनी कृषि को संरक्षित करना चाहते हैं और इसके लिए हम उत्तराखंड में एसएजेड का निर्माण चाहते हैं। बिजली, जल आपूर्ति और बीजों को सस्ती दर पर उपलब्ध कराए जाने के साथ-साथ सरकार ने किसानों को ब्याज-मुक्त ऋण मुहैया कराए जाने में भी दिलचस्पी दिखाई है।' (BS Hindi)
12 मार्च 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें