31 दिसंबर 2008
ज्यादा कोटा आने के बावजूद चीनी की तेजी थमना मुश्किल
केंद्र सरकार ने वर्ष 2009 की पहली तिमाही के लिए 50 लाख टन चीनी का कोटा जारी किया है। ज्यादा कोटा रिलीज किए जाने के बाद भी घरेलू बाजारों में कीमतों में गिरावट के आसार नहीं है। चालू वर्ष में देश में चीनी उत्पादन और बकाया स्टॉक में कमी की आशंका से इस समय स्टॉकिस्टों की अच्छी खरीद देखी जा रही है। परिणाम स्वरूप दिसंबर महीने में चीनी की कीमतों में 90 से 100 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है।दिल्ली के चीनी व्यापारी सुधीर भालोठिया ने बिजनेस भास्कर को बताया कि चालू वर्ष में देश में चीनी का उत्पादन 190 लाख टन से भी कम होने की संभावना है।इसके साथ ही बकाया स्टॉक 80 लाख टन मिलाकर कुल उपलब्धता 270 लाख टन की बैठेगी। देश में चीनी की सालाना खपत 220 से 230 लाख टन की होती है। ऐसे में अगर केंद्र सरकार त्नटन-टू-टनत्न चीनी के आयात को मंजूरी देती है तभी कीमतों में गिरावट आ सकती है। इस समय त्नग्रेन-टू-ग्रेनत्न चीनी आयात की जा सकती है। ग्रेन-टू-ग्रेन में आयात की गई रॉ शुगर की रिफाइनिंग करके उसी चीनी को दो साल के अंदर निर्यात करना अनिवार्य होता है।दिल्ली बाजार में मंगलवर को एम ग्रेड चीनी के भाव 1990 से 2010 रुपये और एस ग्रेड चीनी के भाव 1970 से 1990 रुपये प्रति क्विंटल पर ही स्थिर बने रहे। दिसंबर महीने में इसके भावों में 90 से 100 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। पहली दिसंबर को दिल्ली बाजार में एम ग्रेड चीनी के भाव 1890 से 1910 रुपये और एस ग्रेड चीनी के भाव 1870 से 1890 रुपये प्रति क्विंटल थे।केंद्र सरकार ने वर्ष 2009 के जनवरी माह के लिए 17 लाख टन, फरवरी के लिए 16 लाख टन और मार्च महीने के लिए 17 लाख टन चीनी का कोटा जारी किया है। इसमें 46 लाख टन लेवी के साथ चार लाख टन बफर स्टॉक की चीनी खुले बाजार में जारी की गई है। पिछले वर्ष की समान अवधि में 44 लाख टन चीनी का कोटा जारी किया गया था। व्यापारियों को 46 से 47 लाख टन का कोटा आने की उम्मीद थी लेकिन कोटा ज्यादा आने के बावजूद भी घरेलू बाजार में मंगलवार को चीनी के भाव पूर्व स्तर पर ही टिके रहे। उन्होंने बताया कि फरवरी महीने के बाद चीनी में मांग बढ़ जाती है। इसलिए फरवरी-मार्च में घरेलू बाजार में चीनी की कीमतों में 150 से 200 रुपये प्रति क्विंटल की और तेजी आ सकती है। (Business Bhaskar........R S Rana)
सोयामील निर्यात पचास लाख टन के पार जाने के आसार
चालू सीजन के दौरान भारत से सोयामील निर्यात पचास लाख टन के पार जा सकता है। उद्योग के अनुमान के मुताबिक शुरूआती दौर में कमजोर निर्यात मांग के बावजूद पिछले साल के मुकाबले निर्यात बढ़ने की संभावना है। भारत में सोयाबीन का सीजन अक्टूबर से सितंबर तक चलता है। सोपा के प्रवक्ता राजेश अग्रवाल के मुताबिक चालू सीजन के दौरान हमारा सोयामील निर्यात 55 लाख टन का है। इसके विपरीत कम से कम पचास लाख टन सोयामील निर्यात होने की उम्मीद है। पिछले सीजन के दौरान यहां से करीब 49 लाख टन सोयामील का निर्यात हुआ था। इस साल अक्टूबर के दौरान सोयामील के निर्यात में करीब 46 फीसदी की गिरावट देखी गई। वैश्विक बाजारों में कीमतों में आई तगड़ी गिरावट की वजह से अक्टूबर के दौरान महज 92,424 टन सोयामील का निर्यात हो सका। लेकिन मौजूदा समय में कीमतों चढ़ने के साथ निर्यात मांग बढ़ने लगी है। वैश्विक बाजारों में भारतीय सोयामील का भाव 300-310 डॉलर प्रति टन है जो एक महीने पहले करीब 265-290 डॉलर प्रति टन था। वियतनाम, जापान और दक्षिण कोरिया भारतीय सोयामील के प्रमुख खरीददार हैं।पिछले सीजन के दौरान सबसे ज्यादा वियतनाम में करीब आठ लाख टन सोयामील निर्यात हुआ था। कारोबारी सूत्रों के मुताबिक इस दौरान करीब 20000 से 30000 लाख टन सोयामील यूरोप में भी निर्यात हुआ है। चालू सीजन के दौरान ईरान में अब तक 75 हजार टन सोयामील का निर्यात हो चुका है। जल्दी ही यहां एक लाख टन सोयामील का और निर्यात होने की उम्मीद है। दिसंबर तक करीब छह लाख टन सोयामील का निर्यात होने का अनुमान है। जबकि पिछले साल इस अवधि के दौरान 551,382 टन सोयामील का निर्यात हुआ था। राजेश अग्रवाल के मुताबिक दक्षिणी अमेरिका में सोयाबीन का उत्पादन घटने की आशंका से सोयामील की कीमतों में वृद्धि शुरू हो गई है। (Business Bhaskar)
निर्यात मांग घटने से बासमती घरेलू बाजार में 10 प्रतिशत सस्ता
बासमती चावल की निर्यात मांग में कमी और स्टाकिस्टों की बिकवाली के कारण दो सप्ताह के दौरान इसके थोक भाव 500 से 600 रुपये प्रति क्विंटल गिर चुके हैं। कारोबारियों के मुताबिक निर्यात मांग में कमी विश्व बाजार में मंदी के कारण आई है। वहीं दूसरी ओर स्टॉकिस्टों ने बीते दिनों में निर्यात मांग में कमी के चलते इसका स्टॉक कर लिया था लेकिन अब आगे इसकी आवक बढ़ने की संभावना के चलते बिकवाली करने लगे हैं। यही कारण है कि बासमती चावल के दामों में गिरावट आ रही है।दिल्ली व्यापार महासंघ के चेयरमैन ओमप्रकाश जैन ने बिÊानेस भास्कर को बताया कि बासमती चावल का निर्यात कम होने की वजह से इसके दाम पिछले दो सप्ताह के दौरान करीब 500-600 रुपये प्रति क्विंटल तक गिर चुके है। जैन का कहना है कि विश्व बाजार में लगातार गिरावट आने से निर्यात मांग घट रही है। लिहाजा घरलू बाजारों में आढ़तियों की हर स्तर पर बिकवाली का जोर है। वहीं आगे और गिरावट की संभावना से खरीदार बाजार से गायब हैं। उनका यह भी कहना है कि बासमती चावल निर्यात पर लागू 8000 रुपये प्रति टन निर्यात टैक्स मौजूदा मंदी में भारी पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि तेजी के दौर में यह टैक्स तार्किक हो सकता है। क्योंकि सरकार की पूरी कोशिश घरलू बाजर में कीमतों पर काबू पाना होता है। लेकिन इस समय टैक्स होने से निर्यात प्रभावित हो रहा है। निर्यातकों को मिलने वाले मुनाफे में भी कमी आई है। इसकी वजह यह है कि पाकिस्तान का बासमती चावल भारत के चावल से सस्ता पड़ रहा है। घरेलू बासमती चावल पाकिस्तानी निर्यात के सामने टिक नहीं पा रहा है।दिल्ली की खारी बावली स्थित ग्रेन बाजार में पिछले दो सप्ताह के दौरान बासमती चावल 6300-6800 रुपये से गिरकर 5800-6400 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गए है जबकि पूसा-1121 के भाव 4500-4900 रुपये से घटकर 4100-4400 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बिक रहा है। दिल्ली ग्रेन मर्च्ेट एसोसिएशन के सचिव सुरेंद्र कुमार गर्ग ने बताया कि नई फसल का बासमती चावल आने वाले दिनों में बाजार में बड़े पैमाने पर आने लगेगा। ऐसे में इसके मूल्यों और गिरावट आने की आशंका है। चालू वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में अंतरराष्ट्रीय बाजार में जोरदार तेजी रहने से बासमती चावल का निर्यात तेजी से बढ़ा लेकिन सरकारी आंकडों के मुताबिक अप्रैल और सितंबर तक छह माह के दौरान बासमती चावल का निर्यात 20,000 टन घटकर 4.7 लाख टन रह गया है जबकि पिछले साल समान अवधि में इसका निर्यात 4.9 लाख टन रहा था। (Business Bhaskar)
एपीएल परिवारों के लिए खाद्यान के दाम बढ़ाने का प्रस्ताव खारिज
नई दिल्ली : आम चुनावों की घड़ी करीब आते देख मंत्रियों के एक समूह ने गरीबी रेखा से ऊपर के परिवारों को राशन की दुकानों के जरिए मिलने वाले गेहूं और चावल की कीमतें बढ़ाने का प्रस्ताव खारिज कर दिया है। एक सूत्र ने बताया कि विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता वाले इस समूह ने पिछले सप्ताह गरीबी रेखा से ऊपर (एपीएल) के परिवारों के लिए खाद्यान्न की केन्द्रीय कीमतों में 'यथास्थिति बनाए रखने' का निर्णय किया। सूत्रों ने बताया कि बढ़ते सब्सिडी बिल पर चिंता जताते हुए खाद्य मंत्रालय ने गेहूं और चावल का सेंट्रल इश्यू प्राइस (सीआईपी) बढ़ाकर उनके न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के स्तर तक लाने का प्रस्ताव दिया था। इस वित्त वर्ष में सब्सिडी बिल 50,000 करोड़ रुपए से अधिक हो सकता है। एपीएल परिवारों के लिए गेहूं की सीआईपी 6.10 रुपए प्रति किलो और चावल की सीआईपी 8.30 रुपए प्रति किलो है। इनमें 2002 से कोई संशोधन नहीं किया गया है। गेहूं की एमएसपी 10 रुपए प्रति किलो और चावल की 8.50 रुपए प्रति किलो है। सूत्र ने कहा, 'यह प्रस्ताव नया नहीं है। पिछले चार वर्षों से खाद्य मंत्रालय बढ़ोतरी के लिए कोशिश कर रहा है।' राज्यों के आकलन के अनुसार, अक्टूबर 2008 तक एपीएल परिवारों की संख्या 13.13 करोड़ थी लेकिन केन्द्र ने योजना आयोग के दिशानिर्देशों के आधार पर महज 11.52 करोड़ परिवारों की ही मंजूरी दी। हर एपीएल परिवार महीने में 35 किलो खाद्यान्न (गेहूं और चावल) खरीद सकता है। खाद्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, गेहूं और चावल पर आर्थिक लागत कई गुना बढ़ चुकी है और एमएसपी में बढ़ोतरी तथा रखरखाव की लागत बढ़ने के कारण इस समय ये प्रति किलो क्रमश: 14.58 रुपए और 16.99 रुपए के स्तर पर हैं। (ET Hindi)
ट्रांजैक्शन चार्ज घटाने के NCDEX के फैसले को चुनौती
मुंबई : कमोडिटी के वायदा कारोबार के नियामक फॉरवर्ड मार्केट कमीशन (एफएमसी) ने एनसीडीईएक्स के 30 दिसंबर से एक्सचेंज ट्रांजैक्शन चार्ज घटाने के फैसले को रोक दिया है। एफएमसी के सदस्य राजीव अग्रवाल ने कहा कि कमीशन ने एक्सचेंज से इस बाबत निकाले सर्कुलर को रोकने के लिए कहा है। उन्होंने कहा कि एफएमसी इस मसले की जांच करेगा। एनसीडीईएक्स 29 दिसंबर के अपने सर्कुलर में ट्रांजैक्शन चार्ज में लगने वाले स्लैब आधारित सिस्टम को खत्म कर दिया था। इस सिस्टम में ट्रांजैक्शन चार्ज रोजाना के औसत टर्नओवर के हिसाब से तय होता है। इसके बजाय एक्सचेंज ने एक समान चार्ज लेने का फैसला लिया। नए सिस्टम में सुबह 10 बजे से लेकर 3.30 बजे तक सभी कमोडिटी में हुए कारोबार में तीन रुपए प्रति लाख (वैल्यू टेेडेड) का चार्ज लगाने का फैसला लिया था। उसका प्रस्ताव था कि 3.30 बजे बाद ट्रेडिंग बंद होने तक सभी कमोडिटी में होने वाले सारे टेड की कुल वैल्यू पर प्रति लाख 0.05 रुपए वसूले जाने चाहिए। एनसीडीईएक्स के इस फैसले का उसके कारोबारी प्रतिद्वंद्वी मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) ने भारी विरोध किया था। एमसीएक्स के प्रवक्ता ने कहा कि उनका एक्सचेंज इस तरह के बेतुके फैसले में विश्वास नहीं करता है। उसने कहा कि सर्विस प्रोवाइडर को इस तरह की नाजायज कीमतें नहीं वसूलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि एनसीडीईएक्स का यह फैसला एफएमसी के दिशा-निर्देशों का सरासर उल्लंघन है। इस प्रवक्ता ने कहा कि एमसीएक्स का बाजार के जायज तरीकों पर विश्वास है जबकि कुछ संस्थाएं प्रतिद्वन्द्विता से दूर भागती हैं। एनसीडीईएक्स के अधिकारियों ने इस मसले पर टिप्पणी करने से इंकार कर दिया। हालांकि, ब्रोकरों ने कहा कि ट्रांजैक्शन चार्ज घटने में अभी काफी वक्त लगेगा। एनसीडीईएक्स का रोजाना का औसत टर्नओवर 2,500-3,000 रुपए करोड़ से घटकर 1,300-1,500 करोड़ रुपए रह गया है। दूसरी तरफ, एमसीएक्स का रोजाना का टर्नओवर 17,000 करोड़ रुपए है। (ET Hindi)
यूपी में मिल रहा है एक रुपये किलो आलू, बोलो खरीदोगे!
थोक बाजार में तेरह साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंचा आलू
सिध्दार्थ कलहंस / लखनऊ December 29, 2008
साल दर साल बंपर पैदावार के बाद उत्तर प्रदेश में आलू सड़कों पर फेंका जा रहा है। किसानों द्वारा कोल्ड स्टोरों से माल न निकालने के बाद अब इन स्टोरों के मालिक आलू सड़क पर फेंकने को मजबूर हैं।
इससे भी बदतर हालात यह है कि इस साल थोक बाजारों में आलू की कीमत रिकॉर्ड स्तर पर नीचे चली गई है। उत्तर प्रदेश के थोक बाजारों में आलू की कीमत बीते 13 सालों में सबसे कम स्तर पर जा पहुंची है।इस समय प्रदेश की थोक मंडियों में आलू की नई फसल की कीमत एक रुपये प्रति किलोग्राम है जो कि बीते 13 सालों में सबसे कम है।पहली बार सीजन की शुरुआत होते ही खुदरा बाजारों में आलू की कीमत गिरकर 2 से 3 रुपये के स्तर पर आ गई है। किसानों की बदहवासी का आलम यह है कि इस साल कोल्ड स्टोरों में आलू रखने के लिए कोई तैयार नहीं हो रहा है। हालांकि किसानों का कहना है कि इसके पीछे खास वजह कोल्ड स्टोर मालिकों द्वारा एडवांस मांगा जाना है। उद्यान विभाग के अधिकारियों का कहना है कि बीते साल आलू की पैदावार रिकॉर्ड 130 लाख टन हुई थी और इस साल भी पैदावार इसी आंकड़े के आस-पास रहने की आशा है। अधिकारियों का कहना है कि आलू की फसल के पूरे आंकड़े अभी आ नही सके हैं पर आशा है कि इस साल भी 110 से 125 लाख टन की पैदावार होगी। गौरतलब है कि बीते साल आलू की कीमतों थोक बाजारों गिरकर 2 रुपये किलोग्राम तक आ गई थीं। किसानों की बदहाली का आलम यह है कि बीते साल कोल्ड स्टोरों मे जमा आलू भी निकाला नहीं गया है। यह हालत तब है जब किसानों के लिए कोल्ड स्टोर मालिकों ने अपनी शर्तों पर आलू निकालने की छूट दे दी है। कई कोल्ड स्टोर मालिकों ने तो किसानों को बिना भाड़ा दिए आलू निकालने की इजाजत दे दी है। उत्तर प्रदेश कोल्ड स्टोर एसोसिएशन के अध्यक्ष महेंद्र स्वरुप के मुताबिक किसानों को हर तरह की सुविधा देने के लिए कोल्ड स्टोर मालिक तैयार हैं, फिर भी करीब 25 से 30 फीसदी आलू अभी कोल्ड स्टोरों में पड़ा है। इन्हें निकालने से किसानों ने इनकार कर दिया है। इससे परेशान कोल्ड स्टोर मालिकों ने आलू निकालकर सड़क पर फेंक दिया है। महोबा, फर्रुखाबाद, आगरा, झांसी और इटावा में सड़कों के किनारे करीब 800 क्विंटल आलू फेंक दिया गया है। हाताल बेकाबू देख कर प्शासन ने अब आलू को गरीबों के बीच मुफ्त बांटने का फैसला किया है। (BS Hindi)
सिध्दार्थ कलहंस / लखनऊ December 29, 2008
साल दर साल बंपर पैदावार के बाद उत्तर प्रदेश में आलू सड़कों पर फेंका जा रहा है। किसानों द्वारा कोल्ड स्टोरों से माल न निकालने के बाद अब इन स्टोरों के मालिक आलू सड़क पर फेंकने को मजबूर हैं।
इससे भी बदतर हालात यह है कि इस साल थोक बाजारों में आलू की कीमत रिकॉर्ड स्तर पर नीचे चली गई है। उत्तर प्रदेश के थोक बाजारों में आलू की कीमत बीते 13 सालों में सबसे कम स्तर पर जा पहुंची है।इस समय प्रदेश की थोक मंडियों में आलू की नई फसल की कीमत एक रुपये प्रति किलोग्राम है जो कि बीते 13 सालों में सबसे कम है।पहली बार सीजन की शुरुआत होते ही खुदरा बाजारों में आलू की कीमत गिरकर 2 से 3 रुपये के स्तर पर आ गई है। किसानों की बदहवासी का आलम यह है कि इस साल कोल्ड स्टोरों में आलू रखने के लिए कोई तैयार नहीं हो रहा है। हालांकि किसानों का कहना है कि इसके पीछे खास वजह कोल्ड स्टोर मालिकों द्वारा एडवांस मांगा जाना है। उद्यान विभाग के अधिकारियों का कहना है कि बीते साल आलू की पैदावार रिकॉर्ड 130 लाख टन हुई थी और इस साल भी पैदावार इसी आंकड़े के आस-पास रहने की आशा है। अधिकारियों का कहना है कि आलू की फसल के पूरे आंकड़े अभी आ नही सके हैं पर आशा है कि इस साल भी 110 से 125 लाख टन की पैदावार होगी। गौरतलब है कि बीते साल आलू की कीमतों थोक बाजारों गिरकर 2 रुपये किलोग्राम तक आ गई थीं। किसानों की बदहाली का आलम यह है कि बीते साल कोल्ड स्टोरों मे जमा आलू भी निकाला नहीं गया है। यह हालत तब है जब किसानों के लिए कोल्ड स्टोर मालिकों ने अपनी शर्तों पर आलू निकालने की छूट दे दी है। कई कोल्ड स्टोर मालिकों ने तो किसानों को बिना भाड़ा दिए आलू निकालने की इजाजत दे दी है। उत्तर प्रदेश कोल्ड स्टोर एसोसिएशन के अध्यक्ष महेंद्र स्वरुप के मुताबिक किसानों को हर तरह की सुविधा देने के लिए कोल्ड स्टोर मालिक तैयार हैं, फिर भी करीब 25 से 30 फीसदी आलू अभी कोल्ड स्टोरों में पड़ा है। इन्हें निकालने से किसानों ने इनकार कर दिया है। इससे परेशान कोल्ड स्टोर मालिकों ने आलू निकालकर सड़क पर फेंक दिया है। महोबा, फर्रुखाबाद, आगरा, झांसी और इटावा में सड़कों के किनारे करीब 800 क्विंटल आलू फेंक दिया गया है। हाताल बेकाबू देख कर प्शासन ने अब आलू को गरीबों के बीच मुफ्त बांटने का फैसला किया है। (BS Hindi)
सोने में जारी रहा उतार-चढ़ाव
आर्थिक दृष्टि से यह साल बहुत उतार चढ़ाव वाला रहा है। सेंसेक्स से लेकर सोना और कच्चे तेल से लेकर महंगाई तक सबने चढ़ने-उतरने के नये कीर्तिमान बनाए। प्रणव सिरोही और कपिल शर्मा ने लिया है जायजा
प्रणव सिरोही और कपिल शर्मा / December 30, 2008
इस साल शेयर बाजार के गिरने से सोने में निवेश को बढ़ावा मिला वहीं मांग की कमी के चलते सोने की कीमतों में गिरावट भी दर्ज हुई।
सोने ने 10 जनवरी को 10,705 रुपये प्रति दस ग्राम की अपनी निम्नतम कीमत से अपनी दौड़ शुरू करने के बाद 10 अक्टूबर को 13,885 रुपये के साल के सबसे उच्चतम स्तर को भी छुआ। कमजोर होते रुपये और आयात में हो रही कमी के चलते 29 दिसंबर को ही सोने की कीमत 13,720 रूपये रही जो पिछले ग्यारह सप्ताह में सबसे ज्यादा है। सोने के बाजार का अगर सालाना आकलन शुरु किया जाए तो 1 जनवरी को सोने की कीमत 10,630 रूपये थी जो मार्च की शुरूआत तक 13,100 रूपये तक रही। लेकिन मार्च के अंत से सोने की कीमतों में गिरावट शुरू हुई। जून के अंत में सोने की कीमतें 11,000-12,000 रुपये प्रति दस ग्राम के आसपास ही रहीं।सोने के व्यापारियों का मानना था कि इसका कारण शेयर बाजार गिरने से निवेशकों का सेफ्टी जोन में रहना था। लेकिन शेयर बाजार ढहने से निवेशकों का रुख सोने की लिवाली की ओर हुआ और जुलाई की शुरुआत से बाजार में सोने की फिर से कीमतें बढ़ना शुरु हुईं। सोने की कीमतें अक्टूबर के अंत से 12,800 से 13,700 रुपये के बीच ही रही हैं। सोना कारोबारियों का मानना है गाजा पट्टी में युद्ध छिड़ जाने से सोने के आयात में कमी आ रही है। ऐसे में आने वाले समय में सोने की कीमतों में और बढ़ोतरी हो सकती है।तेल के उबाल से मिली राहतकच्चा तेल-आर्थिक उथल पुथल के इस बीते साल में कच्चे तेल में भी सबसे ज्यादा उबाल देखा गया तो साल के जाते-जाते कच्चे तेल की कीमतें टूट भी गई हैं। जुलाई में जब कच्चा तेल लगभग 147 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच गया था तब पूरी दुनिया में हो हल्ला मच गया था। गोल्डमैन सैक्स जैसे निवेशक बैंक जोर-जोर से घोषणा करने लगे कि साल के आखिर तक कच्चा तेल 200 डॉलर प्रति बैरल का स्तर पकड़ लेगा।इंडियन बॉस्केट की कीमत भी 3 जुलाई 142.04 डॉलर के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। इसके चलते सरकारी तेल कंपनियों को खूब चूना लग रहा था। अनुमान लगाया गया कि इस साल सरकारी तेल कंपनियों को ढाई लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है।सरकार को न चाहते हुए भी पेट्रोल और डीजल की कीमतों में इजाफा करना पड़ा। लेकिन इसके बाद में कच्चे तेल की कीमतों में आश्चर्यजनक रूप से गिरावट आई और यह 100 डॉलर प्रति बैरल तक टूट गईं। सरकार ने भी कीमतों में कमी करने में देरी नहीं की। अर्नेस्ट एंड यंग में साझीदार अजय अरोड़ा का मानना है कि आने वाले साल में कच्चे तेल की कीमतें 40 डॉलर प्रति बैरल के आसपास ही बनी रहेंगी। इस साल भारतीय बास्केट की सबसे कम कीमत 24 दिसंबर को 37.08 डॉलर प्रति बैरल रहीं। चांदी में रहा मिला जुला रुख चांदी के बाजार ने भी इस साल बहुत हिचकोले खाए हैं। साल के पहले दिन चांदी की कीमत 19,560 रुपये प्रति किलोग्राम थी लेकिन शेयर बाजार गिरने से और निवेशकों की लिवाली के चलते 15 जुलाई को चांदी की कीमत अपने उच्चतम स्तर 26,250 पर पहुंच गई।इसके बाद बाजार ने रुख पलटा और रुपये के कमजोर होने से निवेशकों की बिकवाली शुरु हो गई। ऐसे में चांदी की कीमतों की उल्टी गिनती शुरु हो गई। अगस्त से अक्टूबर के शुरुआती सप्ताह तक चांदी की कीमत 22,000-20,000 हजार के आंकड़े के बीच ही रही। लेकिन त्योहारी सीजन में आशा के अनुरुप मांग न रहने के कारण चांदी की कीमतों में और भी गिरावट आई और 21 नवंबर को चांदी अपनी कीमत के निम्नतम स्तर 16,480 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई। दिसंबर के महीने की शुरुआत में भी चांदी की कीमतें 16,500 रुपये के आस-पास थी। चांदी के कारोबारियों का मानना है कि पिछले तीन सप्ताह में ही चांदी की कीमतों में 1000-1200 रुपये तक की बढ़ोतरी हो चुकी है। 29 दिसंबर को चांदी की कीमत 18,145 रुपये थी जो 16 अक्टूबर के बाद से सर्वाधिक रही है। गाजापट्टी में चल रहे युद्ध की वजह से आयात में हो रही कमी के कारण नए साल में चांदी की कीमतों में फिर से बढ़ोतरी होने की संभावना है। (BS Hindi)
प्रणव सिरोही और कपिल शर्मा / December 30, 2008
इस साल शेयर बाजार के गिरने से सोने में निवेश को बढ़ावा मिला वहीं मांग की कमी के चलते सोने की कीमतों में गिरावट भी दर्ज हुई।
सोने ने 10 जनवरी को 10,705 रुपये प्रति दस ग्राम की अपनी निम्नतम कीमत से अपनी दौड़ शुरू करने के बाद 10 अक्टूबर को 13,885 रुपये के साल के सबसे उच्चतम स्तर को भी छुआ। कमजोर होते रुपये और आयात में हो रही कमी के चलते 29 दिसंबर को ही सोने की कीमत 13,720 रूपये रही जो पिछले ग्यारह सप्ताह में सबसे ज्यादा है। सोने के बाजार का अगर सालाना आकलन शुरु किया जाए तो 1 जनवरी को सोने की कीमत 10,630 रूपये थी जो मार्च की शुरूआत तक 13,100 रूपये तक रही। लेकिन मार्च के अंत से सोने की कीमतों में गिरावट शुरू हुई। जून के अंत में सोने की कीमतें 11,000-12,000 रुपये प्रति दस ग्राम के आसपास ही रहीं।सोने के व्यापारियों का मानना था कि इसका कारण शेयर बाजार गिरने से निवेशकों का सेफ्टी जोन में रहना था। लेकिन शेयर बाजार ढहने से निवेशकों का रुख सोने की लिवाली की ओर हुआ और जुलाई की शुरुआत से बाजार में सोने की फिर से कीमतें बढ़ना शुरु हुईं। सोने की कीमतें अक्टूबर के अंत से 12,800 से 13,700 रुपये के बीच ही रही हैं। सोना कारोबारियों का मानना है गाजा पट्टी में युद्ध छिड़ जाने से सोने के आयात में कमी आ रही है। ऐसे में आने वाले समय में सोने की कीमतों में और बढ़ोतरी हो सकती है।तेल के उबाल से मिली राहतकच्चा तेल-आर्थिक उथल पुथल के इस बीते साल में कच्चे तेल में भी सबसे ज्यादा उबाल देखा गया तो साल के जाते-जाते कच्चे तेल की कीमतें टूट भी गई हैं। जुलाई में जब कच्चा तेल लगभग 147 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच गया था तब पूरी दुनिया में हो हल्ला मच गया था। गोल्डमैन सैक्स जैसे निवेशक बैंक जोर-जोर से घोषणा करने लगे कि साल के आखिर तक कच्चा तेल 200 डॉलर प्रति बैरल का स्तर पकड़ लेगा।इंडियन बॉस्केट की कीमत भी 3 जुलाई 142.04 डॉलर के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। इसके चलते सरकारी तेल कंपनियों को खूब चूना लग रहा था। अनुमान लगाया गया कि इस साल सरकारी तेल कंपनियों को ढाई लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है।सरकार को न चाहते हुए भी पेट्रोल और डीजल की कीमतों में इजाफा करना पड़ा। लेकिन इसके बाद में कच्चे तेल की कीमतों में आश्चर्यजनक रूप से गिरावट आई और यह 100 डॉलर प्रति बैरल तक टूट गईं। सरकार ने भी कीमतों में कमी करने में देरी नहीं की। अर्नेस्ट एंड यंग में साझीदार अजय अरोड़ा का मानना है कि आने वाले साल में कच्चे तेल की कीमतें 40 डॉलर प्रति बैरल के आसपास ही बनी रहेंगी। इस साल भारतीय बास्केट की सबसे कम कीमत 24 दिसंबर को 37.08 डॉलर प्रति बैरल रहीं। चांदी में रहा मिला जुला रुख चांदी के बाजार ने भी इस साल बहुत हिचकोले खाए हैं। साल के पहले दिन चांदी की कीमत 19,560 रुपये प्रति किलोग्राम थी लेकिन शेयर बाजार गिरने से और निवेशकों की लिवाली के चलते 15 जुलाई को चांदी की कीमत अपने उच्चतम स्तर 26,250 पर पहुंच गई।इसके बाद बाजार ने रुख पलटा और रुपये के कमजोर होने से निवेशकों की बिकवाली शुरु हो गई। ऐसे में चांदी की कीमतों की उल्टी गिनती शुरु हो गई। अगस्त से अक्टूबर के शुरुआती सप्ताह तक चांदी की कीमत 22,000-20,000 हजार के आंकड़े के बीच ही रही। लेकिन त्योहारी सीजन में आशा के अनुरुप मांग न रहने के कारण चांदी की कीमतों में और भी गिरावट आई और 21 नवंबर को चांदी अपनी कीमत के निम्नतम स्तर 16,480 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई। दिसंबर के महीने की शुरुआत में भी चांदी की कीमतें 16,500 रुपये के आस-पास थी। चांदी के कारोबारियों का मानना है कि पिछले तीन सप्ताह में ही चांदी की कीमतों में 1000-1200 रुपये तक की बढ़ोतरी हो चुकी है। 29 दिसंबर को चांदी की कीमत 18,145 रुपये थी जो 16 अक्टूबर के बाद से सर्वाधिक रही है। गाजापट्टी में चल रहे युद्ध की वजह से आयात में हो रही कमी के कारण नए साल में चांदी की कीमतों में फिर से बढ़ोतरी होने की संभावना है। (BS Hindi)
निर्यात बढ़ने से मसालों की कीमतों में उछाल
नई दिल्ली December 30, 2008
निर्यात बढ़ने और सटोरियों की शॉर्ट कवरिंग से वायदा बाजार में आज मसालों की कीमतों में तेजी आई।
बाजार सूत्रों ने बताया कि कुछ प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में प्रतिकूल मौसम की वजह से फसल के क्षतिग्रस्त होने की आशंका के कारण यहां वायदा बाजार में कीमतें प्रभावित हुई। बाजार विश्लेषकों ने कहा कि इस वर्ष अप्रैल से नवंबर के दौरान अधिकांश प्रमुख मसालों का निर्यात पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले कीमतों के हिसाब से 15 प्रतिशत बढ़ा जबकि मात्रा के हिसाब से इसमें छह प्रतिशत की वृध्दि हुई ।जिसके बाद मसालों की कारोबारी धारणा बेहतर हो गई। तब भी वैश्विक वित्तीय संकट से मांग के प्रभावित होने के कारण काली मिर्च का भाव 33.2 प्रतिशत घटकर 16,850 रुपये प्रति टन रह गया। एक विश्लेषक देवेश कुमार ने कहा, 'एक्सचेंज के भंडारगृह में भंडार कम होने और निर्यात में वृध्दि से मसालों की कीमतों में सुधार आया।'एनसीडीईएक्स में काली मिर्च के सर्वाधिक सक्रिय जनवरी अनुबंध की कीमत 107 रुपये बढ़कर 10,120 रुपये प्रति क्विंटल हो गई। फरवरी अनुबंध की कीमत 116 रुपये की तेजी के साथ 10,139 रुपये प्रति क्विंटल हो गई। केरल के कोच्चि में काली मिर्च का हाजिर मूल्य बढ़ कर 10,265 रुपये प्रति क्विंटल हो गई। (BS Hindi)
निर्यात बढ़ने और सटोरियों की शॉर्ट कवरिंग से वायदा बाजार में आज मसालों की कीमतों में तेजी आई।
बाजार सूत्रों ने बताया कि कुछ प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में प्रतिकूल मौसम की वजह से फसल के क्षतिग्रस्त होने की आशंका के कारण यहां वायदा बाजार में कीमतें प्रभावित हुई। बाजार विश्लेषकों ने कहा कि इस वर्ष अप्रैल से नवंबर के दौरान अधिकांश प्रमुख मसालों का निर्यात पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले कीमतों के हिसाब से 15 प्रतिशत बढ़ा जबकि मात्रा के हिसाब से इसमें छह प्रतिशत की वृध्दि हुई ।जिसके बाद मसालों की कारोबारी धारणा बेहतर हो गई। तब भी वैश्विक वित्तीय संकट से मांग के प्रभावित होने के कारण काली मिर्च का भाव 33.2 प्रतिशत घटकर 16,850 रुपये प्रति टन रह गया। एक विश्लेषक देवेश कुमार ने कहा, 'एक्सचेंज के भंडारगृह में भंडार कम होने और निर्यात में वृध्दि से मसालों की कीमतों में सुधार आया।'एनसीडीईएक्स में काली मिर्च के सर्वाधिक सक्रिय जनवरी अनुबंध की कीमत 107 रुपये बढ़कर 10,120 रुपये प्रति क्विंटल हो गई। फरवरी अनुबंध की कीमत 116 रुपये की तेजी के साथ 10,139 रुपये प्रति क्विंटल हो गई। केरल के कोच्चि में काली मिर्च का हाजिर मूल्य बढ़ कर 10,265 रुपये प्रति क्विंटल हो गई। (BS Hindi)
30 दिसंबर 2008
कम उत्पादन के बावजूद अरहर एक माह में बीस फीसदी सस्ती
अरहर की आवक बढ़ने और मिलों के साथ-साथ स्टॉकिस्टों की मांग कमजोर होने से दिसंबर महीने में भाव में करीब 375 से 460 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है। चालू सीजन में अरहर की पैदावार पिछले वर्ष के मुकाबले कम हो सकती है, इसके बावजूद आगामी दिनों में मौजूदा भावों में 200 से 250 रुपये प्रति क्विंटल की और गिरावट आने की संभावना है। महाराष्ट्र में जिंसों पर स्टॉक लिमिट लगी हुई है जिसकी वजह से मिलों के साथ-साथ स्टॉकिस्टों की मांग कमजोर रहेगी। उधर बर्मा में अरहर की नई फसल की आवक शुरू हो गई है। इसलिए आगामी दिनों में बर्मा लेमन तुअर की बिकवाली का भी दबाव रहेगा। बाजार में धन की तंगी के कारण भी स्टॉकिस्टों की खरीद सीमित ही रहने की उम्मीद है। अरहर के व्यापारी सुनील बंदेवार ने बताया कि महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश की मंडियों में अरहर की दैनिक आवक बढ़कर 70 से 75 हजार बोरियों की हो गई है। नए माल में नमी की मात्रा अधिक होने के कारण मिलों की खरीद कमजोर है। मकर सक्रांति के बाद उत्पादक राज्यों में इसकी दैनिक आवक बढ़कर सवा से डेढ़ लाख बोरियों की हो जाएगी। महाराष्ट्र में स्टॉक लिमिट लगी होने के कारण मिलों के साथ ही स्टॉकिस्टों की खरीद भी कमजोर रहेगी। ऐसे में जनवरी महीने में घरेलू बाजारों में अरहर के मौजूदा भावों में और भी 200 से 250 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ सकती है।कर्नाटक व आंध्रप्रदेश की मंडियों में पिछले सप्ताह के अंत तक नई अरहर के भाव घटकर 2650 से 2700 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। दलहन के आयातक संतोष उपाध्याय ने बताया कि बर्मा में नई फसल की आवक शुरू हो गई है। ऊंचे भावों को देखते हुए बर्मा से बिकवाली का दबाव बढ़ रहा है। सप्ताहांत तक बर्मा की लेमन अरहर के भाव मुंबई पहुंच 2411 रुपये प्रति क्विंटल रह गए जबकि जनवरी-फरवरी शिपमेंट के सौदे 2340-2350 रुपये प्रति क्विंटल बोले जा रहे हैं। अकोला के दलहन व्यापारी विजेंद्र गोयल ने बताया कि महाराष्ट्र की मंडियों में सप्ताहांत तक अरहर के भाव घटकर 2625 से 2650 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। जनवरी महीने में आवक का दबाव बनने पर मंडियों में अरहर के भाव घटकर 2400 रुपये प्रति क्विंटल बन सकते हैं। केंद्र सरकार द्वारा जारी अग्रिम अनुमान के अनुसार चालू सीजन में देश में अरहर की पैदावार 23.7 लाख टन होने की उम्मीद है। पिछले वर्ष इसकी पैदावार 30.9 लाख टन की हुई थी। (Business Bhaskar....R S Rana)
चीनी का उत्पादन होगा कम, महंगाई और ढाएगी सितम
नई दिल्ली : देश में मांग के मुकाबले चीनी का उत्पादन कम हो सकता है। ऐसा पिछले चार साल में पहली बार होगा। पिछले सप्ताह सरकार ने 2008-09 सीजन में 3.50 लाख टन तक चीनी आयात करने का संकेत दिया है। इस बीच ईटी को पता चला है कि चीनी उत्पादन और उसके स्टॉक के आंकड़ों को लेकर सरकार और इंडस्ट्री में भ्रम बन हुआ है। सरकारी सूत्रों ने बताया कि 1.8 करोड़ और 2.10 करोड़ टन के बीच चीनी के उत्पादन का अनुमान है। वहीं, चीनी की घरेलू खपत 2.2 और 2.3 करोड़ टन के बीच है। दूसरी तरफ, सरकार के सख्त कदमों के बावजूद चीनी की खुदरा कीमतों पर लगाम नहीं लगी है। पिछले कुछ सप्ताह से चीनी का खुदरा भाव 20-21 रुपए किलो चल रहा है। खाद्य मंत्रालय की पिछली बैठकों में 1.9 करोड़ टन चीनी उत्पादन का आंकड़ा दिया जा रहा था। हालांकि, मंत्रालय आधिकारिक तौर पर इस आंकड़े को बताने से कतरा रहा था। इस महीने जाकर ही उसने इस पर तस्वीर साफ की है। सूत्रों ने यह भी बताया कि सितंबर और नवंबर में पिछले सीजन की बची चीनी का आंकड़ा 80 लाख टन से कुछ ज्यादा था, जबकि सरकार अभी भी इसे 1.1 करोड़ टन मान रही है। इस बीच, इंडस्ट्री सूत्रों ने ईटी को बताया है कि इस साल सितंबर के आखिर में 2008-09 सीजन में चीनी का उत्पादन लगभग 1.94 करोड़ टन रहने का अनुमान था। इंडस्ट्री को दिसंबर में इस आंकड़े की दोबारा समीक्षा करनी थी। यह समीक्षा लगभग 300 मिलों से मिलने वाले आंकड़ों के आधार पर होनी थी। इस समय चालू मिलों की कुल संख्या 500 है। मिलों से मिली जानकारी के आधार पर चीनी उत्पादन 1.8 करोड़ टन या उससे भी कम रहने के मोटे अनुमान के बाद दिसंबर के आखिर में होने वाली प्रस्तावित समीक्षा का समय आगे बढ़ा दिया गया है। यह अनुमान महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक जैसे तीन प्रमुख चीनी उत्पादक राज्यों में उत्पादन कम रहने के आधार पर लगाया गया है। हाल ही में, इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (आईएसएमए) की 74वीं सालाना आम बैठक हुई है। इसमें वह चीनी उत्पादन के राज्यवार आंकड़े नहीं दे पाई है। हालांकि, उस बैठक में एसोसिएशन के प्रेसिडेंट रंजीत पुरी ने दावा किया था कि 2008-09 में पिछले सीजन की काफी चीनी मिलेगी। अगर चीनी उत्पादन बहुत ज्यादा गिरता है तो उस सूरत में चीनी की सप्लाई चार महीने के बराबर रहेगी। कारोबारियों को उम्मीद है कि 2008-09 के सीजन में खुदरा बाजार में चीनी काफी महंगी होगी। उनका अनुमान है कि अगले साल की पहली तिमाही में उसकी कीमत 10 रुपए किलो तक बढ़ सकती है। चीनी को इतनी महंगी होने से बचाने के लिए सरकार को दखल देना होगा। (ET Hindi)
स्टील उद्योग ने की आयात शुल्क बढ़ाने की मांग
नई दिल्ली December 28, 2008
सरकार द्वारा दूसरे आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज की तैयारियों के बीच इस्पात उद्योग ने विदेशों से सस्ते इस्पात की आवक नियंत्रित करने के लिए प्रतिपूरक शुल्क लगाने तथा आयात शुल्क बढ़ाने की मांग की है।
सेल के प्रमुख एस. के. रूंगटा ने उद्योग की चिंताओं को सरकार के समक्ष रखा है। इसमें इस्पात उत्पादों पर 10 प्रतिशत आयात शुल्क लगाने तथा 4 प्रतिशत का विशेष अतिरिक्त शुल्क लगाने की मांग की गई है ताकि घरेलू उद्योग को बचाया जा सके। वैश्विक आर्थिक गिरावट के चलते चीन एवं यूक्रेन आदि देशों की स्टील कंपनियों ने अपने भंडार घटाने शुरू कर दिए हैं और वे भारत को भारी निर्यात कर रही हैं। इसके मद्देनजर घरेलू विनिर्माता आयात शुल्क लगाने की मांग कर रहे हैं। सरकार ने इस्पात उत्पादों पर पांच प्रतिशत का आयात शुल्क लगाया है, जिसे उद्योग जगत ने अपर्याप्त बताया है।इस्पात उद्योग से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि पांच फीसदी का शुल्क भारत में सस्ते आयात को नियंत्रित नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि इससे भारत सस्ते स्टील से पट जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार को अन्य बातों के अलावा 20 फीसदी का आयात शुल्क लगाने पर विचार करना चाहिए।आधारभूत संरचना और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में स्टील की मांग घटी है क्योंकि आर्थिक मंदी का इन पर गहरा असर पड़ा है। जिंदल स्टील के निदेशक सुशील मारू ने कहा कि केंद्रीय बिक्री कर की समाप्ति के अलावा सरकार को उत्पाद शुल्क भी घटाना चाहिए।उन्होंने कहा कि आरबीआई को सिस्टम में और रकम उपलब्ध कराने का प्रयास करना चाहिए ताकि स्टील का इस्तेमाल करने वाले सेक्टर के लिए पर्याप्त क्रेडिट मुहैया हो सके। जिंदल स्टील के निदेशक ने कहा कि फिलहाल लॉन्ग प्रॉडक्ट पर काउंटरवेलिंग डयूटी नहीं लगती, लेकिन अब इसे लगाई जानी चाहिए। साथ ही इस जिंस पर आयात शुल्क भी बढ़ाया जाना चाहिए। बीजिंग ओलंपिक के समय भारतीय स्टील निर्माताओं ने काफी चांदी काटी थी क्योंकि उस समय मांग बढ़ गई थी और इस वजह से कीमत भी काफी ऊंची चली गई थी। साल की दूसरी छमाही में स्टील में करीब 60 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी क्योंकि मांग काफी घट गई थी और इस वजह से निर्माताओं ने सरकार से मदद की गुहार लगाई थी। इससे पहले अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्टील की कीमत 1250 डॉलर प्रति टन के स्तर पर पहुंच गई थी, लेकिन अब यह 550 डॉलर प्रति टन के आसपास घूम रही है। (BS Hindi)
सरकार द्वारा दूसरे आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज की तैयारियों के बीच इस्पात उद्योग ने विदेशों से सस्ते इस्पात की आवक नियंत्रित करने के लिए प्रतिपूरक शुल्क लगाने तथा आयात शुल्क बढ़ाने की मांग की है।
सेल के प्रमुख एस. के. रूंगटा ने उद्योग की चिंताओं को सरकार के समक्ष रखा है। इसमें इस्पात उत्पादों पर 10 प्रतिशत आयात शुल्क लगाने तथा 4 प्रतिशत का विशेष अतिरिक्त शुल्क लगाने की मांग की गई है ताकि घरेलू उद्योग को बचाया जा सके। वैश्विक आर्थिक गिरावट के चलते चीन एवं यूक्रेन आदि देशों की स्टील कंपनियों ने अपने भंडार घटाने शुरू कर दिए हैं और वे भारत को भारी निर्यात कर रही हैं। इसके मद्देनजर घरेलू विनिर्माता आयात शुल्क लगाने की मांग कर रहे हैं। सरकार ने इस्पात उत्पादों पर पांच प्रतिशत का आयात शुल्क लगाया है, जिसे उद्योग जगत ने अपर्याप्त बताया है।इस्पात उद्योग से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि पांच फीसदी का शुल्क भारत में सस्ते आयात को नियंत्रित नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि इससे भारत सस्ते स्टील से पट जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार को अन्य बातों के अलावा 20 फीसदी का आयात शुल्क लगाने पर विचार करना चाहिए।आधारभूत संरचना और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में स्टील की मांग घटी है क्योंकि आर्थिक मंदी का इन पर गहरा असर पड़ा है। जिंदल स्टील के निदेशक सुशील मारू ने कहा कि केंद्रीय बिक्री कर की समाप्ति के अलावा सरकार को उत्पाद शुल्क भी घटाना चाहिए।उन्होंने कहा कि आरबीआई को सिस्टम में और रकम उपलब्ध कराने का प्रयास करना चाहिए ताकि स्टील का इस्तेमाल करने वाले सेक्टर के लिए पर्याप्त क्रेडिट मुहैया हो सके। जिंदल स्टील के निदेशक ने कहा कि फिलहाल लॉन्ग प्रॉडक्ट पर काउंटरवेलिंग डयूटी नहीं लगती, लेकिन अब इसे लगाई जानी चाहिए। साथ ही इस जिंस पर आयात शुल्क भी बढ़ाया जाना चाहिए। बीजिंग ओलंपिक के समय भारतीय स्टील निर्माताओं ने काफी चांदी काटी थी क्योंकि उस समय मांग बढ़ गई थी और इस वजह से कीमत भी काफी ऊंची चली गई थी। साल की दूसरी छमाही में स्टील में करीब 60 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी क्योंकि मांग काफी घट गई थी और इस वजह से निर्माताओं ने सरकार से मदद की गुहार लगाई थी। इससे पहले अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्टील की कीमत 1250 डॉलर प्रति टन के स्तर पर पहुंच गई थी, लेकिन अब यह 550 डॉलर प्रति टन के आसपास घूम रही है। (BS Hindi)
गन्ने की बढ़ती लागत, चीनी मिलों के लिए बन गई आफत
December 29, 2008
कुछ राज्यों द्वारा जिस प्रकार नासमझी में गन्ने का मूल्य तय किया गया है, इसे देखते हुए लगता है कि आमतौर पर देश की चीनी मिल अपनी लागत की उगाही करने की स्थिति में भी नहीं होंगे।
स्पष्ट तौर पर उत्तर प्रदेश जैसा राज्य, देश के चीनी उत्पादन में जिसकी हिस्सेदारी लगभग एक-तिहाई है, केंद्र सरकार के सांविधिक न्यूनतम मूल्य से अधिक कीमत पर गन्ना खरीदने का फरमान मिलों को जारी करेगी ताकि उत्पादकों को फायदा हो सके।लेकिन चीनी उद्योग इस फरमान से खुश नहीं होगा। जब मिल अच्छी कीमतों पर चानी बेचने में सक्षम नहीं होंगे तो उनके पास गन्ने के बिल का भुगतान करने के लिए पैसे नहीं होंगे। सितंबर 2008 में समाप्त हुए सीजन में उत्तर प्रदेश में इसे लेकर बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किया गया। हालांकि, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि राज्य सरकार के स्वामित्वाली और सहकारी फैक्ट्रियों पर निजी मिलों की तुलना में गन्ने की बकाया राशि अधिक है।बजाज हिंदुस्तान, बलरामपुर चीनी और त्रिवेणी जैसे समूह ने साल दर साल गन्ना पेराई क्षमता का विस्तार किया है ताकि बढ़ती अर्थव्यवस्था का लाभ उठाया जा सके।इसके साथ-साथ इन कंपनियों ने पावर इकाइयों, शीरा आधारित डिस्टिलरियों और एथेनॉल संयंत्रों में भी भारी निवेश किया है। चीनी मिलों की पावर इकाइयां खोई को जला कर बिजली उत्पादन करती हैं। अन्य व्यवसायों से अर्जित लाभों के कारण ये समूह अन्य कंपनियों की तुलना में गन्ना खाता की देनदारियों का बेहतर खयाल रख पाती हैं। इसके बावजूद कुछ ऐसे अवसर भी होते हैं जब गन्ने का बकाया भुगतान करने के लिए उनके पास फंड की कमी होती है।निस्संदेह, राज्य सरकार द्वारा गन्ने का राज्य समर्थित मूल्य बढ़ाने से शुरू में गन्ना उत्पादकों में खुशी की लहर का संचार हुआ। लेकिन गन्ने का राज्य समर्थित मूल्य बढ़ाए जाने के बाद भारतीय चीनी मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष ने कहा कि जब गन्ने का बकाया बढ़ता है, जैसा कि पिछले सीजन के दौरान एक बार देखा गया था, तो सबसे ज्यादा समस्या छोटे किसानों के साथ होती है।औद्योगिक अधिकारी ओम प्रकाश धानुका कहते हैं कि जब वर्तमान परिस्थितियों में किसानों को अपने भुगतान के लिए अनिश्चित काल तक इंतजार करना होता है तो गन्ने को नकदी फसल कैसे कहा जा सकता है। वास्तव में, दुखी होकर लगभग सभी राज्यों के पारंपरिक गन्ना किसानों ने अन्य फसलों जैसे मक्का, कपास, गेहूं और चावल की खेती शुरू की दी है। साल 2005-07 के दौरान गन्ने की खेती रेकॉर्ड 51.51 लाख हेक्टेयर में की गई थी और पैदावार भी सर्वाधिक 3,550 लाख टन की हुई थी। इस सीजन में गन्ने के रकबे में लगभग 30 प्रतिशत की कमी हुई है।गन्ने के रकबे में कमी, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में देर से कटाई की शुरुआत और चीनी की कीमतों की उगाही में कमी से इस सीजन में चीनी का उत्पादन घट कर 190 लाख टन होने की उम्मीद है जबकि पहले अनुमान लगाया जा रहा था कि उत्पादन 220 लाख टन तक होगा। इस सीजन की शुरुआत में चीनी का भंडार 81 लाख टन का था। इसलिए अगर उत्पादन में कमी भी होती है तो 2009-10 की शुरुआत में चीनी की कमी का अनुभव नहीं होगा।लेकिन, जैसा कि कारोबार की प्रकृति होती है, इस समय कच्चे चीनी के आयात की अनुमति के लिए एक अभियान देखने को मिल रहा है।इस अभियान में शामिल लोगों को गन्ना उत्पादकों की जरा भी फिक्र नहीं है। पेराई मिल पहले ही प्रति क्विंटल चीनी पर 400 रुपये का नुकसान उठा रहे हैं। आगे इसका प्रभाव गन्ना बिल के निपटान पर पड़ेगा। उम्मीद की जाती है कि आयात की अनुमति के बारे में सोचते समय सरकार 5 करोड़ गन्ना उत्पादकों के हितों और उद्योग का ध्यान रखेगी। भारत विश्व के प्रमुख चीनी उत्पादक देशों में शामिल है। भारतीय चीनी मिल एसोसिएशन के निदेशक एस एल जैन दावा करते हैं कि अन्य उत्पादक देशों की तुलना में भारत सबसे कम लागत में गन्ना से चीनी बनाता है। उनका कहना है कि भारत की कच्ची चीनी विश्व में सबसे अच्छी साबित हुई है। पिछले साल 50 लाख टन चीनी का निर्यात किया गया। ऐसा हमेशा संभव है यदि गन्ने की कीमतें उचित तौर पर तय की जाएं। सीजन दर सीजन राज्य सरकार उत्पादकों की भलाई सोचते हुए गन्ने की कीमत तय करती है। चीनी उद्योग के बारे में वे नहीं सोच पाते। दुख की बात यह है कि ब्याज रहित ऋण उपलब्ध कराने के मामले में राज्य सरकार उद्योग का साथ नहीं देती, वैसे समय में भी नहीं जब गन्ने की बकाया राशि बहुत अधिक हो जाती है।वास्तव में, संकट की घड़ी में केंद्र सरकार बफर भंडार बना कर, उत्पाद कर संग्रह के एवज में ऋण अवधि का विस्तार और निर्यात के लिए परिवहन का खर्च उठा कर मदद करती देखी गई है। (BS Hindi)
कुछ राज्यों द्वारा जिस प्रकार नासमझी में गन्ने का मूल्य तय किया गया है, इसे देखते हुए लगता है कि आमतौर पर देश की चीनी मिल अपनी लागत की उगाही करने की स्थिति में भी नहीं होंगे।
स्पष्ट तौर पर उत्तर प्रदेश जैसा राज्य, देश के चीनी उत्पादन में जिसकी हिस्सेदारी लगभग एक-तिहाई है, केंद्र सरकार के सांविधिक न्यूनतम मूल्य से अधिक कीमत पर गन्ना खरीदने का फरमान मिलों को जारी करेगी ताकि उत्पादकों को फायदा हो सके।लेकिन चीनी उद्योग इस फरमान से खुश नहीं होगा। जब मिल अच्छी कीमतों पर चानी बेचने में सक्षम नहीं होंगे तो उनके पास गन्ने के बिल का भुगतान करने के लिए पैसे नहीं होंगे। सितंबर 2008 में समाप्त हुए सीजन में उत्तर प्रदेश में इसे लेकर बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किया गया। हालांकि, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि राज्य सरकार के स्वामित्वाली और सहकारी फैक्ट्रियों पर निजी मिलों की तुलना में गन्ने की बकाया राशि अधिक है।बजाज हिंदुस्तान, बलरामपुर चीनी और त्रिवेणी जैसे समूह ने साल दर साल गन्ना पेराई क्षमता का विस्तार किया है ताकि बढ़ती अर्थव्यवस्था का लाभ उठाया जा सके।इसके साथ-साथ इन कंपनियों ने पावर इकाइयों, शीरा आधारित डिस्टिलरियों और एथेनॉल संयंत्रों में भी भारी निवेश किया है। चीनी मिलों की पावर इकाइयां खोई को जला कर बिजली उत्पादन करती हैं। अन्य व्यवसायों से अर्जित लाभों के कारण ये समूह अन्य कंपनियों की तुलना में गन्ना खाता की देनदारियों का बेहतर खयाल रख पाती हैं। इसके बावजूद कुछ ऐसे अवसर भी होते हैं जब गन्ने का बकाया भुगतान करने के लिए उनके पास फंड की कमी होती है।निस्संदेह, राज्य सरकार द्वारा गन्ने का राज्य समर्थित मूल्य बढ़ाने से शुरू में गन्ना उत्पादकों में खुशी की लहर का संचार हुआ। लेकिन गन्ने का राज्य समर्थित मूल्य बढ़ाए जाने के बाद भारतीय चीनी मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष ने कहा कि जब गन्ने का बकाया बढ़ता है, जैसा कि पिछले सीजन के दौरान एक बार देखा गया था, तो सबसे ज्यादा समस्या छोटे किसानों के साथ होती है।औद्योगिक अधिकारी ओम प्रकाश धानुका कहते हैं कि जब वर्तमान परिस्थितियों में किसानों को अपने भुगतान के लिए अनिश्चित काल तक इंतजार करना होता है तो गन्ने को नकदी फसल कैसे कहा जा सकता है। वास्तव में, दुखी होकर लगभग सभी राज्यों के पारंपरिक गन्ना किसानों ने अन्य फसलों जैसे मक्का, कपास, गेहूं और चावल की खेती शुरू की दी है। साल 2005-07 के दौरान गन्ने की खेती रेकॉर्ड 51.51 लाख हेक्टेयर में की गई थी और पैदावार भी सर्वाधिक 3,550 लाख टन की हुई थी। इस सीजन में गन्ने के रकबे में लगभग 30 प्रतिशत की कमी हुई है।गन्ने के रकबे में कमी, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में देर से कटाई की शुरुआत और चीनी की कीमतों की उगाही में कमी से इस सीजन में चीनी का उत्पादन घट कर 190 लाख टन होने की उम्मीद है जबकि पहले अनुमान लगाया जा रहा था कि उत्पादन 220 लाख टन तक होगा। इस सीजन की शुरुआत में चीनी का भंडार 81 लाख टन का था। इसलिए अगर उत्पादन में कमी भी होती है तो 2009-10 की शुरुआत में चीनी की कमी का अनुभव नहीं होगा।लेकिन, जैसा कि कारोबार की प्रकृति होती है, इस समय कच्चे चीनी के आयात की अनुमति के लिए एक अभियान देखने को मिल रहा है।इस अभियान में शामिल लोगों को गन्ना उत्पादकों की जरा भी फिक्र नहीं है। पेराई मिल पहले ही प्रति क्विंटल चीनी पर 400 रुपये का नुकसान उठा रहे हैं। आगे इसका प्रभाव गन्ना बिल के निपटान पर पड़ेगा। उम्मीद की जाती है कि आयात की अनुमति के बारे में सोचते समय सरकार 5 करोड़ गन्ना उत्पादकों के हितों और उद्योग का ध्यान रखेगी। भारत विश्व के प्रमुख चीनी उत्पादक देशों में शामिल है। भारतीय चीनी मिल एसोसिएशन के निदेशक एस एल जैन दावा करते हैं कि अन्य उत्पादक देशों की तुलना में भारत सबसे कम लागत में गन्ना से चीनी बनाता है। उनका कहना है कि भारत की कच्ची चीनी विश्व में सबसे अच्छी साबित हुई है। पिछले साल 50 लाख टन चीनी का निर्यात किया गया। ऐसा हमेशा संभव है यदि गन्ने की कीमतें उचित तौर पर तय की जाएं। सीजन दर सीजन राज्य सरकार उत्पादकों की भलाई सोचते हुए गन्ने की कीमत तय करती है। चीनी उद्योग के बारे में वे नहीं सोच पाते। दुख की बात यह है कि ब्याज रहित ऋण उपलब्ध कराने के मामले में राज्य सरकार उद्योग का साथ नहीं देती, वैसे समय में भी नहीं जब गन्ने की बकाया राशि बहुत अधिक हो जाती है।वास्तव में, संकट की घड़ी में केंद्र सरकार बफर भंडार बना कर, उत्पाद कर संग्रह के एवज में ऋण अवधि का विस्तार और निर्यात के लिए परिवहन का खर्च उठा कर मदद करती देखी गई है। (BS Hindi)
मसाला निर्यात में मामूली इजाफा
कोच्चि December 29, 2008
साल 2008 में अप्रैल-नवंबर के दौरान मात्रा के लिहाज से पिछले साल के मुकाबले मसाला निर्यात में 6 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है जबकि रकम के लिहाज से इसमें 15 फीसदी का उछाल दर्ज किया गया है।
इस दौरान कुल 310830 टन मसाले का निर्यात हुआ और इसकी कुल कीमत हुई 3450.5 करोड़ रुपये जबकि पिछले साल 294335 टन मसाले का निर्यात हुआ था और इसकी कीमत थी 3010.25 करोड़ रुपये। मसालों के तेल और मिंट आदि ने निर्यात आय में 42 फीसदी का योगदान किया। मिर्च ने मसाला निर्यात में 21 फीसदी का, जीरे ने 8 फीसदी का, कालीमिर्च ने 8 फीसदी और हल्दी ने 5 फीसदी का योगदान किया। इस साल 425000 टन मसाला निर्यात का लक्ष्य तय किया गया था और इसका 73 फीसदी लक्ष्य साल के पहले आठ महीने में हासिल कर लिया गया है। कीमत के लिहाज से 4350 करोड़ रुपये का लक्ष्य था जो 79 फीसदी पूरा हो गया है। अदरख और कालीमिर्च के निर्यात मात्रा में क्रमश: 46 और 33 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। मसाला बोर्ड के अनुमान के मुताबिक कीमत केलिहाज से कालीमिर्च के निर्यात रकम में 23 फीसदी की गिरावट देखी गई।पिपरमिंट और इसके जुड़े उत्पाद में भी पिछले साल के मुकाबले मात्रा व कीमत दोनों लिहाज से गिरावट रही। अप्रैल-नवंबर 2008 के दौरान 16850 टन कालीमिर्च का निर्यात हुआ और कीमत के लिहाज से यह 281.77 करोड़ रुपये का बैठता है। पिछले साल इस अवधि में 25230 टन कालीमिर्च का निर्यात हुआ था और 365.36 करोड़ रुपये की आय हुई थी। कालीमिर्च का औसत निर्यात मूल्य साल 2007 के 144.81 रुपये प्रति किलो के मुकाबले साल 2008 में 167.22 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गया।इस अवधि में भारत ने 1.32 लाख टन मिर्च और इससे बने उत्पाद का निर्यात किया और इससे 729.68 करोड़ रुपये की आय हुई जबकि पिछले साल इस दौरान 134285 टन मिर्च का निर्यात किया गया था और इससे 727.84 करोड़ रुपये की आय हुई थी। पारंपरिक रूप से मलयेशिया, इंडोनेशिया और श्रीलंका भारत से मिर्च खरीदता रहा है और इस साल भी इसने भारत से खरीद जारी रखा।अप्रैल-नवंबर 2008 के दौरान 18500 टन धनिया का निर्यात हुआ और इससे 128.43 करोड़ रुपये की आय हुई जबकि पिछले साल 17810 टन धनिया का निर्यात किया गया था। इस तरह धनिया के निर्यात में कीमत के लिहाज से 86 फीसदी की बढ़त और मात्रा के लिहाज से 8 फीसदी का उछाल देखा गया। अगर इसके औसत निर्यात कीमत की बात करें तो 2007 के 40.21 रुपये प्रति किलो के मुकाबले साल 2008 में यह 69.42 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गया। (BS Hindi)
साल 2008 में अप्रैल-नवंबर के दौरान मात्रा के लिहाज से पिछले साल के मुकाबले मसाला निर्यात में 6 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है जबकि रकम के लिहाज से इसमें 15 फीसदी का उछाल दर्ज किया गया है।
इस दौरान कुल 310830 टन मसाले का निर्यात हुआ और इसकी कुल कीमत हुई 3450.5 करोड़ रुपये जबकि पिछले साल 294335 टन मसाले का निर्यात हुआ था और इसकी कीमत थी 3010.25 करोड़ रुपये। मसालों के तेल और मिंट आदि ने निर्यात आय में 42 फीसदी का योगदान किया। मिर्च ने मसाला निर्यात में 21 फीसदी का, जीरे ने 8 फीसदी का, कालीमिर्च ने 8 फीसदी और हल्दी ने 5 फीसदी का योगदान किया। इस साल 425000 टन मसाला निर्यात का लक्ष्य तय किया गया था और इसका 73 फीसदी लक्ष्य साल के पहले आठ महीने में हासिल कर लिया गया है। कीमत के लिहाज से 4350 करोड़ रुपये का लक्ष्य था जो 79 फीसदी पूरा हो गया है। अदरख और कालीमिर्च के निर्यात मात्रा में क्रमश: 46 और 33 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। मसाला बोर्ड के अनुमान के मुताबिक कीमत केलिहाज से कालीमिर्च के निर्यात रकम में 23 फीसदी की गिरावट देखी गई।पिपरमिंट और इसके जुड़े उत्पाद में भी पिछले साल के मुकाबले मात्रा व कीमत दोनों लिहाज से गिरावट रही। अप्रैल-नवंबर 2008 के दौरान 16850 टन कालीमिर्च का निर्यात हुआ और कीमत के लिहाज से यह 281.77 करोड़ रुपये का बैठता है। पिछले साल इस अवधि में 25230 टन कालीमिर्च का निर्यात हुआ था और 365.36 करोड़ रुपये की आय हुई थी। कालीमिर्च का औसत निर्यात मूल्य साल 2007 के 144.81 रुपये प्रति किलो के मुकाबले साल 2008 में 167.22 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गया।इस अवधि में भारत ने 1.32 लाख टन मिर्च और इससे बने उत्पाद का निर्यात किया और इससे 729.68 करोड़ रुपये की आय हुई जबकि पिछले साल इस दौरान 134285 टन मिर्च का निर्यात किया गया था और इससे 727.84 करोड़ रुपये की आय हुई थी। पारंपरिक रूप से मलयेशिया, इंडोनेशिया और श्रीलंका भारत से मिर्च खरीदता रहा है और इस साल भी इसने भारत से खरीद जारी रखा।अप्रैल-नवंबर 2008 के दौरान 18500 टन धनिया का निर्यात हुआ और इससे 128.43 करोड़ रुपये की आय हुई जबकि पिछले साल 17810 टन धनिया का निर्यात किया गया था। इस तरह धनिया के निर्यात में कीमत के लिहाज से 86 फीसदी की बढ़त और मात्रा के लिहाज से 8 फीसदी का उछाल देखा गया। अगर इसके औसत निर्यात कीमत की बात करें तो 2007 के 40.21 रुपये प्रति किलो के मुकाबले साल 2008 में यह 69.42 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गया। (BS Hindi)
यूपी में मिल रहा है एक रुपये किलो आलू, बोलो खरीदोगे!
थोक बाजार में तेरह साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंचा आलू
सिध्दार्थ कलहंस / लखनऊ December 29, 2008
साल दर साल बंपर पैदावार के बाद उत्तर प्रदेश में आलू सड़कों पर फेंका जा रहा है। किसानों द्वारा कोल्ड स्टोरों से माल न निकालने के बाद अब इन स्टोरों के मालिक आलू सड़क पर फेंकने को मजबूर हैं।
इससे भी बदतर हालात यह है कि इस साल थोक बाजारों में आलू की कीमत रिकॉर्ड स्तर पर नीचे चली गई है। उत्तर प्रदेश के थोक बाजारों में आलू की कीमत बीते 13 सालों में सबसे कम स्तर पर जा पहुंची है।इस समय प्रदेश की थोक मंडियों में आलू की नई फसल की कीमत एक रुपये प्रति किलोग्राम है जो कि बीते 13 सालों में सबसे कम है।पहली बार सीजन की शुरुआत होते ही खुदरा बाजारों में आलू की कीमत गिरकर 2 से 3 रुपये के स्तर पर आ गई है। किसानों की बदहवासी का आलम यह है कि इस साल कोल्ड स्टोरों में आलू रखने के लिए कोई तैयार नहीं हो रहा है। हालांकि किसानों का कहना है कि इसके पीछे खास वजह कोल्ड स्टोर मालिकों द्वारा एडवांस मांगा जाना है। उद्यान विभाग के अधिकारियों का कहना है कि बीते साल आलू की पैदावार रिकॉर्ड 130 लाख टन हुई थी और इस साल भी पैदावार इसी आंकड़े के आस-पास रहने की आशा है। अधिकारियों का कहना है कि आलू की फसल के पूरे आंकड़े अभी आ नही सके हैं पर आशा है कि इस साल भी 110 से 125 लाख टन की पैदावार होगी। गौरतलब है कि बीते साल आलू की कीमतों थोक बाजारों गिरकर 2 रुपये किलोग्राम तक आ गई थीं। किसानों की बदहाली का आलम यह है कि बीते साल कोल्ड स्टोरों मे जमा आलू भी निकाला नहीं गया है। यह हालत तब है जब किसानों के लिए कोल्ड स्टोर मालिकों ने अपनी शर्तों पर आलू निकालने की छूट दे दी है। कई कोल्ड स्टोर मालिकों ने तो किसानों को बिना भाड़ा दिए आलू निकालने की इजाजत दे दी है। उत्तर प्रदेश कोल्ड स्टोर एसोसिएशन के अध्यक्ष महेंद्र स्वरुप के मुताबिक किसानों को हर तरह की सुविधा देने के लिए कोल्ड स्टोर मालिक तैयार हैं, फिर भी करीब 25 से 30 फीसदी आलू अभी कोल्ड स्टोरों में पड़ा है। इन्हें निकालने से किसानों ने इनकार कर दिया है। इससे परेशान कोल्ड स्टोर मालिकों ने आलू निकालकर सड़क पर फेंक दिया है। महोबा, फर्रुखाबाद, आगरा, झांसी और इटावा में सड़कों के किनारे करीब 800 क्विंटल आलू फेंक दिया गया है। हाताल बेकाबू देख कर प्शासन ने अब आलू को गरीबों के बीच मुफ्त बांटने का फैसला किया है। (BS Hindi)
सिध्दार्थ कलहंस / लखनऊ December 29, 2008
साल दर साल बंपर पैदावार के बाद उत्तर प्रदेश में आलू सड़कों पर फेंका जा रहा है। किसानों द्वारा कोल्ड स्टोरों से माल न निकालने के बाद अब इन स्टोरों के मालिक आलू सड़क पर फेंकने को मजबूर हैं।
इससे भी बदतर हालात यह है कि इस साल थोक बाजारों में आलू की कीमत रिकॉर्ड स्तर पर नीचे चली गई है। उत्तर प्रदेश के थोक बाजारों में आलू की कीमत बीते 13 सालों में सबसे कम स्तर पर जा पहुंची है।इस समय प्रदेश की थोक मंडियों में आलू की नई फसल की कीमत एक रुपये प्रति किलोग्राम है जो कि बीते 13 सालों में सबसे कम है।पहली बार सीजन की शुरुआत होते ही खुदरा बाजारों में आलू की कीमत गिरकर 2 से 3 रुपये के स्तर पर आ गई है। किसानों की बदहवासी का आलम यह है कि इस साल कोल्ड स्टोरों में आलू रखने के लिए कोई तैयार नहीं हो रहा है। हालांकि किसानों का कहना है कि इसके पीछे खास वजह कोल्ड स्टोर मालिकों द्वारा एडवांस मांगा जाना है। उद्यान विभाग के अधिकारियों का कहना है कि बीते साल आलू की पैदावार रिकॉर्ड 130 लाख टन हुई थी और इस साल भी पैदावार इसी आंकड़े के आस-पास रहने की आशा है। अधिकारियों का कहना है कि आलू की फसल के पूरे आंकड़े अभी आ नही सके हैं पर आशा है कि इस साल भी 110 से 125 लाख टन की पैदावार होगी। गौरतलब है कि बीते साल आलू की कीमतों थोक बाजारों गिरकर 2 रुपये किलोग्राम तक आ गई थीं। किसानों की बदहाली का आलम यह है कि बीते साल कोल्ड स्टोरों मे जमा आलू भी निकाला नहीं गया है। यह हालत तब है जब किसानों के लिए कोल्ड स्टोर मालिकों ने अपनी शर्तों पर आलू निकालने की छूट दे दी है। कई कोल्ड स्टोर मालिकों ने तो किसानों को बिना भाड़ा दिए आलू निकालने की इजाजत दे दी है। उत्तर प्रदेश कोल्ड स्टोर एसोसिएशन के अध्यक्ष महेंद्र स्वरुप के मुताबिक किसानों को हर तरह की सुविधा देने के लिए कोल्ड स्टोर मालिक तैयार हैं, फिर भी करीब 25 से 30 फीसदी आलू अभी कोल्ड स्टोरों में पड़ा है। इन्हें निकालने से किसानों ने इनकार कर दिया है। इससे परेशान कोल्ड स्टोर मालिकों ने आलू निकालकर सड़क पर फेंक दिया है। महोबा, फर्रुखाबाद, आगरा, झांसी और इटावा में सड़कों के किनारे करीब 800 क्विंटल आलू फेंक दिया गया है। हाताल बेकाबू देख कर प्शासन ने अब आलू को गरीबों के बीच मुफ्त बांटने का फैसला किया है। (BS Hindi)
29 दिसंबर 2008
राजनीतिक तनावों से अभी और खरा होगा सोना
मुंबई December 28, 2008
दक्षिण और पश्चिम एशिया के ताजा राजनीतिक संकट के चलते सोने में इस हफ्ते तेजी की संभावना है। जानकारों का मानना है कि अगले पखवाड़े में सोना 926 डॉलर प्रति औंस के पार चला जाएगा।
विशेषज्ञों के मुताबिक, निवेशक थोड़ा लाभ कमाना चाहते हैं और सोने ने साबित कर दिया है कि इसमें निवेश करने से 12-13 फीसदी तक का मुनाफा कमाया जा सकता है। वैसे भी इस साल इक्विटी, करेंसी, रियल एस्टेट आदि क्षेत्रों में निवेश से निवेशकों को नुकसान ही हुआ है। कार्वी कमोडिटी ब्रोकिंग प्राइवेट लिमिटेड के अशोक मित्तल ने कहा, ''मौजूदा परिस्थिति में सुरक्षित निवेश के लिए सोने की मांग एक बार फिर बढ़ रही है। सोने के कारोबारी इससे काफी उत्साहित हैं। उम्मीद है कि सोने के भाव बढ़ेंगे।'' ऐसे में उम्मीद है कि सोना 14 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम के पार चला जाएगा। विश्लेषकों का अनुमान है कि भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के चलते इस हफ्ते डॉलर 50 रुपये के स्तर को पार कर जाएगा।इस हफ्ते सोने में दो वजहों से तेजी आने की संभावना है। एक तो ये कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का भाव लगातार बढ़ रहा है। जबकि दूसरा यह कि रुपये में कमजोरी के आसार हैं। जानकारों के अनुसार यदि अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का भाव स्थिर रहा तो भी सोने की कीमत में तेजी आएगी। एंजेल ब्रोकिंग के कमोडिटीज प्रमुख नवीन माथुर के मुताबिक, मौजूदा राजनीतिक हालात में रुपया कमजोर होगा और इस वजह से सोने में नरमी आ सकती है। अनुमान यह भी है कि मकर संक्रांति के चलते त्योहारी खरीद बढ़ने से सोने की मांगों और कीमतों में बढ़ोतरी होगी। शादी-विवाह के चलते भी सोने की मांग बढ़ने का अनुमान है। उल्लेखनीय है कि भारत दुनिया भर में सोने का सबसे बड़ा खरीदार है। इस देश में पूरी दुनिया के 20 फीसदी सोने की खरीदारी होती है। 2008 में भारत में 800 टन से अधिक सोने का आयात हुआ जबकि 2007 में 754 टन सोने का आयात हुआ था।वैसे इस साल सोने का प्रदर्शन बेहतर रहा है। कमजोर डॉलर और कच्चे तेल में आ रही तेजी की वजह से सोना साल की शुरुआत से ही बढ़ना शुरू हुआ और 1,032.80 डॉलर प्रति औंस के रिकॉर्ड स्तर तक चला गया। इसके बाद अक्टूबर तक सोने में 33 फीसदी की गिरावट हुई और यह 681 डॉलर प्रति औंस के निम् स्तर तक पहुंच गया। हाजिर बाजार में सोने की मांग में आ रही तेजी और सुरक्षित निवेश के लिए सोने की मांग बढ़ने से इसकी कीमतों में तेजी आ रही है। इस बीच छुट्टियों के माहौल के बीच न्यू यॉर्क मकर्टाइल एक्सचेंज के कॉमेक्स डिवीजन में पिछले हफ्ते सोने में 4 फीसदी की तेजी हुई और भाव 871 डॉलर प्रति औंस के पार चला गया। इस महीने सोने में अब तक 6.4 फीसदी की तेजी आ चुकी है। मुंबई के हाजिर बाजार में स्टैंडर्ड सोना 12,810 रुपये से 13,440 रुपये प्रति 10 ग्राम तक चला गया है। शुद्ध सोने में भी तेजी आई और इसके भाव 12,870 रुपये प्रति 10 ग्राम से 13,500 रुपये तक चले गए।मल्टी कमोडटी एक्सचेंज में अप्रैल 09 अनुबंध का सोना 1.17 फीसदी की तेजी के साथ 13,111 रुपये प्रति 10 ग्राम तक चला गया। (BS Hindi)
दक्षिण और पश्चिम एशिया के ताजा राजनीतिक संकट के चलते सोने में इस हफ्ते तेजी की संभावना है। जानकारों का मानना है कि अगले पखवाड़े में सोना 926 डॉलर प्रति औंस के पार चला जाएगा।
विशेषज्ञों के मुताबिक, निवेशक थोड़ा लाभ कमाना चाहते हैं और सोने ने साबित कर दिया है कि इसमें निवेश करने से 12-13 फीसदी तक का मुनाफा कमाया जा सकता है। वैसे भी इस साल इक्विटी, करेंसी, रियल एस्टेट आदि क्षेत्रों में निवेश से निवेशकों को नुकसान ही हुआ है। कार्वी कमोडिटी ब्रोकिंग प्राइवेट लिमिटेड के अशोक मित्तल ने कहा, ''मौजूदा परिस्थिति में सुरक्षित निवेश के लिए सोने की मांग एक बार फिर बढ़ रही है। सोने के कारोबारी इससे काफी उत्साहित हैं। उम्मीद है कि सोने के भाव बढ़ेंगे।'' ऐसे में उम्मीद है कि सोना 14 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम के पार चला जाएगा। विश्लेषकों का अनुमान है कि भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के चलते इस हफ्ते डॉलर 50 रुपये के स्तर को पार कर जाएगा।इस हफ्ते सोने में दो वजहों से तेजी आने की संभावना है। एक तो ये कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का भाव लगातार बढ़ रहा है। जबकि दूसरा यह कि रुपये में कमजोरी के आसार हैं। जानकारों के अनुसार यदि अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का भाव स्थिर रहा तो भी सोने की कीमत में तेजी आएगी। एंजेल ब्रोकिंग के कमोडिटीज प्रमुख नवीन माथुर के मुताबिक, मौजूदा राजनीतिक हालात में रुपया कमजोर होगा और इस वजह से सोने में नरमी आ सकती है। अनुमान यह भी है कि मकर संक्रांति के चलते त्योहारी खरीद बढ़ने से सोने की मांगों और कीमतों में बढ़ोतरी होगी। शादी-विवाह के चलते भी सोने की मांग बढ़ने का अनुमान है। उल्लेखनीय है कि भारत दुनिया भर में सोने का सबसे बड़ा खरीदार है। इस देश में पूरी दुनिया के 20 फीसदी सोने की खरीदारी होती है। 2008 में भारत में 800 टन से अधिक सोने का आयात हुआ जबकि 2007 में 754 टन सोने का आयात हुआ था।वैसे इस साल सोने का प्रदर्शन बेहतर रहा है। कमजोर डॉलर और कच्चे तेल में आ रही तेजी की वजह से सोना साल की शुरुआत से ही बढ़ना शुरू हुआ और 1,032.80 डॉलर प्रति औंस के रिकॉर्ड स्तर तक चला गया। इसके बाद अक्टूबर तक सोने में 33 फीसदी की गिरावट हुई और यह 681 डॉलर प्रति औंस के निम् स्तर तक पहुंच गया। हाजिर बाजार में सोने की मांग में आ रही तेजी और सुरक्षित निवेश के लिए सोने की मांग बढ़ने से इसकी कीमतों में तेजी आ रही है। इस बीच छुट्टियों के माहौल के बीच न्यू यॉर्क मकर्टाइल एक्सचेंज के कॉमेक्स डिवीजन में पिछले हफ्ते सोने में 4 फीसदी की तेजी हुई और भाव 871 डॉलर प्रति औंस के पार चला गया। इस महीने सोने में अब तक 6.4 फीसदी की तेजी आ चुकी है। मुंबई के हाजिर बाजार में स्टैंडर्ड सोना 12,810 रुपये से 13,440 रुपये प्रति 10 ग्राम तक चला गया है। शुद्ध सोने में भी तेजी आई और इसके भाव 12,870 रुपये प्रति 10 ग्राम से 13,500 रुपये तक चले गए।मल्टी कमोडटी एक्सचेंज में अप्रैल 09 अनुबंध का सोना 1.17 फीसदी की तेजी के साथ 13,111 रुपये प्रति 10 ग्राम तक चला गया। (BS Hindi)
Spices export up by 15 pc in value
Kochi, Dec 29 (PTI) Spices export during April-Novemberperiod this year increased by 15 per cent in value and six percent in quantity terms, as compared with the same period lastyear. The total export during the period touched 3,10,830tonnes, valued at Rs 3,450.50 crore (786.25 million USD). Indollar terms, the increase was six per cent, spices board saidin a press release here. During the corresponding period last fiscal, about2,94,335 tonnes valued at Rs 3,010.25 crore (742.95 million USDollar) were exported. During April-November 2008, export of most of the majorspices have shown an increasing trend both in terms ofquantity and value as compared with the same period lastyear. However, export of pepper and mint products declinedboth in terms of quantity and value as compared with lastyear. Export of Ginger and Chilli have declined only inquantity during the period. During April-November 2008, export of pepper from Indiahad been 16,850 tonnes valued Rs 281.77 crore, as against25,230 tonnes valued Rs 365.36 crore of last year. The average export price of pepper has gone up from Rs144.81 per kg in 2007 to Rs 167.22 per kg in 2008. Lowinventory in the major international markets due to theeconomic recession is reported to be the major reason for thedecline in exports. Spice oils and oleoresins, including mint productscontributed 42 per cent of the total export earnings. Chillicontributed 21 per cent followed by cumin (eight per cent),pepper (eight per cent) and Turmeric (five per cent). During the period, India has exported 1,32,000 tonnes ofchilli and chilli products valued Rs 729.68 crore, as against1,34,285 tonnes valued Rs 727.84 crore last year. The traditional buyers of Indian Chilli -- Malaysia,Indonesia and Sri Lanka continued their buying this year also.The reported lower output from other producing countries andmandatory quality testing of Chilli and Chilli products by theBoard have helped India to achieve this higher level of Chilliexport. Export of seed spices have also shown an increasingtrend both in terms of quantity and value, as compared withthat of last year. Coriander seed export during April-November thisyear has been 18,500 tonnes valued Rs 128.43 crore, as against17,180 tonnes valued Rs.69.09 crore of last year registeringan increase of 86 per cent in value and eight per cent inquantity. The unit value of export has also gone up from Rs 40.21per kg in 2007 to Rs 69.42 per kg in 2008. Export of cumin seed during the said period hasincreased considerably and export has been 27,300 tonnesvalued Rs 284.93 crore, as against 16,250 tonnes valuedRs 174.83 crores. It marked an increase of 65 per cent in quantity and 63per cent in value terms as compared to last year. Thereported crop failure in other major producing countries--Syria, Turkey and Iran -- has helped India to achieve thissubstantial increase in the export of cumin, the releasesaid. (MORE) PTI
Spices export up by 15 pc in value
Spices export up by 15 pc in value Kochi, Dec 29 (PTI) Spices export during April-Novemberperiod this year increased by 15 per cent in value and six percent in quantity terms, as compared with the same period lastyear. The total export during the period touched 3,10,830tonnes, valued at Rs 3,450.50 crore (786.25 million USD). Indollar terms, the increase was six per cent, spices board saidin a press release here. During the corresponding period last fiscal, about2,94,335 tonnes valued at Rs 3,010.25 crore (742.95 million USDollar) were exported. During April-November 2008, export of most of the majorspices have shown an increasing trend both in terms ofquantity and value as compared with the same period lastyear. However, export of pepper and mint products declinedboth in terms of quantity and value as compared with lastyear. Export of Ginger and Chilli have declined only inquantity during the period. During April-November 2008, export of pepper from Indiahad been 16,850 tonnes valued Rs 281.77 crore, as against25,230 tonnes valued Rs 365.36 crore of last year. The average export price of pepper has gone up from Rs144.81 per kg in 2007 to Rs 167.22 per kg in 2008. Lowinventory in the major international markets due to theeconomic recession is reported to be the major reason for thedecline in exports. (MORE) PTI
सरसों का उत्पादन बढ़ने के आसार
ये आकलन वायदा कारोबारियों की कुछ मदद कर सकता है। इस साल सरसों के बुवाई रकबा में बढ़ोतरी हुई है। साथ ही अब तक मौसम भी फसल का साथ दे रहा है। इससे उत्पादन बढ़ने की उम्मीद की जा रही है। यही नहीं पाम तेल की गिरावट का भी असर रहने की उम्मीद है। छह माह पूर्व तमाम जिंसों के साथ सरसों वायदा में जोरदार तेजी का दौर रहा था।क्या है हाल अभी तक लगभग उत्पादक राज्यों में मौसम भी फसल के अनुकूल ही रहा है। उधर उत्तर प्रदेश में लहिया और पंजाब व हरियाणा में तोरियों की नई फसल की आवक शुरू हो चुकी है। फरवरी में लगभग सभी उत्पादक राज्यों में नई सरसों की आवक भी शुरू हो जाएगी। वैसे भी चालू वर्ष में विदेशों से खाद्य तेलों के आयात में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। यही नहीं हाजिर बाजार में पैसे की कमी है। ऐसे में आगामी दिनों में सरसों और सरसों तेल के मौजूदा भावों में गिरावट ही आने की आशंका है।बुवाई क्षेत्रफल बढ़ाकृषि मंत्रालय के मुताबिक चालू रबी सीजन में सरसों की बुवाई 63.98 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में हुई है। पिछले वर्ष की समान अवधि में इसकी बुवाई 57.15 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। इस तरह बुवाई क्षेत्रफल में 6.83 लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी हुई है। बढ़ सकता है उत्पादन केंद्र द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2007-08 में देश में सरसों का उत्पादन 58 लाख टन का हुआ था। साल 2008-09 के लिए सरकार ने सरसों के उत्पादन का लक्ष्य 76.69 लाख टन का रखा है। हालांकि तेल-तिलहन उद्योग से जुड़े संगठनों का उत्पादन अनुमान भिन्न है। दिल्ली वैजिटेबल ऑयल ट्रेडर्स एसोसिएशन के सचिव हेंमत गुप्ता ने बताया कि चालू वर्ष में बुवाई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी और पिछले दिनों राजस्थान व उत्तर प्रदेश के कुछेक क्षेत्रों में हुई बारिश को देखते हुए चालू सीजन में देश में सरसों का उत्पादन 60 से 62 लाख टन होने की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि गत वर्ष देश में सरसों का उत्पादन 50 लाख टन का हुआ था। जबकि नई फसल के समय बकाया स्टॉक पांच लाख टन का था।स्टॉक और मांगअलवर व्यापार मंडल के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल ने बताया कि उत्पादक मंडियों में सरसों का स्टॉक मात्र ढ़ाई से तीन लाख टन का ही बचा हुआ है। जबकि नई फसल की आवक बनने में अभी करीब डेढ़ माह का समय शेष है। उनके मुताबिक पांच से छह लाख टन सरसों की खपत प्रति माह होती है। ऐसे में स्टॉक तो मांग के हिसाब से काफी कम है। लेकिन उत्तर प्रदेश में लहिया और पंजाब व हरियाणा की मंडियों में तोरिया की अच्छी आवक हो रही है। इसलिए सरसों की मांग में पिछले आठ-दस दिनों से काफी कमी आई है। मांग में कमी आने से जहां सरसों के भावों में 150 रुपए प्रति क्विंटल की गिरावट आई है वहीं सरसों तेल में 300 रुपए प्रति क्विंटल का मंदा आया है। अलवर मंडी में सरसों के भाव 2900 से 2925 रुपए प्रति क्विंटल रह गए। 15 फरवरी के बाद उत्पादक राज्यों में नई सरसों की आवक शुरू हो जाएगी। अत: सरसों के भावों में और भी गिरावट की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।खाद्य तेलों का आयात बढ़ासालवेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक नवंबर से अक्टूबर 2007-08 में देश में खाद्य तेलों का आयात बढ़कर 56.08 लाख टन का हुआ है। पिछले वर्ष के मुकाबले इसमें 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। पिछले वर्ष खाद्य तेलों का कुल आयात 47.14 लाख टन का हुआ था। बंगाल-बिहार में मांग कमजोरलारेंस रोड स्थित अशोका ट्रेडर्स के अशोक कुमार ने बताया कि दिल्ली बाजार में सरसों की आवक मात्र एक-दो मोटरों की हो रही है। जबकि उत्तर प्रदेश से लहिया की आवक आठ से दस मोटरों की हो रही है। उन्होंने बताया कि आयातित खाद्य तेलों के भावों में चल रही भारी गिरावट के कारण सरसों तेल में मांग कमजोर है। दिल्ली बाजार में पिछले आठ-दस दिनों में सरसों के भावों में 150 रुपए की गिरावट आकर भाव 3000 रुपए और सरसों तेल के भावों में 300 रुपए की गिरावट आकर भाव 6400 रुपए प्रति क्विंटल रह गए। लहिया के भाव यहां घटकर 2800 से 2850 रुपए प्रति क्विंटल रह गए हैं। उन्होंने बताया कि बाजार में धन की तंगी होने के कारण नई सरसों की आवक बनने के बाद स्टॉकिस्टों की खरीद कमजोर ही रहने की संभावना है। (Business Bhaskar....R S Rana)
रबर के भाव गिरने से उत्पादक मुश्किल में
नई दिल्ली। नीचे भावों में उत्पादकों की बिकवाली घटने से पिछले पंद्रह दिनों में प्राकृतिक रबर का दाम करीब दस रुपये प्रति किलो सुधर गया है। हालांकि चालू वर्ष में प्राकृतिक रबर के उत्पादन में बढ़ोतरी की संभावना है। कच्चे तेल की कीमतों में चल रही भारी गिरावट को देखते हुए आगामी दिनों में प्राकृतिक रबर में भारी तेजी के आसार नहीं है। भावों में आई गिरावट से रबर उत्पादक को नुकसान उठाना पड़ रहा है।वर्ष 2008-09 में देश में प्राकृतिक रबर का उत्पादन 8.75 लाख टन होने की संभावना है जोकि पिछले वर्ष से ज्यादा है। वर्ष 2007-08 में देश में रबर का कुल उत्पादन 8.25 लाख टन रहा था। नवंबर के अंत में देश में प्राकृतिक रबर का बकाया स्टॉक 1.75 लाख टन रहने का अनुमान है। जबकि वर्ष 2007 की समान अवधि में बकाया स्टॉक 1.48 लाख टन का था। चालू फसल सीजन में उत्पादक राज्यों में मौसम फसल के अनुकूल रहा है जिसको देखते हुए उम्मीद की जा रही है दिसंबर और जनवरी महीने में उत्पादन में बढ़ोतरी होगी। चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से नवंबर तक देश में प्राकृतिक रबर का कुल उत्पादन 5.72 लाख टन रहा जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका कुल उत्पादन 5.08 लाख टन का ही हुआ था। चालू वर्ष के नवंबर महीने में हालांकि उत्पादन अनुमान से थोड़ा कम रहा है। उम्मीद है कि नवंबर की भरपाई दिसंबर और जनवरी महीने में हो जाएगी। चालू वर्ष के नवंबर महीने में रबर उत्पादन 95,000 टन ही रहा जबकि एक लाख टन उत्पादन की संभावना थी। पिछले वर्ष नवंबर में 1.09 लाख टन उत्पादन हुआ था।खपत की वृद्धि दर अप्रैल से नवंबर महीने तक 4.2 प्रतिशत रही है जोकि पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले ज्यादा है। अप्रैल से नवंबर में 5,93,375 टन रबर की खपत हुई। पिछले वर्ष की समान अवधि में इसकी कुल खपत 5,69,460 टन की हो पाई थी।क्रूड तेल के भावों में अगस्त महीने के बाद से एकतरफा गिरावट आई है। जिसका असर प्राकृतिक रबर के भाव पर पड़ा है। क्रूड तेल के भाव अगस्त में बढ़कर 145 डॉलर प्रति बैरल हो गए थे तथा उस दौरान प्राकृतिक रबर आरएसएस-4 और आरएसएस-5 किस्म की कीमतें भी बढ़कर घरेलू बाजारों में क्रमश: 135 और 137 रुपये किलो के ऊच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी। लेकिन उसके बाद जैसे-जैसे क्रूड तेल के भावों में गिरावट आई, उसी हिसाब से रबर की कीमतें भी घटती चली गई। इस समय क्रूड तेल की कीमत 40 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे चल रही है तथा जब तक क्रूड तेल की कीमतों में सुधार नहीं आएगा तब तक रबर की कीमतों में भी सुधार की संभावना नहीं है। 12 दिसंबर को घरेलू बाजारों में आरएसएस-4 और आरएसएस-5 किस्म की रबर की कीमतें घटकर क्रमश: 60 और 58 रुपये प्रति किलो रह गई थी। लेकिन शुक्रवार को आरएसएस-4 और आरएसएस-5 के भाव सुधरकर क्रमश: 69 और 67 रुपये प्रति किलो हो गए। प्राकृतिक रबर की सबसे ज्यादा खपत चीन में होती है तथा चीन में भी आर्थिक मंद गति का असर देखा जा रहा है (Business Bhaskar.....R S Rana)
जिंस वायदा करोबार 40 प्रतिशत बढ़ा
आसमान पर महंगाई, राजनीतिक विरोध और कई जिंसों के वायदा पर बंदिशों के बावजूद इस साल कमोडिटी वायदा कारोबार 40 फीसदी बढ़ गया जो इस साल के अंत तक 50 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने के करीब है। नवंबर के अंत तक देश भर के कमोडिटी एक्सचेंजों का कारोबार 46,65,295 करोड़ रुपये के स्तर पर छू चुका है। जिसे साल के अंत तक बढ़कर करीब पचास लाख करोड़ रुपये के स्तर तक जाने की उम्मीद जताई जा रही है। पिछले साल के दौरान कमोडिटी एक्सचेंजों ने 36,53,895 करोड़ रुपये का कारोबार किया था। साल के शुरूआत में ही केंद्र ने फॉरवर्ड कांट्रैक्ट रग्यूलेशन एक्ट के जरिये वायदा बाजार आयोग को ज्यादा अधिकार देने की कोशिश की गई। लेकिन कीमतों में लगी आग से महंगाई दर में रिकार्ड वृद्धि होने और राजनीतिक दलों के विरोध से यूपीए सरकार अध्यादेश को संसद में पास कराने में विफल रही। बढ़ती महंगाई का हवाला देकर सरकार को इस साल मई में सोया तेल, रबर, चना और आलू के वायदा कारोबार पर रोक भी लगानी पड़ी जो नवंबर तक जारी रही। महंगाई की आंच धीमी होने के बाद इस महीने से इन जिंसों में दोबारा वायदा कारोबार शुरू हो गया है। लेकिन पिछले साल से गेहूं, चावल, तुअर और उड़द के वायदा पर लगी रोक अभी भी जारी है। वायदा कारोबार महंगाई के लिए कितना जिम्मेदार है, इसकी पड़ताल के लिए पिछले साल मार्च में योजना आयोग के सदस्य अभिजीत सेन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। जिसने अप्रैल में वायदा कारोबार को क्लीन चिट देते हुए अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। प्रतिबंध से कृषि जिंसों के कारोबार के विकास में नवंबर तक करीब 32 फीसदी की गिरावट आई है। एआरपीएल एग्री बिजनेस सर्विस के प्रबंध निदेशक विजय सरदाना के मुताबिक सरकार यदि कृषि जिंसों के वायदा पर रोक नहीं लगाती तो इस साल कारोबार में और इजाफा हो सकता था। जनवरी से नवंबर तक एनसीडीईएक्स का कारोबार गिरकर 5,98,257.42 करोड़ रुपये रहा है। पिछले साल इसी अवधि में 7,33,478.87 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ था। गैर कृषि जिंसों में कारोबार बढ़ने से एमसीएक्स में 39,56,459.12 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ। पिछले साल इस अवधि में 25,04,904.21 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ था।बजट में प्रस्तावित कमोडिटी ट्रांजैक्शन टैक्स से भी वायदा कारोबार साल भर चर्चा का विषय रहा। कमोडिटी वायदा कारोबार में मोटे मुनाफे को देख रिलायंस मनी, कोटक, एमएमटीसी और इंडिया बुल्स जैसे दिग्गज इसमें हाथ आजमाने का संकेत दे चुके हैं। एमएमटीसी और इंडिया बुल्स संयुक्त उपक्रम के तहत अगले साल अप्रैल से कमोडिटी एक्सचेंज लाने की तैयारी में हैं। रिलायंस मनी एनएमसीई में हिस्सेदारी खरीदी है। कोटक समूह अहमदाबाद कमोडिटी एक्सचेंज में हिस्सेदारी खरीद चुका है। एमसीएक्स भी न्यूयार्क कमोडिटी एक्सचेंज में पांच फीसदी की हिस्सेदारी ले चुका है। (Business Bhaskar)
बेस मेटल नहीं मिली सौगात, कीमतों में गिरावट
कोलकाता : वैश्विक वित्तीय बाजार में संकट के साथ बेस मेटल की कीमतों में शुरू हुई गिरावट क्रिसमस की छुट्टियों में और तेज हुई। क्रिसमस से एक दिन पहले सभी नॉन फेरस मेटल में ट्रेडिंग वॉल्यूम कम होने से दिसंबर के आखिरी सप्ताह में कीमतों में और गिरावट आई। एलएमई पर पिछले सप्ताह के अंत में कॉपर का भाव 2,815 डॉलर प्रति टन रहा। सप्ताह के बीच की कीमतों के मुकाबले इसमें 125 डॉलर की गिरावट आई। इसी तरह पिछले चार दिनों में निकल की कीमतें 325 डॉलर गिरकर 9,775 डॉलर प्रति टन पर आ गईं। जिंक की कीमतें 25 डॉलर गिरकर 1,145 डॉलर प्रति टन और लेड की कीमतें 30 डॉलर गिरकर 865 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गईं जबकि टिन की कीमतों में 500 डॉलर की गिरावट आई और वे 9,750 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गईं। एंजेल कमोडिटीज के एक विशेषज्ञ का कहना है कि बेस मेटल उत्पादकों के कर्ज को लेकर खराब रिपोर्ट आती रही, इससे मेटल मार्केट के सेंटीमेंट पर बुरा असर पड़ा। हालांकि उन्होंने साल के अंत में शॉर्ट कवरिंग की संभावना भी जताई। उनके मुताबिक, आने वाले समय में वायदा बाजार में बेस मेटल की खरीदारी बढ़ सकती है। दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं में संकट शुरू होने के एक महीने बाद नवंबर में डिस्टॉकिंग और कंपनियों द्वारा खराब अर्थव्यवस्था के मुताबिक तालमेल बिठाने के कारण बेस मेटल की कीमतों में तेज गिरावट दर्ज की गई। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले दिनों में कीमतों के गिरने की दर इतनी तेज नहीं रहेगी। इस तरह की खबरें आ रही हैं कि रणनीतिक भंडार बढ़ाने के लिए चीन एल्युमीनियम खरीद सकता है। इससे एल्युमीनियम की कीमतों में तेजी देखने को मिल सकती है। वहीं, कमोडिटी बाजार में निवेश करने वाले फंडों के पोर्टफोलियो में बदलाव से कॉपर, जिंक और निकल को फायदा मिल सकता है। अमूमन फंड जनवरी के शुरुआती सप्ताह में पोर्टफोलियो में बदलाव करते हैं। वैश्विक संकट शुरू होने से पहले दुनिया में बेस मेटल के सबसे बड़े उपभोक्ता देश चीन द्वारा धातुओं की खरीदारी करने से कीमतों में जोरदार इजाफा हुआ था। कॉपर की कीमतें जुलाई के पहले सप्ताह में अपने उच्चतम स्तर 8,930 डॉलर प्रति टन के स्तर तक पहुंच गई थीं। 2008 में निकल की शुरुआत अच्छी रही थी, लेकिन स्टील की मांग में कमी आने के कारण उस पर दबाव आ गया। दिसंबर के चौथे सप्ताह में 9,725 डॉलर प्रति टन के साथ निकल की कीमतें अपने चार साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई हैं। स्टॉक बढ़ने के कारण जिंक की भी कीमतों पर भी दबाव आ गया। वित्तीय बाजार की खराब हालत से लेड की कीमतों को भी झटका लगा। बैट्री की मांग में कमी आने के कारण धातु की मांग में कमी आई। इस साल बेस मेटल की कीमतों में 75 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। (ET Hindi)
चीन के आयात बढ़ाने से सोयाबीन में तेजी
मुंबई : दक्षिण अमेरिका में खराब मौसम और अमेरिका से चीन के सोयाबीन आयात करने के चलते पिछले सप्ताह इसकी कीमतों में पांच फीसदी का उछाल आया। इसके अलावा घरेलू बाजार में आवक कम होने और क्रूड पाम ऑयल पर सरकार द्वारा आयात शुल्क लगाने की आशंकाओं के चलते भी सोयाबीन के भाव को समर्थन मिला। 26 दिसंबर को एनसीडीईएक्स पर सोयाबीन का जनवरी कॉन्ट्रैक्ट 1,874 रुपए प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। इससे पिछले सप्ताह के मुकाबले यह 5.4 फीसदी अधिक है। तब सोयाबीन की वायदा कीमत 1,777 रुपए प्रति क्विंटल थी। दक्षिण अमेरिका के दो प्रमुख सोयाबीन उत्पादक देशों ब्राजील और अर्जेंटीना में यह बुआई का समय है, लेकिन खराब मौसम होने के कारण इसमें देरी हो रही है। इससे फसल को लेकर चिंता बढ़ गई है, जिससे दुनिया भर में सोयाबीन की कीमतों में तेजी देखी गई। इन देशों में अक्टूबर से दिसंबर के बीच सोयाबीन की बुआई होती है। इस कमोडिटी की कीमतों में जारी गिरावट का फायदा उठाते हुए चीन इसका भंडार बढ़ाने में लग गया है। वहां की सरकार किसानों को अच्छी कीमत देने के लिए भी सोयाबीन की खरीदारी कर रही है। चीन में सोयाबीन का भाव 3,700 युआन प्रति क्विंटल है। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमतें चीन के घरेलू बाजार के मुकाबले कम हैं। इसी वजह से चीन की मिलें अमेरिका से सोयाबीन का आयात कर रही हैं। वहीं, भारत में अभी सोयाबीन की सप्लाई तीन से चार लाख बैग के बीच चल रही है। पिछले वर्ष इसी अवधि में छह लाख बैगों की आवक हो रही थी। दरअसल, किसानों को आने वाले दिनों में सोयाबीन की कीमतों में इजाफे की उम्मीद है, लिहाजा वह अभी अपना स्टॉक बाजार में नहीं ला रहे हैं। भारतीय बाजार में अभी सोयाबीन का हाजिर भाव 1,750१-1,800 रुपए प्रति क्विंटल है। इस साल जून और जुलाई में किसानों को 2,700 रुपए का भाव मिल रहा था। महंगाई दर में गिरावट आने के बाद भी आयातकों को आशंका है कि सरकार क्रूड पाम पर कम से कम 30 फीसदी का आयात शुल्क लगा सकती है। हाल में सरकार ने क्रूड सोयाबीन ऑयल पर 20 फीसदी का आयात शुल्क लगा दिया था जबकि रिफाइंड ऑयल पर अभी 7.5 फीसदी का ही शुल्क लगता है। हालांकि आनंद राठी कमोडिटीज के अली मोहम्मद लकड़वाला के मुताबिक, सोयाबीन की कीमतों के इस स्तर पर बने रहने के ज्यादा आसार नहीं हैं। उनका कहना है कि दक्षिण अमेरिका में बरसात शुरू हो चुकी है और वहां जल्द ही मौसम सुधरने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि अमेरिका से चीन को आयात में भी कमी आ सकती है क्योंकि चीन की सरकार अमेरिका से आयातित बीन्स की कड़ी जांच पड़ताल कर रही है। लकड़वाला का कहना है, 'कीमतों में बढ़ोतरी होने के कारण आने वाले दिनों में प्रॉफिट बुकिंग भी हो सकती है। इससे कीमतों के गिरने की संभावना है।' (ET Hindi)
कीमतों में बढ़ोतरी से प्याली में तूफान
कोलकाता December 26, 2008
मौजूदा चलन को पीछे छोड़ते हुए 2009 सीजन में चाय का सौदा पिछले साल के औसत मूल्य से 20-30 रुपये प्रति किलो अधिक पर खुल सकता है।
चाय उत्पादन में रिकॉर्ड कमी के कारण कीमतों में बढ़ोतरी का अनुमान लगाया जा रहा है। उद्योग प्रतिनिधियों का अनुमान है कि असम चाय की अच्छी गुणवत्ता की कीमत इस साल जहां 105 से 120 रुपये प्रति किलो रही, वहीं नये सीजन में यह 125 से 140 रुपये के बीच खुलने की संभावना है। कीमतों में यह मजबूती 3 से 4 क्विंटल चाय की कमी के कारण आएगी। 2008 के लिए इंडियन टी एसोसिएशन (आईटीए) के हालिया अनुमानों के अनुसार, चाय का उत्पादन 96.2 करोड़ किलोग्राम, निर्यात 20 करोड़ किलोग्राम, आयात 2 करोड़ किलोग्राम और खपत 82.5 करोड़ किलोग्राम रहने का अनुमान है। साफ है कि 4.3 करोड़ किलोग्राम चाय की कमी होगी। आईटीए के अध्यक्ष आदित्य खेतान ने कहा कि निर्यात अधिक होने के कारण चाय की कमी हुई है। पिछले साल 17.9 करोड़ किलोग्राम चाय का निर्यात हुआ था। लेकिन दूसरे बाजारों से अलग भारतीय चाय उद्योग को भारी घरेलू मांग का सहारा हासिल है। इस उद्योग की विकास दर 3 से 3.3 प्रतिशत की है। उन्होंने कहा, 'अफ्रीकी मुद्दे को अतिरिक्त लाभ के तौर पर देखा जाना चाहिए।'सीटीसी के प्रमुख उत्पादक केन्या में चाय का उत्पादन 3.5 करोड़ किलोग्राम कम हुआ, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में होने वाली आपूर्ति पर प्रभाव पड़ा है। सितंबर अंत तक चाय का वैश्विक उत्पादन 63 लाख किलोग्राम की मामूली कमी आई थी।जहां केन्या में उत्पादन 3.5 करोड़ किलोग्राम कम हुआ, वहीं भारत और श्रीलंका को मिलाकर 4.60 करोड़ किलोग्राम कम उत्पादन हुआ। लेकिन सभी अफ्रीकी देशों के उत्पादन में कमी आई है।पिछले कुछ महीनों में भारतीय चाय की कीमतों में बढ़ोतरी हुई, लेकिन अगर महंगाई वृध्दि दर को शामिल कर देखें तो यह 1998 के चरम स्तर से कम ही है। अगर खाद्य पदार्थों की महंगाई दर को समायोजित करें तो कीमत 143.47 रुपये प्रति किलोग्राम होनी चाहिए। इसके विपरीत, उत्पादन लागत में प्रति किलोग्राम 33.41 रुपये प्रति किलो की बढ़ोतरी हुई, जो लगभग 60 प्रतिशत अधिक है।आईटीए के अनुसार, उद्योग के विकास के लिए वर्तमान कीमतों का चलन अगले कुछ सालों तक जारी रहना चाहिए। 2006 के मुकाबले 2007 के दौरान भारतीय चाय उद्योग को कम उत्पादन के साथ-साथ कम निर्यात का भी सामना करना पड़ा था। 2006 में चाय की रिकॉर्ड फसल के साथ-साथ निर्यात भी बढ़िया हुआ था। 1999 से मंदी से जूझ रहे चाय उद्योग को साल 2007 में थोड़ी राहत मिली थी। 2007 के उत्साहजनक संकेतों के साथ साल 2008 की शुरुआत हुई। ऐसा संभव है कि साल 2008 का अंत अभूतपूर्व कमी के साथ हों और मार्च के अंत या अप्रैल की शुरुआत में चाय रिकॉर्ड कीमतों के साथ खुले। (BS Hindi)
मौजूदा चलन को पीछे छोड़ते हुए 2009 सीजन में चाय का सौदा पिछले साल के औसत मूल्य से 20-30 रुपये प्रति किलो अधिक पर खुल सकता है।
चाय उत्पादन में रिकॉर्ड कमी के कारण कीमतों में बढ़ोतरी का अनुमान लगाया जा रहा है। उद्योग प्रतिनिधियों का अनुमान है कि असम चाय की अच्छी गुणवत्ता की कीमत इस साल जहां 105 से 120 रुपये प्रति किलो रही, वहीं नये सीजन में यह 125 से 140 रुपये के बीच खुलने की संभावना है। कीमतों में यह मजबूती 3 से 4 क्विंटल चाय की कमी के कारण आएगी। 2008 के लिए इंडियन टी एसोसिएशन (आईटीए) के हालिया अनुमानों के अनुसार, चाय का उत्पादन 96.2 करोड़ किलोग्राम, निर्यात 20 करोड़ किलोग्राम, आयात 2 करोड़ किलोग्राम और खपत 82.5 करोड़ किलोग्राम रहने का अनुमान है। साफ है कि 4.3 करोड़ किलोग्राम चाय की कमी होगी। आईटीए के अध्यक्ष आदित्य खेतान ने कहा कि निर्यात अधिक होने के कारण चाय की कमी हुई है। पिछले साल 17.9 करोड़ किलोग्राम चाय का निर्यात हुआ था। लेकिन दूसरे बाजारों से अलग भारतीय चाय उद्योग को भारी घरेलू मांग का सहारा हासिल है। इस उद्योग की विकास दर 3 से 3.3 प्रतिशत की है। उन्होंने कहा, 'अफ्रीकी मुद्दे को अतिरिक्त लाभ के तौर पर देखा जाना चाहिए।'सीटीसी के प्रमुख उत्पादक केन्या में चाय का उत्पादन 3.5 करोड़ किलोग्राम कम हुआ, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में होने वाली आपूर्ति पर प्रभाव पड़ा है। सितंबर अंत तक चाय का वैश्विक उत्पादन 63 लाख किलोग्राम की मामूली कमी आई थी।जहां केन्या में उत्पादन 3.5 करोड़ किलोग्राम कम हुआ, वहीं भारत और श्रीलंका को मिलाकर 4.60 करोड़ किलोग्राम कम उत्पादन हुआ। लेकिन सभी अफ्रीकी देशों के उत्पादन में कमी आई है।पिछले कुछ महीनों में भारतीय चाय की कीमतों में बढ़ोतरी हुई, लेकिन अगर महंगाई वृध्दि दर को शामिल कर देखें तो यह 1998 के चरम स्तर से कम ही है। अगर खाद्य पदार्थों की महंगाई दर को समायोजित करें तो कीमत 143.47 रुपये प्रति किलोग्राम होनी चाहिए। इसके विपरीत, उत्पादन लागत में प्रति किलोग्राम 33.41 रुपये प्रति किलो की बढ़ोतरी हुई, जो लगभग 60 प्रतिशत अधिक है।आईटीए के अनुसार, उद्योग के विकास के लिए वर्तमान कीमतों का चलन अगले कुछ सालों तक जारी रहना चाहिए। 2006 के मुकाबले 2007 के दौरान भारतीय चाय उद्योग को कम उत्पादन के साथ-साथ कम निर्यात का भी सामना करना पड़ा था। 2006 में चाय की रिकॉर्ड फसल के साथ-साथ निर्यात भी बढ़िया हुआ था। 1999 से मंदी से जूझ रहे चाय उद्योग को साल 2007 में थोड़ी राहत मिली थी। 2007 के उत्साहजनक संकेतों के साथ साल 2008 की शुरुआत हुई। ऐसा संभव है कि साल 2008 का अंत अभूतपूर्व कमी के साथ हों और मार्च के अंत या अप्रैल की शुरुआत में चाय रिकॉर्ड कीमतों के साथ खुले। (BS Hindi)
अनिवार्य डिलिवरी वाला सोने का कॉन्ट्रैक्ट आज से
नई दिल्ली December 28, 2008
नैशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) सोमवार को एक किलोग्राम सोने और 30 किलोग्राम चांदी के अनिवार्य डिलिवरी वाला अनुबंध लॉन्च करेगा।
गोल्ड इंटरनैशनल और सिल्वर इंटरनैशनल के नाम वाले ये अनुबंध पूरे साल उपलब्ध होंगे और इसमें कारोबार करने वाले कारोबारियों को मुख्य रूप से इससे चार फायदे होंगे। ये अनुबंध अंतरराष्ट्रीय सर्राफा अनुबंध की समाप्ति से ठीक पहले हर महीने अंतिम कारोबारी दिवस में पूरे होंगे।
(BS Hindi)
नैशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) सोमवार को एक किलोग्राम सोने और 30 किलोग्राम चांदी के अनिवार्य डिलिवरी वाला अनुबंध लॉन्च करेगा।
गोल्ड इंटरनैशनल और सिल्वर इंटरनैशनल के नाम वाले ये अनुबंध पूरे साल उपलब्ध होंगे और इसमें कारोबार करने वाले कारोबारियों को मुख्य रूप से इससे चार फायदे होंगे। ये अनुबंध अंतरराष्ट्रीय सर्राफा अनुबंध की समाप्ति से ठीक पहले हर महीने अंतिम कारोबारी दिवस में पूरे होंगे।
(BS Hindi)
राजनीतिक तनावों से अभी और खरा होगा सोना
मुंबई December 28, 2008
दक्षिण और पश्चिम एशिया के ताजा राजनीतिक संकट के चलते सोने में इस हफ्ते तेजी की संभावना है। जानकारों का मानना है कि अगले पखवाड़े में सोना 926 डॉलर प्रति औंस के पार चला जाएगा।
विशेषज्ञों के मुताबिक, निवेशक थोड़ा लाभ कमाना चाहते हैं और सोने ने साबित कर दिया है कि इसमें निवेश करने से 12-13 फीसदी तक का मुनाफा कमाया जा सकता है। वैसे भी इस साल इक्विटी, करेंसी, रियल एस्टेट आदि क्षेत्रों में निवेश से निवेशकों को नुकसान ही हुआ है। कार्वी कमोडिटी ब्रोकिंग प्राइवेट लिमिटेड के अशोक मित्तल ने कहा, ''मौजूदा परिस्थिति में सुरक्षित निवेश के लिए सोने की मांग एक बार फिर बढ़ रही है। सोने के कारोबारी इससे काफी उत्साहित हैं। उम्मीद है कि सोने के भाव बढ़ेंगे।'' ऐसे में उम्मीद है कि सोना 14 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम के पार चला जाएगा। विश्लेषकों का अनुमान है कि भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के चलते इस हफ्ते डॉलर 50 रुपये के स्तर को पार कर जाएगा।इस हफ्ते सोने में दो वजहों से तेजी आने की संभावना है। एक तो ये कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का भाव लगातार बढ़ रहा है। जबकि दूसरा यह कि रुपये में कमजोरी के आसार हैं। जानकारों के अनुसार यदि अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का भाव स्थिर रहा तो भी सोने की कीमत में तेजी आएगी। एंजेल ब्रोकिंग के कमोडिटीज प्रमुख नवीन माथुर के मुताबिक, मौजूदा राजनीतिक हालात में रुपया कमजोर होगा और इस वजह से सोने में नरमी आ सकती है। अनुमान यह भी है कि मकर संक्रांति के चलते त्योहारी खरीद बढ़ने से सोने की मांगों और कीमतों में बढ़ोतरी होगी। शादी-विवाह के चलते भी सोने की मांग बढ़ने का अनुमान है। उल्लेखनीय है कि भारत दुनिया भर में सोने का सबसे बड़ा खरीदार है। इस देश में पूरी दुनिया के 20 फीसदी सोने की खरीदारी होती है। 2008 में भारत में 800 टन से अधिक सोने का आयात हुआ जबकि 2007 में 754 टन सोने का आयात हुआ था।वैसे इस साल सोने का प्रदर्शन बेहतर रहा है। कमजोर डॉलर और कच्चे तेल में आ रही तेजी की वजह से सोना साल की शुरुआत से ही बढ़ना शुरू हुआ और 1,032.80 डॉलर प्रति औंस के रिकॉर्ड स्तर तक चला गया। इसके बाद अक्टूबर तक सोने में 33 फीसदी की गिरावट हुई और यह 681 डॉलर प्रति औंस के निम् स्तर तक पहुंच गया। हाजिर बाजार में सोने की मांग में आ रही तेजी और सुरक्षित निवेश के लिए सोने की मांग बढ़ने से इसकी कीमतों में तेजी आ रही है। इस बीच छुट्टियों के माहौल के बीच न्यू यॉर्क मकर्टाइल एक्सचेंज के कॉमेक्स डिवीजन में पिछले हफ्ते सोने में 4 फीसदी की तेजी हुई और भाव 871 डॉलर प्रति औंस के पार चला गया। इस महीने सोने में अब तक 6.4 फीसदी की तेजी आ चुकी है। मुंबई के हाजिर बाजार में स्टैंडर्ड सोना 12,810 रुपये से 13,440 रुपये प्रति 10 ग्राम तक चला गया है। शुद्ध सोने में भी तेजी आई और इसके भाव 12,870 रुपये प्रति 10 ग्राम से 13,500 रुपये तक चले गए।मल्टी कमोडटी एक्सचेंज में अप्रैल 09 अनुबंध का सोना 1.17 फीसदी की तेजी के साथ 13,111 रुपये प्रति 10 ग्राम तक चला गया। (BS Hindi)
दक्षिण और पश्चिम एशिया के ताजा राजनीतिक संकट के चलते सोने में इस हफ्ते तेजी की संभावना है। जानकारों का मानना है कि अगले पखवाड़े में सोना 926 डॉलर प्रति औंस के पार चला जाएगा।
विशेषज्ञों के मुताबिक, निवेशक थोड़ा लाभ कमाना चाहते हैं और सोने ने साबित कर दिया है कि इसमें निवेश करने से 12-13 फीसदी तक का मुनाफा कमाया जा सकता है। वैसे भी इस साल इक्विटी, करेंसी, रियल एस्टेट आदि क्षेत्रों में निवेश से निवेशकों को नुकसान ही हुआ है। कार्वी कमोडिटी ब्रोकिंग प्राइवेट लिमिटेड के अशोक मित्तल ने कहा, ''मौजूदा परिस्थिति में सुरक्षित निवेश के लिए सोने की मांग एक बार फिर बढ़ रही है। सोने के कारोबारी इससे काफी उत्साहित हैं। उम्मीद है कि सोने के भाव बढ़ेंगे।'' ऐसे में उम्मीद है कि सोना 14 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम के पार चला जाएगा। विश्लेषकों का अनुमान है कि भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के चलते इस हफ्ते डॉलर 50 रुपये के स्तर को पार कर जाएगा।इस हफ्ते सोने में दो वजहों से तेजी आने की संभावना है। एक तो ये कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का भाव लगातार बढ़ रहा है। जबकि दूसरा यह कि रुपये में कमजोरी के आसार हैं। जानकारों के अनुसार यदि अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का भाव स्थिर रहा तो भी सोने की कीमत में तेजी आएगी। एंजेल ब्रोकिंग के कमोडिटीज प्रमुख नवीन माथुर के मुताबिक, मौजूदा राजनीतिक हालात में रुपया कमजोर होगा और इस वजह से सोने में नरमी आ सकती है। अनुमान यह भी है कि मकर संक्रांति के चलते त्योहारी खरीद बढ़ने से सोने की मांगों और कीमतों में बढ़ोतरी होगी। शादी-विवाह के चलते भी सोने की मांग बढ़ने का अनुमान है। उल्लेखनीय है कि भारत दुनिया भर में सोने का सबसे बड़ा खरीदार है। इस देश में पूरी दुनिया के 20 फीसदी सोने की खरीदारी होती है। 2008 में भारत में 800 टन से अधिक सोने का आयात हुआ जबकि 2007 में 754 टन सोने का आयात हुआ था।वैसे इस साल सोने का प्रदर्शन बेहतर रहा है। कमजोर डॉलर और कच्चे तेल में आ रही तेजी की वजह से सोना साल की शुरुआत से ही बढ़ना शुरू हुआ और 1,032.80 डॉलर प्रति औंस के रिकॉर्ड स्तर तक चला गया। इसके बाद अक्टूबर तक सोने में 33 फीसदी की गिरावट हुई और यह 681 डॉलर प्रति औंस के निम् स्तर तक पहुंच गया। हाजिर बाजार में सोने की मांग में आ रही तेजी और सुरक्षित निवेश के लिए सोने की मांग बढ़ने से इसकी कीमतों में तेजी आ रही है। इस बीच छुट्टियों के माहौल के बीच न्यू यॉर्क मकर्टाइल एक्सचेंज के कॉमेक्स डिवीजन में पिछले हफ्ते सोने में 4 फीसदी की तेजी हुई और भाव 871 डॉलर प्रति औंस के पार चला गया। इस महीने सोने में अब तक 6.4 फीसदी की तेजी आ चुकी है। मुंबई के हाजिर बाजार में स्टैंडर्ड सोना 12,810 रुपये से 13,440 रुपये प्रति 10 ग्राम तक चला गया है। शुद्ध सोने में भी तेजी आई और इसके भाव 12,870 रुपये प्रति 10 ग्राम से 13,500 रुपये तक चले गए।मल्टी कमोडटी एक्सचेंज में अप्रैल 09 अनुबंध का सोना 1.17 फीसदी की तेजी के साथ 13,111 रुपये प्रति 10 ग्राम तक चला गया। (BS Hindi)
स्टील उद्योग ने की आयात शुल्क बढ़ाने की मांग
नई दिल्ली December 28, 2008
सरकार द्वारा दूसरे आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज की तैयारियों के बीच इस्पात उद्योग ने विदेशों से सस्ते इस्पात की आवक नियंत्रित करने के लिए प्रतिपूरक शुल्क लगाने तथा आयात शुल्क बढ़ाने की मांग की है।
सेल के प्रमुख एस. के. रूंगटा ने उद्योग की चिंताओं को सरकार के समक्ष रखा है। इसमें इस्पात उत्पादों पर 10 प्रतिशत आयात शुल्क लगाने तथा 4 प्रतिशत का विशेष अतिरिक्त शुल्क लगाने की मांग की गई है ताकि घरेलू उद्योग को बचाया जा सके। वैश्विक आर्थिक गिरावट के चलते चीन एवं यूक्रेन आदि देशों की स्टील कंपनियों ने अपने भंडार घटाने शुरू कर दिए हैं और वे भारत को भारी निर्यात कर रही हैं। इसके मद्देनजर घरेलू विनिर्माता आयात शुल्क लगाने की मांग कर रहे हैं। सरकार ने इस्पात उत्पादों पर पांच प्रतिशत का आयात शुल्क लगाया है, जिसे उद्योग जगत ने अपर्याप्त बताया है।इस्पात उद्योग से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि पांच फीसदी का शुल्क भारत में सस्ते आयात को नियंत्रित नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि इससे भारत सस्ते स्टील से पट जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार को अन्य बातों के अलावा 20 फीसदी का आयात शुल्क लगाने पर विचार करना चाहिए।आधारभूत संरचना और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में स्टील की मांग घटी है क्योंकि आर्थिक मंदी का इन पर गहरा असर पड़ा है। जिंदल स्टील के निदेशक सुशील मारू ने कहा कि केंद्रीय बिक्री कर की समाप्ति के अलावा सरकार को उत्पाद शुल्क भी घटाना चाहिए।उन्होंने कहा कि आरबीआई को सिस्टम में और रकम उपलब्ध कराने का प्रयास करना चाहिए ताकि स्टील का इस्तेमाल करने वाले सेक्टर के लिए पर्याप्त क्रेडिट मुहैया हो सके। जिंदल स्टील के निदेशक ने कहा कि फिलहाल लॉन्ग प्रॉडक्ट पर काउंटरवेलिंग डयूटी नहीं लगती, लेकिन अब इसे लगाई जानी चाहिए। साथ ही इस जिंस पर आयात शुल्क भी बढ़ाया जाना चाहिए। बीजिंग ओलंपिक के समय भारतीय स्टील निर्माताओं ने काफी चांदी काटी थी क्योंकि उस समय मांग बढ़ गई थी और इस वजह से कीमत भी काफी ऊंची चली गई थी। साल की दूसरी छमाही में स्टील में करीब 60 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी क्योंकि मांग काफी घट गई थी और इस वजह से निर्माताओं ने सरकार से मदद की गुहार लगाई थी। इससे पहले अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्टील की कीमत 1250 डॉलर प्रति टन के स्तर पर पहुंच गई थी, लेकिन अब यह 550 डॉलर प्रति टन के आसपास घूम रही है। (BS Hindi)
सरकार द्वारा दूसरे आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज की तैयारियों के बीच इस्पात उद्योग ने विदेशों से सस्ते इस्पात की आवक नियंत्रित करने के लिए प्रतिपूरक शुल्क लगाने तथा आयात शुल्क बढ़ाने की मांग की है।
सेल के प्रमुख एस. के. रूंगटा ने उद्योग की चिंताओं को सरकार के समक्ष रखा है। इसमें इस्पात उत्पादों पर 10 प्रतिशत आयात शुल्क लगाने तथा 4 प्रतिशत का विशेष अतिरिक्त शुल्क लगाने की मांग की गई है ताकि घरेलू उद्योग को बचाया जा सके। वैश्विक आर्थिक गिरावट के चलते चीन एवं यूक्रेन आदि देशों की स्टील कंपनियों ने अपने भंडार घटाने शुरू कर दिए हैं और वे भारत को भारी निर्यात कर रही हैं। इसके मद्देनजर घरेलू विनिर्माता आयात शुल्क लगाने की मांग कर रहे हैं। सरकार ने इस्पात उत्पादों पर पांच प्रतिशत का आयात शुल्क लगाया है, जिसे उद्योग जगत ने अपर्याप्त बताया है।इस्पात उद्योग से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि पांच फीसदी का शुल्क भारत में सस्ते आयात को नियंत्रित नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि इससे भारत सस्ते स्टील से पट जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार को अन्य बातों के अलावा 20 फीसदी का आयात शुल्क लगाने पर विचार करना चाहिए।आधारभूत संरचना और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में स्टील की मांग घटी है क्योंकि आर्थिक मंदी का इन पर गहरा असर पड़ा है। जिंदल स्टील के निदेशक सुशील मारू ने कहा कि केंद्रीय बिक्री कर की समाप्ति के अलावा सरकार को उत्पाद शुल्क भी घटाना चाहिए।उन्होंने कहा कि आरबीआई को सिस्टम में और रकम उपलब्ध कराने का प्रयास करना चाहिए ताकि स्टील का इस्तेमाल करने वाले सेक्टर के लिए पर्याप्त क्रेडिट मुहैया हो सके। जिंदल स्टील के निदेशक ने कहा कि फिलहाल लॉन्ग प्रॉडक्ट पर काउंटरवेलिंग डयूटी नहीं लगती, लेकिन अब इसे लगाई जानी चाहिए। साथ ही इस जिंस पर आयात शुल्क भी बढ़ाया जाना चाहिए। बीजिंग ओलंपिक के समय भारतीय स्टील निर्माताओं ने काफी चांदी काटी थी क्योंकि उस समय मांग बढ़ गई थी और इस वजह से कीमत भी काफी ऊंची चली गई थी। साल की दूसरी छमाही में स्टील में करीब 60 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी क्योंकि मांग काफी घट गई थी और इस वजह से निर्माताओं ने सरकार से मदद की गुहार लगाई थी। इससे पहले अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्टील की कीमत 1250 डॉलर प्रति टन के स्तर पर पहुंच गई थी, लेकिन अब यह 550 डॉलर प्रति टन के आसपास घूम रही है। (BS Hindi)
'कच्चे पाम तेल पर आयात शुल्क न थोपे सरकार'
नई दिल्ली December 28, 2008
कच्चे पाम तेल पर फिर से आयात शुल्क लगाए जाने की संभावना पर वनस्पति तेल निर्माताओं ने ऐतराज जताया है। वनस्पति तेल निर्माताओं ने कहा है कि सरकार के इस कदम से घरेलू बाजार में यह उत्पाद महंगा हो सकता है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपे एक संयुक्त ज्ञापन में वनस्पति मैन्यूफैक्चरर्स एसोसियशन (वीएमए) और इंडियन वनस्पति प्रोडयूसर्स एसोसियशन (आईवीपीए) ने कहा है कि जब सारे तिलहनों के बाजार भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊपर चल रहे हों तब कच्चे पाम तेल के आयात शुल्क में बढ़ोतरी करना उचित नहीं होगा। मालूम हो कि वनस्पति तैयार करने में कच्चे पाम तेल का खूब इस्तेमाल होता है। उल्लेखनीय है कि अप्रैल में केंद्र सरकार ने रिफाइंड तेलों पर आयात शुल्क घटाकर 7.5 फीसदी तक सीमित कर दिया और कच्चे तेलों पर इस शुल्क को बिल्कुल ही सीमित कर दिया। हाल में कच्चे सोयाबीन तेल के आयात पर 20 फीसदी का शुल्क थोप दिया, हालांकि कच्चे पाम तेल का आयात इस प्रभाव से अछूता रहा। गौरतलब है कि सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसियशन के प्रतिनिधिमंडल ने पिछले हफ्ते वाणिज्य मंत्री कमलनाथ से मुलाकात कर कच्चे पाम तेल पर आयात शुल्क लगाने की मांग की थी।वनस्पति तेल निर्माता उद्योग जगत के इस धड़े की मांग से असहमत है। कच्चे पाम तेल सहित इस समूह के अन्य तेलों का खाद्य तेलों के कुल आयात में 85 फीसदी की हिस्सेदारी है। देश में हर साल तकरीबन 63 लाख टन खाद्य तेलों का आयात होता है।वनस्पति तेल निर्माताओं का कहना है कि पाम तेल पर आयात शुल्क बढ़ा तो श्रीलंका और नेपाल से सस्ते वनस्पति तेलों की आवक बढ़ जाएगी। इसका घरेलू वनस्पति तेल उद्योग पर नकारात्मक असर पड़ेगा। इनका कहना है कि मूंगफली तेल की कीमत 2007 में 65 रुपये प्रति किलो से घटकर 61 रुपये प्रति किलो तक आ गई है। वहीं सोयाबीन तेल की कीमत तब के 46.80 रुपये से गिरकर 42.50 रुपये तक आ गई है। लेकिन पिछले साल भर में सरसों और तिल की कीमतों में वृद्धि हुई है। फिलहाल सरसों तेल का थोक भाव 61.50 रुपये प्रति किलो है जो पिछले साल 52.80 रुपये थी। (BS Hindi)
कच्चे पाम तेल पर फिर से आयात शुल्क लगाए जाने की संभावना पर वनस्पति तेल निर्माताओं ने ऐतराज जताया है। वनस्पति तेल निर्माताओं ने कहा है कि सरकार के इस कदम से घरेलू बाजार में यह उत्पाद महंगा हो सकता है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपे एक संयुक्त ज्ञापन में वनस्पति मैन्यूफैक्चरर्स एसोसियशन (वीएमए) और इंडियन वनस्पति प्रोडयूसर्स एसोसियशन (आईवीपीए) ने कहा है कि जब सारे तिलहनों के बाजार भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊपर चल रहे हों तब कच्चे पाम तेल के आयात शुल्क में बढ़ोतरी करना उचित नहीं होगा। मालूम हो कि वनस्पति तैयार करने में कच्चे पाम तेल का खूब इस्तेमाल होता है। उल्लेखनीय है कि अप्रैल में केंद्र सरकार ने रिफाइंड तेलों पर आयात शुल्क घटाकर 7.5 फीसदी तक सीमित कर दिया और कच्चे तेलों पर इस शुल्क को बिल्कुल ही सीमित कर दिया। हाल में कच्चे सोयाबीन तेल के आयात पर 20 फीसदी का शुल्क थोप दिया, हालांकि कच्चे पाम तेल का आयात इस प्रभाव से अछूता रहा। गौरतलब है कि सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसियशन के प्रतिनिधिमंडल ने पिछले हफ्ते वाणिज्य मंत्री कमलनाथ से मुलाकात कर कच्चे पाम तेल पर आयात शुल्क लगाने की मांग की थी।वनस्पति तेल निर्माता उद्योग जगत के इस धड़े की मांग से असहमत है। कच्चे पाम तेल सहित इस समूह के अन्य तेलों का खाद्य तेलों के कुल आयात में 85 फीसदी की हिस्सेदारी है। देश में हर साल तकरीबन 63 लाख टन खाद्य तेलों का आयात होता है।वनस्पति तेल निर्माताओं का कहना है कि पाम तेल पर आयात शुल्क बढ़ा तो श्रीलंका और नेपाल से सस्ते वनस्पति तेलों की आवक बढ़ जाएगी। इसका घरेलू वनस्पति तेल उद्योग पर नकारात्मक असर पड़ेगा। इनका कहना है कि मूंगफली तेल की कीमत 2007 में 65 रुपये प्रति किलो से घटकर 61 रुपये प्रति किलो तक आ गई है। वहीं सोयाबीन तेल की कीमत तब के 46.80 रुपये से गिरकर 42.50 रुपये तक आ गई है। लेकिन पिछले साल भर में सरसों और तिल की कीमतों में वृद्धि हुई है। फिलहाल सरसों तेल का थोक भाव 61.50 रुपये प्रति किलो है जो पिछले साल 52.80 रुपये थी। (BS Hindi)
Rice procurement may dip marginally to 281 lakh tonnes this yr
New Delhi, Dec 28 (PTI) Bolstered by a record riceproduction in the Kharif season, the Centre has projected toexceed the procurement target by six lakh tonnes at 282 lakhtonnes during the 2008-09 season. "We estimate to procure not less than 282 lakh tonnes ofrice in 2008-09 season," a senior government official said. The government has set a target of 276 lakh tonnes forthe 2008-09 marketing season, which runs from October toSeptember.However, the estimated procurement is less than thelast year' & chr(39) & 's purchase of 284.93 lakh tonnes. According to the government' & chr(39) & 's first advance estimate forKharif 2008-09, rice production is projected at record 83.26million tonnes. India produced a record 96.43 million tonnesin the entire 2007-08 season. The procurement from Punjab is likely to touch 85 lakhtonnes, the highest among states, the official said. Andhra Pradesh is likely to contribute 55 lakh tonnes tothe central pool, while the procurement is estimated at 32lakh tonnes in Uttar Pradesh, 24 lakh tonnes in Chhattisgarh,27 lakh in Orissa, 16 lakh in West Bengal and 13 lakh tonnesin Haryana. The purchase of rice for the central pool has alreadyreached 143.27 lakh tonnes as on December 24 against 118.09lakh tonnes in the year-ago period. In order to boost procurement, the Centre has announced abonus of Rs 50 a quintal on paddy, which is over and above theminimum support prices of Rs 850 a quintal for the commonvariety and Rs 880 a quintal for the grade A variety. Meanwhile, rice procurement in Punjab and Haryana hasnearly completed with very little arrival of paddy in themandis. But the purchases are in full swing in Andhra Pradesh,Uttar Pradesh, Chhattisgarh and Orissa. PTI
Vanaspati industry petitions govt against any duty on CPO
New Delhi, Dec 28 (PTI) Apprehensive of re-imposition ofduty on crude palm oil, vanaspati manufacturers have asked thegovernment to desist from such a move as it could lead tohigher prices of cooking oil. In a joint memorandum to Prime Minister Manmohan Singh,Vanaspati Manufacturers Association (VMA) and Indian VanaspatiProducers Association (IVPA) said that since prices of majoroilseeds are ruling above their minimum support prices, thesituation does not warrant any hike in custom duty on crudepalm oil, a major raw material in vanaspati making. The Centre in April had reduced import duty on refinedoils to 7.5 per cent and abolished customs duty on crudeedible oils. But recently it imposed 20 per cent duty on crudesoyabean oil while crude palm oil was not touched. Mumbai-based Solvent Extractors Association last week metCommerce Minister Kamal Nath to demand imposition of customsduty on crude palm oil. The vanaspati producers said groundnut seed is ruling atRs 2,250 a quintal in Saurashtra in Gujarat, a major growingregion, against its MSP of Rs 2,100 a quintal, while soyabeanprice is at Rs 1,800 a quintal compared to its MSP of Rs 1,390a quintal. Crude palm oil and other palm group of oils constituteabout 85 per cent of India' & chr(39) & 's import basket as the country buysover 63 lakh tonnes of vegetable oils in a year. The vanaspati makers alleged that a section of theindustry is demanding imposition of duty on crude palm oil "tomake speculative profits in the stocks of soyabean seeds andgroundnut shells hoarded by them." They fear that re-imposition of duty would open floodgates for cheaper vanaspati from Sri Lanka and Nepal, whichmay adversely affect the domestic manufacturers. Vanaspati producers said groundnut oil prices havedeclined to Rs 61 per kg from Rs 65 a kg in 2007 in wholesalemarket while soyabean oil prices have come down to Rs 42.50 akg from Rs 46.80. But rates of mustard oil and sesame (til)oil have increased in last one year. The wholesale price of mustard oil is Rs 61.50 a kgcompared to Rs 52.80 a kg last year and that of sesame oil isRs 74 a kg from Rs 54 a kg, they said. "The overall prices of edible oils are somewhat atreasonable levels due to the affordable prices of RBDPalmolein," the memorandum said, and added that retail pricesof cooking oil vary between Rs 60 and Rs 125 per kg. PTI
देश के पास दो साल का खाद्यान्न: पवार
28 दिसम्बर 2008वार्तादेहरादून। केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार का कहना है कि देश में दो वर्ष की आवश्यकता के लिए खाद्यान्न उपलब्ध है। राज्यों को उनकी मांग के अनुसार तत्काल अतिरिक्त खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाएगा।पवार आज पन्तनगर विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय कृषि विज्ञान केन्द्रों के तीसरे सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रुप में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि किसानों और कृषि वैज्ञानिकों के प्रयास से देश की आजादी के बाद गत वर्ष सर्वाधिक कृषि उत्पादन हुआ है। उन्होंने वैज्ञानिको से कहा कि वे नए अनुसंधान तकनीक और बीजों को किसानों के खेतों तक ले जाकर उत्पादन दर को और बढ़ाने का प्रयास करें।पवार ने कहा कि सरकार द्वारा कृषि को सर्वाधिक प्राथमिकता देते हुए अनेक योजनाएं शुरू की गई हैं। नई तकनीक को किसानों तक पहुंचाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा देश में कृषि विज्ञान केन्द्र स्थापित किए गए हैं। देश के क्षेत्रफल के हिसाब से राज्यों में नवसृजित 28 जिलों तथा अन्य 50 बड़े जिलो में ऐसे और केन्द्र खोले जाने की योजना है। 25 हजार करोड़ रुपए की लागत से राष्ट्रीय कृषि योजना और छह हजार करोड़ रुपए की लागत से राष्ट्रीय खाद्यान्न सुरक्षा मिशन स्थापित किया गया है। पवार ने कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए जल प्रबंधन मिट्टी की गुणवत्ता बनाए रखने तथा फसलों को बीमारी से बचाने पर जोर दिया।
28 दिसंबर 2008
मूंगफली, सूरजमुखी के दाम घटकर एमएसपी से भी नीचे
देश में तेज़ी से बढ़ते सस्ते खाद्य तेलों के आयात के चलते मूंगफली और सूरजमुखी के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के नीचे आ गये हैं। इसके बावजूद सरकार खाद्य तेलों के आयात पर शुल्क नहीं लगा रही है। कृषि मंत्री शरद पवार लगातार बात कहते रहे है कि सोयाबीन के दाम एमएसपी से नीचे आने पर ही क्रूड पाम तेल पर आयात शुल्क लगाया जाएगा। अभी सोयाबीन के भाव एमएसपी से ऊपर चल रहे हैं। राजकोट से खाद्य तेलों के व्यापारी दयालाल भाई के अनुसार हाजिर बाजार में मांग में कमी के चलते पिछले दस दिनों में खाद्य तेलों के दामों में गिरावट आई है। शुक्रवार को राजकोट हाजिर बाजार में मूंगफली के दाम कम होकर एमएसपी (2100 रुपये) के नीचे 1950 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। दो हफ्तों पहले मूंगफली के भाव 2130 रुपये प्रति क्विंटल थे। इस बीच सूरजमुखी के भी दाम कम होकर 2160 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। वर्ष 2008-09 के लिए सूरजमुखी का एमएसपी 2215 रुपये प्रति क्विंटल है। ईना ऑयल एंड केमिकल्स के प्रबंध निदेशक गौरव सेकरी ने बताया कि देश में उपलब्ध सूरजमुखी तेल के मुकाबले आयातित तेल सस्ता पड़ता है। यदि सरकार इस पर आयात शुल्क नहीं लगाती तो मिलर यहां से सूरजमुखी बीज खरीदना बंद कर देंगे। इससे आगे भी गिरावट के आसार हैं। अभी आयातित सूरजमुखी तेल के दाम 36 रुपये प्रति किलो हैं जबकि घरेलू बाजार में इसके थोक भाव 46 रुपये प्रति किलो के स्तर पर हैं। इस साल नवंबर महीने में 8000 टन सूरजमुखी तेल का आयात हुआ है जबकि नवंबर 2007 में सूरजमुखी का कोई आयात नहीं हुआ था। इसके अलावा इस साल नवंबर महीने में खाद्य तेलों का कुल आयात पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 49 फीसदी बढ़कर 5,19,032 टन हुआ है। नवंबर 2007 में खाद्य तेलों का आयात 347320 टन हुआ था। आयात में मुख्य रूप से कच्चे पाम तेल का आयात बढ़ा है। इस अवधि में आरबीडी पामोलीन तेल का आयात 1,00,000 टन बढ़कर 1,37,959 टन हुआ है। क्रूड पाम तेल का आयात 12 फीसदी बढ़कर 363578 टन हुआ है।आयात में यह बढ़ोतरी क्रूड पाम तेल पर कोई आयात शुल्क न होने के कारण हुई है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के कार्यकारी निदेशक बी. वी. मेहता ने बताया कि हम सरकार से लगातार मांग कर रहे है कि खाद्य तेलों पर आयात शुल्क लगाया जाए। यदि ऐसा नहीं होगा तो देश में सस्ते खाद्य तेलों का आयात बढ़ता ही जाएगा। इस साल नवंबर में केंद्र सरकार ने क्रूड सोया तेल पर 20 फीसदी का आयात शुल्क लगाया है। अन्य किसी भी क्रूड खाद्य तेल पर कोई शुल्क नही है। इस समय सभी रिफाइंड खाद्य तेलों पर 7.5 फीसदी का आयात शुल्क लगता है। (BS Hindi)
निर्यात घटने से मेंथा स्टॉकिस्टों की तेजी की हवा निकल गई
स्टॉकिस्टों की बिकवाली बढ़ने से मेंथा तेल में पिछले एक सप्ताह में करीब 63 रुपये प्रति किलो की भारी गिरावट आ चुकी है। चालू वित्त वर्ष में मेंथा तेल का निर्यात करीब 15 फीसदी घटने से यह गिरावट (जैसा कि बिजनेस भास्कर ने 19 दिसंबर के अंक में संभावना व्यक्त की थी) दर्ज की गई है। उत्पादन में बढ़ोतरी व बकाया स्टॉक मिलाकर कुल उपलब्धता खपत के मुकाबले ज्यादा होने के बावजूद एक सप्ताह पूर्व स्टॉकिस्ट कृत्रिम तेजी लाने में सफल रहे थे। लेकिन मांग का समर्थन न मिलने से उक्त तेजी स्थिर नहीं रह पाई। एसेंशिएल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष जुगल किशोर ने बिजनेस भास्कर को बताया कि यूरोप में क्रिसमस और नए साल की छुट्टियां शुरू हो गई हैं इसलिए अब निर्यात के नए सौदे 15 जनवरी के बाद ही होने की संभावना है। पिछले दिनों निर्यातकों ने मेंथा तेल (क्रिस्टल बोल्ड) के भाव बढ़ाकर 16.50 डॉलर प्रति किलो (सीएंडएफ) बोलने शुरू कर दिए थे लेकिन इन भावों में कोई सौदे नहीं हुए। पुराने सौदे 15 डॉलर प्रति किलो (सीएंडएफ) की दर पर ही हुए हैं इसलिए तेजी टिक नहीं पाई। उन्होंने बताया कि चूंकि क्रिसमस व नए साल की छुट्टियों शुरू हो चुकी हैं इसलिए इसके मौजूदा भावों में 20 से 30 रुपये प्रति किलो की और गिरावट आ सकती है।संभल के मेंथा व्यापारी अनुराग रस्तोगी ने बताया कि निर्यात मांग में कमी आने और स्टॉकिस्टों द्वारा बिकवाली बढ़ा देने से पिछले एक सप्ताह में हाजिर बाजार में मेंथा तेल के भाव में 63 रुपये की गिरावट आकर चंदौसी मंडी में भाव 577 रुपये और संभल मंडी में भाव म्त्तस्त्र रुपये प्रति किलो रह गए। उन्होंने बताया कि चालू वित्त वर्ष में मेंथा तेल का उत्पादन 24,000 से 25,000 टन व बकाया स्टॉक 8,000 टन मिलाकर कुल उपलब्धता 32,000 से 33,000 टन की है जबकि विश्व में मेंथा तेल की कुल खपत मात्र 27,000 से 28,000 टन की होती है। ऐसे में तेजी की संभावना तो नहीं है लेकिन स्टॉकिस्टों की सक्रियता होने के कारण भावों में उठापटक आगामी दिनों में भी जारी ही रहेगी।प्रमुख उत्पादक मंडियों चंदौसी, संभल व बाराबंकी में मेंथा तेल की दैनिक आवक बढ़कर 300 से 350 ड्रमों (एक ड्रम 180 किलो) की हो गई है जबकि पिछले दिनों इसकी आवक सिर्फ 200 से 250 ड्रमों की ही हो रही थी। स्टॉकिटों के पास ऊचे भाव का मंेथा तेल का स्टॉक रखा हुआ है। भारतीय मसाला बोर्ड के सूत्रों के अनुसार चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से अक्टूबर तक मैंथा (क्रिस्टल बोल्ड) के निर्यात में 15 फीसदी की गिरावट आकर कुल निर्यात 11,500 टन का ही हुआ है। पिछले वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 13,505 टन का हुआ था। (Business Bhaskar.....R S Rana)
चीनी निर्यात के लिए मिलों को और मोहलत दे सकता है केंद्र
केंद्र सरकार चीनी मिलों को 31 दिसंबर के बाद खाद्य मंत्रालय की अनुमति के बिना चीनी निर्यात करने की मंजूरी दे सकती है। सरकार ने खाद्य मंत्रालय की पूर्व अनुमति के बिना चीनी निर्यात करने की अनुमति 30 सितंबर से बढ़ाकर 31 दिसंबर कर दी थी।चीनी मिलों को निर्यात के लिए एक और तारीख मिलने की संभावना के बार में एक वरिष्ठ अधिकारी से पूछे जाने पर उसने कहा कि यह संभव है। अधिकारी ने बताया कि इस साल चीनी का ज्यादा निर्यात नहीं हो रहा है। चीनी मिलों को अतिरिक्त स्टॉक अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचकर मदद देने के लिए सरकार ने शुगर सीजन वर्ष 2007-08 में रिलीज ऑर्डर के बिना ओपन जनरल लाइसेंस के तहत चीनी निर्यात करने की अनुमति दी थी। रिलीज ऑर्डर की अनिवार्यता समाप्त कर दी थी। निर्यात के पिछले प्रावधान के तहत चीनी मिलों और व्यापारियों को चीनी निर्यात के लिए खाद्य मंत्रालय से रिलीज ऑर्डर लेना होता था। उद्योग के जानकारों का भी मानना हैकि सरकार बिना रिलीज ऑर्डर चीनी निर्यात करने के लिए थोड़े और समय की मोहलत दे सकती हैं क्योंकि देश में करीब 110 लाख टन का बड़ा स्टॉक बचा है। चीनी निर्यात नियंत्रित करने की अभी कोई जरूरत नहीं है। उद्योग का अनुमान है कि नए सीजन में चीनी उत्पादन सिर्फ 10 से 15 लाख टन घट सकता है। पिछले सीजन में देश से 45-50 लाख टन चीनी निर्यात किया गया। चालू वर्ष में गन्ने के बुवाई क्षेत्रफल में कमी व गन्ने में रिकवरी कम आने से चीनी का उत्पादन घटने से के आसार हैं। (Business Bhaskar)
जनवरी में महंगाई के दांत खट्टे करेंगे आटा-दाल
नई दिल्ली: लगातार सातवें हफ्ते में महंगाई दर के घटने का असर दिल्ली में भी खाद्यान्न की कीमतों पर नजर आ रहा है। गेहूं, दाल, चावल आटा और बेसन जैसी खाने की प्रमुख चीजों के दाम दिल्ली की थोक मंडियों में पिछले एक महीने में 10 से 20 फीसदी तक घटे हैं। मंडी के सूत्रों का कहना है कि सर्दियों में सब्जियों का अच्छा उत्पादन होने से दालों पर दबाव कम हुआ है। इसके अलावा जनवरी में शादियों का सीजन नहीं होने से कीमतें और नीचे आएंगी। वहीं अगली फसल की उपज आने और सरकार की तरफ से गेहूं का कोटा दिए जाने से आम चुनाव तक कीमतें नीचे आने का ढर्रा जारी रहने का अनुमान भी कारोबारी लगा रहे हैं। थोक मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई दर 13 दिसंबर को खत्म हफ्ते में घट कर 6.61 फीसदी रह गई। यह इस साल के 12.91 फीसदी के उच्चतम स्तर से तकरीबन आधी होकर पिछले नौ महीनों के निमन्तम स्तर पर आ गई है। दिल्ली दाल मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक गुप्ता ने ईटी को बताया, 'दालों की कीमतें लगातार नीचे आ रही हैं। पिछले एक महीने में ही थोक बाजार में अरहर 47 रुपए से 42 रुपए किलो, मूंग 47 रुपए से 40 रुपए और चना 27 रुपए से 23 रुपए किलो के स्तर पर आ गया है। दिसंबर का मौजूदा ट्रेंड 15 जनवरी तक आसानी से जारी रह सकता है। इस दौरान शादी का सीजन नहीं होने से मांग में कमी ही आएगी।' दिल्ली में रोजाना एक से सवा लाख क्विंटल खाद्यान्न की खपत होती है। गुप्ता ने कहा, 'बेसन की कीमतें भी 30 रुपए किलो से घटकर 27-28 रुपए किलो के स्तर पर आ गई हैं। दालों और चने की कीमतों में इस मौसम में कमी आना इसलिए भी स्वाभाविक है क्योंकि सब्जियों की भरमार है और आमतौर पर लोग दाल पर ज्यादा जोर नहीं दे रहे हैं। इसके अलावा गेहूं और आटा की कीमतें भी कम होंगी। इस समय सरकार भी गेहूं का पर्याप्त कोटा रोलर मिलों को दे रही है।' दिल्ली ग्रेन मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष ओमप्रकाश जैन ने बताया, 'आटा-दाल के साथ चावल की कीमतें भी नीचे आ रही हैं। इस साल बासमती चावल ने 95 रुपए, चावल 11-31 ने 75 रुपए और सुगंधा चावल ने 55 रुपए किलो तक के उच्चतम स्तर देखे हैं। लेकिन इन चावलों की कीमतें इस समय क्रमश: 65, 45 और 22-24 रुपए किलो के स्तर पर आ गई हैं। धान की फसल अच्छी रहने आने वाले समय में भी चावल में किसी तरह की तेजी का अनुमान नहीं है।' खुदरा बाजार में दालों की कीमतों में उतनी कमी नहीं दिखने के सवाल पर गुप्ता ने कहा, 'एक किलो दाल की ढुलाई वगैरह पर रीटेलर को औसतन पांच रुपए का खर्च आता है। इसके अलावा दिल्ली में महंगे किराए पर दुकान चला रहे दुकानदार 20 से 25 फीसदी तक मार्जिन पर काम कर रहे हैं। ऐसे में थोक में 40 रुपए प्रति किलो की दाल आम उपभोक्ता तक पहुंचते-पहुंचते 47 से 48 रुपए किलो तक हो जाती है। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि तुलनात्मक रूप से वहां भी कीमतें कम हो रही हैं।' बाजार के सूत्रों ने बताया कि सरकार ने पिछले साल तीन लाख बोरी गेहूं का कोटा जारी किया था। इस बार कोटे को बढ़ाकर चार लाख बोरी से अधिक कर दिया गया है। हालांकि कीमतों में आ रही गिरावट के कारण व्यापारी सरकारी गेहूं खरीदने में खास दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है। लेकिन अच्छी फसल और सरकार की तरफ से गेहूं की उपलब्धता से कीमतों में वृद्धि कोई गुंजाइश नहीं है। कारोबारियों का मानना है कि अगले साल होने वाले आम चुनाव तक सरकार किसी भी स्थिति में खाद्यान्न की कमी नहीं होने देगी और खाने की सभी चीजों की कीमतों में गिरावट का रुख बना रह सकता है। (ET Hindi)
कच्चे हीरे के आयात पर रोक की अपील जीजेईपीसी ने ली वापिस
नई दिल्ली 12 26, 2008
रत्न और आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद(जीजेईपीसी) ने मंदी की वजह से एक महीने पहले जो अपील की थी अब उसे सर्वसम्मति से वापिस ले लिया है।
इस अपील में एक महीने तक कच्चे हीरे के आयात पर रोक लगाने की बात की गई थी। गौरतलब है कि परिषद ने वैश्विक बाजार खासकर अमेरिका में आई मांग की कमी के चलते 25 नवंबर को यह फैसला लिया था।
इस एक महीने के दौरान परिषद के सदस्यों ने हालात का बहुत बारीकी से विश्लेषण किया। परिषद के अध्यक्ष वसंत मेहता का कहना है कि वैश्विक मंदी की वजह से अभी भी हालत सुधरे नहीं हैं।
उनके मुताबिक अमेरिका में बिक्री में गिरावट की वजह से इस कारोबार पर बहुत असर पड़ा है। परिषद इस पूरी स्थिति पर नजर रखे हुए है और इस मामले में जो भी जरूरी कदम उठाने होंगे, परिषद उठाएगी। (BS Hindi)
रत्न और आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद(जीजेईपीसी) ने मंदी की वजह से एक महीने पहले जो अपील की थी अब उसे सर्वसम्मति से वापिस ले लिया है।
इस अपील में एक महीने तक कच्चे हीरे के आयात पर रोक लगाने की बात की गई थी। गौरतलब है कि परिषद ने वैश्विक बाजार खासकर अमेरिका में आई मांग की कमी के चलते 25 नवंबर को यह फैसला लिया था।
इस एक महीने के दौरान परिषद के सदस्यों ने हालात का बहुत बारीकी से विश्लेषण किया। परिषद के अध्यक्ष वसंत मेहता का कहना है कि वैश्विक मंदी की वजह से अभी भी हालत सुधरे नहीं हैं।
उनके मुताबिक अमेरिका में बिक्री में गिरावट की वजह से इस कारोबार पर बहुत असर पड़ा है। परिषद इस पूरी स्थिति पर नजर रखे हुए है और इस मामले में जो भी जरूरी कदम उठाने होंगे, परिषद उठाएगी। (BS Hindi)
इस बार विदेश से कम मंगानी होगी दाल
इस बार विदेश से कम मंगानी होगी दाल
सुशील मिश्र / मुंबई December 26, 2008
चालू रबी सीजन के दौरान दलहन का रकबा बढ़ने और चना के रकबे में रिकॉर्ड बढ़ोतरी की खबरों ने इस बार आयात पर निर्भरता कम होने की उम्मीद जगा दी है।
चना उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्य राजस्थान और उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों से हल्की बारिश होने के कारण चना की मौजूदा फसल काफी जोरदार दिखाई देने लगी है। चालू सीजन में दलहन की कुल बुआई क्षेत्र में 14 फीसदी और चने के बुआई क्षेत्र में 16 फीसदी से ज्यादा की वृदि होने के साथ ही साथ अभी तक दलहन के लिए मौसम का मिजाज भी ठीक होने के वजह से दलहन के कुल उत्पादन में 20 फीसदी तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है। देश में पैदा होने वाले कुल दलहन में 60 फीसदी हिस्सेदारी चना और अरहर की रहती है। ये दोनों फसल मुख्यत: रबी सीजन की है। पिछले कुछ सालों से दलहन का उत्पादन आशानुरूप न होने की वजह इन दोनों फसलों की पैदावार में बढ़ोत्तरी न के बराबर होना माना जा रहा है। चना की पैदावार 2005 में 54.7 लाख टन थी जो तीन वर्षो के दौरान सिर्फ 13.35 फीसदी बढ़कर 2008 में 6.20 मीट्रिक टन हुआ था। यही हाल अरहर का रहा है। 2005 में अरहर का उत्पादन 23.5 लाख टन था और तीन साल बाद 2008 में 29.0 लाख टन उत्पादन हो सका।दलहन की प्रमुख फसलों में उत्पादन कम होने की वजह से विदेशों की ओर देश को साल दर साल ज्यादा झाकना पड़ता है। लेकिन कृषि मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक इस बार रबी सीजन में दलहन की बुआई पिछले साल के 95.50 लाख हेक्टेयर से इस बार 14.23 फीसदी बढ़ाकर 109.09 लाख हेक्टेयर में की गई है। इस सीजन की प्रमुख दलहन फसल चना के बुवाई में रिकॉर्ड 16.03 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। इस बार चना की बुवाई 71.07 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में हुई है जबकि पिछले साल यह एरिया 61.25 लाख हेक्टेयर ही था।पल्सेस इंपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष के सी भरतीया के अनुसार पिछले कुछ सालों से दलहन की पैदावार में वृध्दि आशानुरुप नहीं हुई है। साल दर साल देश में दलहन की मांग भी बढ़ती जा रही है जिसकी मुख्य वजह बढ़ती जनसंख्या को मानते हैं। इस समय हमारी जरूरत का 15 फीसदी हिस्सा आयात से पूरा किया जाता है। जिस तरह की अभी तक खबरें आ रही है अगर ये ऐसी ही रही तो इस बार आयात में कमी होना तय है। हांलाकि अभी से अनुमान लगाना थोड़ा जल्दबाजी होगी, क्योंकि खेती का खेल मौसम पर आधारित रहता है। भारत में आयात की जाने वाली दलहन में 50 फीसदी कनाडा से आता है और म्यांमार से मांग के चौथाई हिस्से की पूर्ति की जाती है। (BS Hindi)
सुशील मिश्र / मुंबई December 26, 2008
चालू रबी सीजन के दौरान दलहन का रकबा बढ़ने और चना के रकबे में रिकॉर्ड बढ़ोतरी की खबरों ने इस बार आयात पर निर्भरता कम होने की उम्मीद जगा दी है।
चना उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्य राजस्थान और उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों से हल्की बारिश होने के कारण चना की मौजूदा फसल काफी जोरदार दिखाई देने लगी है। चालू सीजन में दलहन की कुल बुआई क्षेत्र में 14 फीसदी और चने के बुआई क्षेत्र में 16 फीसदी से ज्यादा की वृदि होने के साथ ही साथ अभी तक दलहन के लिए मौसम का मिजाज भी ठीक होने के वजह से दलहन के कुल उत्पादन में 20 फीसदी तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है। देश में पैदा होने वाले कुल दलहन में 60 फीसदी हिस्सेदारी चना और अरहर की रहती है। ये दोनों फसल मुख्यत: रबी सीजन की है। पिछले कुछ सालों से दलहन का उत्पादन आशानुरूप न होने की वजह इन दोनों फसलों की पैदावार में बढ़ोत्तरी न के बराबर होना माना जा रहा है। चना की पैदावार 2005 में 54.7 लाख टन थी जो तीन वर्षो के दौरान सिर्फ 13.35 फीसदी बढ़कर 2008 में 6.20 मीट्रिक टन हुआ था। यही हाल अरहर का रहा है। 2005 में अरहर का उत्पादन 23.5 लाख टन था और तीन साल बाद 2008 में 29.0 लाख टन उत्पादन हो सका।दलहन की प्रमुख फसलों में उत्पादन कम होने की वजह से विदेशों की ओर देश को साल दर साल ज्यादा झाकना पड़ता है। लेकिन कृषि मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक इस बार रबी सीजन में दलहन की बुआई पिछले साल के 95.50 लाख हेक्टेयर से इस बार 14.23 फीसदी बढ़ाकर 109.09 लाख हेक्टेयर में की गई है। इस सीजन की प्रमुख दलहन फसल चना के बुवाई में रिकॉर्ड 16.03 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। इस बार चना की बुवाई 71.07 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में हुई है जबकि पिछले साल यह एरिया 61.25 लाख हेक्टेयर ही था।पल्सेस इंपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष के सी भरतीया के अनुसार पिछले कुछ सालों से दलहन की पैदावार में वृध्दि आशानुरुप नहीं हुई है। साल दर साल देश में दलहन की मांग भी बढ़ती जा रही है जिसकी मुख्य वजह बढ़ती जनसंख्या को मानते हैं। इस समय हमारी जरूरत का 15 फीसदी हिस्सा आयात से पूरा किया जाता है। जिस तरह की अभी तक खबरें आ रही है अगर ये ऐसी ही रही तो इस बार आयात में कमी होना तय है। हांलाकि अभी से अनुमान लगाना थोड़ा जल्दबाजी होगी, क्योंकि खेती का खेल मौसम पर आधारित रहता है। भारत में आयात की जाने वाली दलहन में 50 फीसदी कनाडा से आता है और म्यांमार से मांग के चौथाई हिस्से की पूर्ति की जाती है। (BS Hindi)
ऑटोमोबाइल सेक्टर की मंदी से अरंडी हुआ मंदा
अहमदाबाद December 26, 2008
ऑटो सेक्टर में छायी मंदी का असर अंतरराष्ट्रीय बाजार में अरंडी की मांग पर दिख रहा है।
इस सेक्टर में अरंडी तेल के अनेक इस्तेमाल हैं, जैसे-ग्रीस और लुब्रिकेंट तैयार करने में। कारोबारियों का मानना है कि दुनिया की अर्थव्यवस्था और ऑटो उद्योग के मंदी की चपेट में आने से अरंडी तेल का निर्यात प्रभावित हो सकता है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसियशन ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक बी वी मेहता ने बताया कि मौजूदा आर्थिक मंदी ने कई कृषि जिंसों की मांग पर असर डाला। जबकि ऑटो सेक्टर में हुई गिरावट ने देश में अरंडी की मांग में और कमी कर दी है।अहमदाबाद कमोडिटी एक्सचेंज के अध्यक्ष प्रवीण ठक्कर ने बताया कि विदेशी बाजार में अरंडी की कोई खास मांग नहीं है। फिलहाल विदेश का कोई अनुबंध नहीं है। अरंडी और इसके उत्पाद का निर्यात इस साल 20 से 25 फीसदी घटने के आसार हैं। कारोबारियों के मुताबिक, 2007-08 में देश में अरंडी का उत्पादन 3.5 लाख टन हुआ था। इसमें से 2.70 लाख टन अरंडी विदेशों में निर्यात कर दिया गया। पिछले साल हाजिर बाजार में अरंडी तेल का भाव 630 रुपये प्रति 20 किलोग्राम तक पहुंच गया था।कारोबारी अब दवा और पेंट उद्योग में भी इसके कारोबार की संभावनाएं ढूंढ रहे हैं। कइयों का मानना है कि मौजूदा आर्थिक मंदी का अरंडी तेल के निर्यात बाजार पर अधिक असर नहीं पड़ेगा। हालांकि वे यह भी मानते हैं कि मंदी से अरंडी का निर्यात बाजार 10 से 20 फीसदी तक गिरेगा। (BS Hindi)
ऑटो सेक्टर में छायी मंदी का असर अंतरराष्ट्रीय बाजार में अरंडी की मांग पर दिख रहा है।
इस सेक्टर में अरंडी तेल के अनेक इस्तेमाल हैं, जैसे-ग्रीस और लुब्रिकेंट तैयार करने में। कारोबारियों का मानना है कि दुनिया की अर्थव्यवस्था और ऑटो उद्योग के मंदी की चपेट में आने से अरंडी तेल का निर्यात प्रभावित हो सकता है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसियशन ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक बी वी मेहता ने बताया कि मौजूदा आर्थिक मंदी ने कई कृषि जिंसों की मांग पर असर डाला। जबकि ऑटो सेक्टर में हुई गिरावट ने देश में अरंडी की मांग में और कमी कर दी है।अहमदाबाद कमोडिटी एक्सचेंज के अध्यक्ष प्रवीण ठक्कर ने बताया कि विदेशी बाजार में अरंडी की कोई खास मांग नहीं है। फिलहाल विदेश का कोई अनुबंध नहीं है। अरंडी और इसके उत्पाद का निर्यात इस साल 20 से 25 फीसदी घटने के आसार हैं। कारोबारियों के मुताबिक, 2007-08 में देश में अरंडी का उत्पादन 3.5 लाख टन हुआ था। इसमें से 2.70 लाख टन अरंडी विदेशों में निर्यात कर दिया गया। पिछले साल हाजिर बाजार में अरंडी तेल का भाव 630 रुपये प्रति 20 किलोग्राम तक पहुंच गया था।कारोबारी अब दवा और पेंट उद्योग में भी इसके कारोबार की संभावनाएं ढूंढ रहे हैं। कइयों का मानना है कि मौजूदा आर्थिक मंदी का अरंडी तेल के निर्यात बाजार पर अधिक असर नहीं पड़ेगा। हालांकि वे यह भी मानते हैं कि मंदी से अरंडी का निर्यात बाजार 10 से 20 फीसदी तक गिरेगा। (BS Hindi)
मांस व पोल्ट्री प्रसंस्करण बोर्ड को मिली मंजूरी
December 26, 2008
साफ और सुरक्षित मांस उत्पादों के प्रोत्साहन हेतु सरकार ने राष्ट्रीय मांस और पोल्ट्री प्रसंस्करण बोर्ड के गठन प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की शुक्रवार को हुई बैठक में यह तय किया गया। बैठक के बाद गृह मंत्री पी चिदंबरम ने बताया कि बोर्ड का मुख्यालय दिल्ली में ही होगा। इसके लिए तीन साल की अवधि में 14.64 करोड़ रुपये के धन का आबंटन किया जाएगा। खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय बोर्ड को सोसाइटी के रूप में पंजीकृत होगा। बोर्ड स्वायत्तशासी होगा और शुरुआत में उसके परिचालन में सरकार मदद करेगी। बाद में इसका परिचालन उद्योग करेगा। इस बोर्ड में केंद्र और उद्योग क्षेत्र के प्रतिनिधियों के अलावा चक्रीय आधार पर राज्यों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। चिदंबरम ने बताया कि यह बोर्ड स्वच्छ एवं सुरक्षित मांस के बारे में राष्ट्रीय स्तर पर समान मानदंड स्थापित करेगा। बोर्ड इसके लिए तकनीकी सहायता भी मुहैया कराएगा। मांस आदि हासिल कर लेने के बाद बचे सहउत्पादों के उपयोग में यह बोर्ड मदद देगा।यह बोर्ड उद्योग को वैश्विक मानदंडों के अनुपालन में भी मदद देगा। मांस परीक्षण प्रणाली और प्रदूषण नियंत्रण उपायों के जरिए मांस और पोल्ट्री उद्योग को मदद देने की बात भी कही गई है। (BS Hindi)
साफ और सुरक्षित मांस उत्पादों के प्रोत्साहन हेतु सरकार ने राष्ट्रीय मांस और पोल्ट्री प्रसंस्करण बोर्ड के गठन प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की शुक्रवार को हुई बैठक में यह तय किया गया। बैठक के बाद गृह मंत्री पी चिदंबरम ने बताया कि बोर्ड का मुख्यालय दिल्ली में ही होगा। इसके लिए तीन साल की अवधि में 14.64 करोड़ रुपये के धन का आबंटन किया जाएगा। खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय बोर्ड को सोसाइटी के रूप में पंजीकृत होगा। बोर्ड स्वायत्तशासी होगा और शुरुआत में उसके परिचालन में सरकार मदद करेगी। बाद में इसका परिचालन उद्योग करेगा। इस बोर्ड में केंद्र और उद्योग क्षेत्र के प्रतिनिधियों के अलावा चक्रीय आधार पर राज्यों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। चिदंबरम ने बताया कि यह बोर्ड स्वच्छ एवं सुरक्षित मांस के बारे में राष्ट्रीय स्तर पर समान मानदंड स्थापित करेगा। बोर्ड इसके लिए तकनीकी सहायता भी मुहैया कराएगा। मांस आदि हासिल कर लेने के बाद बचे सहउत्पादों के उपयोग में यह बोर्ड मदद देगा।यह बोर्ड उद्योग को वैश्विक मानदंडों के अनुपालन में भी मदद देगा। मांस परीक्षण प्रणाली और प्रदूषण नियंत्रण उपायों के जरिए मांस और पोल्ट्री उद्योग को मदद देने की बात भी कही गई है। (BS Hindi)
जारी रहेगा बगैर अनुमति चीनी निर्यात!
नई दिल्ली December 26, 2008
सरकार 31 दिसंबर के बाद भी चीनी मिलों को खाद्य मंत्रालय से बगैर अनुमति के चीनी निर्यात की अनुमति दे सकती है।
पहले केंद्र सरकार ने खाद्य मंत्रालय से बगैर अनुमति के चीनी निर्यात की अवधि सितंबर से बढ़ा कर दिसंबर कर दी थी। यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार इस अवधि को और बढ़ा सकती है, एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ऐसा संभव है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इस सीजन में चीनी का ज्यादा निर्यात नहीं हो रहा है। पिछले साल जुलाई में केंद्र सरकार ने चीनी निर्यात के लिए खाद्य मंत्रालय से पूर्व अनुमति लेने की अनिवार्यता 2007-08 सीजन के अंत तक (अक्टूबर से सितंबर) के लिए ओपन जनरल लाइसेंस के तहत समाप्त कर दिया था।इससे चीनी उद्योग को अपना बचा भंडार विदेशी बाजारों में बेचने में मदद मिलती। रिलीज ऑर्डर प्रणाली के तहत मिलों और कारोबारियों को चीनी का निर्यात करने से पहले खाद्य मंत्रालय से पूर्व अनुमति लेनी आवश्यक होती है। विशेषज्ञों ने कहा कि सरकार बिना पूर्व अनुमति लिए चीनी निर्यात की अवधि को बढ़ा सकती है, क्योंकि देश में 1.1 करोड़ टन चीनी का भंडार है। इस वजह से निर्यात नियंत्रित करने की कोई जरूरत नहीं है। औद्योगिक आकलन के अनुसार, चालू सीजन में चीनी निर्यात में केवल 10 से 15 लाख टन की कमी के आसार हैं। पिछले सीजन में 45 से 50 लाख टन लदाई किए जाने का अनुमान है। चालू सीजन में कम उत्पादन अनुमान से भारत का चीनी निर्यात प्रभावित हो सकता है। सरकार के ताजे आकलन के मुताबिक, 2.05 करोड़ टन चीनी का निर्यात हो सकता है। पिछले सीजन में 2.65 करोड़ टन का निर्यात किया गया था। घरेलू खपत के लिए देश में सालाना लगभग 2 करोड़ टन चीनी की जरूरत होती है। (BS Hindi)
सरकार 31 दिसंबर के बाद भी चीनी मिलों को खाद्य मंत्रालय से बगैर अनुमति के चीनी निर्यात की अनुमति दे सकती है।
पहले केंद्र सरकार ने खाद्य मंत्रालय से बगैर अनुमति के चीनी निर्यात की अवधि सितंबर से बढ़ा कर दिसंबर कर दी थी। यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार इस अवधि को और बढ़ा सकती है, एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ऐसा संभव है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इस सीजन में चीनी का ज्यादा निर्यात नहीं हो रहा है। पिछले साल जुलाई में केंद्र सरकार ने चीनी निर्यात के लिए खाद्य मंत्रालय से पूर्व अनुमति लेने की अनिवार्यता 2007-08 सीजन के अंत तक (अक्टूबर से सितंबर) के लिए ओपन जनरल लाइसेंस के तहत समाप्त कर दिया था।इससे चीनी उद्योग को अपना बचा भंडार विदेशी बाजारों में बेचने में मदद मिलती। रिलीज ऑर्डर प्रणाली के तहत मिलों और कारोबारियों को चीनी का निर्यात करने से पहले खाद्य मंत्रालय से पूर्व अनुमति लेनी आवश्यक होती है। विशेषज्ञों ने कहा कि सरकार बिना पूर्व अनुमति लिए चीनी निर्यात की अवधि को बढ़ा सकती है, क्योंकि देश में 1.1 करोड़ टन चीनी का भंडार है। इस वजह से निर्यात नियंत्रित करने की कोई जरूरत नहीं है। औद्योगिक आकलन के अनुसार, चालू सीजन में चीनी निर्यात में केवल 10 से 15 लाख टन की कमी के आसार हैं। पिछले सीजन में 45 से 50 लाख टन लदाई किए जाने का अनुमान है। चालू सीजन में कम उत्पादन अनुमान से भारत का चीनी निर्यात प्रभावित हो सकता है। सरकार के ताजे आकलन के मुताबिक, 2.05 करोड़ टन चीनी का निर्यात हो सकता है। पिछले सीजन में 2.65 करोड़ टन का निर्यात किया गया था। घरेलू खपत के लिए देश में सालाना लगभग 2 करोड़ टन चीनी की जरूरत होती है। (BS Hindi)
काली मिर्च की आपूर्ति पर लग सकता है ग्रहण
कोच्चि December 26, 2008
काली मिर्च का वैश्विक उत्पादन घटने से अनुमान है कि अगले साल इसकी आपूर्ति मांग की तुलना में कम रहेगी। अंतरराष्ट्रीय काली मिर्च समुदाय (आईपीसी) के मुताबिक, उत्पादन में कमी के चलते आपूर्ति कम होने जा रही है।
काली मिर्च के उत्पादन और कारोबार की इस अंतरराष्ट्रीय संस्था के मुताबिक, भारत, ब्राजील और इंडोनेशिया जैसे बड़े उत्पादक देशों में खराब मौसम और रोग के साथ इसके उत्पादन क्षेत्र में कमी होने से इसकी उपज प्रभावित होने जा रही है। हालांकि मौजूदा सीजन में काली मिर्च का उत्पादन काफी ज्यादा हुआ है। आकलन है कि इस साल करीब 39 हजार टन ज्यादा काली मिर्च पैदा होगी। मंदी के बावजूद इस साल इसकी औसत खपत मेंं 3 फीसदी की बढ़ोतरी का अनुमान है। जबकि अगले साल भी खपत दर में इसी तरह वृद्धि का अंदाजा है। मोटे अनुमान के अनुसार, 2008 में काली मिर्च का उत्पादन करीब 2.60 लाख टन होने जा रहा है और अगले साल इसमें करीब 10 से 15 फीसदी की कमी हो सकती है। इस तरह 2008 में काली मिर्च की कुल उपलब्धता 85 हजार टन के कैरी ओवर स्टॉक सहित 3.45 लाख टन होने की उम्मीद है। लेकिन अगले साल बाजार में इसकी उपलब्धता सिरे से घटने का अंदाजा है। भारत, ब्राजील और इंडोनेशिया में काली मिर्च के उत्पादन में गंभीर कमी होने का अंदाजा है। हालांकि दुनिया के सबसे बड़े काली मिर्च उत्पादक देश का उत्पादन मौजूदा 1 लाख टन ही रहने का अनुमान है। वियतनाम काली मिर्च संघ के मुताबिक, इस देश ने नवंबर तक 30 करोड़ डॉलर मूल्य के 86 हजार टन काली मिर्च का निर्यात किया है। अनुमान है कि साल के अंत तक यह देश 31 करोड़ डॉलर मूल्य के 90 हजार टन काली मिर्च का निर्यात करने में सफल रहेगा। इसका मतलब कि वियतनाम का कैरी ओवर स्टॉक 10 हजार टन के आसपास रहेगा। इस साल भारत का स्टॉक पोजीशन कमजोर रहने का अनुमान है। इतना ही नहीं ब्राजील और इंडोनेशिया के भंडार में भी कमी आने का अंदाजा है। ऐसे में पूरी दुनिया का कैरी ओवर स्टॉक 2009 के दौरान 30 से 35 हजार टन रह जाएगा। मतलब साफ है कि अगले साल काली मिर्च की वैश्विक आपूर्ति कम रहने वाली है। (BS Hindi)
काली मिर्च का वैश्विक उत्पादन घटने से अनुमान है कि अगले साल इसकी आपूर्ति मांग की तुलना में कम रहेगी। अंतरराष्ट्रीय काली मिर्च समुदाय (आईपीसी) के मुताबिक, उत्पादन में कमी के चलते आपूर्ति कम होने जा रही है।
काली मिर्च के उत्पादन और कारोबार की इस अंतरराष्ट्रीय संस्था के मुताबिक, भारत, ब्राजील और इंडोनेशिया जैसे बड़े उत्पादक देशों में खराब मौसम और रोग के साथ इसके उत्पादन क्षेत्र में कमी होने से इसकी उपज प्रभावित होने जा रही है। हालांकि मौजूदा सीजन में काली मिर्च का उत्पादन काफी ज्यादा हुआ है। आकलन है कि इस साल करीब 39 हजार टन ज्यादा काली मिर्च पैदा होगी। मंदी के बावजूद इस साल इसकी औसत खपत मेंं 3 फीसदी की बढ़ोतरी का अनुमान है। जबकि अगले साल भी खपत दर में इसी तरह वृद्धि का अंदाजा है। मोटे अनुमान के अनुसार, 2008 में काली मिर्च का उत्पादन करीब 2.60 लाख टन होने जा रहा है और अगले साल इसमें करीब 10 से 15 फीसदी की कमी हो सकती है। इस तरह 2008 में काली मिर्च की कुल उपलब्धता 85 हजार टन के कैरी ओवर स्टॉक सहित 3.45 लाख टन होने की उम्मीद है। लेकिन अगले साल बाजार में इसकी उपलब्धता सिरे से घटने का अंदाजा है। भारत, ब्राजील और इंडोनेशिया में काली मिर्च के उत्पादन में गंभीर कमी होने का अंदाजा है। हालांकि दुनिया के सबसे बड़े काली मिर्च उत्पादक देश का उत्पादन मौजूदा 1 लाख टन ही रहने का अनुमान है। वियतनाम काली मिर्च संघ के मुताबिक, इस देश ने नवंबर तक 30 करोड़ डॉलर मूल्य के 86 हजार टन काली मिर्च का निर्यात किया है। अनुमान है कि साल के अंत तक यह देश 31 करोड़ डॉलर मूल्य के 90 हजार टन काली मिर्च का निर्यात करने में सफल रहेगा। इसका मतलब कि वियतनाम का कैरी ओवर स्टॉक 10 हजार टन के आसपास रहेगा। इस साल भारत का स्टॉक पोजीशन कमजोर रहने का अनुमान है। इतना ही नहीं ब्राजील और इंडोनेशिया के भंडार में भी कमी आने का अंदाजा है। ऐसे में पूरी दुनिया का कैरी ओवर स्टॉक 2009 के दौरान 30 से 35 हजार टन रह जाएगा। मतलब साफ है कि अगले साल काली मिर्च की वैश्विक आपूर्ति कम रहने वाली है। (BS Hindi)
जल्द बदलेगी चाय नीलामी की तस्वीर
कोलकाता December 26, 2008
अगले साल फरवरी तक भारत में चाय नीलामी की तस्वीर बदलने वाली है। उल्लेखनीय है कि देश के कुल चाय उत्पादन का 53 प्रतिशत नीलामी के जरिए बेचा जाता है।
साल 2007 में 9,450 किलोग्राम के कुल उत्पादन में से 5,030 किलोग्राम हजिर नीलामी के जरिए बेची गई थी। हालांकि, पिछले साल बोर्ड ने इलेक्ट्रॉनिक नीलामी का सॉफ्टवेयर विकसित करने के लिए एनएसईडॉटआईटी की शुरुआत की थी। आरंभिक ई-नीलामी सभी छह नीलामी केंद्रों- कोलकाता, सिलिगुड़ी, गुवाहाटी, कूनूर, कोयंबटूर और कोच्चि पर हुई। यहां ई-नीलामी का परीक्षण किया गया। औद्योगिक सूत्रों ने कहा कि प्रतिक्रिया अच्छी रही। ई-नीलामी प्रणाली को दुरुस्त कर जनवरी के अंत तक चालू करने का लक्ष्य है। ई-नीलामी प्रणाली का लक्ष्य बेहतर भाव तलाशना है, लेकिन कइयों के मन में इस बात को लेकर संशय है कि यह प्रणाली तकनीकी और व्यावहारिक तौर पर किस तरह काम करेगी। और वर्तमान नीलामी केंद्रों की भूमिका और कार्य क्या होंगे। वर्तमान नीलामी केंद्रों को भंडारगृहों और वितरण केंद्रों में बदल दिया जाएगा।सब कुछ ठीक चलता रहा और जनवरी के अंत तक इस प्रणाली को शुरू कर दिया गया तो सितंबर 2009 तक खरीदारों के लिए एक मंच उपलब्ध हो सकेगा। उदाहरण के लिए, कोच्चि का कोई खरीदार किसी भी नीलामी केंद्र से चाय खरीद सकेगा। (BS Hindi)
अगले साल फरवरी तक भारत में चाय नीलामी की तस्वीर बदलने वाली है। उल्लेखनीय है कि देश के कुल चाय उत्पादन का 53 प्रतिशत नीलामी के जरिए बेचा जाता है।
साल 2007 में 9,450 किलोग्राम के कुल उत्पादन में से 5,030 किलोग्राम हजिर नीलामी के जरिए बेची गई थी। हालांकि, पिछले साल बोर्ड ने इलेक्ट्रॉनिक नीलामी का सॉफ्टवेयर विकसित करने के लिए एनएसईडॉटआईटी की शुरुआत की थी। आरंभिक ई-नीलामी सभी छह नीलामी केंद्रों- कोलकाता, सिलिगुड़ी, गुवाहाटी, कूनूर, कोयंबटूर और कोच्चि पर हुई। यहां ई-नीलामी का परीक्षण किया गया। औद्योगिक सूत्रों ने कहा कि प्रतिक्रिया अच्छी रही। ई-नीलामी प्रणाली को दुरुस्त कर जनवरी के अंत तक चालू करने का लक्ष्य है। ई-नीलामी प्रणाली का लक्ष्य बेहतर भाव तलाशना है, लेकिन कइयों के मन में इस बात को लेकर संशय है कि यह प्रणाली तकनीकी और व्यावहारिक तौर पर किस तरह काम करेगी। और वर्तमान नीलामी केंद्रों की भूमिका और कार्य क्या होंगे। वर्तमान नीलामी केंद्रों को भंडारगृहों और वितरण केंद्रों में बदल दिया जाएगा।सब कुछ ठीक चलता रहा और जनवरी के अंत तक इस प्रणाली को शुरू कर दिया गया तो सितंबर 2009 तक खरीदारों के लिए एक मंच उपलब्ध हो सकेगा। उदाहरण के लिए, कोच्चि का कोई खरीदार किसी भी नीलामी केंद्र से चाय खरीद सकेगा। (BS Hindi)
कीमतों में बढ़ोतरी से प्याली में तूफान
कोलकाता December 26, 2008
मौजूदा चलन को पीछे छोड़ते हुए 2009 सीजन में चाय का सौदा पिछले साल के औसत मूल्य से 20-30 रुपये प्रति किलो अधिक पर खुल सकता है।
चाय उत्पादन में रिकॉर्ड कमी के कारण कीमतों में बढ़ोतरी का अनुमान लगाया जा रहा है। उद्योग प्रतिनिधियों का अनुमान है कि असम चाय की अच्छी गुणवत्ता की कीमत इस साल जहां 105 से 120 रुपये प्रति किलो रही, वहीं नये सीजन में यह 125 से 140 रुपये के बीच खुलने की संभावना है। कीमतों में यह मजबूती 3 से 4 क्विंटल चाय की कमी के कारण आएगी। 2008 के लिए इंडियन टी एसोसिएशन (आईटीए) के हालिया अनुमानों के अनुसार, चाय का उत्पादन 96.2 करोड़ किलोग्राम, निर्यात 20 करोड़ किलोग्राम, आयात 2 करोड़ किलोग्राम और खपत 82.5 करोड़ किलोग्राम रहने का अनुमान है। साफ है कि 4.3 करोड़ किलोग्राम चाय की कमी होगी। आईटीए के अध्यक्ष आदित्य खेतान ने कहा कि निर्यात अधिक होने के कारण चाय की कमी हुई है। पिछले साल 17.9 करोड़ किलोग्राम चाय का निर्यात हुआ था। लेकिन दूसरे बाजारों से अलग भारतीय चाय उद्योग को भारी घरेलू मांग का सहारा हासिल है। इस उद्योग की विकास दर 3 से 3.3 प्रतिशत की है। उन्होंने कहा, 'अफ्रीकी मुद्दे को अतिरिक्त लाभ के तौर पर देखा जाना चाहिए।'सीटीसी के प्रमुख उत्पादक केन्या में चाय का उत्पादन 3.5 करोड़ किलोग्राम कम हुआ, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में होने वाली आपूर्ति पर प्रभाव पड़ा है। सितंबर अंत तक चाय का वैश्विक उत्पादन 63 लाख किलोग्राम की मामूली कमी आई थी।जहां केन्या में उत्पादन 3.5 करोड़ किलोग्राम कम हुआ, वहीं भारत और श्रीलंका को मिलाकर 4.60 करोड़ किलोग्राम कम उत्पादन हुआ। लेकिन सभी अफ्रीकी देशों के उत्पादन में कमी आई है।पिछले कुछ महीनों में भारतीय चाय की कीमतों में बढ़ोतरी हुई, लेकिन अगर महंगाई वृध्दि दर को शामिल कर देखें तो यह 1998 के चरम स्तर से कम ही है। अगर खाद्य पदार्थों की महंगाई दर को समायोजित करें तो कीमत 143.47 रुपये प्रति किलोग्राम होनी चाहिए। इसके विपरीत, उत्पादन लागत में प्रति किलोग्राम 33.41 रुपये प्रति किलो की बढ़ोतरी हुई, जो लगभग 60 प्रतिशत अधिक है।आईटीए के अनुसार, उद्योग के विकास के लिए वर्तमान कीमतों का चलन अगले कुछ सालों तक जारी रहना चाहिए। 2006 के मुकाबले 2007 के दौरान भारतीय चाय उद्योग को कम उत्पादन के साथ-साथ कम निर्यात का भी सामना करना पड़ा था। 2006 में चाय की रिकॉर्ड फसल के साथ-साथ निर्यात भी बढ़िया हुआ था। 1999 से मंदी से जूझ रहे चाय उद्योग को साल 2007 में थोड़ी राहत मिली थी। 2007 के उत्साहजनक संकेतों के साथ साल 2008 की शुरुआत हुई। ऐसा संभव है कि साल 2008 का अंत अभूतपूर्व कमी के साथ हों और मार्च के अंत या अप्रैल की शुरुआत में चाय रिकॉर्ड कीमतों के साथ खुले। (BS Hindi)
मौजूदा चलन को पीछे छोड़ते हुए 2009 सीजन में चाय का सौदा पिछले साल के औसत मूल्य से 20-30 रुपये प्रति किलो अधिक पर खुल सकता है।
चाय उत्पादन में रिकॉर्ड कमी के कारण कीमतों में बढ़ोतरी का अनुमान लगाया जा रहा है। उद्योग प्रतिनिधियों का अनुमान है कि असम चाय की अच्छी गुणवत्ता की कीमत इस साल जहां 105 से 120 रुपये प्रति किलो रही, वहीं नये सीजन में यह 125 से 140 रुपये के बीच खुलने की संभावना है। कीमतों में यह मजबूती 3 से 4 क्विंटल चाय की कमी के कारण आएगी। 2008 के लिए इंडियन टी एसोसिएशन (आईटीए) के हालिया अनुमानों के अनुसार, चाय का उत्पादन 96.2 करोड़ किलोग्राम, निर्यात 20 करोड़ किलोग्राम, आयात 2 करोड़ किलोग्राम और खपत 82.5 करोड़ किलोग्राम रहने का अनुमान है। साफ है कि 4.3 करोड़ किलोग्राम चाय की कमी होगी। आईटीए के अध्यक्ष आदित्य खेतान ने कहा कि निर्यात अधिक होने के कारण चाय की कमी हुई है। पिछले साल 17.9 करोड़ किलोग्राम चाय का निर्यात हुआ था। लेकिन दूसरे बाजारों से अलग भारतीय चाय उद्योग को भारी घरेलू मांग का सहारा हासिल है। इस उद्योग की विकास दर 3 से 3.3 प्रतिशत की है। उन्होंने कहा, 'अफ्रीकी मुद्दे को अतिरिक्त लाभ के तौर पर देखा जाना चाहिए।'सीटीसी के प्रमुख उत्पादक केन्या में चाय का उत्पादन 3.5 करोड़ किलोग्राम कम हुआ, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में होने वाली आपूर्ति पर प्रभाव पड़ा है। सितंबर अंत तक चाय का वैश्विक उत्पादन 63 लाख किलोग्राम की मामूली कमी आई थी।जहां केन्या में उत्पादन 3.5 करोड़ किलोग्राम कम हुआ, वहीं भारत और श्रीलंका को मिलाकर 4.60 करोड़ किलोग्राम कम उत्पादन हुआ। लेकिन सभी अफ्रीकी देशों के उत्पादन में कमी आई है।पिछले कुछ महीनों में भारतीय चाय की कीमतों में बढ़ोतरी हुई, लेकिन अगर महंगाई वृध्दि दर को शामिल कर देखें तो यह 1998 के चरम स्तर से कम ही है। अगर खाद्य पदार्थों की महंगाई दर को समायोजित करें तो कीमत 143.47 रुपये प्रति किलोग्राम होनी चाहिए। इसके विपरीत, उत्पादन लागत में प्रति किलोग्राम 33.41 रुपये प्रति किलो की बढ़ोतरी हुई, जो लगभग 60 प्रतिशत अधिक है।आईटीए के अनुसार, उद्योग के विकास के लिए वर्तमान कीमतों का चलन अगले कुछ सालों तक जारी रहना चाहिए। 2006 के मुकाबले 2007 के दौरान भारतीय चाय उद्योग को कम उत्पादन के साथ-साथ कम निर्यात का भी सामना करना पड़ा था। 2006 में चाय की रिकॉर्ड फसल के साथ-साथ निर्यात भी बढ़िया हुआ था। 1999 से मंदी से जूझ रहे चाय उद्योग को साल 2007 में थोड़ी राहत मिली थी। 2007 के उत्साहजनक संकेतों के साथ साल 2008 की शुरुआत हुई। ऐसा संभव है कि साल 2008 का अंत अभूतपूर्व कमी के साथ हों और मार्च के अंत या अप्रैल की शुरुआत में चाय रिकॉर्ड कीमतों के साथ खुले। (BS Hindi)
26 दिसंबर 2008
स्टॉकिस्टों की बिकवाली बढ़ने से चने में गिरावट
मध्य प्रदेश और राजस्थान के स्टॉकिस्टों की बिकवाली बढ़ने से दिल्ली बाजार में चने के भावों में 50 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आकर राजस्थानी चने के भाव 2175 रुपये और मध्य प्रदेश के चने के भाव 2125 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। दाल मिलों से चने की मांग कमजोर होने और आवक ज्यादा होने से आगे भी चने में गिरावट का रुख जारी रह सकता है। दिल्ली के चना व्यापारी राधेश्याम गुप्ता ने बताया कि मध्य प्रदेश व राजस्थान से चने की दैनिक आवक 38 से 40 मोटरों की हो रही है। चना दाल में मांग सीमित होने के कारण मिलों की मांग कमजोर है। मध्य प्रदेश की अशोक नगर मंडी के चना व्यापारी राजेश पालीवाल ने बताया कि स्टॉकिस्टों की बिकवाली बढ़ने से चने के भाव में 40 रुपये की गिरावट आकर 1950 से 2050 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। उन्होंने बताया कि राज्य की मंडियों में चने का स्टॉक अच्छा-खासा बचा हुआ है जबकि नई फसल आने में अब मात्र डेढ़ माह का ही समय शेष है। इसलिए बिकवाली जारी रहने से मौजूदा भावों में और भी गिरावट के आसार हैं। अकोला मंडी के चना व्यापारी विजेंद्र गोयल ने बताया कि ग्राहकी कमजोर होने से चने के भावों में 50 रुपये का मंदा आकर भाव 2150 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। उन्होंने बताया कर्नाटक की मंडियों में नए चने की छिटपुट आवक शुरू हो गई है तथा अगले दस-पंद्रह दिनों में आवकों का दबाव बन जाएगा।गुलबर्गा मंडी में नए चने की 200 से 250 बोरियों की आवक शुरू हो गई है तथा नए चने के भाव 2150 रुपये प्रति क्विंटल बोले जा रहे हैं। विजयवाड़ा में नए चने की आवक 300 बोरियों की हो रही है तथा यहां भी भाव 2150 रुपये प्रति `िंटल बोले जा रहे हैं। महाराष्ट्र की मंडियों में भी अगले महीने नई फसल की आवक शुरू हो जाएगी। आस्ट्रेलिया से आयातित चने के भाव दिसंबर-जनवरी शिपमेंट के 2175 रुपये प्रति `िंटल मुंबई पहुंच बोले जा रहे हैं। घरलू फसल आने के बाद आयातित चने के भावों में और भी गिरावट आ सकती है।कृषि मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी बुवाई आंकड़ों के अनुसार चालू रबी सीजन में चने की बुवाई 75.10 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जोकि पिछले वर्ष के मुकाबले 6.24 लाख हैक्टेयर ज्यादा है। पिछले वर्ष की समान अवधि में देश में चने की बुवाई 68.86 हुई थी। चने के बुवाई क्षेत्रफल में हुई बढ़ोतरी को देखते हुए चने का उत्पादन गत वर्ष के 59 लाख टन से ज्यादा होगा। (Business Bhaskar...R S Rana)
एफसीआई की सप्लाई आने से स्थिर हो गए गेहूं के भाव
भारतीय खाद्य निगम द्वारा खुले बाजार में गेहूं की बिक्री शुरू किए जाने से खुले बाजार में भाव नियंत्रित हो गए हैं। आगे भी गेहूं के भाव एफसीआई के मूल्य पर निर्भर होने का अनुमान लगाया जा रहा है किसानों और स्टॉकिस्टों के पास अब गेहूं का स्टॉक सीमित मात्रा में ही बचा है। एफसीआई दिल्ली में 1027 रुपये प्रति क्विंटल के रिजर्व मूल्य के साथ निविदा के जरिये गेहूं बेच रही है। जबकि अभी तक राज्यवार निश्चित भाव पर गेहूं खुले बाजार में जारी करती थी। गेहूं के भावों में फ्लोर मिलों के बीच ज्यादा स्पर्धा न होने के कारण दिल्ली सहित तमाम राज्यों में एफसीआई रिजर्व मूल्य के आसपास ही बिक रहा है। दिल्ली में रिजर्व मूल्य 1027 रुपये है तो खुले बाजार में भाव करीब 1140 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। दिल्ली के गेहूं व्यापारी कमलेश जैन ने बताया कि एफसीआई का गेहूं आते ही भाव घटकर 1140 रुपये प्रति रह जाते हैं लेकिन सरकारी गेहूं की आवक समाप्त होते ही भाव बढ़कर 1170 रुपये प्रति क्विंटल हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि एफसीआई द्वारा फ्लोर मिलों के लिए गेहूं लेने की मात्रा तय की हुई है इसलिए मिलें तय मात्रा के अंदर ही निविदाएं भर पा रही हैं। मथूरा के फ्लोर मिल मालिक राजेंद्र बसंल ने बताया कि उत्तर प्रदेश की मंडियों में गेहूं के भाव 1050 से 1060 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। बेंगलुरू के गेहूं व्यापारी नवीन कुमार ने बताया कि दक्षिण की मिलों में 80 प्रतिशत गेहूं की आपूर्ति एफसीआई के गोदामों से हो रही है। दक्षिण भारत की मिलों में गेहूं पहुंच के भाव 1300 से 1310 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। एफसीआई के पास एक दिसंबर को गेहूं का स्टॉक 196 लाख टन का बचा हुआ था जोकि पिछले वर्ष एक दिसंबर के 84 लाख टन स्टॉक से दोगुने से भी ज्यादा है। ऐसे में पहली अप्रैल को नई फसल के समय सरकारी गोदामों में गेहूं का बफर स्टॉक 40 लाख टन के मुकाबले 90 से 100 लाख टन बचने की उम्मीद है। (Business Bhaskar.....R S Rana)
हल्दी की नई फसल आने पर भी भाव पिछले साल से ऊपर रहेंगे
प्रमुख उत्पादक राज्यों की मंडियों में हल्दी की नई फसल की आवक पंद्रह जनवरी तक शुरू होने की उम्मीद है। चालू वर्ष में हल्दी का उत्पादन तो पिछले वर्ष के बराबर ही होने की संभावना है लेकिन उत्पादक मंडियों में हल्दी का बकाया स्टॉक पिछले वर्ष से कम रहेगा। ऐसे में नई फसल की आवक का दबाव बनने के बाद भी उत्पादक मंडियों में हल्दी के भाव 3000 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे जाने के आसार कम हैं।इरोड़ स्थित हल्दी व्यापारी एसोसिएशन के प्रवक्ता सुभाष गुप्ता ने बिजनेस भास्कर को बताया कि चालू वर्ष में देश में हल्दी का उत्पादन 43 से 44 लाख बोरी (एक बोरी 70 किलो) का होने की संभावना है। पिछले वर्ष भी देश में हल्दी का उत्पादन 43 लाख बोरियों का ही हुआ था। उत्पादन तो पिछले वर्ष के बराबर ही होगा लेकिन उत्पादक मंडियों में बकाया स्टॉक पिछले वर्ष के 12 लाख बोरी के मुकाबले मात्र छह से सात लाख बोरी का ही बचने का अनुमान है। ऐसे में उत्पादन व बकाया स्टॉक मिलाकर कुल उपलब्धता पिछले वर्ष के 55 लाख बोरी से घटकर 49 से 51 लाख बोरी ही रहने की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि घरेलू व निर्यात मांग को मिलाकर देश में हल्दी की सालाना खपत 46 से 47 लाख बोरियों की होती है। ऐसे में कुल उपलब्धता व खपत को देखते हुए चालू सीजन में आवक का दबाव बढ़ने पर भी हल्दी के भाव उत्पादक मंडियों में 3000 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे जाने के आसार कम हैं। पिछले वर्ष आवक का दबाव बनने के बाद उत्पादक मंडियों में हल्दी के भाव 2500 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे चले गए थे जिसकी वजह से किसानों ने माल बेचने से इंकार कर दिया था। निजामाबाद मंडी के हल्दी व्यापारी पूनम चंद गुप्ता ने बताया कि इस समय किसानों की बिकवाली ज्यादा आ रही है। लेकिन घरेलू व निर्यातकों की अच्छी मांग से भाव स्थिर ही बने हुए हैं। उन्होंने बताया कि इरोड़ मंडी में हल्दी का स्टॉक ढ़ाई लाख बोरी, डूग्गीराला में पौने दो लाख बोरी, निजामाबाद में 40 हजार, नांनदेड़ और वारंगल में क्रमश: 50-50 हजार बोरी तथा अन्य मंडियों विकाराबाद, सांगली व बुरहानपुर में एक लाख बोरियों का बचने का अनुमान है। इस समय निजामाबाद मंडी में हल्दी के भाव 3800 से 3850 रुपये और इरोड मंडी में 3900 से 4000 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं।भारतीय मसाला बोर्ड के सूत्रों के अनुसार चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से अक्टूबर तक हल्दी का निर्यात बढ़कर 32,250 टन का हो चुका है। पिछले वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 30,465 टन का ही हुआ था। (Business Bhaskar....R S Rana)
खुले बाजार में भाव कम रहने से राज्यों ने नहीं उठाई राशन की चीनी
बाजार में भाव कम रहने पर कई राज्यों में राशन की चीनी उठाने में दिलचस्पी घट गई। शुगर सीजन वर्ष 2007-08 में असम व जम्मू कश्मीर जैसे कई राज्यों ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत अपने आवंटन के मुकाबले काफी कम चीनी उठाई।वर्ष 2007-08 के दौरान जिन 11 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की सूचनाएं उपलब्ध हैं, उन्होंने राशन के लिए तय आवंटन से कम चीनी उठाई। इनमें दिल्ली, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा, जम्मू कश्मीर, लक्षद्वीप और अंडमान निकोबार शामिल हैं। सरकारी अधिकारी के अनुसार चीनी का राज्यों में उठान खुले बाजार में नॉन लेवी चीनी के मूल्य पर निर्भर करती है। अगर चीनी उत्पादन अच्छा हो और खुले बाजार में नॉन लेवी चीनी के मूल्य राशन की चीनी के बराबर या कम हों तो राज्यों द्वारा चीनी का उठान कम हो जाता है क्योंकि राज्यों में उपभोक्ता राशन से चीनी खरीदना पसंद नहीं करते हैं। वर्ष 2006-07 और 2007-08 के दौरान भारत में चीनी का बंपर उत्पादन हुआ था जिससे चीनी का भारी स्टॉक जमा हो गया और बाजार में भाव गिरते चले गए।राशन पर चीनी का मूल्य 2002 से 13.50 रुपये प्रति किलो चल रहा है। अघिकारी बताते है कि दिल्ली में वर्ष 2007-08 के दौरान 29440 टन राशन की चीनी उठाई गई जबकि उसका आवंटन 36490 टन था। दिल्ली को छोड़कर बाकी सभी राज्य अपने कोटे की चीनी भारतीय खाद्य निगम से उठाते हैं। दस अन्य राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों ने 427570 टन के मुकाबले 173560 टन चीनी का ही उठान किया। सभी राज्यों ने अपने आवंटन से कम चीनी उठाई। ज्यादातर राज्यों ने 2005-06 और 2006-07 में भी आवंटन के मुकाबले कम चीनी उठाई थी। अन्य राज्यों के बार में बताया कि उन्होंने चीनी उठान के बार में कोई सूचना नहीं भेजी है। ऐसे में कहना मुश्किल है कि उन्होंने चीनी का कोटा पूरा क्यों नहीं उठाया। (BS Hindi)
निवेशक पोर्टफोलियो में हो 15 फीसदी तक सोना
प्रेसिडेंट, रेलिगेयर कमोडिटीज नई दिल्ली: भारतीय बाजार में कमोडिटी एक्सचेंज अभी शुरुआती दौर में हैं। आम निवेशक सोना और चांदी में ही निवेश कर रहा है, बाकी कमोडिटीज से आम निवेशक दूर है। लेकिन भारत में कमोडिटी निवेश का भविष्य बेहतर है। अभी लोगों को सोने और चांदी में निवेश करना चाहिए। रेलिगेयर कमोडिटीज के प्रेसिडेंट जयंत मांगलिक ने 'मंदी के मैनेजर' की हैसियत से निवेशकों को यह सलाह दी। मांगलिक ने कहा, 'भारत में आम निवेशकों के लिए कमोडिटी बाजार में सोना और चांदी ही निवेश के बेहतर विकल्प हैं। मैं सलाह दूंगा कि हर व्यक्ति को अपने पोर्टफोलियो में 5 से 15 फीसदी तक सोना रखना चाहिए। निवेश के लिहाज से गोल्ड ईटीएफ बेहतर विकल्प हैं। कमोडिटी मार्केट के प्रदर्शन को देखें तो यहां शेयर बाजार की तरह ट्रेडिंग वॉल्यूम में ज्यादा कमी नहीं आई है। कमोडिटी की ट्रेडिंग में साल भर में 15 से 17 फीसदी की कमी वॉल्यूम के हिसाब से आई है।' सोने में निवेश के बारे में मांगलिक ने सलाह दी, 'अगर अर्थव्यवस्था में तेजी आती है तो उत्पादन बढ़ने से बाकी कमोडिटी की मांग बढ़ेगी। ऐसे में सोने की कीमतें नीचे आएंगी। लेकिन अगर मंदी जारी रहती है तो सोने की मांग बढ़ेगी। ऐसे में सोने की कीमतें चढ़ेंगी और निवेश बेहतर विकल्प होगा। ' मांगलिक ने कहा, 'सोने में किसी भी रूप में निवेश करते समय ग्राहक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह हॉलमार्क वाला सोना ले रहा है। बाकी तरह का सोना लेने में जब निवेशक बाजार में बेचने निकलता है तो कई तरह का बट्टा काट दिया जाता है। हॉलमार्क में बाजार भाव पर सोना बिक जाता है।' उन्होंने कहा कि लोगों को सोने, चांदी और कच्चे तेल जैसी कमोडिटी में ज्यादा निवेश करना चाहिए। इसकी मुख्य वजह यह है कि इन कमोडिटी का कारोबार पूरी दुनिया में होता है। इसलिए सोने, चांदी और कच्चे तेल के उतार-चढ़ाव के बारे में अपार सूचनाएं इंटरनेट और अन्य समाचार माध्यमों से आसानी से आम निवेशक को मिल जाती हैं। जितनी ज्यादा सूचनाएं उपलब्ध होंगी, निवेश करना उतना सुरक्षित होगा। कमोडिटी में निवेश को अन्य तरह के निवेश से ज्यादा आसान मानते हुए मांगलिक ने कहा, 'कमोडिटीज में कोई मोडिफिकेशन नहीं होता। इसका सीधा ताल्लुक मांग और आपूर्ति से होता है। निवेशक आसानी से समझ सकता है कि अगर निर्माण क्षेत्र में तेजी है तो सीमेंट और स्टील की कीमतें बढ़ेंगी। बाकी कमोडिटीज भी मांग और पूर्ति के सामान्य नियम का सीधे तौर पर पालन करती हैं।' (ET Hindi)
इस साल उवर्रक सब्सिडी में तीन गुने की बढ़ोतरी
नई दिल्ली : वर्ष 2008 में उवर्रक सरकार के लिए ऐसे बुरे स्वप्न की तरह रहा जिसे वह जल्द ही भूलना चाहेगी क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कीमतों में भारी तेजी के कारण उवर्रक सब्सिडी का बोझ तीन गुना बढ़ गया। संकट का पहला संकेत वैश्विक बाजारों में उर्वरकों की आसमान छूती कीमतें थीं। इसके बाद रुपए की कमजोरी के बीच मांग में तेजी आने से मुश्किलें बढ़ीं और बाद में वर्ष के उत्तरार्ध में जब कीमतें नरम हुई तब तक भारत का सब्सिडी बोझ भारत के कुल बजट व्यय का लगभग छठा हिस्सा हो गया। इस वृद्धि में आयात का भारी योगदान था जो वर्ष 2007-08 के 45,659 करोड़ रुपए के मुकाबले लगभग तीन गुना बढ़ गया। इससे केन्द्र और उद्योग दोनों जगहों के लिए मुश्किल का वक्त आ गया। एमओपी जैसे मुख्य उवर्रक किसानों को सरकार द्वारा निर्धारित कीमत पर प्रदान करते हैं जिसके बदले सरकार कंपनियों को उसकी क्षतिपूर्ति करती है। भारत का कुल खाद्यान्न उत्पादन वर्ष 2007-08 में 23 करोड़ 6.7 लाख टन रहा और वर्ष 2008-09 में सरकार उत्पादन में एक फीसदी की वृद्धि यानी 23 करोड़ 30 लाख टन करने का लक्ष्य रखती है। सरकार ने पहले ही वर्ष 2008-09 के लिए नकद और बांड के रूप में 89,000 करोड़ रुपए की सहायता प्रदान की है। आयातित उवर्रकों की कीमतें नीचे गिरी हैं और अगर रुपए का अवमूल्यन नहीं हुआ होता तो सब्सिडी की मात्रा कहीं और कम होती। (ET Hindi)
'एफएमसी की मजबूती के बाद ही वायदा बाजार में बैंक और वित्तीय संस्थानों की एंट्री'
December 25, 2008
चार साल तक बढ़ोतरी की लंबी छलांग लगाने के बाद जिंस वायदा कारोबार अब एकीकरण की तरफ बढ़ने लगा है।
साल 2008 में कमोडिटी एक्सचेंजों में से कुछ ने कारोबार बढ़ाने के लिए धातु व ऊर्जा क्षेत्र का रुख किया क्योंकि कृषि जिंस वायदा में राजनीतिक रोड़ा अटकने लगा था। अब एक बार फिर परिस्थितियां वायदा बाजार के अनुकूल होने लगी हैं। अब जिंस कारोबार के नियामक एफएमसी को और मजबूत बनाने की पहल की जा रही है। आयोग के अध्यक्ष बी. सी. खटुआ ने हमारे संवाददाता राजेश भयानी को दिए इंटरव्यू में साफ कहा कि गेहूं, चावल और दाल का वायदा कारोबार फिर से शुरू करवाना उनकी प्राथमिकता में शामिल है। पेश है बातचीत के मुख्य अंश।वायदा बाजार आयोग के लिए साल 2008 झटके जैसा है? वास्तव में इस साल कुछ नहीं हुआ?सचमुच ये साल चुनौती भरा रहा। हमने उम्मीदों के साथ साल की शुरुआत की थी क्योंकि फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट रेग्युलेशन एक्ट को संशोधित कने वाला अध्यादेश जनवरी महीने में आया। लेकिन संकट का दौर शुरू हो गया और मई आते-आते हमें चार जिंसों के वायदा कारोबार पर अस्थायी रोक लगानी पड़ी क्योंकि महंगाई ने सर उठाना शुरू कर दिया था। अब परिस्थितियां बदल रही हैं। बाजार ने इसे पचा लिया है। इन परिस्थितियों से सबको सीखने का मौक मिला है। बाजार के खिलाड़ियों ने महसूस किया है कि वायदा बाजार की अनुपस्थिति में खेती से जुड़े समुदाय परेशानी में होते हैं क्योंकि यहां कोई ऐसा सिस्टम नहीं है जिससे कीमतों के ट्रेंड का पता लगाया जा सके।कारोबारियों द्वारा अभियान चलाए जाने के बाद भी किरबर की कीमत और घटेगी, किसान माल नहीं बेच रहे हैं क्योंकि वायदा बाजार में इसका भाव हाजिर बाजार से ऊंचा है। आलू किसानों के सामने कीमत का ट्रेंड नहीं होने के कारण उन्हें भयवश माल बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है। वायदा कारोबार का विरोध करने वाले भी अब इस बात को समझ रहे हैं कि वायदा बाजार कितना महत्वपूर्ण है और सचमुच यह कितना मददगार है।साल 2009 के लिए एफएमसी का एजेंडा क्या है?मेरी पहली प्राथमिकता चार जिंसों गेहूं, चावल, अरहर और उड़द केवायदा कारोबार को बहाल करने की है। चूंकि इसके कारोबार पर अस्थायी रोक लगी थी, इसलिए दोबारा नोटिफिकेशन से इसे बहाल किया जा सकता है। दूसरी प्राथमिकता है जागरूकता अभियान चलाने की। इस अभियान को वायदा बाजार में दिलचस्पी रखने वाले खिलाड़ियों को शिक्षित करने केसाथ-साथ सार्वजनिक स्थल पर जिंसों के वायदा कीमतों का डिस्प्ले बोर्ड स्थापित कर अंजाम दिया जाएगा। यह प्रोजेक्ट फिलहाल चल रहा है और तीन मुख्य एक्सचेंजों ने एफएमसी के साथ मिलकर एपीएमसी, बैंकों की शाखाओं और दूसरी जगहों पर कीमतों का डिस्प्ले बोर्ड लगाया है और इस पर होने वाले खर्च को मिलकर वहन कर रहे हैं। ट्रेनिंग प्रोगाम के तहत आईआईएम अहमदाबाद के छात्र एफएमसी में ट्रेनिंग के लिए आ रहे हैं। कुछ और शिक्षण संस्थानों ने अपने पाठयक्रम में जिंस वायदा को शामिल किया है।क्या आपको लगता है कि गेहूं और दाल का वायदा कारोबार शुरू हो पाएगा?मुझे लगता है कि यह उम्मीद से पहले होना चाहिए। हमें नया नोटिफिकेशन जारी करना होगा। अगर सरकार प्रस्ताव को हरी झंडी दिखा देती है तो फिर हम नोटिफिकेशन जारी कर देंगे। इसके बाद एक्सचेंज एफएमसी की अनुमति से इन अनुबंधों को एक बार फिर शुरू कर पाएंगे।क्या अपेक्षित शक्तियों के अभाव में नियामक के रूप में एफएमसी प्रभावी रूप से काम कर पा रहा है?पिछले 5 साल में जिंस कारोबार कई गुणा बढा है। ऐसे में ये कहना मुनासिब नहीं है कि नियामक की शक्तियों के बिना ही बाजार दिन-दुना रात चौगुना तरक्की के पथ पर अग्रसर है। एफसीआर एक्ट को संशोधित करने वाला विधेयक संसद में पेश किया गया था, लेकिन पारित नहीं हो पाया।ये संशोधन विधेयक एफएमसी को स्वायत्त बनाने के लिए किए पेश किए गए थे। एफएमसी का स्वायत्त होना बाजार की जरूरत नहीं है। लेकिन अगर बाजार को और आगे ले जाना है तो फिर नियामक के पास शक्तियां तो होनी ही चाहिए।कौन-कौन सी नई चीजों का इंतजार है?बाजार में और सहभागियों की जरूरत है। भारतीय रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय ने संकेत दिया है कि जिंस बाजार में वित्तीय संस्थानों और बैंकों की भागीदारी की बाबत फैसला एफएमसी को मजबूत करने के बाद ही लिया जाएगा। हमने कई ऐसे रेग्युलेशन की तैयारी कर ली है, जो तभी पेश किए जाएंगे जब एफएमसी स्वायत्त दर्जा प्राप्त कर लेगा। बिना स्वायत्तता के हम काबिल लोगों की सेवाएं नहीं ले सकते। जब तक एफसीआरए बिल पास नहीं हो जाता, हम ऑप्शन व इंडेक्स फ्यूचर शुरू नहीं कर सकते।वायदा एक्सचेंजों ने गोदाम और स्पॉट एक्सचेंज की स्थापना के लिए गठजोड़ किया है। ऐसे में उन्हें रेग्युलेट करना मुश्किल नहीं होगा क्योंकि उनके कारोबार एक-दूसरे से जुड़े होंगे?को-ऑर्डिनेशन के मुद्दे को देखने की जरूरत है। सभी क्षेत्रों में उपस्थिति से एक्सचेंजों को ही फायदा होगा। भारत में स्पॉट कमोडिटी मार्केट राज्य की सूची में है जबकि वायदा कारोबार केंद्र सरकार द्वारा रेग्युलेट होता है। संसद ने वेयरहाउसिंग बिल पास किया है, लेकिन अब तक यह कानून का रूप नहीं ले पाया है। कमोडिटी एक्सचेंज गोदामों का इस्तेमाल अनुबंध की समाप्ति पर डिलिवरी के लिए करती हैं और वहां माल खास मानक पर रखा जाता है। स्पॉट एक्सचेंजों द्वारा भी इन गोदामों का इस्तेमाल किया जा सकेगा जब वे भी खास मानक को पूरा करने वाले माल रखने को राजी होंगे। इससे उन्हें ये फायदा होगा कि इसकी रसीद का इस्तेमाल वे एक्सचेंज के साथ किए जाने वाले कारोबार में कर पाएंगे। चूंकि ये गतिविधियां आपस में जुड़ी हुई हैं, लिहाजा इसमें विवाद की गुंजाइश तब होगी जब अलग-अलग रेग्युलेटर होंगे। (BS Hindi)
चार साल तक बढ़ोतरी की लंबी छलांग लगाने के बाद जिंस वायदा कारोबार अब एकीकरण की तरफ बढ़ने लगा है।
साल 2008 में कमोडिटी एक्सचेंजों में से कुछ ने कारोबार बढ़ाने के लिए धातु व ऊर्जा क्षेत्र का रुख किया क्योंकि कृषि जिंस वायदा में राजनीतिक रोड़ा अटकने लगा था। अब एक बार फिर परिस्थितियां वायदा बाजार के अनुकूल होने लगी हैं। अब जिंस कारोबार के नियामक एफएमसी को और मजबूत बनाने की पहल की जा रही है। आयोग के अध्यक्ष बी. सी. खटुआ ने हमारे संवाददाता राजेश भयानी को दिए इंटरव्यू में साफ कहा कि गेहूं, चावल और दाल का वायदा कारोबार फिर से शुरू करवाना उनकी प्राथमिकता में शामिल है। पेश है बातचीत के मुख्य अंश।वायदा बाजार आयोग के लिए साल 2008 झटके जैसा है? वास्तव में इस साल कुछ नहीं हुआ?सचमुच ये साल चुनौती भरा रहा। हमने उम्मीदों के साथ साल की शुरुआत की थी क्योंकि फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट रेग्युलेशन एक्ट को संशोधित कने वाला अध्यादेश जनवरी महीने में आया। लेकिन संकट का दौर शुरू हो गया और मई आते-आते हमें चार जिंसों के वायदा कारोबार पर अस्थायी रोक लगानी पड़ी क्योंकि महंगाई ने सर उठाना शुरू कर दिया था। अब परिस्थितियां बदल रही हैं। बाजार ने इसे पचा लिया है। इन परिस्थितियों से सबको सीखने का मौक मिला है। बाजार के खिलाड़ियों ने महसूस किया है कि वायदा बाजार की अनुपस्थिति में खेती से जुड़े समुदाय परेशानी में होते हैं क्योंकि यहां कोई ऐसा सिस्टम नहीं है जिससे कीमतों के ट्रेंड का पता लगाया जा सके।कारोबारियों द्वारा अभियान चलाए जाने के बाद भी किरबर की कीमत और घटेगी, किसान माल नहीं बेच रहे हैं क्योंकि वायदा बाजार में इसका भाव हाजिर बाजार से ऊंचा है। आलू किसानों के सामने कीमत का ट्रेंड नहीं होने के कारण उन्हें भयवश माल बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है। वायदा कारोबार का विरोध करने वाले भी अब इस बात को समझ रहे हैं कि वायदा बाजार कितना महत्वपूर्ण है और सचमुच यह कितना मददगार है।साल 2009 के लिए एफएमसी का एजेंडा क्या है?मेरी पहली प्राथमिकता चार जिंसों गेहूं, चावल, अरहर और उड़द केवायदा कारोबार को बहाल करने की है। चूंकि इसके कारोबार पर अस्थायी रोक लगी थी, इसलिए दोबारा नोटिफिकेशन से इसे बहाल किया जा सकता है। दूसरी प्राथमिकता है जागरूकता अभियान चलाने की। इस अभियान को वायदा बाजार में दिलचस्पी रखने वाले खिलाड़ियों को शिक्षित करने केसाथ-साथ सार्वजनिक स्थल पर जिंसों के वायदा कीमतों का डिस्प्ले बोर्ड स्थापित कर अंजाम दिया जाएगा। यह प्रोजेक्ट फिलहाल चल रहा है और तीन मुख्य एक्सचेंजों ने एफएमसी के साथ मिलकर एपीएमसी, बैंकों की शाखाओं और दूसरी जगहों पर कीमतों का डिस्प्ले बोर्ड लगाया है और इस पर होने वाले खर्च को मिलकर वहन कर रहे हैं। ट्रेनिंग प्रोगाम के तहत आईआईएम अहमदाबाद के छात्र एफएमसी में ट्रेनिंग के लिए आ रहे हैं। कुछ और शिक्षण संस्थानों ने अपने पाठयक्रम में जिंस वायदा को शामिल किया है।क्या आपको लगता है कि गेहूं और दाल का वायदा कारोबार शुरू हो पाएगा?मुझे लगता है कि यह उम्मीद से पहले होना चाहिए। हमें नया नोटिफिकेशन जारी करना होगा। अगर सरकार प्रस्ताव को हरी झंडी दिखा देती है तो फिर हम नोटिफिकेशन जारी कर देंगे। इसके बाद एक्सचेंज एफएमसी की अनुमति से इन अनुबंधों को एक बार फिर शुरू कर पाएंगे।क्या अपेक्षित शक्तियों के अभाव में नियामक के रूप में एफएमसी प्रभावी रूप से काम कर पा रहा है?पिछले 5 साल में जिंस कारोबार कई गुणा बढा है। ऐसे में ये कहना मुनासिब नहीं है कि नियामक की शक्तियों के बिना ही बाजार दिन-दुना रात चौगुना तरक्की के पथ पर अग्रसर है। एफसीआर एक्ट को संशोधित करने वाला विधेयक संसद में पेश किया गया था, लेकिन पारित नहीं हो पाया।ये संशोधन विधेयक एफएमसी को स्वायत्त बनाने के लिए किए पेश किए गए थे। एफएमसी का स्वायत्त होना बाजार की जरूरत नहीं है। लेकिन अगर बाजार को और आगे ले जाना है तो फिर नियामक के पास शक्तियां तो होनी ही चाहिए।कौन-कौन सी नई चीजों का इंतजार है?बाजार में और सहभागियों की जरूरत है। भारतीय रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय ने संकेत दिया है कि जिंस बाजार में वित्तीय संस्थानों और बैंकों की भागीदारी की बाबत फैसला एफएमसी को मजबूत करने के बाद ही लिया जाएगा। हमने कई ऐसे रेग्युलेशन की तैयारी कर ली है, जो तभी पेश किए जाएंगे जब एफएमसी स्वायत्त दर्जा प्राप्त कर लेगा। बिना स्वायत्तता के हम काबिल लोगों की सेवाएं नहीं ले सकते। जब तक एफसीआरए बिल पास नहीं हो जाता, हम ऑप्शन व इंडेक्स फ्यूचर शुरू नहीं कर सकते।वायदा एक्सचेंजों ने गोदाम और स्पॉट एक्सचेंज की स्थापना के लिए गठजोड़ किया है। ऐसे में उन्हें रेग्युलेट करना मुश्किल नहीं होगा क्योंकि उनके कारोबार एक-दूसरे से जुड़े होंगे?को-ऑर्डिनेशन के मुद्दे को देखने की जरूरत है। सभी क्षेत्रों में उपस्थिति से एक्सचेंजों को ही फायदा होगा। भारत में स्पॉट कमोडिटी मार्केट राज्य की सूची में है जबकि वायदा कारोबार केंद्र सरकार द्वारा रेग्युलेट होता है। संसद ने वेयरहाउसिंग बिल पास किया है, लेकिन अब तक यह कानून का रूप नहीं ले पाया है। कमोडिटी एक्सचेंज गोदामों का इस्तेमाल अनुबंध की समाप्ति पर डिलिवरी के लिए करती हैं और वहां माल खास मानक पर रखा जाता है। स्पॉट एक्सचेंजों द्वारा भी इन गोदामों का इस्तेमाल किया जा सकेगा जब वे भी खास मानक को पूरा करने वाले माल रखने को राजी होंगे। इससे उन्हें ये फायदा होगा कि इसकी रसीद का इस्तेमाल वे एक्सचेंज के साथ किए जाने वाले कारोबार में कर पाएंगे। चूंकि ये गतिविधियां आपस में जुड़ी हुई हैं, लिहाजा इसमें विवाद की गुंजाइश तब होगी जब अलग-अलग रेग्युलेटर होंगे। (BS Hindi)
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