कोयंबटूर December 04, 2008
सिस्टम ऑफ राइस इंटेसिफिकेशन (एसआरआई) को अपना कर भारत चावल का उत्पादन प्रति वर्ष 20 लाख टन बढ़ा सकता है।
इसे अपना कर 2025 तक देश में 14 करोड़ टन तक चावल का उत्पादन होना भी संभव है। यह जानकारी तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (टीएनएयू) के उप कुलपति सी रामास्वामी ने दी।इस तकनीक की शुरुआत मेडागास्कर में हेनरी डी लॉलानी द्वारा चावल की पैदावार बढ़ाने के लिए किया गया था।इस तरीके के इस्तेमाल से उर्वरक, परिश्रम, पूंजी और सिंचाई पर होने वाले खर्च में तो बचत होती ही है साथ ही मिट्टी भी उपजाऊ बनती है। रामास्वामी ने हाल ही में विष्वविद्यालय में हुए एसआरआई पर हुए सम्मेलन में कहा कि एसआरआई आधारित कृषि से चावल का उत्पादन बढ़ कर अप्रत्याशित रूप से 7 से 8 टन प्रति हेक्टेयर हो जाता है। यह 3.8 टन प्रति हेक्टेयर के औसत वैश्विक उत्पादन से लगभग दोगुना है। एसआरआई तरीके से रोपाई करने पर पौधों की उत्पादन सुरक्षित रहती है। रामास्वामी ने कहा कि इस अनाज को भारी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। उन्होंने बताया कि भारत में कृषि के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले 70 प्रतिशत पानी का इस्तेमाल चावल की खेती के लिए किया जाता है और टीएनएयू द्वारा कराए गए परीक्षणों में यह बात सामने आई है कि एसआरआई से 32 प्रतिशत पानी की बचत होती है।रामास्वामी ने कहा कि चावल का उत्पादन कीड़ा लगने से भी प्रभावित होता है जिसकी वजह से उपज में 50 से 60 फीसदी की कमी या फिर कभी-कभी पूरी फसल ही बर्बाद हो जाती है।एसआरआई विधि के अनुसार जैविक खाद और कंपोस्ट के समुचित इस्तेमाल से मिट्टी और फसल का भरपूर पोषण हो सकता है।एसआरआई का सफल परीक्षण 10 राज्यों और 34 देशों में सफलतापूर्वक किया जा चुका है। रामास्वामी ने बताया कि उपज में कम से कम 1.5 से 2.3 टन और अधिकतम 13 से 14 टन प्रति हेक्टेयर की बढ़त दे खी गई है। (BS Hindi)
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