भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की ना के बावजूद सरकार बैंकों को जिंस वायदा
में कारोबार करने की अनुमति देने की तैयारी कर रही है। लेकिन सरकार बैंकों
के लिए जिंस वायदा कारोबार की राह में आने वाली कानूनी अड़चनें दूर करने की
तैयारी कर रही है। मौजूदा समय में बैंकों को शेयर, बॉन्ड और मुद्रा में
कारोबार की अनुमति है लेकिन बैंकिंग नियमन कानून की धारा 8 के तहत वे
जिंसों का कारोबार नहीं कर सकती।
वित्त मंत्रालय अब उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के प्रस्ताव पर आगे बढऩे की तैयारी कर रहा है। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि कानून में संशोधन कर बैंकों को भी हेजिंग जैसी सुविधा मुहैया कराई जानी चाहिए। सूत्रों का कहना है कि बैंकिंग कानून संशोधन विधेयक को मॉनसून सत्र में संसद में पेश किया जा सकता है। दिलचस्प है कि वित्तीय मामलों की स्थायी समिति की रिपोर्ट में बैंकिंग कानून की धारा 8 में संशोधन का कोई प्रस्ताव नहीं है क्योंकि मूल विधेयक में इसे शामिल ही नहीं किया गया था। जहां तक बात वायदा अनुबंध (नियमन) कानून, 1952 की है तो इसके तहत सभी कंपनियों या संस्थाओं को जिंस वायदा कारोबार में भागीदारी की अनुमति दी गई है।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत जिंस बाजार की मुखर आलोचना करता रहा है। इसके बावजूद सरकार यह कदम उठाने जा रही है। संसद में भी वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने तेल की कीमतों में तेजी के लिए तेल के वित्तीयकरण को जिम्मेदार ठहराया था जबकि दुनिया खराब आर्थिक स्थिति से जूझ रही थी। हालांकि आरबीआई बैंकों के जिंस वायदा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में उतरने के पक्ष में नहीं है। आरबीआई का कहना है कि देश में स्वायत्त और स्वतंत्र जिंस नियामक का अभाव है। जिंस वायदा कारोबार का नियमन वायदा बाजार आयोग करता है जो खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के तहत आता है। हालांकि जिंस बाजार नियामक को स्वायत्तता देने की कवायद लंबे समय से हो रही है और इसके लिए एक विधेयक कैबिनेट की मंजूरी के बाद संसद के अगले सत्र में पेश किया जा सकता है।
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि वायदा बाजार आयोग को कानून के तहत स्वतंत्र इकाई का दर्जा नहीं है। ऐसे में सरकार जिंस बाजार नियामक के परिचालन में बहुत हस्तक्षेप नहीं करती है। आरबीआई ने वायदा बाजार आयोग में कर्मचारियों की कमी का भी मसला उठाया है। आरबीआई का कहना है कि इस कारण आयोग के कामकाज और प्रभावी तरीके से निगरानी में दिक्कत आ सकती है।
बैंकों को जिंस वायदा में कारोबार की अनुमति नहीं है लेकिन वे एक्सचेंजों के सदस्यों को धन मुहैया कराते हैं और क्लियरिंग सेवाएं देते हैं। इतना ही नहीं वे एक्सचेंजों को कार्यशील पूंजी भी उपलब्ध कराते हैं।
भारत में वर्ष 2002 से पहले वास्तविक तौर पर जिंस वायदा कारोबार की मौजूदगी नहीं के बराबर थी। हालांकि कुछेक क्षेत्रीय एक्सचेंजों में जिंस वायदा का कारोबार होता था। लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) और मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) खुलने के बाद जिंस वायदा कारोबार में तेजी आई है। (BS Hindi)
वित्त मंत्रालय अब उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के प्रस्ताव पर आगे बढऩे की तैयारी कर रहा है। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि कानून में संशोधन कर बैंकों को भी हेजिंग जैसी सुविधा मुहैया कराई जानी चाहिए। सूत्रों का कहना है कि बैंकिंग कानून संशोधन विधेयक को मॉनसून सत्र में संसद में पेश किया जा सकता है। दिलचस्प है कि वित्तीय मामलों की स्थायी समिति की रिपोर्ट में बैंकिंग कानून की धारा 8 में संशोधन का कोई प्रस्ताव नहीं है क्योंकि मूल विधेयक में इसे शामिल ही नहीं किया गया था। जहां तक बात वायदा अनुबंध (नियमन) कानून, 1952 की है तो इसके तहत सभी कंपनियों या संस्थाओं को जिंस वायदा कारोबार में भागीदारी की अनुमति दी गई है।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत जिंस बाजार की मुखर आलोचना करता रहा है। इसके बावजूद सरकार यह कदम उठाने जा रही है। संसद में भी वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने तेल की कीमतों में तेजी के लिए तेल के वित्तीयकरण को जिम्मेदार ठहराया था जबकि दुनिया खराब आर्थिक स्थिति से जूझ रही थी। हालांकि आरबीआई बैंकों के जिंस वायदा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में उतरने के पक्ष में नहीं है। आरबीआई का कहना है कि देश में स्वायत्त और स्वतंत्र जिंस नियामक का अभाव है। जिंस वायदा कारोबार का नियमन वायदा बाजार आयोग करता है जो खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के तहत आता है। हालांकि जिंस बाजार नियामक को स्वायत्तता देने की कवायद लंबे समय से हो रही है और इसके लिए एक विधेयक कैबिनेट की मंजूरी के बाद संसद के अगले सत्र में पेश किया जा सकता है।
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि वायदा बाजार आयोग को कानून के तहत स्वतंत्र इकाई का दर्जा नहीं है। ऐसे में सरकार जिंस बाजार नियामक के परिचालन में बहुत हस्तक्षेप नहीं करती है। आरबीआई ने वायदा बाजार आयोग में कर्मचारियों की कमी का भी मसला उठाया है। आरबीआई का कहना है कि इस कारण आयोग के कामकाज और प्रभावी तरीके से निगरानी में दिक्कत आ सकती है।
बैंकों को जिंस वायदा में कारोबार की अनुमति नहीं है लेकिन वे एक्सचेंजों के सदस्यों को धन मुहैया कराते हैं और क्लियरिंग सेवाएं देते हैं। इतना ही नहीं वे एक्सचेंजों को कार्यशील पूंजी भी उपलब्ध कराते हैं।
भारत में वर्ष 2002 से पहले वास्तविक तौर पर जिंस वायदा कारोबार की मौजूदगी नहीं के बराबर थी। हालांकि कुछेक क्षेत्रीय एक्सचेंजों में जिंस वायदा का कारोबार होता था। लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) और मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) खुलने के बाद जिंस वायदा कारोबार में तेजी आई है। (BS Hindi)
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