आर.एस. राणा
खाद्य मंत्रालय ने दक्षिण भारत की फ्लोर मिलों को 1,956 करोड़ रुपये की सौगात देने की तैयारी कर ली है। मंत्रालय ने उत्पादक राज्यों पंजाब, हरियाणा, उतर प्रदेश और मध्य प्रदेश की फ्लोर मिलों के साथ ही दक्षिण भारत के कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु की फ्लोर मिलों को एक ही दाम 11,700 रुपये प्रति टन के भाव पर गेहूं की बिक्री करने का प्रस्ताव तैयार किया है। टैक्स के कारण उत्पादक राज्यों की मिलों को दक्षिण की मिलों की तुलना में ज्यादा रेट पर गेहूं खरीदना होगा। इससे उत्तर भारत की मिलों के लिए समस्या बढ़ेगी जबकि तीन चौथाई फ्लोर मिलें उत्तर में ही हैं। इकोनॉमिक लागत के आधार पर देखा जाए तो दक्षिण की मिलों को सरकार की तरफ से करीब 51 फीसदी सब्सिडी का लाभ मिलेगा। गौरतलब है कि खाद्य मंत्री प्रो.के.वी. थॉमस केरल के रहने वाले हैं। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार देशभर की फ्लोर मिलों को एक ही दाम पर गेहूं बेचने की योजना बनाई गई है। जनवरी से मार्च के दौरान खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत गेहूं की बिक्री न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और 50 प्रतिशत परिवहन लागत के आधार पर की जा रही थी। विपणन सीजन 2011-12 में गेहूं का एमएसपी 11,700 रुपये प्रति टन था और इकोनॉमिक लागत 16,510.93 लागत रुपये थी। इसमें परिवहन लागत और जुड़ता था। विपणन सीजन 2011-12 की इकोनॉमिक लागत में चेन्नई तक 50 प्रतिशत परिवहन लागत 1,180 रुपये प्रति टन जोडऩे पर दाम 17,691 रुपये प्रति टन हो जाता है। लेकिन फ्लोर मिलों को गेहूं 11,700 रुपये प्रति टन के रेट पर मिलेगा। इस आधार पर सरकार को 5,991 रुपये प्रति टन यानी करीब 51 फीसदी सब्सिडी का भार वहन करना पड़ेगा। चंडीगढ़ फ्लोर मिल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विनोद मित्तल ने बताया कि प्रमुख उत्पादक राज्यों में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) का गेहूं खरीदने पर वैट या परचेज टैक्स देना पड़ता है। गैर उत्पादक राज्यों में गेहूं पर वैट नहीं है। ऐसे में खाद्य मंत्रालय द्वारा ओएमएसएस के लिए एक दाम कर दिए जाने के बाद उत्पादक राज्यों की फ्लोर मिलों को महंगा गेहूं मिलेगा और दक्षिण भारत की मिलों को सस्ता। पंजाब, हरियाणा की फ्लोर मिलों को 11,700 रुपये और 600 रुपये प्रति टन वैट (5 प्रतिशत) मिलाकर कुल 12,300 रुपये प्रति टन की दर से खरीद करनी पड़ेगी। चेन्नई स्थित फ्लोर मिल को यही गेहूं 11,700 रुपये प्रति टन के भाव पर मिलेगा। उत्तर प्रदेश की एक प्रमुख फ्लोर मिल के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि गेहूं की 75 प्रतिशत फ्लोर मिलें उत्पादक राज्यों में हैं, दक्षिण में केवल 25 फीसदी मिलें हैं। देशभर की मिलों के लिए एक दाम कर देने से उत्तर भारत की फ्लोर मिलों के सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो जाएगा। उन्होंने बताया कि आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि ओएमएसएस में देशभर की फ्लोर मिलों को एक ही दाम पर गेहूं की बिक्री की गई हो।
योजना और फायदा
देशभर की फ्लोर मिलों को एक दाम पर गेहूं की बिक्ी
टैक्स के कारण उत्पादक राज्यों को महंगा पड़ेगा गेहूं
दक्षिण के राज्य उत्पादक नहीं, इसलिए भाव पड़ेगा कम
निर्यात मोर्चे पर बाजी मार सकती हैं दक्षिण की मिलें
सब्सिडी का बोझ
विपणन सीजन 2011-12 की इकोनॉमिक लागत में चेन्नई तक परिवहन लागत 1,180 रुपये प्रति टन जोडऩे पर दाम 17,691 रुपये प्रति टन बैठता है। लेकिन फ्लोर मिलों को गेहूं 11,700 रुपये प्रति टन के भाव मिलेगा। इस आधार पर सरकार को 5,991 रुपये प्रति टन यानी करीब 51 फीसदी सब्सिडी का भार वहन करना पड़ेगा। (Business Bhaskar..........R S Rana)
खाद्य मंत्रालय ने दक्षिण भारत की फ्लोर मिलों को 1,956 करोड़ रुपये की सौगात देने की तैयारी कर ली है। मंत्रालय ने उत्पादक राज्यों पंजाब, हरियाणा, उतर प्रदेश और मध्य प्रदेश की फ्लोर मिलों के साथ ही दक्षिण भारत के कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु की फ्लोर मिलों को एक ही दाम 11,700 रुपये प्रति टन के भाव पर गेहूं की बिक्री करने का प्रस्ताव तैयार किया है। टैक्स के कारण उत्पादक राज्यों की मिलों को दक्षिण की मिलों की तुलना में ज्यादा रेट पर गेहूं खरीदना होगा। इससे उत्तर भारत की मिलों के लिए समस्या बढ़ेगी जबकि तीन चौथाई फ्लोर मिलें उत्तर में ही हैं। इकोनॉमिक लागत के आधार पर देखा जाए तो दक्षिण की मिलों को सरकार की तरफ से करीब 51 फीसदी सब्सिडी का लाभ मिलेगा। गौरतलब है कि खाद्य मंत्री प्रो.के.वी. थॉमस केरल के रहने वाले हैं। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार देशभर की फ्लोर मिलों को एक ही दाम पर गेहूं बेचने की योजना बनाई गई है। जनवरी से मार्च के दौरान खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत गेहूं की बिक्री न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और 50 प्रतिशत परिवहन लागत के आधार पर की जा रही थी। विपणन सीजन 2011-12 में गेहूं का एमएसपी 11,700 रुपये प्रति टन था और इकोनॉमिक लागत 16,510.93 लागत रुपये थी। इसमें परिवहन लागत और जुड़ता था। विपणन सीजन 2011-12 की इकोनॉमिक लागत में चेन्नई तक 50 प्रतिशत परिवहन लागत 1,180 रुपये प्रति टन जोडऩे पर दाम 17,691 रुपये प्रति टन हो जाता है। लेकिन फ्लोर मिलों को गेहूं 11,700 रुपये प्रति टन के रेट पर मिलेगा। इस आधार पर सरकार को 5,991 रुपये प्रति टन यानी करीब 51 फीसदी सब्सिडी का भार वहन करना पड़ेगा। चंडीगढ़ फ्लोर मिल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विनोद मित्तल ने बताया कि प्रमुख उत्पादक राज्यों में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) का गेहूं खरीदने पर वैट या परचेज टैक्स देना पड़ता है। गैर उत्पादक राज्यों में गेहूं पर वैट नहीं है। ऐसे में खाद्य मंत्रालय द्वारा ओएमएसएस के लिए एक दाम कर दिए जाने के बाद उत्पादक राज्यों की फ्लोर मिलों को महंगा गेहूं मिलेगा और दक्षिण भारत की मिलों को सस्ता। पंजाब, हरियाणा की फ्लोर मिलों को 11,700 रुपये और 600 रुपये प्रति टन वैट (5 प्रतिशत) मिलाकर कुल 12,300 रुपये प्रति टन की दर से खरीद करनी पड़ेगी। चेन्नई स्थित फ्लोर मिल को यही गेहूं 11,700 रुपये प्रति टन के भाव पर मिलेगा। उत्तर प्रदेश की एक प्रमुख फ्लोर मिल के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि गेहूं की 75 प्रतिशत फ्लोर मिलें उत्पादक राज्यों में हैं, दक्षिण में केवल 25 फीसदी मिलें हैं। देशभर की मिलों के लिए एक दाम कर देने से उत्तर भारत की फ्लोर मिलों के सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो जाएगा। उन्होंने बताया कि आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि ओएमएसएस में देशभर की फ्लोर मिलों को एक ही दाम पर गेहूं की बिक्री की गई हो।
योजना और फायदा
देशभर की फ्लोर मिलों को एक दाम पर गेहूं की बिक्ी
टैक्स के कारण उत्पादक राज्यों को महंगा पड़ेगा गेहूं
दक्षिण के राज्य उत्पादक नहीं, इसलिए भाव पड़ेगा कम
निर्यात मोर्चे पर बाजी मार सकती हैं दक्षिण की मिलें
सब्सिडी का बोझ
विपणन सीजन 2011-12 की इकोनॉमिक लागत में चेन्नई तक परिवहन लागत 1,180 रुपये प्रति टन जोडऩे पर दाम 17,691 रुपये प्रति टन बैठता है। लेकिन फ्लोर मिलों को गेहूं 11,700 रुपये प्रति टन के भाव मिलेगा। इस आधार पर सरकार को 5,991 रुपये प्रति टन यानी करीब 51 फीसदी सब्सिडी का भार वहन करना पड़ेगा। (Business Bhaskar..........R S Rana)
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