30 जून 2012
मॉनसून अटका, धान का रकबा घटा
जून में सामान्य से कम बारिश की वजह से पूरे देश में खरीफ फसलों की बुआई में विलंब हुआ है और खासकर धान एवं मोटे अनाजों पर इसका ज्यादा असर पड़ा है जिनका रकबा 29 जून तक पिछले तीन वर्षों में सबसे कम दर्ज किया गया।
कृषि मंत्रालय से प्राप्त ताजा आंकड़ों के अनुसार 29 जून तक धान की बुआई लगभग 30.7 लाख हेक्टेयर भूमि पर हुई जो पिछले साल की तुलना में लगभग 26 फीसदी कम है। वर्ष 2010 में जून के अंत तक लगभग 46.4 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान की बुआई हुई थी जबकि 2009 में यह आंकड़ा 38.1 लाख हेक्टेयर था। कृषि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'मॉनसून में विलंब की वजह से पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ जैसे सभी धान उत्पादक राज्यों धान की बुआई पिछले साल की तुलना में कम है।' हालांकि उन्होंने कहा कि फिलहाल स्थिति ज्यादा गंभीर नहीं है, क्योंकि मॉनसून में जून के बाद के हिस्से में तेजी दर्ज की गई है।
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार अब तक मॉनसून की बारिश 1 जून से 27 जून के बीच सामान्य से 23 फीसदी कम दर्ज की गई जबकि पिछले साल 1 से 29 जून के बीच इसमें 10.7 फीसदी की वृद्घि दर्ज की गई थी।
दक्षिण-पश्चिम का मॉनसून भारतीय कृषि के लिए अहम है, क्योंकि कुल कृषि योग्य भूमि के लगभग 55 फीसदी में सिंचाई की सुविधाएं नहीं हैं। लगभग 2 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का योगदान करीब 15 फीसदी है।
कृषि मंत्रालय के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि खासकर मोटे अनाज के उत्पादन के लिए प्रख्यात दक्षिण और पश्चिम भारत में मोटे अनाज का रकबा पिछले साल की तुलना में लगभग 53 फीसदी कम है। खरीफ फसलों, खासकर तिलहन और दलहन, के उत्पादन में गिरावट से खाद्य मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिल सकता है जो मार्च 2012 के बाद से पहले ही दोहरे अंक में है। हालांकि अनाज में ऐसी कोई समस्या नहीं है, क्योंकि सरकार के पास गोदामों में पर्याप्त भंडार मौजूद है। आंकड़ों के अनुसार 29 जून तक 10.7 लाख हेक्टेयर भूमि पर तिलहन की बुआई हुई जो पिछले साल की तुलना में लगभग 17 फीसदी कम है। (BS Hindi)
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