धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढऩे का इसकी बुआई पर सकारात्मक असर
तो होगा, लेकिन धान के रकबे में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी की संभावना कम है।
कृषि जानकार और किसानों का कहना है कि एमएसपी में बढ़ोतरी पर मॉनसून में
देरी भारी पड़ सकती है। अगर मॉनसून यहां से अनुकूल हो जाता है, तो कम से कम
इसमें गिरावट आने की संभावना नहीं है। किसान लागत में बढ़ोतरी और मिलने
वाली कीमत के हिसाब से इस बढ़ोतरी को नाकाफी बता रहे हैं। उनका तर्क है कि
बिजली कटौती से डीजल का खर्चा बढ़ा है और कामगारों को भी ज्यादा मजदूरी
देनी पड़ रही है, जिससे किसानों की लागत बढ़ गई है।
सरकार ने पिछले सप्ताह वर्ष 2012-13 के लिए सामान्य किस्म की धान का एमएसपी 170 रुपये बढ़ाकर 1250 रुपये कर दिया। ए श्रेणी के धान का एमएसपी भी बढ़कर 1280 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2011-12 में 394.7 लाख हेक्टेयर में धान की बुआई हुई थी। पंजाब के किसान भगवान सिंह कहते हैं - लागत के हिसाब से एमएसपी अभी भी कम है, लेकिन राज्य के किसानों के पास दूसरा विकल्प नहीं होने से मजबूरी में धान की खेती करनी पड़ेगी। सिंह कहते हैं कि बीते कुछ वर्षो में बंपर पैदावार व निर्यात पाबंदी के कारण किसानों को कम दाम मिले हैं। इस बार एमएसपी बढऩे से दाम ज्यादा मिलने की उम्मीद है, बशर्ते धान की सरकारी खरीद सुनिश्चित हो। ऐसे में इसका रकबा थोड़ा बढ़ सकता है। राज्य में करीब 28 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है।
कटक स्थित केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्र कहते हैं कि एमएसपी बढऩे से किसान धान की खेती की ओर आकर्षित होंगे, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती किसानों को समर्थन मूल्य दिलाने की है। बीते वर्षो में देखा गया है कि किसानों को समर्थन मूल्य से कम दाम पर धान बेचना पड़ा है। रकबे में बढ़ोतरी के सवाल पर उनका कहना है यह काफी हद तक मॉनसून पर भी निर्भर करेगा। अभी तक मॉनसून में हुई देरी का असर तो इसकी बुआई पर होगा। अगर आगे मॉनसून ठीक रहता है तो रकबा बीते साल के बराबर या इससे ज्यादा होने की उम्मीद है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के डॉ. डीएस चीमा भी मानते है कि धान का रकबा मॉनसून पर काफी हद तक निर्भर करेगा। चीमा कहते हैं कि दूसरी फसल का विकल्प न होने के कारण पंजाब में इसके रकबे में गिरावट की आशंका नहीं है।
उत्तर प्रदेश के पंचशील नगर जिले के किसान मलूक सिंह का कहना हैं कि एमएसपी बढऩे से रकबा भले ही न बढ़े, पर इसमें कमी नहीं आएगी। अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ के अध्यक्ष विजय सेतिया ने बताया कि मॉनसून में और देरी होने पर बासमती धान का रकबा बढऩा तय है। दरअसल बासमती धान को सामान्य धान की तुलना में कम पानी की आवश्यकता होती है। (BS Hindi)
सरकार ने पिछले सप्ताह वर्ष 2012-13 के लिए सामान्य किस्म की धान का एमएसपी 170 रुपये बढ़ाकर 1250 रुपये कर दिया। ए श्रेणी के धान का एमएसपी भी बढ़कर 1280 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2011-12 में 394.7 लाख हेक्टेयर में धान की बुआई हुई थी। पंजाब के किसान भगवान सिंह कहते हैं - लागत के हिसाब से एमएसपी अभी भी कम है, लेकिन राज्य के किसानों के पास दूसरा विकल्प नहीं होने से मजबूरी में धान की खेती करनी पड़ेगी। सिंह कहते हैं कि बीते कुछ वर्षो में बंपर पैदावार व निर्यात पाबंदी के कारण किसानों को कम दाम मिले हैं। इस बार एमएसपी बढऩे से दाम ज्यादा मिलने की उम्मीद है, बशर्ते धान की सरकारी खरीद सुनिश्चित हो। ऐसे में इसका रकबा थोड़ा बढ़ सकता है। राज्य में करीब 28 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है।
कटक स्थित केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्र कहते हैं कि एमएसपी बढऩे से किसान धान की खेती की ओर आकर्षित होंगे, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती किसानों को समर्थन मूल्य दिलाने की है। बीते वर्षो में देखा गया है कि किसानों को समर्थन मूल्य से कम दाम पर धान बेचना पड़ा है। रकबे में बढ़ोतरी के सवाल पर उनका कहना है यह काफी हद तक मॉनसून पर भी निर्भर करेगा। अभी तक मॉनसून में हुई देरी का असर तो इसकी बुआई पर होगा। अगर आगे मॉनसून ठीक रहता है तो रकबा बीते साल के बराबर या इससे ज्यादा होने की उम्मीद है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के डॉ. डीएस चीमा भी मानते है कि धान का रकबा मॉनसून पर काफी हद तक निर्भर करेगा। चीमा कहते हैं कि दूसरी फसल का विकल्प न होने के कारण पंजाब में इसके रकबे में गिरावट की आशंका नहीं है।
उत्तर प्रदेश के पंचशील नगर जिले के किसान मलूक सिंह का कहना हैं कि एमएसपी बढऩे से रकबा भले ही न बढ़े, पर इसमें कमी नहीं आएगी। अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ के अध्यक्ष विजय सेतिया ने बताया कि मॉनसून में और देरी होने पर बासमती धान का रकबा बढऩा तय है। दरअसल बासमती धान को सामान्य धान की तुलना में कम पानी की आवश्यकता होती है। (BS Hindi)
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