खाद्यान्न का कटोरा कहे जाने वाले पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की तरह
मध्य प्रदेश उत्पादन और खरीद के लिहाज से देश में गेहूं के नए कटोरे के रूप
में उभरा है। गेहूं की तरफ किसानों का रुझान इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि
राज्य सरकार केंद्र के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के अलावा 100 रुपये
प्रति क्विंटल को बोनस भी देती है।
वर्ष 2009-10 और 2012-13 के बीच प्रदेश का गेहूं उत्पादन 65 लाख टन से बढ़कर बढ़कर करीब दोगुना यानी 20 लाख टन हो गया है। इस अवधि में गेहूं उत्पादन पंजाब में 9.6 फीसदी, हरियाणा में 7.4 फीसदी और उत्तर प्रदेश में 14.5 फीसदी बढ़ा है। इन तीनों राज्यों का देश के कुल वार्षिक उत्पादन में करीब 80 फीसदी योगदान है। उत्पादन के साथ ही राज्य में खरीद भी बढ़ी है, जिससे किसान ज्यादा गेहूं बोने को प्रोत्साहित हुए हैं।
वर्ष 2010-2011 और 2012-2013 के बीच मध्य प्रदेश की सालाना गेहूं खरीद 35 लाख टन से बढ़कर 80 लाख टन होने का अनुमान है यानी इसमें 128 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान पंजाब में 21 फीसदी और हरियाणा में 34 फीसदी खरीद बढ़ी है। उत्तर प्रदेश में खरीद बेहतर रही, जो 2010-2011 में 16.4 लाख टन से बढ़कर 2012-2013 में दोगुनी से अधिक यानी 40 लाख टन होने की संभावना है। हालांकि गेहूं पर जरूरत से ज्यादा जोर की वजह से कुछ चिंताएं भी हैं, क्योंकि तिलहन (जैसे सरसों), कुछ दालों और गेहूं की शरबती जैसी परंपरागत किस्मों के रकबे में गेहूं की बौनी किस्मों की बुआई की जा रही है। आधिकारिक आंकड़े दर्शाते हैं कि 2011-12 में दिसंबर तक राज्य में गेहूं का रकबा करीब 16 फीसदी बढ़कर 44 लाख हेक्टेयर रहा, जबकि सरसों के रकबे में 4.8 फीसदी गिरावट दर्ज की गई।
गेहूं और सरसों दोनों रबी की फसलें हैं, जिससे संदेह बढ़ता है कि सरसों और कुछ अन्य दलहनों की कीमत पर गेहूं का रकबा बढ़ रहा है। राज्य सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि 2012-13 में 110 लाख टन गेहूं का उत्पादन हुआ। इसमें 6 लाख टन शरबती था, जो 2011-2012 में 5.4 लाख टन था।
हालांकि राज्य सरकार के अधिकारियों ने इन आरोपों को खंडन किया। मध्य प्रदेश में खाद्य और परिवहन विभाग के सहायक मुख्य सचिव एंथनी डी सॉ ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, 'सही है कि प्रदेश में कुल गेहूं उत्पादन के अनुपात की दृष्टि से 2012-2013 में 2011-12 के मुकाबले शरबती के उत्पादन में मामूली गिरावट आई है। लेकिन मात्रा के लिहाज से इस साल शरबती का उत्पादन करीब 60,000 टन बढ़ा है।' मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव आर परशुराम ने कहा, 'यह किसान की रुचि पर निर्भर करता है कि वह क्या उगाए?'
उन्होंने कहा कि शरबती का बाजार में भाव करीब 2,000 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि गेहूं की अन्य किस्मों की निर्धारित कीमत 1,385 रुपये प्रति क्विंटल है। करनाल के गेहूं अनुसंधान केंद्र में निदेशक इंदु शर्मा ने कहा, ' प्रदेश में गेहूं ने अन्य फसलों के रकबे की जगह नहीं ली है, बल्कि नई कृषि तकनीक का इस्तेमाल कर उत्पादन में पहले से बने हुए अंतर की भरपाई की है।'
राज्य सरकार 2012-2013 के लिए निर्धारित 1,285 रुपये प्रति क्विंटल के एमएसपी पर 100 रुपये का बोनस दे रही है। अधिकारियों ने कहा, 'ऐसा नहीं है। अगर किसानों को अन्य फसलों के मुकाबले अच्छी कीमत मिल रही है तो वे इसे उगाएंगे, क्योंकि यह उनका निर्णय है।'
सहायक मुख्य सचिव एंथनी डे सा ने कहा, 'हमने मध्य प्रदेश में पंजीकरण, बिक्री की तारीख और स्थान की सूचना के लिए मोबाइल एसएमएस अलर्ट और किसानों के बैंक खातों में गेहूं की राशि सीधे भेजने की पारदर्शी प्रणाली अपनाई है।'
मध्य प्रदेश में गेहूं खरीद का नया तरीका
इस साल जनवरी से राज्य में केंद्रीय कंप्यूटरीकृत प्रणाली में 15 लाख किसानों का पंजीकरण किया गया है। पंजीकरण के दौरान किसानों से अपनी जमीन से संबंधित जानकारियां, भूमि का सर्वे नंबर, मोबाइल नंबर (खुद का या पड़ोसी का) बैंक खाते की जानकारी (अगर नहीं है तो खुलवाने के लिए कहा जाता है) की जानकारी मुहैया कराने के लिए कहा जाता है। साथ ही उनसे राज्य की एजेंसियों को गेहूं बेचने की तारीख की पसंद के बारे में पूछा जाता है। ज्यों ही राज्य सरकार अपनी वार्षिक खरीद शुरू करती है, किसान को एक एसएमएस मिलता है कि खरीद शुरू कर दी गई है। इसमें तारीख और उस स्थान का नाम दिया हुआ होता है, जहां किसान को अपनी उपज बेचने के लिए लेकर आनी है। तारीख से चार दिन पहले किसान को फिर से एसएमएस भेजकर याद दिलाई जाती है। बिक्री पूरी होने के बाद एक लॉग बुक में एंट्री कर ली जाती है, जिसमें लेन-देने की जानकारी होती है।
किसानों के पास कई खेपों में गेहूं बेचने की स्वतंत्रता होती है। अगर कोई किसान दी हुई तारीख पर निर्धारित खरीद केंद्र पर नहीं पहुंच पाता है तो उसका नाम सूची से हटाया नहीं जाता। इसके बजाय सूची में नीचे कर दिया जाता है और बाकी अन्य के गेहूं बेचने के बाद उसे फिर से बिक्री का मौका दिया जाता है। (BS Hindi)
वर्ष 2009-10 और 2012-13 के बीच प्रदेश का गेहूं उत्पादन 65 लाख टन से बढ़कर बढ़कर करीब दोगुना यानी 20 लाख टन हो गया है। इस अवधि में गेहूं उत्पादन पंजाब में 9.6 फीसदी, हरियाणा में 7.4 फीसदी और उत्तर प्रदेश में 14.5 फीसदी बढ़ा है। इन तीनों राज्यों का देश के कुल वार्षिक उत्पादन में करीब 80 फीसदी योगदान है। उत्पादन के साथ ही राज्य में खरीद भी बढ़ी है, जिससे किसान ज्यादा गेहूं बोने को प्रोत्साहित हुए हैं।
वर्ष 2010-2011 और 2012-2013 के बीच मध्य प्रदेश की सालाना गेहूं खरीद 35 लाख टन से बढ़कर 80 लाख टन होने का अनुमान है यानी इसमें 128 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान पंजाब में 21 फीसदी और हरियाणा में 34 फीसदी खरीद बढ़ी है। उत्तर प्रदेश में खरीद बेहतर रही, जो 2010-2011 में 16.4 लाख टन से बढ़कर 2012-2013 में दोगुनी से अधिक यानी 40 लाख टन होने की संभावना है। हालांकि गेहूं पर जरूरत से ज्यादा जोर की वजह से कुछ चिंताएं भी हैं, क्योंकि तिलहन (जैसे सरसों), कुछ दालों और गेहूं की शरबती जैसी परंपरागत किस्मों के रकबे में गेहूं की बौनी किस्मों की बुआई की जा रही है। आधिकारिक आंकड़े दर्शाते हैं कि 2011-12 में दिसंबर तक राज्य में गेहूं का रकबा करीब 16 फीसदी बढ़कर 44 लाख हेक्टेयर रहा, जबकि सरसों के रकबे में 4.8 फीसदी गिरावट दर्ज की गई।
गेहूं और सरसों दोनों रबी की फसलें हैं, जिससे संदेह बढ़ता है कि सरसों और कुछ अन्य दलहनों की कीमत पर गेहूं का रकबा बढ़ रहा है। राज्य सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि 2012-13 में 110 लाख टन गेहूं का उत्पादन हुआ। इसमें 6 लाख टन शरबती था, जो 2011-2012 में 5.4 लाख टन था।
हालांकि राज्य सरकार के अधिकारियों ने इन आरोपों को खंडन किया। मध्य प्रदेश में खाद्य और परिवहन विभाग के सहायक मुख्य सचिव एंथनी डी सॉ ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, 'सही है कि प्रदेश में कुल गेहूं उत्पादन के अनुपात की दृष्टि से 2012-2013 में 2011-12 के मुकाबले शरबती के उत्पादन में मामूली गिरावट आई है। लेकिन मात्रा के लिहाज से इस साल शरबती का उत्पादन करीब 60,000 टन बढ़ा है।' मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव आर परशुराम ने कहा, 'यह किसान की रुचि पर निर्भर करता है कि वह क्या उगाए?'
उन्होंने कहा कि शरबती का बाजार में भाव करीब 2,000 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि गेहूं की अन्य किस्मों की निर्धारित कीमत 1,385 रुपये प्रति क्विंटल है। करनाल के गेहूं अनुसंधान केंद्र में निदेशक इंदु शर्मा ने कहा, ' प्रदेश में गेहूं ने अन्य फसलों के रकबे की जगह नहीं ली है, बल्कि नई कृषि तकनीक का इस्तेमाल कर उत्पादन में पहले से बने हुए अंतर की भरपाई की है।'
राज्य सरकार 2012-2013 के लिए निर्धारित 1,285 रुपये प्रति क्विंटल के एमएसपी पर 100 रुपये का बोनस दे रही है। अधिकारियों ने कहा, 'ऐसा नहीं है। अगर किसानों को अन्य फसलों के मुकाबले अच्छी कीमत मिल रही है तो वे इसे उगाएंगे, क्योंकि यह उनका निर्णय है।'
सहायक मुख्य सचिव एंथनी डे सा ने कहा, 'हमने मध्य प्रदेश में पंजीकरण, बिक्री की तारीख और स्थान की सूचना के लिए मोबाइल एसएमएस अलर्ट और किसानों के बैंक खातों में गेहूं की राशि सीधे भेजने की पारदर्शी प्रणाली अपनाई है।'
मध्य प्रदेश में गेहूं खरीद का नया तरीका
इस साल जनवरी से राज्य में केंद्रीय कंप्यूटरीकृत प्रणाली में 15 लाख किसानों का पंजीकरण किया गया है। पंजीकरण के दौरान किसानों से अपनी जमीन से संबंधित जानकारियां, भूमि का सर्वे नंबर, मोबाइल नंबर (खुद का या पड़ोसी का) बैंक खाते की जानकारी (अगर नहीं है तो खुलवाने के लिए कहा जाता है) की जानकारी मुहैया कराने के लिए कहा जाता है। साथ ही उनसे राज्य की एजेंसियों को गेहूं बेचने की तारीख की पसंद के बारे में पूछा जाता है। ज्यों ही राज्य सरकार अपनी वार्षिक खरीद शुरू करती है, किसान को एक एसएमएस मिलता है कि खरीद शुरू कर दी गई है। इसमें तारीख और उस स्थान का नाम दिया हुआ होता है, जहां किसान को अपनी उपज बेचने के लिए लेकर आनी है। तारीख से चार दिन पहले किसान को फिर से एसएमएस भेजकर याद दिलाई जाती है। बिक्री पूरी होने के बाद एक लॉग बुक में एंट्री कर ली जाती है, जिसमें लेन-देने की जानकारी होती है।
किसानों के पास कई खेपों में गेहूं बेचने की स्वतंत्रता होती है। अगर कोई किसान दी हुई तारीख पर निर्धारित खरीद केंद्र पर नहीं पहुंच पाता है तो उसका नाम सूची से हटाया नहीं जाता। इसके बजाय सूची में नीचे कर दिया जाता है और बाकी अन्य के गेहूं बेचने के बाद उसे फिर से बिक्री का मौका दिया जाता है। (BS Hindi)
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