नकद मार्जिन के दायित्व के तौर पर सावधि जमा की रसीद स्वीकार करने से मना
करने के महज एक हफ्ते बाद ही नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव एक्सचेंज ने इसे
दोबारा बहाल कर दिया है।
7 जून को वायदा बाजार आयोग ने सभी एक्सचेंजों को नकद मार्जिन के दायित्व के तौर पर एफडीआर स्वीकार नहीं करने का निर्देश दिया था। हालांकि ब्रोकिंग फर्मों ने इस कदम की आलोचना की थी। उनका कहना था कि एफडीआर की प्राप्ति बैंक में नकद जमा कराने के बाद ही होती है, लिहाजा एफडीआर नकदी की तरह ही है। शुक्रवार को हालांकि एफएमसी ने पूर्व स्थिति बहाल कर दी और एक्सचेंजों को नकद मार्जिन के दायित्व के तौर पर एफडीआर स्वीकार करने की छूट दे दी।
एफएमसी की पूर्वानुमति से जिंस एक्सचेंज वायदा बाजार में उतारचढ़ाव को देखते हुए मार्जिन और स्पेशल मार्जिन लगा सकते हैं। कुछ वैश्विक जिंस मसलन सोना, चांदी, कच्चा तेल और रिफाइंस सोया तेल आदि सीधे तौर पर अमेरिका व यूरोप के बाजार से जुड़ाव रखते हैं और इनमें शाम के सत्र में तेज उतारचढ़ाव होता है। इसके परिणामस्वरूप कारोबारियों की कारोबारी सीमा स्वत: ही सिकुड़ जाती है। अगर किसी कारोबारी ने अपनी पूरी क्षमता के हिसाब से पोजीशन ली होती है और कीमतों में बहुत ज्यादा उतारचढ़ाव होता है तो क्लाइंट को या तो उस सौदे को बेचना होता है या फिर दूसरे दिन मार्जिन की रकम जमा करानी होती है। ऐसे में उनकी कारोबारी सीमा तब सिकुड़ जाती है जब कीमतों में शाम के सत्र में काफी उतारचढ़ाव होता है। ऐंजल ब्रोकिंग के सहायक निदेशक नवीन माथुर ने कहा - एफएमसी की तरफ से पुराने फैसले को बहाल करने से सदस्य ब्रोकरों को फायदा मिल सकता है। (BS Hindi)
7 जून को वायदा बाजार आयोग ने सभी एक्सचेंजों को नकद मार्जिन के दायित्व के तौर पर एफडीआर स्वीकार नहीं करने का निर्देश दिया था। हालांकि ब्रोकिंग फर्मों ने इस कदम की आलोचना की थी। उनका कहना था कि एफडीआर की प्राप्ति बैंक में नकद जमा कराने के बाद ही होती है, लिहाजा एफडीआर नकदी की तरह ही है। शुक्रवार को हालांकि एफएमसी ने पूर्व स्थिति बहाल कर दी और एक्सचेंजों को नकद मार्जिन के दायित्व के तौर पर एफडीआर स्वीकार करने की छूट दे दी।
एफएमसी की पूर्वानुमति से जिंस एक्सचेंज वायदा बाजार में उतारचढ़ाव को देखते हुए मार्जिन और स्पेशल मार्जिन लगा सकते हैं। कुछ वैश्विक जिंस मसलन सोना, चांदी, कच्चा तेल और रिफाइंस सोया तेल आदि सीधे तौर पर अमेरिका व यूरोप के बाजार से जुड़ाव रखते हैं और इनमें शाम के सत्र में तेज उतारचढ़ाव होता है। इसके परिणामस्वरूप कारोबारियों की कारोबारी सीमा स्वत: ही सिकुड़ जाती है। अगर किसी कारोबारी ने अपनी पूरी क्षमता के हिसाब से पोजीशन ली होती है और कीमतों में बहुत ज्यादा उतारचढ़ाव होता है तो क्लाइंट को या तो उस सौदे को बेचना होता है या फिर दूसरे दिन मार्जिन की रकम जमा करानी होती है। ऐसे में उनकी कारोबारी सीमा तब सिकुड़ जाती है जब कीमतों में शाम के सत्र में काफी उतारचढ़ाव होता है। ऐंजल ब्रोकिंग के सहायक निदेशक नवीन माथुर ने कहा - एफएमसी की तरफ से पुराने फैसले को बहाल करने से सदस्य ब्रोकरों को फायदा मिल सकता है। (BS Hindi)
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