वर्ष 2011 में वनस्पति घी का उत्पादन 23 फीसदी घटकर 8.72 लाख टन रह गया
भाव में रही तेजी
खाद्य तेलों में तेजी के चलते वनस्पति घी में भी तेजी आ रही है। पिछले एक साल में घरेलू बाजार में वनस्पति घी के दाम 30 फीसदी तक बढ़ चुके हैं। मई 2011 में वनस्पति घी का भाव 958 रुपये प्रति 15 किलो टिन था जो वर्तमान में बढ़कर 1,250 रुपये के स्तर पर पहुंच गया है।
खपत में लगातार कमी आने के कारण वनस्पति घी का उत्पादन घट रहा है। वर्ष 2010 की तुलना में 2011 में घरेलू उत्पादकों द्वारा वनस्पति घी का उत्पादन करीब 23 फीसदी घट गया। वर्ष 2010 में देश में 10.74 लाख टन वनस्पति का उत्पादन किया गया था जो वर्ष 2011 में घटकर 8.72 लाख टन ही रह गया।
हालांकि खाद्य तेलों में तेजी के चलते वनस्पति घी में भी तेजी आ रही है। पिछले एक साल में घरेलू बाजार में वनस्पति घी के दाम 30 फीसदी तक बढ़ चुके हैं। मई 2011 में वनस्पति घी का भाव 958 रुपये प्रति 15 किलो टिन था जो वर्तमान में बढ़कर 1,250 रुपये के स्तर पर पहुंच गया है।
वनस्पति उत्पादकों के संगठन वनस्पति मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (वीएमए) के मुताबिक घरेलू बाजार में खपत कम होने की वजह से वनस्पति घी के उत्पादन में लगातार कमी दर्ज की जा रही है। वीएमए के कार्यकारी सचिव एस. गुरुमूर्ति ने बताया कि देश में सस्ते पाम तेल का आयात बढऩे से रिफाइंड खाद्य तेलों की मांग तेज हो रही है। जबकि वनस्पति की खपत में कमी से इसकी मांग घट रही है और इससे उत्पादन घट रहा है।
उन्होंने बताया कि देश में वर्तमान में कुल 282 वनस्पति उत्पादक इकाइयां हैं, जिनमें से 128 इकाइयों में उत्पादन किया जा रहा है। शेष 154 इकाइयों में उत्पादन बंद है। वनस्पति की खपत कम होने और मांग नहीं होने के कारण चालू इकाइयों द्वारा मात्र 27 फीसदी ही उत्पादन क्षमता का उपयोग किया जा रहा है।
खपत व मांग में कमी से भले ही वनस्पति का उत्पादन कम हो रहा हो, लेकिन खाद्य तेलों में तेजी के कारण इसकी कीमतों में भी तेजी दर्ज की गई है। पिछले एक साल (मई 2011-अप्रैल 2012) के दौरान वनस्पति के दाम 30 फीसदी बढ़कर 1250 रुपये प्रति टिन (15 किलोग्राम) हो गए हैं। वर्ष 2010-11 में भी वनस्पति की कीमतों में 37 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी।
दिल्ली के थोक कारोबारी अतर सिंह ने भी वनस्पति घी की कीमतों में तेजी आने की बात कही। इनके अनुसार खाद्य तेलों के असर से वनस्पति के दाम बढऩे के कारण भी इसकी मांग कम हो रही है। इन्हीं भावों पर उपभोक्ता द्वारा खाद्य तेलों की खरीद ज्यादा की जा रही है। (Business Bhaskar)
भाव में रही तेजी
खाद्य तेलों में तेजी के चलते वनस्पति घी में भी तेजी आ रही है। पिछले एक साल में घरेलू बाजार में वनस्पति घी के दाम 30 फीसदी तक बढ़ चुके हैं। मई 2011 में वनस्पति घी का भाव 958 रुपये प्रति 15 किलो टिन था जो वर्तमान में बढ़कर 1,250 रुपये के स्तर पर पहुंच गया है।
खपत में लगातार कमी आने के कारण वनस्पति घी का उत्पादन घट रहा है। वर्ष 2010 की तुलना में 2011 में घरेलू उत्पादकों द्वारा वनस्पति घी का उत्पादन करीब 23 फीसदी घट गया। वर्ष 2010 में देश में 10.74 लाख टन वनस्पति का उत्पादन किया गया था जो वर्ष 2011 में घटकर 8.72 लाख टन ही रह गया।
हालांकि खाद्य तेलों में तेजी के चलते वनस्पति घी में भी तेजी आ रही है। पिछले एक साल में घरेलू बाजार में वनस्पति घी के दाम 30 फीसदी तक बढ़ चुके हैं। मई 2011 में वनस्पति घी का भाव 958 रुपये प्रति 15 किलो टिन था जो वर्तमान में बढ़कर 1,250 रुपये के स्तर पर पहुंच गया है।
वनस्पति उत्पादकों के संगठन वनस्पति मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (वीएमए) के मुताबिक घरेलू बाजार में खपत कम होने की वजह से वनस्पति घी के उत्पादन में लगातार कमी दर्ज की जा रही है। वीएमए के कार्यकारी सचिव एस. गुरुमूर्ति ने बताया कि देश में सस्ते पाम तेल का आयात बढऩे से रिफाइंड खाद्य तेलों की मांग तेज हो रही है। जबकि वनस्पति की खपत में कमी से इसकी मांग घट रही है और इससे उत्पादन घट रहा है।
उन्होंने बताया कि देश में वर्तमान में कुल 282 वनस्पति उत्पादक इकाइयां हैं, जिनमें से 128 इकाइयों में उत्पादन किया जा रहा है। शेष 154 इकाइयों में उत्पादन बंद है। वनस्पति की खपत कम होने और मांग नहीं होने के कारण चालू इकाइयों द्वारा मात्र 27 फीसदी ही उत्पादन क्षमता का उपयोग किया जा रहा है।
खपत व मांग में कमी से भले ही वनस्पति का उत्पादन कम हो रहा हो, लेकिन खाद्य तेलों में तेजी के कारण इसकी कीमतों में भी तेजी दर्ज की गई है। पिछले एक साल (मई 2011-अप्रैल 2012) के दौरान वनस्पति के दाम 30 फीसदी बढ़कर 1250 रुपये प्रति टिन (15 किलोग्राम) हो गए हैं। वर्ष 2010-11 में भी वनस्पति की कीमतों में 37 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी।
दिल्ली के थोक कारोबारी अतर सिंह ने भी वनस्पति घी की कीमतों में तेजी आने की बात कही। इनके अनुसार खाद्य तेलों के असर से वनस्पति के दाम बढऩे के कारण भी इसकी मांग कम हो रही है। इन्हीं भावों पर उपभोक्ता द्वारा खाद्य तेलों की खरीद ज्यादा की जा रही है। (Business Bhaskar)
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