जूट की सालाना मांग की रणनीति किस तरह तैयार होती है?
खाद्य मंत्रालय सीजन से पहले बैठक आयोजित करता है, जहां भारतीय खाद्य निगम और राज्य की सभी एजेंसियां जूट की आवश्यकता का अनुमान पेश करती हैं। इसके बाद जूट उद्योग को इन आवश्यकताओं के मुताबिक बोरियां तैयार करने को कहा जाता है। इस सीजन में उद्योग को 9 लाख गांठ जूट की बोरियों की आपूर्ति के लिए कहा गया है, जिसमें से मध्य प्रदेश को 1.44 लाख गांठ की दरकार है और इसे निजी निविदा के जरिए डीजीएसऐंडडी के जरिए अप्रत्यक्ष रूप से हासिल करने का प्रस्ताव है। ऐसे में जरूरत 7.50 लाख गांठ अनुमानित है।
किस स्तर पर हमने गलती की है?
यहां गलत योजना और एक साथ बहुत ज्यादा ऑर्डर देने की समस्या है। जूट की बोरियों की दरकार 67 फीसदी बढ़कर 12.50 लाख गांठ हो गई है। निजी निविदा की नाकामी के चलते अकेले मध्य प्रदेश की दरकार 1.44 लाख गांठ से बढ़कर 3.19 लाख गांठ हो गई है। दूसरे राज्यों की भी जरूरतें बढ़ी हैं।
फिलहाल आपूर्ति की क्या स्थिति है?
7 मई तक जूट उद्योग 9.50 लाख गांठ की आपूर्ति कर चुका है और इस महीने के आखिर तक 2 लाख गांठ और देने का वादा किया है।
फिलहाल समस्या कहां है?
पंजाब व हरियाणा जैसे राज्यों में भेजे जाने के लिए महज 5 से 10 फीसदी जूट की गांठ छोड़ी गई है। हालांकि अभी भी मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश में समस्या है। मध्य प्रदेश की आवश्यकता में असामान्य बढ़ोतरी का खामियाजा उत्तर प्रदेश को भुगतना होगा। मध्य प्रदेश ने दूसरे राज्यों की समस्याएं बढ़ा दी है।
ऑर्डर की क्या स्थिति है?
अक्टूबर 2011 से जनवरी 2012 के बीच कुल ऑर्डर 5 लाख गांठ रहा है जबकि उद्योग की उत्पादन क्षमता 2.5 लाख गांठ प्रति माह है।
क्या आयात उपयुक्त होगा?
इसका आयात उपयुक्त नहीं होगा क्योंकि बांग्लादेश भी बहुत ज्यादा बोरियां उपलब्ध नहीं करा पाएगा।
इस साल जूट की कीमतें किस तरह की रही हैं?
टैरिफ कमिशन के फॉर्मूले के जरिए विभिन्न सरकारी एजेंसियों को बेची जाने वाली बोरियों की कीमतें तय होती हैं। (BS Hindi)
खाद्य मंत्रालय सीजन से पहले बैठक आयोजित करता है, जहां भारतीय खाद्य निगम और राज्य की सभी एजेंसियां जूट की आवश्यकता का अनुमान पेश करती हैं। इसके बाद जूट उद्योग को इन आवश्यकताओं के मुताबिक बोरियां तैयार करने को कहा जाता है। इस सीजन में उद्योग को 9 लाख गांठ जूट की बोरियों की आपूर्ति के लिए कहा गया है, जिसमें से मध्य प्रदेश को 1.44 लाख गांठ की दरकार है और इसे निजी निविदा के जरिए डीजीएसऐंडडी के जरिए अप्रत्यक्ष रूप से हासिल करने का प्रस्ताव है। ऐसे में जरूरत 7.50 लाख गांठ अनुमानित है।
किस स्तर पर हमने गलती की है?
यहां गलत योजना और एक साथ बहुत ज्यादा ऑर्डर देने की समस्या है। जूट की बोरियों की दरकार 67 फीसदी बढ़कर 12.50 लाख गांठ हो गई है। निजी निविदा की नाकामी के चलते अकेले मध्य प्रदेश की दरकार 1.44 लाख गांठ से बढ़कर 3.19 लाख गांठ हो गई है। दूसरे राज्यों की भी जरूरतें बढ़ी हैं।
फिलहाल आपूर्ति की क्या स्थिति है?
7 मई तक जूट उद्योग 9.50 लाख गांठ की आपूर्ति कर चुका है और इस महीने के आखिर तक 2 लाख गांठ और देने का वादा किया है।
फिलहाल समस्या कहां है?
पंजाब व हरियाणा जैसे राज्यों में भेजे जाने के लिए महज 5 से 10 फीसदी जूट की गांठ छोड़ी गई है। हालांकि अभी भी मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश में समस्या है। मध्य प्रदेश की आवश्यकता में असामान्य बढ़ोतरी का खामियाजा उत्तर प्रदेश को भुगतना होगा। मध्य प्रदेश ने दूसरे राज्यों की समस्याएं बढ़ा दी है।
ऑर्डर की क्या स्थिति है?
अक्टूबर 2011 से जनवरी 2012 के बीच कुल ऑर्डर 5 लाख गांठ रहा है जबकि उद्योग की उत्पादन क्षमता 2.5 लाख गांठ प्रति माह है।
क्या आयात उपयुक्त होगा?
इसका आयात उपयुक्त नहीं होगा क्योंकि बांग्लादेश भी बहुत ज्यादा बोरियां उपलब्ध नहीं करा पाएगा।
इस साल जूट की कीमतें किस तरह की रही हैं?
टैरिफ कमिशन के फॉर्मूले के जरिए विभिन्न सरकारी एजेंसियों को बेची जाने वाली बोरियों की कीमतें तय होती हैं। (BS Hindi)
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