जूट उद्योग
का भारत की
अर्थव्यवस्था
में महत्वपूर्ण
स्थान है। यह
पूर्वी
क्षेत्र
खासकर पश्चिम
बंगाल के
प्रमुख उद्योगों
में एक है। स्वर्ण
रेशा कहा जाने
वाला जूट
प्राकृतिक,
नवीकरणीय, जैविक
और पर्यावरण
के अनुकूल उत्पाद
होने के कारण सुरक्षित
पैकेजिंग के
सभी मानकों पर
खरा उतरता है।
ऐसा अनुमान है
कि जूट
उद्योग संगठित
क्षेत्र तथा
तृतीयक
क्षेत्र एवं
संबद्ध गतिविधियों
समेत विविध
इकाइयों में 3.7
लाख लोगों को रोजगार
प्रदान करता
है और 40 लाख जूट
कृषक परिवारों
को जीविका
उपलब्ध
कराता है।
इसके अलावा
बड़ी संख्या
में लोग जूट
व्यापार से
जुड़े हैं।
वैश्विक
परिप्रेक्ष्य
से भारत कच्चे
जूट और जूट
उत्पादों का
एक प्रमुख उत्पादक
है। विश्व
में वर्ष 2007-08
में जूट,
केनाफ और
संबद्ध रेशे
के कुल 30
टन उत्पादन
में भारत की
हिस्सेदारी
18 टन की रही थी।
प्रतिशत के
हिसाब से
भारत ने वर्ष
2007-08 में कुल उत्पादन
का 60 फीसदी उत्पादन
किया था। जूट
और संबद्ध
रेशे का उत्पादन
वर्ष 2007-08
में वर्ष 2004-05 की
तुलना में 25
फीसदी बढ़कर 30
लाख टन हो
गया। भारत में
इसके उत्पादन
में 28 फीसदी की
वृद्धि हुई
और यह 18 लाख टन
तक पहुंच गया।
भारत में 79
समग्र जूट मिलें
हैं। इन जूट
मिलों में
पश्चिम
बंगाल में 62,
आंधप्रदेश
में सात, बिहार
और उत्तर
प्रदेश में
तीन तीन, तथा असम,
उड़ीसा, त्रिपुरा
एवं छत्तीसगढ़
में एक एक मिल
है।
जूट
क्षेत्र के
महत्व पर ध्यान
देते हुए
कपड़ा
मंत्रालय जूट
क्षेत्र को मजबूत
एवं उज्ज्वल
बनाने के लिए
कई कदम उठा
रहा है ताकि
यह घरेलू एवं
वैश्विक
बाजार में प्रतिस्पर्धा
कर सके और जूट
कृषकों को
लाभकारी आय मिले।
इन उद्देश्यों
की प्राप्ति
करने के लिए नई
जींस विकास
रणनीति पर बल
दिया गया है
जिसके मुख्य
तत्व इस
प्रकार हैं-
·
अनुसंधान
एवं नयी किस्म
के बीजों का
उत्पादन।
·
रेशे
निष्कर्षण
की बेहतर
प्रौद्योगिकी
और प्रविधि।
·
अनुबंध
कृषि को
प्रोत्साहन।
·
बफर
स्टाक के
माध्यम से
कच्चे जूट के
दाम में स्थिरीकरण।
·
गैर
पारंपरिक
उत्पादों के
लिए बाजार का
विकास।
·
आधुनिकीकरण
के लिए जूट
उद्योग को
प्रोत्साहन
पैकेज।
·
जूट
प्रौद्योगिकी
मिशन को जारी
रखना।
·
कार्बन
क्रेडिट
हासिल करने
के लिए
कार्बन उत्सर्जन
में कमी।
ग्रामीण
गरीबों और शिल्पकारों
की सामाजिक
समानता और
समग्र विकास
को ध्यान में
रखते हुए
सरकार जूट के
विविध उत्पादों
के उत्पादन
एवं विपणन
में लगे
छोटे और
मझौले
उद्यमों, गैर
सरकारी संगठनों
और स्वयं
सहायता
समूहों को
सहयोग प्रदान
करने में तेजी
ला रही है।
उन्हें
प्रशिक्षण,
उपकरण और
बाजार संपर्क
सुविधा
प्रदान की जा
रही है ।
एनजीएमसी
लिमिटेड के
अंतर्गत जूट
मिलों की बहाली
इस
क्षेत्र में
सरकार ने जो
एक महत्वपूर्ण
कदम उठाया है
वह है राष्ट्रीय
जूट विनिर्माण
निगम (एनजेएमसी)
लिमिटेड के
तहत जूट मिलों
की बहाली।
एनेजएमसी एक
सार्वजनिक
उपक्रम है जिसके
अंतर्गत छह जूट
मिले हैं। इन
मिलों का 1980 के
दशक में राष्ट्रीयकरण
किया गया था।
ये सभी छह
इकाइयां 6 से
लेकर 9 सालों
से चल नहीं
रही हैं।
सरकार ने
हाल ही में
कंपनी के पुनरुद्धार
के लिए 1562.98
करोड़ रूपए का
पैकेज मंजूर
किया है और 6815.06
करोड़ रूपए का
ऋण बकाया और
ब्याज माफ किया
है।
पुनर्बहाल
पैकेज के तहत
निगम की तीन
इकाइयों को
चालू करना है
। ये इकाइयां
हैं- कोलकाता की
किन्निसन
एवं खरदा तथा
बिहार में
कटिहार की राय
बहादुर हरदत
राय मिल। पुनरुद्धार
पैकेज के लिए
संसाधन बंद
पडी मिलों और
चालू की गयी
मिलों के अतिरिक्त
परिसंपत्तियों
से जुटाये गए।
मंत्रिमंडल
के फैसले के
आधार पर
एनजेएमसी
प्रबंधन पुनरूद्धार
योजना को लागू
करने के लिए
जरूरी कदम उठा
रहा है।
इन मिलों
के फिर से
चालू होने से
पश्चिम
बंगाल और बिहार
में 10 हजार से
अधिक लोगों
को प्रत्यक्ष
रोजगार मिलेगा।
जूट
और मेस्टा के
लिए न्यूनतम
समर्थन मूल्य
किसानों
के हित में
हर साल कच्चे
जूट और मेस्टा
के लिए न्यूनतम
समर्थन मूल्य
तय किए जाते
है। विभिन्न
श्रेणियों
के मूल्य को
तय करते समय निम्न
श्रेणी के जूट
को हत्सोसाहित
किया जाता है
और उच्च
श्रेणी के जूट
को प्रोत्साहन
दिया जाता है
ताकि किसान
उच्च श्रेणी
के जूट के उत्पादन
के लिए
प्रेरित
हों।
भारतीय
जूट निगम कपड़ा
मंत्रालय के
तहत एक
सार्वजनिक
उपक्रम है और
यह किसानों
के लिए कच्चे
जूट के समर्थन
मूल्य को
लागू करवाने
का कार्य करता
है।
जूट
श्रमिकों की
कार्यस्थिति
में सुधार
जूट
उद्योग के
श्रमिकों के
लाभ के लिए
एक अप्रैल, 2010 को
गैर योजना कोष
के तहत कपड़ा
मंत्रालय के
अनुमोदन से
नयी योजना
शुरु की गयी।
जूट
क्षेत्र के
श्रमिकों की
कल्याण
योजना जूट मिलों
और विविध
जूट उत्पादों
के उत्पादन
में लगी छोटी
इकाइयों में
कार्यरत श्रमिकों
के संपूर्ण
कल्याण एवं
लाभ के लिए
है। योजना के
अंतर्गत मिल
क्षेत्र में
स्वच्छता, स्वास्थ्य
सुविधाएं और
उपयुक्त कार्यस्थिति,
छोटे और मझौले
जूट विविध
उत्पाद
इकाइयों को
सामाजिक आडिट
के लिए
प्रोत्साहन
का प्रावधान
शामिल है। इसके
अंतर्गत
राजीव गांधी
शिल्पी स्वास्थ्य
बीमा योजना की
तर्ज पर इस
क्षेत्र के
श्रमिकों को बीमा
सुविधा
प्रदान की
जाती है। इसे
राष्ट्रीय
जूट बोर्ड
लागू करेगा।
इसके
अलावा
मंत्रालय ने
कपड़े के
क्षेत्र में
काम करने वाले
कामगारों के
कौशल के उन्नयन
के लिए समेकित
कौशल विकास
योजना शुरू की
है। जूट
कामगारों को
भी इसमें शामिल
किया गया है।
सरकार अगले पांच
साल में 2360
करोड़ रुपए की
कुल लागत से 27
लाख लोगों के कौशल
उन्नयन का
प्रशिक्षण
देगी।
राष्ट्रीय
जूट नीति-2005
बदलते
वैश्विक
परिदृश्य में
प्राकृतिक
रेशे के विकास,
भारत में जूट
उद्योग की कमियां
और खूबियां ,
विश्व
बाजार में विविध
और नूतन जूट
उत्पादों की
बढ़ती मांग को
ध्यान में
रखकर सरकार ने
अपने लक्ष्यों
और उद्देश्यों
को पुनर्परिभाषित
करने तथा जूट
उद्योग को गति
प्रदान करने
के लिए राष्ट्रीय
जूट नीति-2005 की
घोषणा की।
इस नीति
का मुख्य
उद्देश्य
भारत में जूट
क्षेत्र में
विश्वस्तरीय
कला विनिर्माण
क्षमता, जो
पर्यावरण के
अनुकूल भी हो, में मदद
कर उसे विनिर्माण
और निर्यात के
लिए वैश्विक
रूप से प्रतिस्पर्धी
बनाना है।
इसके तहत सार्वजनिक
एवं निजी
भागीदारी से
जूट की खेती
में अनुसंधान
एवं विकास
गतिविधियों
में तेजी लाना
है ताकि
लाखों जूट किसान
अच्छे किस्म
के जूट का उत्पादन
करें और उनका
प्रति हेक्टेयर
उत्पादन
बढ़े एवं उन्हें
आकर्षक दाम मिले।
जेपीएम
अधिनियम
जूट
पैकेजिंग
पदार्थ
(पैकेजिंग जिंस
में अनिवार्य
इस्तेमाल)
अधिनियम, 1987 (जेपीएम
अधिनियम) नौ
मई, 1987 को प्रभाव
में आया। इस
अधिनियम के
तहत कच्चे
जूट के उत्पादन
, जूट
पैकेजिंग
पदार्थ और
इसके उत्पादन
में लगे लोगों
के हित में कुछ
खास जिंसों की
आपूर्ति एवं
वितरण में
जूट पैकेजिंग
अनिवार्य
बना दिया गया
है।
एसएसी की
सिफारिशों
के आधार पर
सरकार जेपीएम,1987
के अतंर्गत
जूट वर्ष 2010-11 के
लिए अनिवार्य
पैकेजिंग के
नियमों को तय
करेगी , इसके
तहत अनाजों और
चीनी के लिए
अनिवार्य
पैकेजिंग की
शर्त तय की
जाएगी।
तदनुसार ,
जेपीएम अधिनियम
के अंतर्गत
सरकारी गजट के
तहत आदेश जारी
किया जाएगा
जो 30 जून,
2011 तक वैध
रहेगा।
जूट
प्रौद्योगिकी
मिशन
सरकार
ने जूट उद्योग
के सर्वांगीण
विकास एवं
जूट क्षेत्र
की वृद्धि के
लिए ग्यारहवीं
पंचवर्षीय
योजना के
दौरान पांच
साल के लिए
जूट
प्रौद्योगिकी
मिशन शुरु किया
है। 355.5 करोड़
रुपए के इस मिशन
में
कृषि
अनुसंधान एवं
बीज विकास,
कृषि प्रविधि,
फसल कटाई और
उसके बाद की
तकनीकी, कच्चे
जूट के
प्राथमिक
एवं द्वितीयक
प्रस्संकरण
तथा विविध
उत्पाद विकास
एवं विपणन व
वितरण से
संबंधित चार
उपमिशन हैं। इन
उपमिशनों को
कपड़ा और कृषि
मंत्रालय मिलकर
लागू कर रहें
हैं।
प्रौद्योगिकी
उन्नयन कोष
योजना
इस
योजना का
उद्देश्य
प्रौद्योगिकी
उन्नयन के
माध्यम से कपड़ा /
जूट उद्योग को
प्रतिस्पर्धी
बनाना तथा
उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता
में सुधार
लाना और उसे
संपोषणीयता
प्रदान करना
है।
जूट
उद्योग
के आधुनिकीकरण
के लिए सरकार
ने 1999 से अबतक 722.29
करोड़ रूपए का
निवेश किया
है। (PIB)
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