सरकार ने केंद्रीय पूल से गेहूं निर्यात की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
स्टेट ट्रेडिंग कारपोरेशन (एसटीसी) ने
केंद्रीय पूल से गेहूं निर्यात के लिए निविदा मंगाई है. इसमें विदेशी आयातक
ही भाग ले सकेंगे और विपणन सीजन 2011-12 और 2012-13 का ही गेहूं निर्यात
होगा. बंदरगाह पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर गेहूं उपलब्ध होगा.
गेहूं निर्यात पर विचार इसलिए हो रहा है, क्योंकि खरीद में सुस्ती और
विभिन्न रुकावटों के कारण कोई दो करोड़ टन गेहूं सड़ने की स्थिति में है.
इस साल 9.02 करोड़ टन के रिकॉर्ड उत्पादन का अनुमान है. जहां तक सरकारी गोदामों का सवाल है, वे फिलहाल अनाज से अटे हैं. केंद्रीय पूल में 1 अप्रैल 2012 को 543.36 लाख टन खाद्यान्न का स्टॉक था. इसमें करीब 200 लाख टन गेहूं है. चालू सीजन में सरकारी खरीद का लक्ष्य 318 लाख टन है. खुले बाजार में गेहूं का दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम है इसीलिए सरकारी केंद्रों पर ज्यादा गेहूं जा रहा है. ऐसे में सरकारी खरीद 335 लाख टन से भी ज्यादा होने का अनुमान है.
गेहूं निर्यात के प्रस्ताव को मंजूरी मिल जाने से छह साल में पहली बार भारत सरकारी गेहूं भंडार को बेचने के लिए निर्यात बाजार का सहारा ले रहा है. हालांकि गेहूं का बड़े पैमाने पर निर्यात आसान नहीं है क्योंकि वैिक अनाज बाजार में सभी प्रमुख गेहूं निर्यातक- रूस, ऑस्ट्रेलिया व यूक्रेन आदि देशों के पास भारी भरकम अनाज का भंडार है.
गुणवत्ता के मामले में भी भारतीय गेहूं दूसरे निर्यातक देशों के मुकाबले कमजोर है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत के मुकाबले यूक्रेन, रूस और ऑस्ट्रेलिया का गेहूं सस्ता भी है. फिर भी युगांडा, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, दुबई, और खाड़ी देशों को गेहूं की जरूरत है, लिहाजा इन देशों में भारतीय गेहूं के लिए बाजार हो सकता है. अब केंद्रीय पूल से गेहूं के निर्यात में भी सबसे बड़ी समस्या वित्तीय प्रबंधन की हो सकती है.
क्योंकि गेहूं की खरीद व भंडारण की लागत साल 2012-13 में करीब 18.22 रुपये प्रति किलोग्राम रहने की संभावना है, वहीं अमेरिकी गेहूं की वैश्विक औसत कीमतें जनवरी-मार्च के दौरान 15.06 रुपये प्रति किलोग्राम थीं. यह भी उल्लेखनीय है कि सरकार ने सितम्बर, 2011 में गेहूं निर्यात पर रोक हटाई थी तथा निर्यातकों को खुले बाजार से गेहूं खरीद कर निर्यात की अनुमित दी थी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय गेहूं महंगा होने के कारण सितम्बर से अब तक 7.2 लाख टन गेहूं का ही निर्यात हो पाया है.
इस साल भारत के लिए गेहूं का निर्यात करना इसलिए भी जरूरी है ताकि केंद्रीय पूल में नए स्टॉक के लिए जगह बन सके. यदि गेहूं का निर्यात नहीं हुआ, तो कई परेशानियां पैदा हो सकती हैं. ज्यादातर राज्यों में भी अनाज भंडारण क्षमता के मामले में स्थिति अच्छी न होने के कारण किसान धरने-प्रदर्शन पर उतर आए हैं. वे मजबूरी में आढ़तियों को एमएसपी से कम भाव पर अपना गेहूं बेच रहे हैं.
सरकार ने इस बार गेहूं का एमएसपी 1285 रु पये प्रति क्ंिवटल तय किया है. गौरतलब है कि कुल स्टॉक के मुकाबले भंडारण क्षमता काफी कम होने के कारण चालू सीजन 2012-13 में सरकार को लगभग पचास फीसद खाद्यान्न गोदामों के बाहर खुले आसमान के नीचे आधे-अधूरे तिरपालों के सहारे ही रखना होगा. निश्चित रूप से गेहूं के निर्यात से जहां भंडारण की कमी से संबंधित चुनौती से कुछ तात्कालिक बचाव होगा, वहीं किसानों को भविष्य में फसल की बिक्री और अच्छे मूल्य की आशा बंधेगी.
मार्च 2012 में संसद में पहली कृषि समीक्षा में भी भंडारण की आवश्यकता पर जोर झलका है. छोटे किसानों के लिए भंडारण की और ज्यादा जरूरत है.
भंडारण सुविधा के लिए बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता है. यद्यपि सरकार ने यह जरूरत पूरा करने के लिए वेयरहाउसिंग सेक्टर में 100 फीसद प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति भी दे रखी है और विभिन्न टैक्स रियायतें देकर निवेशकों को प्रोत्साहित करने का प्रयास भी किया जा रहा है. लेकिन निवेशकों के कदम वेयरहाउसिंग सेक्टर की ओर धीमी गति से बढ़ रहे हैं.
चूंकि पर्याप्त खाद्यान्न भंडारण का संबंध अच्छी विदेशी मुद्रा की कमाई से भी जुड़ गया है अत: खाद्यान्न भंडारण की अच्छी व्यवस्था से खाद्यान्न निर्यात करके खाली होते हुए विदेशी मुद्रा भंडार को भी भरा जा सकेगा. अच्छे खाद्यान्न भंडारण द्वारा यूरो और डॉलर की कमाई विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने में मददगार हो सकती है. अच्छी भंडारण क्षमता और खाद्यान्न की उत्पादकता बढ़ाकर खाद्यान्न के निर्यात को विदेश व्यापार का प्रमुख अंग भी बनाया जा सकता है.
देश में खाद्यान्न उपलब्धता का वर्तमान परिदृश्य चिंताजनक है. खाद्य एवं कृषि संबंधी कुछ नए वैश्विक अध्ययन संदेश दे रहे हैं कि भारत में छोटे किसानों को खुशहाल बनाने पर सबसे अधिक ध्यान देना होगा. इस संदर्भ में सी रंगराजन समिति की रिपोर्ट उल्लेखनीय है जिसमें कहा गया कि देश के 4 करोड़ 60 लाख छोटे किसानों को पर्याप्त भंडारण सुविधा, आसान कर्ज और खेती के समुचित संसाधन उपलब्ध नहीं हैं. अब देश में कृषि बाजारों का आधुनिकीकरण किए जाने और उन्हें बहुवांछित बुनियादी ढांचा मुहैया कराने की भी महती आवश्यकता है.
यह भी ध्यान देना होगा कि खाद्य सुरक्षा के लिए हम जिस तरह गेहूं और चावल की उत्पादकता बढ़ाने की योजना बना रहे हैं, उसी अनुपात में उन्हें रखने के लिए माकू ल भंडारण सुविधा भी स्थापित करनी होगी. इस कार्य में आने वाली अड़चनों को रोकना होगा. यह ध्यान देना होगा कि भारत से खाद्यान्न निर्यात के लिए प्रतिस्पर्धी देशों के समकक्ष निर्यात की रणनीति तैयार हो.
उम्मीद की जानी चाहिए कि देश में कृषि सुधारों के तहत खाद्यान्न उत्पादकता वृद्धि, वेयरहाउसिंग सेक्टर के आधुनिकीकरण तथा भारतीय कृषि सेक्टर को मजबूत आधार दिया जाएगा और खाद्यान्न निर्यात को देश के निर्यात का एक अभिन्न अंग बनाया जाएगा. तभी खाद्यान्न सुरक्षा और किसान का सबलीकरण हो सकता है. (Samay Live)
इस साल 9.02 करोड़ टन के रिकॉर्ड उत्पादन का अनुमान है. जहां तक सरकारी गोदामों का सवाल है, वे फिलहाल अनाज से अटे हैं. केंद्रीय पूल में 1 अप्रैल 2012 को 543.36 लाख टन खाद्यान्न का स्टॉक था. इसमें करीब 200 लाख टन गेहूं है. चालू सीजन में सरकारी खरीद का लक्ष्य 318 लाख टन है. खुले बाजार में गेहूं का दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम है इसीलिए सरकारी केंद्रों पर ज्यादा गेहूं जा रहा है. ऐसे में सरकारी खरीद 335 लाख टन से भी ज्यादा होने का अनुमान है.
गेहूं निर्यात के प्रस्ताव को मंजूरी मिल जाने से छह साल में पहली बार भारत सरकारी गेहूं भंडार को बेचने के लिए निर्यात बाजार का सहारा ले रहा है. हालांकि गेहूं का बड़े पैमाने पर निर्यात आसान नहीं है क्योंकि वैिक अनाज बाजार में सभी प्रमुख गेहूं निर्यातक- रूस, ऑस्ट्रेलिया व यूक्रेन आदि देशों के पास भारी भरकम अनाज का भंडार है.
गुणवत्ता के मामले में भी भारतीय गेहूं दूसरे निर्यातक देशों के मुकाबले कमजोर है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत के मुकाबले यूक्रेन, रूस और ऑस्ट्रेलिया का गेहूं सस्ता भी है. फिर भी युगांडा, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, दुबई, और खाड़ी देशों को गेहूं की जरूरत है, लिहाजा इन देशों में भारतीय गेहूं के लिए बाजार हो सकता है. अब केंद्रीय पूल से गेहूं के निर्यात में भी सबसे बड़ी समस्या वित्तीय प्रबंधन की हो सकती है.
क्योंकि गेहूं की खरीद व भंडारण की लागत साल 2012-13 में करीब 18.22 रुपये प्रति किलोग्राम रहने की संभावना है, वहीं अमेरिकी गेहूं की वैश्विक औसत कीमतें जनवरी-मार्च के दौरान 15.06 रुपये प्रति किलोग्राम थीं. यह भी उल्लेखनीय है कि सरकार ने सितम्बर, 2011 में गेहूं निर्यात पर रोक हटाई थी तथा निर्यातकों को खुले बाजार से गेहूं खरीद कर निर्यात की अनुमित दी थी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय गेहूं महंगा होने के कारण सितम्बर से अब तक 7.2 लाख टन गेहूं का ही निर्यात हो पाया है.
इस साल भारत के लिए गेहूं का निर्यात करना इसलिए भी जरूरी है ताकि केंद्रीय पूल में नए स्टॉक के लिए जगह बन सके. यदि गेहूं का निर्यात नहीं हुआ, तो कई परेशानियां पैदा हो सकती हैं. ज्यादातर राज्यों में भी अनाज भंडारण क्षमता के मामले में स्थिति अच्छी न होने के कारण किसान धरने-प्रदर्शन पर उतर आए हैं. वे मजबूरी में आढ़तियों को एमएसपी से कम भाव पर अपना गेहूं बेच रहे हैं.
सरकार ने इस बार गेहूं का एमएसपी 1285 रु पये प्रति क्ंिवटल तय किया है. गौरतलब है कि कुल स्टॉक के मुकाबले भंडारण क्षमता काफी कम होने के कारण चालू सीजन 2012-13 में सरकार को लगभग पचास फीसद खाद्यान्न गोदामों के बाहर खुले आसमान के नीचे आधे-अधूरे तिरपालों के सहारे ही रखना होगा. निश्चित रूप से गेहूं के निर्यात से जहां भंडारण की कमी से संबंधित चुनौती से कुछ तात्कालिक बचाव होगा, वहीं किसानों को भविष्य में फसल की बिक्री और अच्छे मूल्य की आशा बंधेगी.
मार्च 2012 में संसद में पहली कृषि समीक्षा में भी भंडारण की आवश्यकता पर जोर झलका है. छोटे किसानों के लिए भंडारण की और ज्यादा जरूरत है.
भंडारण सुविधा के लिए बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता है. यद्यपि सरकार ने यह जरूरत पूरा करने के लिए वेयरहाउसिंग सेक्टर में 100 फीसद प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति भी दे रखी है और विभिन्न टैक्स रियायतें देकर निवेशकों को प्रोत्साहित करने का प्रयास भी किया जा रहा है. लेकिन निवेशकों के कदम वेयरहाउसिंग सेक्टर की ओर धीमी गति से बढ़ रहे हैं.
चूंकि पर्याप्त खाद्यान्न भंडारण का संबंध अच्छी विदेशी मुद्रा की कमाई से भी जुड़ गया है अत: खाद्यान्न भंडारण की अच्छी व्यवस्था से खाद्यान्न निर्यात करके खाली होते हुए विदेशी मुद्रा भंडार को भी भरा जा सकेगा. अच्छे खाद्यान्न भंडारण द्वारा यूरो और डॉलर की कमाई विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने में मददगार हो सकती है. अच्छी भंडारण क्षमता और खाद्यान्न की उत्पादकता बढ़ाकर खाद्यान्न के निर्यात को विदेश व्यापार का प्रमुख अंग भी बनाया जा सकता है.
देश में खाद्यान्न उपलब्धता का वर्तमान परिदृश्य चिंताजनक है. खाद्य एवं कृषि संबंधी कुछ नए वैश्विक अध्ययन संदेश दे रहे हैं कि भारत में छोटे किसानों को खुशहाल बनाने पर सबसे अधिक ध्यान देना होगा. इस संदर्भ में सी रंगराजन समिति की रिपोर्ट उल्लेखनीय है जिसमें कहा गया कि देश के 4 करोड़ 60 लाख छोटे किसानों को पर्याप्त भंडारण सुविधा, आसान कर्ज और खेती के समुचित संसाधन उपलब्ध नहीं हैं. अब देश में कृषि बाजारों का आधुनिकीकरण किए जाने और उन्हें बहुवांछित बुनियादी ढांचा मुहैया कराने की भी महती आवश्यकता है.
यह भी ध्यान देना होगा कि खाद्य सुरक्षा के लिए हम जिस तरह गेहूं और चावल की उत्पादकता बढ़ाने की योजना बना रहे हैं, उसी अनुपात में उन्हें रखने के लिए माकू ल भंडारण सुविधा भी स्थापित करनी होगी. इस कार्य में आने वाली अड़चनों को रोकना होगा. यह ध्यान देना होगा कि भारत से खाद्यान्न निर्यात के लिए प्रतिस्पर्धी देशों के समकक्ष निर्यात की रणनीति तैयार हो.
उम्मीद की जानी चाहिए कि देश में कृषि सुधारों के तहत खाद्यान्न उत्पादकता वृद्धि, वेयरहाउसिंग सेक्टर के आधुनिकीकरण तथा भारतीय कृषि सेक्टर को मजबूत आधार दिया जाएगा और खाद्यान्न निर्यात को देश के निर्यात का एक अभिन्न अंग बनाया जाएगा. तभी खाद्यान्न सुरक्षा और किसान का सबलीकरण हो सकता है. (Samay Live)
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