अमेरिका के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश है। फिर
भी सरकार द्वारा बिना किसी प्र्रतिबंध के कपास के निर्यात की स्वीकृति से
इस साल देश का कपास आयात बढ़कर नई ऊंचाई पर पहुंच सकता है। सरकार ने सोमवार
को कपास निर्यात को स्वीकृति दे दी है। इसके पीछे सरकार का तर्क है कि
इससे किसानों को उनकी उपज का अच्छा पैसा मिलेगा।
हालांकि कपास के आयात की मात्रा कपड़ा मिलों की कमजोर सीजन में मांग पर निर्भर करेगी लेकिन भारतीय कपड़ा उद्योग संघ (कनफेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री, सिटी) का मानना है कि घरेलू बाजार में कपास की कम उपलब्धता से इस जिंस का आयात बढ़ेगा। पिछले कपास सीजन में कुल आयात 6 लाख गांठ (प्रति गांठ 170 किलोग्राम) दर्ज किया गया, जो इससे पिछले सीजन में 5 लाख गांठ रहा था। सिटी के महासचिव डी के नायर के अनुसार भारत को कुछ महीनों खासतौर से कमजोर सीजन के दौरान मांग के बराबर कपास आयात करना पड़ेगा। केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय के तहत काम करने वाले कपास सलाहकार बोर्ड (कैब) द्वारा हाल में जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार देश में इस कपास सत्र के दौरान कुल कपास उपभोग 2.52 करोड़ गांठ रह सकता है जो पिछले कपास सत्र में 2.62 करोड़ गांठ था। इसका अर्थ यही है कि घरेलू कपड़ा उद्योग को अपनी जरूरत पूरी करने के लिए औसतन 20 लाख गांठ कपास का आयात करना होगा।
उद्योग जगत के अनुमान के अनुसार देश में कपास का आयात वर्ष 2002-03 के 25 लाख गांठ के रिकॉर्ड को पार कर सकता है। कपड़ा मिलों की एक स्थानीय इकाई मिल मालिक संघ के महासचिव वी वाई ताम्हाणे ने कहा, 'पिछले कुछ अरसे से रुपये में आ रही कमजोरी को देखते हुए आयातित कपास देश से निर्यातित होनेे वाले कपास से भी महंगा रहेगा। इस तरह न केवल कपास और धागे की कीमत बढ़ेगी बल्कि तैयार परिधानों के दाम भी चढ़ेंगे।' इस बीच सिटी ने सरकार से गुहार लगाई है कि वह अपने फैसले को वापस ले और कपास निर्यात के नए प्रस्तावों पर विचार न करे।
घरेलू कपड़ा उद्योग पर इसके प्रतिकूल प्रभावों से आशंकित सिटी के अध्यक्ष एस वी अरुमुगम ने कहा कि देश में निर्यात योग्य अधिशेष की स्थिति नहीं है इसलिए सरकार को तुरंत प्रभाव से चालू सत्र के फसल उत्पादन के निर्यात पर रोक लगानी चाहिए। कैब ने इस कपास सत्र में कपास का कुल क्लोजिंग स्टॉक 25 लाख गांठ रहने का अनुमान लगाया है जबकि मंत्रियों के समूह ने शुरुआत में इसके लिए 50 लाख गांठ का स्तर तय किया था। इससे पहले कैब ने निर्यात के लिए भी 84 लाख गांठों के अधिशेष का अनुमान लगाया था। (BS Hindi)
हालांकि कपास के आयात की मात्रा कपड़ा मिलों की कमजोर सीजन में मांग पर निर्भर करेगी लेकिन भारतीय कपड़ा उद्योग संघ (कनफेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री, सिटी) का मानना है कि घरेलू बाजार में कपास की कम उपलब्धता से इस जिंस का आयात बढ़ेगा। पिछले कपास सीजन में कुल आयात 6 लाख गांठ (प्रति गांठ 170 किलोग्राम) दर्ज किया गया, जो इससे पिछले सीजन में 5 लाख गांठ रहा था। सिटी के महासचिव डी के नायर के अनुसार भारत को कुछ महीनों खासतौर से कमजोर सीजन के दौरान मांग के बराबर कपास आयात करना पड़ेगा। केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय के तहत काम करने वाले कपास सलाहकार बोर्ड (कैब) द्वारा हाल में जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार देश में इस कपास सत्र के दौरान कुल कपास उपभोग 2.52 करोड़ गांठ रह सकता है जो पिछले कपास सत्र में 2.62 करोड़ गांठ था। इसका अर्थ यही है कि घरेलू कपड़ा उद्योग को अपनी जरूरत पूरी करने के लिए औसतन 20 लाख गांठ कपास का आयात करना होगा।
उद्योग जगत के अनुमान के अनुसार देश में कपास का आयात वर्ष 2002-03 के 25 लाख गांठ के रिकॉर्ड को पार कर सकता है। कपड़ा मिलों की एक स्थानीय इकाई मिल मालिक संघ के महासचिव वी वाई ताम्हाणे ने कहा, 'पिछले कुछ अरसे से रुपये में आ रही कमजोरी को देखते हुए आयातित कपास देश से निर्यातित होनेे वाले कपास से भी महंगा रहेगा। इस तरह न केवल कपास और धागे की कीमत बढ़ेगी बल्कि तैयार परिधानों के दाम भी चढ़ेंगे।' इस बीच सिटी ने सरकार से गुहार लगाई है कि वह अपने फैसले को वापस ले और कपास निर्यात के नए प्रस्तावों पर विचार न करे।
घरेलू कपड़ा उद्योग पर इसके प्रतिकूल प्रभावों से आशंकित सिटी के अध्यक्ष एस वी अरुमुगम ने कहा कि देश में निर्यात योग्य अधिशेष की स्थिति नहीं है इसलिए सरकार को तुरंत प्रभाव से चालू सत्र के फसल उत्पादन के निर्यात पर रोक लगानी चाहिए। कैब ने इस कपास सत्र में कपास का कुल क्लोजिंग स्टॉक 25 लाख गांठ रहने का अनुमान लगाया है जबकि मंत्रियों के समूह ने शुरुआत में इसके लिए 50 लाख गांठ का स्तर तय किया था। इससे पहले कैब ने निर्यात के लिए भी 84 लाख गांठों के अधिशेष का अनुमान लगाया था। (BS Hindi)
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