काफी समय से फीका पड़ा हल्दी का रंग अब चटख होने लगा है। हाजिर बाजार में
स्टॉकिस्टों की भारी खरीदारी के चलते कीमतों को समर्थन मिलना शुरू हो गया
है। स्टॉकिस्टों और किसानों के बदले रुख की वजह से वायदा बाजार में भी
हल्दी का रंग चढऩा शुरू हो गया है। पिछले पांच दिनों में वायदा बाजार में
हल्दी की कीमतें करीब 10 फीसदी और हाजिर बाजार में करीब 15 फीसदी चढ़ चुकी
है जबकि पिछले
एक साल में सुस्त मांग की वजह से कीमतों में 60 फीसदी की गिरावट हुई थी।
पिछले एक साल से हल्दी की कीमतों में लगातार गिरावट हो रही थी, जिससे किसानों को काफी नुकसान हो रहा था। नुकसान से बचने के लिए किसानों ने कम कीमत पर माल न बेचने का फैसला किया, जो अब रंग दिखाने लगा है। हल्दी में तेजी का दौर शुरू हो गया है। एनसीडीईएक्स पर हल्दी का मई अनुबंध बढ़कर 4020 रुपये, जून 4216, जुलाई 4420 और अगस्त 4600 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया। हाजिर बाजार में भी कीमत 100 रुपये प्रति क्विंटल बढ़कर 3648 पर पहुंच गई।
ऐंजल ब्रोकिंग की नलिनी राव कहती हैं - दरअसल हाजिर बाजार में स्टॉकिस्ट जमकर खरीदारी कर रहे हैं। दूसरी तरफ किसान कम कीमत पर माल बेचने को तैयार नहीं हैं, जिसका असर वायदा बाजार पर भी पड़ रहा है। फिलहाल हल्दी की कीमतों में सुधार देखने को मिलेगा, लेकिन कीमतों के आगे का सफर आने वाला मॉनसून और कर्नाटक व तमिलनाडु की राजनीति पर निर्भर रहने वाली है क्योंकि इस बार रिकॉर्ड उत्पादन होने की बात की जा रही है।
देश में रिकॉर्ड उत्पादन होने के बावजूद स्टॉकिस्टों के हल्दी पर मेहरमान होने की वजह सरकार द्वारा उठाए गए कदमों को माना जा रहा है। हाल ही कर्नाटक सरकार ने हल्दी का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,000 रुपये प्रति क्ंिवटल तय किया है, इमसें 4092 रुपये न्यूनतम समर्थन मूल्य है और 908 रुपये प्रोत्साहन राशि है।
एसएमसी कमोडिटी के विश्लेषकों का कहना है कि एमएसपी की घोषणा के बाद इरोड में उत्पादकों ने अपना स्टॉक रोक लिया है। अब किसान 5,000 रुपये प्रति क्विंटल से कम दाम पर अपना माल नहीं बेचना चाह रहे हैं। दूसरी तरफ बाजार में ऐसी खबरें हैं कि तमिलनाडु सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य 10,000 रुपये प्रति क्ंिवटल तय करने वाली है। अगर ऐसा होता है तो किसान अपने उत्पाद की कीमत और ज्यादा मांगना शुरू कर देंगे। किसानों की एकता को देखते हुए कारोबारियों को उनके सामने झुकना ही पड़ेगा, यह सोचकर इस समय बाजार में जो माल आ रहा है उसे स्टॉकिस्ट हाथों हाथ ले रहे हैं।
वर्ष 2011-12 में हल्दी की पैदावार रिकॉर्ड 90 लाख बोरी (एक बोरी में 70 किलोग्राम) होने की संभावना जताई जा रही है जबकि वर्ष 2010-11 में हल्दी का कुल उत्पादन 69 लाख बोरी हुआ था। इरोड में 55 लाख बोरी हल्दी की पैदावार होने की संभावना जताई जा रही है, जो पिछले साल से 29 फीसदी अधिक है। देश में हल्दी की सालाना खपत 36-38 लाख बोरी है। मसाला बोर्ड के अनुसार अप्रैल -दिसंबर 2011 के बीच 62,000 टन हल्दी का निर्यात किया गया जबकि पिछले साल की इसी अवधि में 37,400 टन हल्दी का निर्यात किया गया था। रिकॉर्ड उत्पादन के साथ 2011-12 निर्यात के हिसाब से भी रिकॉर्ड बनाएगा, क्योंकि मसाला बोर्ड के हल्दी निर्यात का लक्ष्य अक्टूबर में भी पूरा हो गया है। निर्यातकों को उम्मीद है कि मई-जून में विदेशों से अच्छी मांग निकलेगी। (BS Hindi)
एक साल में सुस्त मांग की वजह से कीमतों में 60 फीसदी की गिरावट हुई थी।
पिछले एक साल से हल्दी की कीमतों में लगातार गिरावट हो रही थी, जिससे किसानों को काफी नुकसान हो रहा था। नुकसान से बचने के लिए किसानों ने कम कीमत पर माल न बेचने का फैसला किया, जो अब रंग दिखाने लगा है। हल्दी में तेजी का दौर शुरू हो गया है। एनसीडीईएक्स पर हल्दी का मई अनुबंध बढ़कर 4020 रुपये, जून 4216, जुलाई 4420 और अगस्त 4600 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया। हाजिर बाजार में भी कीमत 100 रुपये प्रति क्विंटल बढ़कर 3648 पर पहुंच गई।
ऐंजल ब्रोकिंग की नलिनी राव कहती हैं - दरअसल हाजिर बाजार में स्टॉकिस्ट जमकर खरीदारी कर रहे हैं। दूसरी तरफ किसान कम कीमत पर माल बेचने को तैयार नहीं हैं, जिसका असर वायदा बाजार पर भी पड़ रहा है। फिलहाल हल्दी की कीमतों में सुधार देखने को मिलेगा, लेकिन कीमतों के आगे का सफर आने वाला मॉनसून और कर्नाटक व तमिलनाडु की राजनीति पर निर्भर रहने वाली है क्योंकि इस बार रिकॉर्ड उत्पादन होने की बात की जा रही है।
देश में रिकॉर्ड उत्पादन होने के बावजूद स्टॉकिस्टों के हल्दी पर मेहरमान होने की वजह सरकार द्वारा उठाए गए कदमों को माना जा रहा है। हाल ही कर्नाटक सरकार ने हल्दी का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,000 रुपये प्रति क्ंिवटल तय किया है, इमसें 4092 रुपये न्यूनतम समर्थन मूल्य है और 908 रुपये प्रोत्साहन राशि है।
एसएमसी कमोडिटी के विश्लेषकों का कहना है कि एमएसपी की घोषणा के बाद इरोड में उत्पादकों ने अपना स्टॉक रोक लिया है। अब किसान 5,000 रुपये प्रति क्विंटल से कम दाम पर अपना माल नहीं बेचना चाह रहे हैं। दूसरी तरफ बाजार में ऐसी खबरें हैं कि तमिलनाडु सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य 10,000 रुपये प्रति क्ंिवटल तय करने वाली है। अगर ऐसा होता है तो किसान अपने उत्पाद की कीमत और ज्यादा मांगना शुरू कर देंगे। किसानों की एकता को देखते हुए कारोबारियों को उनके सामने झुकना ही पड़ेगा, यह सोचकर इस समय बाजार में जो माल आ रहा है उसे स्टॉकिस्ट हाथों हाथ ले रहे हैं।
वर्ष 2011-12 में हल्दी की पैदावार रिकॉर्ड 90 लाख बोरी (एक बोरी में 70 किलोग्राम) होने की संभावना जताई जा रही है जबकि वर्ष 2010-11 में हल्दी का कुल उत्पादन 69 लाख बोरी हुआ था। इरोड में 55 लाख बोरी हल्दी की पैदावार होने की संभावना जताई जा रही है, जो पिछले साल से 29 फीसदी अधिक है। देश में हल्दी की सालाना खपत 36-38 लाख बोरी है। मसाला बोर्ड के अनुसार अप्रैल -दिसंबर 2011 के बीच 62,000 टन हल्दी का निर्यात किया गया जबकि पिछले साल की इसी अवधि में 37,400 टन हल्दी का निर्यात किया गया था। रिकॉर्ड उत्पादन के साथ 2011-12 निर्यात के हिसाब से भी रिकॉर्ड बनाएगा, क्योंकि मसाला बोर्ड के हल्दी निर्यात का लक्ष्य अक्टूबर में भी पूरा हो गया है। निर्यातकों को उम्मीद है कि मई-जून में विदेशों से अच्छी मांग निकलेगी। (BS Hindi)
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