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14 मई 2012

चीनी उद्योग के डिकंट्रोल पर किसानों की सशर्त सहमति

किसानों के सुझाव
मिलों व उत्पादकों में गन्ना सप्लाई का समझौता किया जाए
मिलों को खुले बाजार में पूरी चीनी की अनुमति दी जाए
उद्योग के विकास के लिए चीनी सेज बनाने की भी मांग

चीनी उद्योग को नियंत्रण मुक्त करने की मांग का किसान संगठन ने भी समर्थन किया है लेकिन इसके साथ ही शर्त रखी है कि गन्ना उत्पादक किसानों को चीनी मिलों को सभी उत्पादों से होने वाली आय का कम से कम 70 फीसदी हिस्सा मिलना चाहिए। किसान संगठन कंसोर्टियम ऑफ इंडियन फार्मर्स एसोसिएशन (सीआईएफए) ने सरकारी पैनल को भेजे पत्र में सुझाव दिया है।

सरकार ने प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) के चेयरमैन सी. रंगराजन की अगुवाई में चीनी को नियंत्रण मुक्त करने के मसले पर अध्ययन करने के लिए पैनल बनाया है। यह पैनल अध्ययन करके अपनी रिपोर्ट देगा। कंसोर्टियम ने मांग की है कि सरकार को चीनी उद्योग पर लगे सभी प्रकार के नियंत्रण हटाकर जल्दी से जल्दी मुक्त कर देना चाहिए।

कंसोर्टियम ने सुझाव दिया है कि मिलों को पूरी चीनी खुले बाजार में बेचने की आजादी दी जानी चाहिए। मिलों से राशन में वितरण के लिए सस्ते मूल्य पर लेवी चीनी लेने की व्यवस्था को खत्म करना चाहिए। गन्ना उत्पादकों के हितों की रक्षा के लिए कंसोर्टियम ने कहा है कि उत्पादकों और मिलों के बीच न्यूनतम मूल्य बंटवारा फॉर्मूला बनाना चाहिए।

इसमें गन्ना उत्पादकों की उत्पादन लागत को ध्यान में रखते हुए किसानों को कम से कम 70 फीसदी मिलों की आय मिलना सुनिश्चित करना चाहिए। मिलों के राजस्व में हिस्सेदारी के लिए चीनी, मिलों में उत्पादित बिजली, एथनॉल और अन्य उत्पादों की बिक्री को शामिल किया जाना चाहिए।

इस समय केंद्र सरकार फेयर एंड रिन्यूनरेटिव प्राइस (एफआरपी) तय करती है। मिलों को कम से कम इतना मूल्य किसानों को देना अनिवार्य होता है। इसके अलावा कई राज्य अपने स्तर पर स्टेट एडवायजरी प्राइस (एसएपी) तय करते हैं। इन राज्यों में तय होने वाले एसएपी पर गन्ने का भुगतान किया जाता है।

एसएपी का निर्धारण प्राय: एफआरपी से ज्यादा होता है। उत्तर प्रदेश समेत कई राज्य गन्ने का एसएपी लागू करते हैं।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पिछले जनवरी में रंगराजन की अगुवाई में पैनल का गठन किया था। पैनल की अब तक दो बैठकें हो चुकी हैं। इसकी रिपोर्ट जुलाई के पहले सप्ताह तक पेश होने की संभावना है। किसानों और उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रखकर सरकार ने मिलों पर कई तरह के प्रतिबंध लगा रखे हैं।


कंसोर्टियम ने गन्ना उत्पादकों और मिलों के बीच तीन साल के लिए निश्चित मात्रा में गन्ना सप्लाई के लिए समझौता होना चाहिए और इसमें होने वाले विवादों को निपटाने के लिए अथॉरिटी बनाई जानी चाहिए। अंतरराष्ट्रीय मानकों की चीनी और एथनॉल के उत्पादन के लिए चीनी उद्योग के लिए स्पेशल इकॉनोमिक जोन बनाने का भी सुझाव दिया गया है। (Business Bhaskar)

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