जानकारों के मुताबिक निविदा में रहती है गड़बड़ी की आशंका
यदि सरकार किसी गरीब या खाद्यान्न की कमी वाले देश को गेहूं निर्यात कर रही है तो ठीक है, यदि किसी निजी कंपनी को गेहूं जा रहा है तो इसकी नीलामी की जानी चाहिए। -प्रशांत भूषण वरिष्ठ अधिवक्ता
अपारदर्शी तरीका
केंद्र सरकार ने 19 जुलाई 2011 को गैर-बासमती चावल के निर्यात की अधिसूचना जारी की थी। सरकार ने दस लाख टन चावल के लिए 82 निर्यातकों को पहले आओ पहले पाओ आधार पर निर्यात कोटा जारी किया था। इसके लिए एलओआई ई-मेल के जरिए आमंत्रित किए गए थे। आवेदन के लिए सिर्फ दो दिन का समय दिया गया था। इसके खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी।
केंद्रीय पूल से गेहूं निर्यात के लिए निविदा के बजाए सरकार को ऑनलाइन नीलामी प्रक्रिया अपनानी चाहिए। जानकारों का कहना है कि निविदा में गड़बड़ी की आशंका रहती है, लेकिन ऑनलाइन नीलामी से पारदर्शिता बनी रहती है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के दाम कम होने के कारण भारत से सब्सिडी देकर ही निर्यात किया जा सकता है। इसलिए ऑनलाइन नीलामी से सब्सिडी के गलत इस्तेमाल को रोका जा सकता है।
स्टेट ट्रेडिंग कॉर्पोरेशन (एसटीसी) ने केंद्रीय पूल से गेहूं निर्यात के लिए निविदा मांगी है। इसमें विदेशी आयातक ही भाग ले सकेंगे तथा निर्यात कांडला और मुंद्रा बंदरगाहों से होगा। निर्यात विपणन सीजन 2011-12 और 2012-13 के गेहूं का होगा। निविदा में निर्यात की मात्रा और कीमत तय नहीं है।
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने 2जी स्पेक्ट्रम मामले में अपने फैसले में कहा था कि प्राकृतिक संसाधन को व्यावसायिक उद्देश्य के लिए निजी क्षेत्र को बेचा जा रहा है तो उसकी नीलामी होनी चाहिए। जहां तक गेहूं निर्यात का सवाल है, यदि सरकार किसी गरीब देश या खाद्यान्न की कमी वाले देश को निर्यात कर रही है तो ठीक है, यदि किसी निजी कंपनी के पास गेहूं जा रहा है तो इसकी नीलामी की जानी चाहिए। उल्लेखनीय है कि 2जी स्पेक्ट्रम केस में सुप्रीम कोर्ट ने पहले आओ पहले पाओ नीति को भी गलत करार दिया था।
एमसंस इंटरनेशनल लिमिटेड के सलाहकार टी.पी.एस. नारंग ने बताया कि निविदा और नीलामी दोनों प्रक्रियाओं में गड़बड़ी की आशंका रहती है। गैर-बासमती चावल निर्यात के लिए सरकार ने ऑनलाइन प्रक्रिया शुरू की थी लेकिन उसमें भी गड़बड़ी हुई। इसीलिए सरकार को गेहूं निर्यात ओपन जरनल लाइसेंस (ओजीएल) के तहत करना चाहिए। निर्यातक चाहे तो केंद्रीय पूल से गेहूं खरीद सकता है। सरकार को एफसीआई के गेहूं का न्यूनतम दाम तय कर देना चाहिए।
एफसीआई के अनुसार विपणन सीजन 2012-13 के लिए गेहूं का एमएसपी 1,285 रुपये और इकोनॉमिक कॉस्ट 1822.50 रुपये प्रति क्विंटल है। बंदरगाह पर इसका भाव 233 डॉलर प्रति टन बैठता है। इसमें 30 से 40 डॉलर प्रति टन भाड़ा जोडऩे के बाद भाव 263-273 डॉलर हो जाता है। विपणन सीजन 2011-12 के एमएसपी के आधार पर एमएसपी में परिवहन लागत जोडऩे के बाद बंदरगाह पर गेहूं का भाव 248-258 डॉलर प्रति टन होगा। (Business Bhaskar....R S Rana)
यदि सरकार किसी गरीब या खाद्यान्न की कमी वाले देश को गेहूं निर्यात कर रही है तो ठीक है, यदि किसी निजी कंपनी को गेहूं जा रहा है तो इसकी नीलामी की जानी चाहिए। -प्रशांत भूषण वरिष्ठ अधिवक्ता
अपारदर्शी तरीका
केंद्र सरकार ने 19 जुलाई 2011 को गैर-बासमती चावल के निर्यात की अधिसूचना जारी की थी। सरकार ने दस लाख टन चावल के लिए 82 निर्यातकों को पहले आओ पहले पाओ आधार पर निर्यात कोटा जारी किया था। इसके लिए एलओआई ई-मेल के जरिए आमंत्रित किए गए थे। आवेदन के लिए सिर्फ दो दिन का समय दिया गया था। इसके खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी।
केंद्रीय पूल से गेहूं निर्यात के लिए निविदा के बजाए सरकार को ऑनलाइन नीलामी प्रक्रिया अपनानी चाहिए। जानकारों का कहना है कि निविदा में गड़बड़ी की आशंका रहती है, लेकिन ऑनलाइन नीलामी से पारदर्शिता बनी रहती है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के दाम कम होने के कारण भारत से सब्सिडी देकर ही निर्यात किया जा सकता है। इसलिए ऑनलाइन नीलामी से सब्सिडी के गलत इस्तेमाल को रोका जा सकता है।
स्टेट ट्रेडिंग कॉर्पोरेशन (एसटीसी) ने केंद्रीय पूल से गेहूं निर्यात के लिए निविदा मांगी है। इसमें विदेशी आयातक ही भाग ले सकेंगे तथा निर्यात कांडला और मुंद्रा बंदरगाहों से होगा। निर्यात विपणन सीजन 2011-12 और 2012-13 के गेहूं का होगा। निविदा में निर्यात की मात्रा और कीमत तय नहीं है।
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने 2जी स्पेक्ट्रम मामले में अपने फैसले में कहा था कि प्राकृतिक संसाधन को व्यावसायिक उद्देश्य के लिए निजी क्षेत्र को बेचा जा रहा है तो उसकी नीलामी होनी चाहिए। जहां तक गेहूं निर्यात का सवाल है, यदि सरकार किसी गरीब देश या खाद्यान्न की कमी वाले देश को निर्यात कर रही है तो ठीक है, यदि किसी निजी कंपनी के पास गेहूं जा रहा है तो इसकी नीलामी की जानी चाहिए। उल्लेखनीय है कि 2जी स्पेक्ट्रम केस में सुप्रीम कोर्ट ने पहले आओ पहले पाओ नीति को भी गलत करार दिया था।
एमसंस इंटरनेशनल लिमिटेड के सलाहकार टी.पी.एस. नारंग ने बताया कि निविदा और नीलामी दोनों प्रक्रियाओं में गड़बड़ी की आशंका रहती है। गैर-बासमती चावल निर्यात के लिए सरकार ने ऑनलाइन प्रक्रिया शुरू की थी लेकिन उसमें भी गड़बड़ी हुई। इसीलिए सरकार को गेहूं निर्यात ओपन जरनल लाइसेंस (ओजीएल) के तहत करना चाहिए। निर्यातक चाहे तो केंद्रीय पूल से गेहूं खरीद सकता है। सरकार को एफसीआई के गेहूं का न्यूनतम दाम तय कर देना चाहिए।
एफसीआई के अनुसार विपणन सीजन 2012-13 के लिए गेहूं का एमएसपी 1,285 रुपये और इकोनॉमिक कॉस्ट 1822.50 रुपये प्रति क्विंटल है। बंदरगाह पर इसका भाव 233 डॉलर प्रति टन बैठता है। इसमें 30 से 40 डॉलर प्रति टन भाड़ा जोडऩे के बाद भाव 263-273 डॉलर हो जाता है। विपणन सीजन 2011-12 के एमएसपी के आधार पर एमएसपी में परिवहन लागत जोडऩे के बाद बंदरगाह पर गेहूं का भाव 248-258 डॉलर प्रति टन होगा। (Business Bhaskar....R S Rana)
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